कृषि उत्पाद बाजार समिति
APMC क्या है ? यह जाने वगैर किसान APMC का बचाव कर रहे हैं, सरकार के द्वारा लाए गए बिलों का विरोध कर रहे हैं? तो सवाल खडा होता है कि क्या वास्तव में APMC ( कृषि उत्पाद बाजार समिति ) से सभी किसानों को मदद मिलती भी है ? क्या APMC के अंतर्गत सभी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है ? तो आइये APMC के सम्पूर्ण इतिहास के साथ ही जानें APMC किसान के विकास के लिए कितनी सहायक है ।
APMC क्या है?
ए पी एम सी का पूरा नाम कृषि उत्पाद बाजार समिति है। जिसे अंग्रेजी में Agriculture Producing Market company कहते हैं । APMC को ही स्थानीय भाषा में "मंडी " कहा जाता है। इसमें लगभग 2477 प्रमुख कृषि बाजार है। और 4843 उप-बाजार आते हैं। जो APMC के तहत भारत में संचालित होते हैं। एपीएमसी एक्ट में यह प्रावधान किया गया है। कि देश में उत्पादित होने वाली वस्तुएं जैसे - अनाज दालें खाद्य, तेल ,फल और सब्जियां यहां तक कि चिकन , बकरी, भेड़, मछली आदि । वस्तुओं की पहली बिक्री एपीएमसी के तहत लाइसेंस धारी दलालों के जरिए होगी । मतलब यदि देश में कोई भी फसल उगाई जा रही है। वह सबसे पहले मंडी में बिकेगी । यदि कोई व्यापारी सीधे किसान से भारी मात्रा में फसल खरीदता है तो उसे अपराध माना जाएगा। इसके अलावा एपीएमसी नीलामी के लिए हॉल , गोदााम , किसान सहायता केंद्र , मिट्टी के परीक्षण प्रयोगशालाा , जल शोधन संयंत्र आदि सुविधाएं उपलब्ध कराती है । सामान्यतः है प्रत्येक नगर पालिका में एक मंडी समिति होती है।
APMC का इतिहास
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सरकार के द्वारा आश्वासन दिया गया था। कि किसानों की स्थिति में सुधार करेंगे । उस समय किसान साहूकारों और महाजनों के चंगुल में आसानी से फंस जाते थे। क्योंकि एक ग्रामीण किसान के खेती के अलावा भी अनेक प्रकार के खर्च होते थे। होते हैं जैसे - शादी , हवन , नामकरण, रोटी क्रिया-कर्म स्वास्थ्य आदि गरीब किसानों के पास पैसे होते नहीं थे। इसलिए उन्हें ऊंची ब्याज दरों पर साहूकारों से पैसे लेने पड़ते थे। और पैसे समय से ना लौटाने के कारण साहूकार तैयार फसल पर जबरन अधिकार जमा लेते थे । इस तरह किसानों का शोषण चरम स्तर पर था। सरकार ने स्थिति को सुधारने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए एपीएमसी की स्थापना की। ताकि किसानों की फसल साहूकार नौने-पौने दाम में न खरीदें। और कानून बनाया गया कि अब-से किसान केवल मंडी में ही फसल बेचेगा या फिर लाइसेंस धारी दलालों को बेंचेंगा। जो बाद में फसल को मंडी तक ही पहुंचाते थे।
APMC की संरचना एवं लाभ
(कृषि उत्पाद बाजार समिति) मंडियों में निर्णय लेने वाले शीर्ष पदों की संरचना इस तरह से बनाई गई थी कि इसमें एक बड़ा बहुमत किसानों का हो और इस समिति का अध्यक्ष भी किसान ही होता है। वर्तमान समय में मंडियों में भी राजनीति खूब चलती है।
- एपीएमसी में थोक विक्रेता होते हैं जो किसान के द्वारा उत्पादित फसल की कीमत की बोली लगाते हैं जो फसल की कीमत में अधिक बोली लगाता है वह खरीद लेता है ।
- एपीएमसी में फुटकर दुकानें भी होती है। जहां आम आदमी चाहे तो मंडी से सब्जी खरीद सकता है ।
- जैसा कि मैंने पहले बताया एपीएमसी में मिट्टी का टेस्ट करवाना भी हो जाता है।
- कुछ लोग आढ़तिए होते हैं । जो किसानों की फसल बेचने में मदद करते हैं। कमीशन एजेंटों को हरियाणा में आढ़तिए कहा जाता है।
एपीएमसी की समस्याएं
किसानों द्वारा उत्पादित उत्पाद को खरीदने का एकाधिकार एपीएमसी के पास है। किसान जो भी उत्पादित करेगा APMC में ही बेचेगा। वर्तमान समय में यह एक समस्या बन चुकी है। क्योंकि यदि किसी किसान को कोई कंपनी या बाहरी व्यापारी फसल को अधिक मूल्य पर खरीदने को तैयार भी हो तो वह उसे बेंच नहीं सकता। और एकाधिकार के कारण देश में प्रतियोगी बाजार व्यवस्था के विकास में रुकावट आती है ।वास्तव में एकाधिकार जहां भी होता है वहां समस्या आती ही है । सभी व्यापारी कार्टेल बना लेते हैं। कार्टेल का अर्थ यह हुआ कि जितने भी खरीदार होते हैं। एक समूह बना लेते हैं और आपस में मीटिंग करके खरीदी जाने वाली फसल की कीमत पहले ही तय कर लेते हैं । फिर किसान कुछ भी कर ले उस निश्चित कीमत से अधिक में नहीं बेंच सकते । साथ ही साथ कमीशन एजेंटों को भी साथ मिला लेते हैं । इससे सभी फसल की कीमत को थोड़ा सा आगे पीछे करके ही बताते हैं । जिससे कि प्रत्यक्ष बाजार, संगठित खुदरा बिक्री , कृषि प्रसंस्करण, उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने और उन्नत वितरण प्रणाली में किसानों को कोई सहायता नहीं मिल पाती है। इसके अलावा मंडियों में विभिन्न प्रकार के लगाए जाते हैं। जैसे- बाजार शुल्क 3%, ग्रामीण विकास के लिए शुल्क 5% , कमीशन एजेंट 2.5% तथा अन्य करो को मिलाकर 15% तक लग जाता है। यदि आप एक कुंटल गेहूं मंडी में बेचते हैं और उसकी कीमत ₹2000 प्रति क्विंटल है तो इसका 15% कम कर दें । तो सीधे ₹300 का कर (tax) लग जाता है। फिर 1700 रू में ही फसल बिकती है। और फसल की कीमत का भुगतान होने में 3 महीने लग जाते हैं । इसे ज्यादा अच्छा किसान कमीशन एजेंटों को 1500- ₹1600 में देना ज्यादा पसंद करते हैं । जिसमें ना तो कोई टैक्स देना होता है और नगद भुगतान प्राप्त हो जाता है। तीसरा वर्तमान समय में मंडी में राजनीति अत्यधिक बढ़ गई है। हरियाणा में बड़े किसान व समृद्ध परिवार से ही आढतिये होते हैं । और वहां की राजनैतिक पावर भी आढ़तियों के पास ही है। आढ़तिये जो है कमीशन एजेंट होते हैं। कुछ ही लोगों को यह अनुमति मिलती है। उन्हीं के द्वारा खरीद बिक्री होती है । जैसे- किसान आया सीधे थोक व्यापारी को बेंच दो ऐसा नहीं होता है। कमीशन एजेंटों के द्वारा ही फसल बेंची जाती है । कमीशन एजेंटों के एक फायदा यह भी है । वह किसानों की मदद भी करता है । तोलने की दिक्कत ना हो, गुणवत्ता की दिक्कत ना हो , क्योंकि किसान तो बहुत दूर से आता है इसलिए उसे परेशानी ना हो इसका सारा ध्यान रखता है । खास बात यह है। कि रिकॉर्डिंग भी होती है । ताकि कोई घपला ना हो, कमीशन एजेंट का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य होता है। जिससे वह बाद में भाग नहीं सकता । एक भरोसा होता है। एपीएमसी में जो भी बिकता है न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बिकता है।
एपीएमसी सुधार
APMC की कमियों को देखते हुए अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार ने आदर्श एपीएमसी कानून (मॉडल एपीएमसी एक्ट 2003) को बनाया । राज्य सरकारों को अनुमति दी कि वह अपने हिसाब से कानून में जरूरत पड़ने पर बदलाव करके लागू करें। मॉडल अधिनियम के अंतर्गत निम्न व्यवस्था की गई है:-
- किसान अपने कृषि उत्पादों को सीधे प्राइवेट कंपनियों को बेच सकते हैं।
- ऐसे उत्पादों के लिए एक खास बाजार तैयार करना जिनकी जल्दी नष्ट होने की संभावना बनी रहती है।
- निजी व्यक्तियों किसानों और उपभोक्ताओं को कृषि उत्पादों को के लिए नया बाजार के निर्माण की अनुमति देना।
- बाजार में कार्य कर रहे लोगों के लाइसेंस की जगह पंजीकरण की व्यवस्था करना। ताकि उन्हें एक या एक से अधिक बाजार में संचालन की अनुमति मिल सके।
बहुत सारे राज्यों ने मॉडल एपीएमसी एक्ट 2003 अपनाया । बिहार में 2006 में ही लगभग एपीएमसी व्यवस्था खत्म हो चुकी थी। दिल्ली में फलों और सब्जियों में छूट दे दी गई । कर्नाटक में काफी हद तक फ्री कर दिया। जबकि महाराष्ट्र ने प्राइवेट बाजार को बढ़ावा दिया। जानकारी के लिए बता दूं वर्तमान में महाराष्ट्र में कुल 18 निजी बाजार हैं। जिसका टर्नओवर 11000 करोड़ रुपए है । वहीं वहां की मंडियों का टर्नओवर 48000 करोड़ है। यह तो जाहिर होता है की प्राइवेट बाजार और मंडिया एक साथ कार्य कर सकती हैं । क्योंकि इससे महाराष्ट्र के किसानों के बीच प्रतियोगिता बनी रहेगी और किसानों को अधिक से अधिक लाभ भी मिला।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग क्या हैनिष्कर्ष
वर्तमान में सबसे अधिक संख्या में पंजाब और हरियाणा के किसानों के द्वारा विरोध किया जा रहा है । और विरोध करने का मुख्य कारण यह है कि देश में मात्र 6% किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल बेचते हैं। जिसमें 75% किसान पंजाब और हरियाणा से हैं । अर्थात न्यूनतम समर्थन मूल्य का सबसे अधिक लाभ पंजाब और हरियाणा के किसानों को मिलता हैं। वहीं पंजाब के अधिकांश किसान वहां की मंडियों में आढ़तियों की भूमिका निभाते हैं। बहुतों ने तो किसान आंदोलन को आढ़तियों का आंदोलन माना है। वरना बहुत सारे किसानों को तो यूं ही विरोध कर रहे हैं । उन्हें पता ही नहीं है किसान बिल क्या है? और एपीसीएमसी क्या है? न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है ? वहीं दूसरी ओर न्यूनतम समर्थन मूल्य मंडी पर निर्भर करता है। और एपीएमसी में बहुत सारे किसानों की आजीविका जोड़ी है। अतः जरूरी है किए APMC (मंडिया) भविष्य में भी बनी रहे क्योंकि जहां मंडियों में कमियां है तो वहीं बहुत सारे लाभ भी हैं। वैसे तो सरकार ने यह आश्वासन दिया है । एपीएमसी मंडिया विधिवत बनी रहेंगी। यदि वे सरकार लिखित रूप यह लिख दे तो शायद किसान आंदोलन रुक जाए।
यदि आपको मेरे द्वारा लिखे गए आर्टिकल से महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है तो ऐसे ही जानकारी प्राप्त करने के लिए मेरी वेबसाइट को विजिट करें आर्टिकल अच्छे लगते हैं तो अधिक से अधिक शेयर करें।
Sources : भारतीय अर्थव्यवस्था (रमेश सिंह ) और भारतीय अर्थव्यवस्था (दत्त एवं सुंदरम)
इन्हें भी जाने :
Very nice bro
जवाब देंहटाएं