सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Uksssc Mock Test - 132

Uksssc Mock Test -132 देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी परीक्षाओं हेतु फ्री टेस्ट सीरीज उपलब्ध हैं। पीडीएफ फाइल में प्राप्त करने के लिए संपर्क करें। और टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। Join telegram channel - click here उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  (1) सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियां के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।              सूची-I.                  सूची-II  A. पूर्वी कुमाऊनी वर्ग          1. फल्दाकोटी B. पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग       2. असकोटी  C. दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग       3. जोहार D. उत्तरी कुमाऊनी वर्ग.        4.  रचभैसी कूट :        A.   B.  C.   D  (a)  1.    2.  3.   4 (b)  2.    1.  4.   3 (c)  3.    1.   2.  4 (d) 4.    2.   3.   1 (2) बांग्ला भाषा उत्तराखंड के किस भाग में बोली जाती है (a) दक्षिणी गढ़वाल (b) कुमाऊं (c) दक्षिणी कुमाऊं (d) इनमें से कोई नहीं (3) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 1. हिंदी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण है 2. हिंदी में लेखन के आधार पर 46 वर्ण है उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/ कौन से सही है? (a) केवल 1 (b) केवल 2  (c) 1 और 2 द

Human development index in hindi

 मानव विकास सूचकांक क्या है?

मानव विकास सूचकांक प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण टॉपिक है। यह एक ऐसा टॉपिक है जिससे प्रतिवर्ष कोई ना कोई प्रश्न आता ही है । अर्थात evergreen टॉपिक है। अतः इसे जितनी जल्दी समझ ले उतना बेहतर है। मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत को 189 देशों में से 131 रैंक प्राप्त हुई है । जबकि पिछले वर्ष भारत को 129 वी रैंक प्राप्त हुई थी। मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(UNDP) द्वारा जारी की जाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार नॉर्वे को पहले स्थान पर रखा गया है। आयरलैंड को दूसरे। वहीं नाइजर अंतिम रैंक प्राप्त हुई है।

मानव विकास सूचकांक क्या है

HDI मानव के विकास को मापने की एक प्रक्रिया है। जिसका मुख्य आधार जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आय का स्तर है। सबसे पहले 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट जारी की गई थी । मानव विकास सूचकांक को विकसित करने का श्रेय पाकिस्तान के महबूब उल हक को जाता है। जिन्होंने विकास के स्तर को मापने और परिभाषित करने का पहला प्रयास किया।
एचडीआई को मापने के मुख्य तीन आयाम है :- 
  • जीवन प्रत्याशा (लम्बा जीवन स्तर)
  • शिक्षा तक पहुंच
  • और आय का स्तर

जीवन प्रत्याशा

जीवन प्रत्याशा का अर्थ है - "लोगों में जीने की आशा" अर्थात लोगों के लंबे एवं स्वास्थ्य जीवन को आंकड़ों में दिखाया जाता है । जितनी अधिक जीवन प्रत्याशा होगी उतनी ही अधिक एचडीआई में रैंकिंग अच्छी होगी। (69.7 वर्ष जन्म से)

शिक्षा

 शिक्षा का अभिप्राय बालिग साक्षरता दर और प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा के समग्र नामांकन के अनुपात से है। अर्थात सभी स्तरों में बच्चों के नाम के दाखिले से हैं और शिक्षा की पहुंच से है।

आय का स्तर

 आय का स्तर अर्थात लोगों की संसाधनों तक पहुंच। ज्यादातर लोग उन दो आयामों को छोड़कर विकास को आय से मापते हैं। जिसकी जितनी आए उतना विकसित माना जाता है । यहां आय  का अर्थ किसी एक व्यक्ति द्वारा खरीदने की क्षमता से मापा जाता है। जिसे पीपीपी (purchasing power parity) कहते हैं । जबकि एचडीआई केवल आय का मानदंड ना मानकर आर्थिक विकास पर जोर देता है। 

यूएनडीपी ऊपर बताए गए तीन आयामों के आधार पर अर्थव्यवस्था को एक श्रेणी प्रदान करता है। यह श्रेणी 0 से 1 के बीच के स्कोर पर आधारित होती है। जो इस प्रकार है-

  • उच्च मानव विकास वाले देश ( विकसित देश) - सूचकांक में 0.800 से 1.00 तक
  • मध्यम मानव विकास वाले देश सूचकांक ( विकासशील देश)-  सूचकांक में 0.500 से 0.799 तक। भारत की HDI वैल्यू 0.645 हो गयी है । इसलिए भारत को मध्य मानव विकास सूचनाओं की श्रेणी में रखा जाता है।
  • निम्न मानव विकास वाले देश (अल्प विकसित देश) - सूचकांक में 0.000 से 0.499 तक ।

भारत की स्थिति

  • वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार 189 देशों में भारत का 131 वां स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि भारत पिछले साल 2019 में 129 स्थान पर था।
  •  भारत की रैंकिंग की गिरावट का प्रमुख कारण क्रय शक्ति समता बताई जा रही है जो 2018 में 6,829 प्रति व्यक्ति अमेरिकन डॉलर थी । वहीं 2019 में गिरकर $6681 रह गई है।
  • कहीं ना कहीं मानव विकास सूचकांक में कोविड-19 का असर भारत देश में देखने को मिल रहा है। और कहीं ना कहीं गिरावट का मुख्य कारण राजनीति भी रही है।
  • भारत में गरीबी का स्तर अभी भी वही बना हुआ है हालांकि लोगों की आय बढ़ी है। लेकिन आय में ऐसा असमानता भी बढ़ी है। 2015-16 के अनुसार भारत में कुल आबादी के  27.9%  लोग गरीब हैं।
  •  रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लैंगिक समानता में कोई सुधार के न चलते भारत में लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी कम खर्च किया जाता है । जिसके कारण लड़कियां लड़कों से अधिक कुपोषित हैं।
  •  हालांकि भारत की रैंकिंग की गिरावट का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि भारत में सुधार नहीं हुआ है भारत की वित्तीय सुरक्षा में सराहनीय सुधार हुआ है । और लैंगिक आधार पर भी होने वाली हिंसा में कमी आई है।
 एचडीआई के अन्य सूचकांकों की बात करें इस रिपोर्ट के ही कुछ अन्य भाग हैं-
  • आसमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक(IHDI) - (0.537 भारत)
  •  लैंगिक विकास सूचकांक(GDI) - (0.820 भारत)
  •  लैंगिक असमानता सूचकांक(GII)
  •  बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) (27.9% गरीबी)

महत्वपूर्ण तथ्य

यूएनडीपी द्वारा पहली बार प्रत्येक देश की प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन और इसके मैटेरियल फुटप्रिंट के कारण पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाने के लिए नई मैट्रिक की शुरुआत की गई है ।जिसका विवरण HDI रिपोर्ट 2020 में किया गया है। जिसको  ग्रहीय दबाव - समायोजित सूचकांक (PHDI -प्लेनेटरी प्रेशर एडजेस्टेड HDI ) भी कहा गया है। एचडी डीआई सूचकांक के अनुसार भारत 8वें पायदान ऊपर आ जाएगा है। क्योंकि भारत ने 2005 से ही पेरिस समझौते के बाद जलवायु परिवर्तन पर विशेष ध्यान दिया है। और सौर ऊर्जा जैसे मिशन पर कार्य किया है। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया है । इस इंडेक्स के अनुसार आयरलैंड को प्रथम स्थान दिया गया है । वही नॉर्वे को 15वें स्थान पर  रखा गया है।

उपयुक्त लेख का विश्लेषण द हिंदू और भारतीय अर्थव्यवस्था (रमेश सिंह )  की पुस्तक से क्या गया है । साथ ही विशेष बिंदुओं और परिभाषााओं पर को अपने शब्दों में प्रस्तुत किया गया है । यदि आपको दी गई जानकारी अच्छी लगती है तो ऐसे ही अन्य जानकारियां पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें।




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानी

उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं हेतु उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तित्व एवं स्वतंत्रता सेनानियों का वर्णन 2 भागों में विभाजित करके किया गया है । क्योंकि उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं में 3 से 5 मार्क्स का उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान अवश्य ही पूछा जाता है। अतः लेख को पूरा अवश्य पढ़ें। दोनों भागों का अध्ययन करने के पश्चात् शार्ट नोट्स पीडीएफ एवं प्रश्नोत्तरी पीडीएफ भी जरूर करें। भाग -01 उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी [1] कालू महरा (1831-1906 ई.) कुमाऊं का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) "उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रा सेनानी" कालू महरा को कहा जाता है। इनका जन्म सन् 1831 में चंपावत के बिसुंग गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रतिभान सिंह था। कालू महरा ने अवध के नबाब वाजिद अली शाह के कहने पर 1857 की क्रांति के समय "क्रांतिवीर नामक गुप्त संगठन" बनाया था। इस संगठन ने लोहाघाट में अंग्रेजी सैनिक बैरकों पर आग लगा दी. जिससे कुमाऊं में अव्यवस्था व अशांति का माहौल बन गया।  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम -1857 के समय कुमाऊं का कमिश्नर हेनरी रैम्

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

Uttrakhand current affairs in Hindi (May 2023)

Uttrakhand current affairs (MAY 2023) देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आपको प्रतिमाह के महत्वपूर्ण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराए जाते हैं। जो आगामी परीक्षाओं में शत् प्रतिशत आने की संभावना रखते हैं। विशेषतौर पर किसी भी प्रकार की जॉब करने वाले परीक्षार्थियों के लिए सभी करेंट अफेयर्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 की पीडीएफ फाइल प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।  उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 ( मई ) (1) हाल ही में तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के किस जनपद में स्थित है। (a) चमोली  (b) उत्तरकाशी  (c) रुद्रप्रयाग  (d) पिथौरागढ़  व्याख्या :- तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3640 मीटर (12800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित एशिया का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित शिवालय हैं। उत्तराखंड के पंच केदारों में से तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासकों ने लगभग 8वीं सदी में करवाया था। हाल ही में इस मंदिर को राष्ट्रीय महत्त्व स्मारक घोषित करने के लिए केंद्र सरकार ने 27 मार्च 2023

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु