उत्तराखंड के लोकगीत और लोक नृत्य पहाड़ की अपनी ही बोली और संस्कृति है यहाँ के लोक गीतों का विस्तृत स्वरूप मुक्तको के रूप में मिलता है। विभिन्न अवसरों तथा विविध प्रसंगी में मुक्तकों का व्यवहार होता है, पहाड़ी समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृति पौराणिक काल से रही है. न्यौली इसे न्यौली, न्यौल्या या वनगीत के नामों से पुकारा जाता है, न्यौली का अर्थ किसी नवीन स्त्री को नवीन रुप में सम्बोधन करना और स्वर बदल बदलकर प्रेम परक अनुभूतियों को व्यक्त करना है। न्यौली प्रेम परक संगीत प्रधान गीत है जिसमें दो-दो पंक्ति होती है। पहली पंक्ति प्रायः तुक मिलाने के लिए होती है। न्यौली में जीवन चिन्तन की प्रधानता का भाव होता है। ब्योली ब्योली रैना, मेरो मन बस्यो परदेश, कब आलो मेरो सैंया, मेरो मन लियो हदेश। (अर्थ: रात बीत रही है, मेरा मन परदेश में बसा है। कब आएगा मेरा प्रिय, जिसने मेरा मन ले लिया।) "सबै फूल फुली यौछ मैथा फुलौ ज्ञान, भैर जूँला भितर भूला माया भूलै जन, न्यौली मया भूलै जन", बैरा (नृत्य गीत) बैरा का शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है। अर्थात् यह कुमाऊं क्षे...
Uksssc secretarial Guard 2021 प्रश्न पत्र हल - समूह-ग 2021 ( सचिवालय रक्षक सुरक्षा संवर्ग) वर्ग अ (हिन्दी ) - (कुल प्रश्न -20) आज 26 सितंबर 2021 को Uksssc 2021 सचिवालय रक्षक सुरक्षा संवर्ग की परीक्षा आयोजित की गई । जिसमें 20 प्रश्न हिंदी, 40 प्रश्न उत्तराखंड , व सामान्य ज्ञान से 40 प्रश्न से पूछे गए हैं। प्रथम पृष्ठ में हिंदी के 20 प्रश्नों का उल्लेख उत्तर सहित किया गया है और सभी प्रश्नों के उत्तर की व्याख्या की गई है। Part - 1 (हिंदी) (1) शुद्ध वर्तनी है- (a) संश्लिस्ट (b) संश्लिष्ट (c) संस्लिष्ट (d) संष्लिष्ठ Answer - b (2) निम्न में से घोष वर्ण हैं - (a) ख (b) च (c) म (d) ठ Answer - (c) व्याख्या - कंपन के आधार पर हिंदी वर्णमाला के दो भेद होते हैं। घोष (सघोष) और अघोष । अघोष - जिन वर्णों के उच्चारण में आवाज की जगह केवल सांस का उपयोग होता है उन्हें अघोष वर्ण कहते हैं। जैसे - क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, से। इन वर्गो की कुल संख्या 13 होती है। घोष - जिन वर्णों के उच्चारण में केवल आवाज उपयोग होता है उन्हें घोष या सघोष वर्ण कहते हैं । जैसे - ग, घ, ड़, ...