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उत्तराखंड का भू-कानून

उत्तराखंड का भू-कानून चर्चा में क्यों? हाल ही में प्रदेश में लगातार चल रही मांग के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एलान किया है कि उनकी सरकार वृहद भू-कानून लाने जा रही है। अगले साल बजट सत्र में कानून का प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि 250 वर्ग मीटर आवासीय और 12.50 एकड़ अन्य भूमि के नियम तोड़ने वालों की भूमि जांच के बाद सरकार में निहित की जाएगी। क्या है उत्तराखंड का वर्तमान भू-कानून ? वर्तमान में लागू भू-कानून के तहत एक व्यक्ति को 250 वर्गमीटर जमीन ही खरीद सकता है। लेकिन व्यक्ति के अपने नाम से 250 वर्गमीटर जमीन खरीदने के बाद पत्नी के नाम से भी जमीन खरीदी है तो ऐसे लोगों को मुश्किल आ सकती है। तय सीमा से ज्यादा खरीदी गई जमीन को सरकार में निहित करने की कार्रवाई करेगी। यह कानून केवल बाहरी राज्यों के लोगाें पर लागू है। उत्तराखंड के स्थायी निवासी कितनी भी जमीन खरीद सकते हैं। भू-कानून का इतिहास राज्य में बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद सीमित करने के लिए वर्ष 2003 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश के कानून में संशोधन किया और राज्य का अपना भूमि कानून अस्तित्व में आया। इस संशोध

देहरादून का इतिहास - देवभूमि उत्तराखंड

 देहरादून का इतिहास

मेरे प्रिय पाठक आपका प्रेम पूर्वक नमस्कार हमारे इस नए लेख में | इस लेख में देहरादून के इतिहास की संपूर्ण जानकारी देंगे अतः आपसे अनुरोध है कि हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ें |

History of Dehradun

आर्थिक एवं पर्यटक स्थलों की दृष्टि से देवभूमि उत्तराखंड का एक और प्रमुख शहर - देहरादून। जहां पहाड़ों की रानी कही जाने वाली मसूरी,  देवों की पवित्र भूमि - ऋषिकेश, लाखामंडल , चकराता जैसी पहाड़ियां देहरादून को सुंदर और आकर्षित बनाती है। देहरादून दुनिया में विश्व प्रसिद्ध है। फिल्म जगत की दुनिया में भी एक विशेष पहचान बनाए हुए अनेकों बॉलीवुड फिल्मों का स्थल है।

जैसा कि आप सभी जानते हैं उत्तराखंड की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए उत्तराखंड के इतिहास का अध्ययन करने से पूर्व उत्तराखंड के प्रमुख शहरों के बारे में अध्ययन करना अति आवश्यक है। यदि आप उत्तराखंड के इतिहास का गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं तो 25 प्रमुख शहरों की सीरीज को जरूर पढ़ें।  देहरादून पर्यटक स्थल की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनपद  है।  देहरादून जनपद का प्रमुख शहर है - देहरादून शहर  और इसके अन्य प्रमुख शहरों का अध्ययन करेंगे जैसे मसूरी, ऋषिकेश, चकराता लाखामंडल। 

बीते कुछ दशकों से देहरादून ने तेजी से विकास कर शिक्षा, संस्कृति, कृषि क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा है। वर्तमान समय में देहरादून को उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी का दर्जा प्राप्त है। देहरादून उत्तर में हिमालय से तथा दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है। तथा पूर्व में गंगा नदी और पश्चिम में यमुना नदी प्राकृतिक सीमा बनाती है। इस तरह प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण यह नगर स्वयं अपनी एक अलग पहचान प्रदर्शित करता है। अतः  यह जरूरी है कि देहरादून के इतिहास के साथ भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक स्थिति का विस्तारपूर्वक अध्ययन करें।

देहरादून का इतिहास

देहरादून दो शब्दों से मिलकर बना है - देहरा और दून। किंवदंतियों के अनुसार देहरा शब्द का उद्भव डेरा शब्द से हुआ है। दरअसल 1675 में सिखों के सातवें गुरु हरि राय के पुत्र रामराय ने विश्राम के लिए अपने साथियों के साथ यहां डेरा लगाया। (इस समय गढ़वाल का शासक फतेह शाह था) । इसी डेरा को बाद में देहरा कहा जाने लगा। लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि देहरा शब्द का अर्थ देवगृह या देवालय से निकला  है। वहीं दूसरा शब्द  दून (दूण) शब्द का अर्थ है - दो पहाड़ों के बीच की घाटी है। यदि बात करें देहरादून के इतिहास की तो देहरादून हिमालय पर्वत श्रेणी का एक भाग और हिमालय देवी देवताओं का मुख्य पवित्र स्थल है इसीलिए इसका इतिहास कुछ सौ बरसों पुराना न होकर लाखों वर्षों  पुराना है जिसका उल्लेख पुराणों और ग्रंथों में भी मिलता है ।

                  स्कंद पुराण में इस भूभाग को केदारखंड कहा गया है । केदार का अर्थ है शंकर या शिव। इस प्रकार प्राचीन काल में इस भूभाग को शिव भूमि के नाम से जाना जाता था। देहरादून-ऋषिकेश-हरिद्वार में ऐसे स्थल हैं जो रामायण काल और महाभारत से जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि लंका से लौटने के बाद भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण इस क्षेत्र में आए थे। यही स्थान गुरु द्रोणाचार्य का आवास स्थान भी कहा जाता है। महाभारत में कुणिंदो और खस जाति का वर्णन मिलता है ।  मध्य हिमालय के क्षेत्र तराई क्षेत्र में सुबाहु नाम का राजा राज करता था। उस समय कुणिंदों का कालाकोट (कालसी और देहरादून का क्षेत्र) पर आधिपत्य था। जबकि कालसी पर राजा विराट शासन कर रहे थे । कालसी की राजधानी विराटगढ़ थी (राजा विराट वही राजा थे जिनके यहां पांडवों ने 1 वर्ष अज्ञातवास वेश बदलकर व्यतीत किया था । राजा विराट की पुत्री उत्तरा का विवाह अभिमन्यु के साथ हुआ था) ।  

                  महाभारत के युद्ध के बाद  स्वर्ग की यात्रा के दौरान पांडवों ने यहां कुछ समय व्यतीत किया था। वैदिक साहित्य के अनुसार आर्यों से पूर्व इस भूमि में असुर जाति के लोग निवास करते थे इस क्षेत्र के यज्ञ, नाग व असुरों के पतन के बाद यहां किरत आए थे। 300 ईसा पूर्व जब मौर्य वंश ने संपूर्ण भारत पर पर नियंत्रण स्थापित किया । उस समय देहरादून उत्तर कुरु जनपद में शामिल था। जिस पर मौर्य शासकों का पूर्ण नियंत्रण था। बिंदुसार के पुत्र अशोक ने कलिंग के युद्ध के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। और बौद्ध धर्म की शिक्षा  का प्रचार प्रसार देश-विदेश के कोने-कोने तक करवाया। सम्राट अशोक के काल में बौद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार प्रसार हुआ। अनेकों शिलालेखों का निर्माण करवाया। उन्हीं शिलालेखों में अशोक ने यमुना नदी के किनारे कालसी नामक स्थान में एक शिलालेख का निर्माण कराया। जिसे आज "कालसी शिलालेख" के नाम से जाना जाता है। इसी अभिलेख से यह भी पता चलता है कि कुणिंद मौर्यों के अधीन थे। कालसी का उल्लेख सातवीं सदी में चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपनी यात्रा में किया है। चीनी यात्री के अनुसार कालसी उस समय एक समृद्धशाली क्षेत्र था। कालसी का पुराना नाम सुधनगर था। सुधनगर के निकट हरिपुर के राजा रसाल केे नाम के अवशेष प्राप्त हुए थे। मौर्यों के पश्चात यहांं शीलवर्मन और  गुप्त वंश के राजाओं ने शासन स्थापित किया लेकिन गुप्त काल के बाद केंद्र की शक्ति कमजोर हो गई और अनेकों राजवंशों का उदय हुआ। ऐसे ही हिमालय के उत्तराखंड राज्य में कत्यूरी राजवंश का उदय हुआ। जिन्हें कार्तिकेयपुर वंश के नाम से जाना जाता है । कत्यूरीओं ने लगभग 300 वर्षों तक उत्तराखंड में शासन किया। कत्यूरी शासकों के बाद गढ़वाल के परमार वंश ने संपूर्ण गढ़वाल मंडल पर शासन व्यवस्था स्थापित की । वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं पर चंद राजवंश का उदय हुआ। गढ़वाली राजाओं ने गढ़वाल सहित देहरादून पर 1804 ईसवी तक शासन व्यवस्था बनाए रखा। लेकिन 1804 ईसवी में देहरादून के खुड़बुड़ा मैदान में प्रदुम्न शाह गोरखाओं से हार जाते हैं। और देहरादून पर गौरखाओं का अधिकार हो जाता है।

             1804-1815 तक लगभग 2 दशकों तक यह क्षेत्र गोरखाओं के कब्जे में था। अप्रैल 1815 में अंग्रेजों ने गोरखा सैनिकों को गढ़वाल से हटा दिया और गढ़वाल पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया । प्रारंभिक समय में अंग्रेजों ने देहरादून की स्थापना 1817 में की और सहारनपुर जिले में शामिल किया और 1825 में देहरादून को कुमाऊं कमिश्नरी में शामिल कर लिया गया। लेकिन जिला सहारनपुर ही रहा। परंतु देहरादून की भौगोलिक और आर्थिक स्थिति को देखते 1871 में अंग्रेजों नेे जिला बना दिया। आजादी के बाद 1975 ईस्वी में देहरादून को गढ़वाल मंडल में शामिल किया गया। राज्य गठन से पूर्व 9 दिसंबर 1998 में देहरादून को नगर निगम बनाया गया। 

            आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहाड़ी जिलों को गढ़वाल व कुमाऊं 2 मंडलों में विभाजित कर दिया गया। देहरादून को मेरठ मंडल से गढ़वाल मंडल में मिला दिया गया। अंततः कुमाऊं और गढ़वाल के अथक प्रयासों और संघर्षों से 9 नवंबर सन 2000 को उत्तरांचल को 27वां नए राज्य के रूप में दर्जा प्राप्त हुआ और देहरादून को इसकी अस्थाई राजधानी बनाया गया।

देहरादून की भौगोलिक स्थिति

देहरादून जनपद लगभग 3088 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ विस्तृत क्षेत्र है। संपूर्ण देहरादून का क्षेत्र दो भागों में विभाजित है । घाटी में स्थित प्रमुख शहर देहरादून है तथा हिमालय की घाटियों के बीच स्थित हैै। दूसरा जौनसार बावर केे क्षेत्र आता है जो हिमालय की पहाड़ी में बसा हुआ है यहां मसूरी, सहस्त्रधारा, चकराता, लाखामंडल तथा डाकपत्थर जैसे प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थल है जो देहरादून थी और मनमोहक बनाते हैंं। देहरादून के उत्तर में उत्तरकाशी व दक्षिण में हरिद्वार स्थित है। पूर्व में पौढ़ी व पश्चिम का भाग हिमालय प्रदेश की सीमा को छूता है जहां टोंंस और यमुना नदी गुजरती है। देहरादून  रहने के लिए अनुकूल वातावरण कराते हैं जिस कारण देहरादून जनपद की कुल जनसंख्या 16,96,969 है । जनसंख्या की दृष्टि से देहरादून  उत्तराखंड का दूसरा बड़ा जिला है । जनपद की वर्तमान साक्षरता दर 78.5% है जो सभी जिलों में सर्वाधिक है। पुरुषों की साक्षरता दर 85.87 तथा महिलाओं की 70.2 जीरो प्रतिशत है। महिला साक्षरता की दृष्टि से देहरादून जनपद का उत्तराखंड में प्रथम स्थान है ।

देहरादून पर्यटक स्थल के रूप में

पर्यटन की दृष्टि से देहरादून जनपद उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर ऋषिकेश तथा मसूरी मुख्य पर्यटक स्थल है।  लाखामंडल, चकराता, सहस्त्रधारा, हनोल, कैमल बैक, आदि देहरादून को महत्वपूर्ण राज्य को बेहद आकर्षक बनाते हैं।

ऋषिकेश 

ऋषिकेश देहरादून का सर्वाधिक प्रमुख नगर है जो कि हरिद्वार से 24 किलोमीटर दूर तथा देहरादून से 43 किलोमीटर दूर उत्तर बॉर्डर पर गंगा एवं चंद्रभागा नदी संगम पर स्थित है। ऋषिकेश को 'संत नगरी' व 'विश्व योग' की राजधानी कहा जाता है।कथाओं के अनुसार यह नगर ऋषि मुनियों की तपस्थली और आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रहा है। ऋषिकेश का प्राचीन नाम कुब्जाम्रक है । यहां सर्वाधिक मंदिर व तीर्थस्थान स्थित है। जिसमें नीलकंठ महादेव, तपोवन लक्ष्मण झूला,  त्रिवेणी घाट , भद्रदाज मंदिर, शिवानंद आश्रम, शत्रुघ्न मंदिर, शिवानंद झूला, कैलाश निकेतन मंदिर, भरत मंदिर आदि शामिल है। ऋषिकेश का सबसे पुराना मंदिर भरत मंदिर है।

                 केंद्र सरकार ने ऋषिकेश व हरिद्वार को भारत के पहले जुड़वा राष्ट्रीय विरासत शहरों का खिताब दिया। ऋषिकेश नगर पालिका 1952 में बनी। और राज्य गठन के बाद अक्टूबर 2017 में ऋषिकेश को नगर निगम घोषित किया गया। ऋषिकेश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIMS) की स्थापना 2004 में की गई इसमें फरवरी 2014 से कार्य शुरू किया।

             

मसूरी -  पहाड़ों की रानी

मसूरी को गंगोत्री व यमुनोत्री का प्रवेश द्वार कहा जाता है। इसके अलावा मसूरी को 'पहाड़ों की रानी' भी कहा जाता है। दिसंबर और जनवरी में विंटर लाइन नामक प्राकृतिक घटना घटित होती है। विंटर लाइन की घटना विश्व में  स्विट्जरलैंड में घटित होती है। मसूरी देहरादून से लगभग 35 किलोमीटर दूर मध्य हिमालय श्रेणी के पहाड़ों पर स्थित है। यहां पर सर्वाधिक मात्रा में क्रीम रंग का भारीवास तक प्रकार के चूने का भंडार पाया जाता है। यह भारत के सबसे पुराने हिल स्टेशनों में से एक है।

            मसूरी की खोज आयरिश अफसर कैप्टन यंग ने 1824 की थी। मसूरी नगर पालिका का गठन 1842 में हुआ। मसूरी राज्य की सबसे पुरानी नगरपालिका परिषद है। 1842 ईसवी में जॉन मैकिनन ने मसूरी से राज्य का प्रथम समाचार पत्र 'द हिल्स' का संपादन किया जो 8 वर्षों तक चला था। यहां 2 सितंबर 1994 में मसूरी गोलीकांड घटना घटित हुई । 

            सन् 1 सितंबर 1959 को मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी की स्थापना की गई थी। मसूरी में हार्डी जलप्रपात व भट्टा जलप्रपात प्रमुख दर्शनीय स्थल है इसके अलावा कैमलबैक 3 किलोमीटर लंबा रोड प्रमुख स्थल है। मसूरी रोपवे का निर्माण 1970 में हुआ। मसूरी की सबसे ऊंची चोटी लाल टिब्बा और गनहिल पहाड़ी है।

*विंटर लाइन क्या है ?

जब कभी सूर्यास्त के समय 15 से 20 मिनट तक सूर्य की लालिमा लंबी रेखा की भांति दिखे तो उस दृश्य को विंटर लाइन कहते हैं।

सहस्त्रधारा

अनेक समूहों की धाराओं में बहने के कारण इसे सहस्त्रधारा कहा जाता है। यह प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने के कारण इस स्थान पर पर्यटकों की काफी भीड़ रहती है। 

देहरादून से संबंधित प्रमुख तथ्य


देहरादून उत्तराखंड की राजधानी होने के कारण यहां आने को प्रमुख कार्यालय और संस्थाओं की स्थापना की गई है जिनमें से प्रमुख संस्थाएं निम्नलिखित हैं। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान

भारतीय वन्यजीव संस्थान

उत्तराखंड भाषा संस्थान

भारतीय सैन्य अकादमी

हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड - ऋषिकेश (देहरादून)

देहरादून जनपद से संबंधित प्रश्न

(1) किस गढ़वाल शासक के शासनकाल में गुरु रामराय देहरादून आए थे ?
(a) अजयपाल
(b) पृथ्वी शाह
(c) फतेह शाह
(d) सुदर्शन शाह

(2) निम्नलिखित में से उत्तराखंड के किस जिले की साक्षरता दर सबसे अधिक है ?
(a) देहरादून
(b) अल्मोड़ा
(c) हरिद्वार
(d) चमोली

(3) किस अभिलेख से यह  पता चलता है कि कुणिंद लोग मौर्य के अधीन थे ?
(a) हाथी गुम्फा अभिलेख
(b) कालसी शिलालेख
(c) एरण अभिलेख
(d) भ्राबू शिलालेख

(4) उत्तराखंड राज्य एवं उत्तर भारत की प्रथम जल विद्युत  परियोजना कहां बनाई गई है ?
(a) देहरादून में
(b) हरिद्वार में 
(c) नैनीताल में 
(d) मसूरी में

(5) जनसंख्या की दृष्टि से देहरादून जनपद का उत्तराखंड में कौन सा स्थान है ?
(a) पहला
(b) दूसरा
(c) तीसरा
(d) चौथा

(6) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान कहां स्थित है?
(a) अल्मोड़ा
(b) पिथौरागढ़
(c) देहरादून
(d) हरिद्वार

(7) उत्तराखंड में चूने का विशाल भंडार होने से अधिकांश सीमेंट फैक्ट्रियां कहां स्थित है ?
(a) रुद्रप्रयाग
(b) उत्तरकाशी
(c) पौड़ी गढ़वाल
(d) देहरादून

(8) निम्नलिखित में से कुब्जाम्रक किसका प्राचीन नाम है ?
(a) अल्मोड़ा
(b) देहरादून
(c) हरिद्वार
(d) ऋषिकेश

(9) भारतीय वन्यजीव संस्थान कहां स्थित है ?
(a) अल्मोड़ा
(b) देहरादून
(c) टिहरी
(d) उधम सिंह नगर

(10) कालसी शिलालेख का निर्माण किस  शासक द्वारा कराया गया था ?
(a) पुष्यमित्र शुंग
(b) चंद्रगुप्त मौर्य
(c) सम्राट अशोक
(d) समुद्रगुप्त

(11) उत्तराखंड के किस हिल स्टेशन को 'पहाड़ों की रानी' कहा जाता है ?
(a) मसूरी
(b) ऋषिकेश
(c) नैनीताल
(d) रानीखेत

(12) निम्नलिखित में से किस पर्वतीय स्थल को पहाड़ों की राजा कहा गया है ?
(a) कौसानी
(b) रानीखेत
(c) नैनीताल
(d) चकराता

(13) उत्तराखंड में अशोक कालीन शिलालेख   किस स्थान से मिला है ?
(a) देहरादून
(b) श्रीनगर
(c) कालसी
(d) केदारनाथ

(14) महिला साक्षरता की दृष्टि से देहरादून जनपद का उत्तराखंड में कौन सा स्थान है ?
(a) पहला
(b) दूसरा
(c) तीसरा
(d) चौथा

(15) पहाड़ों की रानी मसूरी किस श्रेणी का अंग है ?
(a) शिवालिक श्रेणी
(b) मध्य हिमालय श्रेणी
(c) वृहत हिमालय श्रेणी
(d) इनमें से कोई नहीं


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Answer - (1)c , (2)a, (3)b, (4)d, (5)b, (6)c, (7)d,  (8)d, (9)b, (10)c, (11)a, (12)d, (13)c, (14)a, (15)b, 

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उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

उत्तराखंड की प्रमुख योजनाएं

उत्तराखंड की प्रमुख योजनाऐं उत्तराखंड की टॉप 10 सबसे महत्वपूर्ण योजना उपयुक्त लेख में उत्तराखंड की प्रमुख योजनाओं की व्याख्या की गई है। जो उत्तराखंड की आगामी परीक्षाओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं। अतः लेख को अन्त तक जरूर पढ़ें व उनसे संबंधित प्रश्नों के उत्तर दें ।  (1) मुख्यमंत्री आंचल अमृत योजना उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित ‘मुख्यमंत्री आँचल अमृत योजना’ का शुभारंभ 7 मार्च 2019 को किया गया। हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रतिभाग करते हुए ‘मुख्यमंत्री आँचल अमृत योजना’ का पुन: शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री ने 11 बच्चों को दूध वितरित कर योजना का शुभारंभ किया। जिस कारण यह योजना प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अत्यधिक हो जाती है। उद्देश्य मुख्यमंत्री ने कहा कि योजना का पुन: शुभारंभ होने से बच्चों के विकास एवं उन्हें पर्याप्त पोषण मिलने में बड़ी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार माँ का आँचल बच्चे का धूपछाँव से बचाव करता है, उसी प्रकार ‘आँचल अमृत योजना’ बच्चों में कुपोषण को द