उत्तराखंड के लोकगीत और लोक नृत्य पहाड़ की अपनी ही बोली और संस्कृति है यहाँ के लोक गीतों का विस्तृत स्वरूप मुक्तको के रूप में मिलता है। विभिन्न अवसरों तथा विविध प्रसंगी में मुक्तकों का व्यवहार होता है, पहाड़ी समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृति पौराणिक काल से रही है. न्यौली इसे न्यौली, न्यौल्या या वनगीत के नामों से पुकारा जाता है, न्यौली का अर्थ किसी नवीन स्त्री को नवीन रुप में सम्बोधन करना और स्वर बदल बदलकर प्रेम परक अनुभूतियों को व्यक्त करना है। न्यौली प्रेम परक संगीत प्रधान गीत है जिसमें दो-दो पंक्ति होती है। पहली पंक्ति प्रायः तुक मिलाने के लिए होती है। न्यौली में जीवन चिन्तन की प्रधानता का भाव होता है। ब्योली ब्योली रैना, मेरो मन बस्यो परदेश, कब आलो मेरो सैंया, मेरो मन लियो हदेश। (अर्थ: रात बीत रही है, मेरा मन परदेश में बसा है। कब आएगा मेरा प्रिय, जिसने मेरा मन ले लिया।) "सबै फूल फुली यौछ मैथा फुलौ ज्ञान, भैर जूँला भितर भूला माया भूलै जन, न्यौली मया भूलै जन", बैरा (नृत्य गीत) बैरा का शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है। अर्थात् यह कुमाऊं क्षे...
उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -15 लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड के हिन्दी साहित्य से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 20 प्रश्नों में से 3-4 प्रश्न उत्तराखंड की समूह-ग परीक्षण में हिन्दी साहित्य से पूछे जाते हैं। प्रत्येक वर्ष सिलेबस में कुछ बदलाव किए जाते हैं और यह लेख समूह-ग 2021 सिलेबस के अनुसार बनाया गया है। अतः लेख को ध्यानपूर्वक पढ़े। Uksssc 2021 syllabus - देखने के लिए यहां click करें हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक व उनकी रचनाएं (According to syllabus) उत्तराखंड के हिन्दी साहित्य से संबंधित 25+ (1) उत्तराखंड का आंचलिक कथाकार किसे माना जाता है ? (a) शैलेश मटियानी (b) मंगलेश डबराल (c) सुमित्रानंदन पंत (d) राहुल सांकृत्यायन व्याख्या :- उत्तराखंड का कथाकार शैलेश मटियानी को माना जाता है। शैलेश मटियानी का जन्म 14 अक्टूबर 1931 को बाढछीना (अल्मोड़ा) में हुआ था। ये प्रसिद्ध हिंदी रचनाकार, कवि ...