उत्तराखंड का भू-कानून चर्चा में क्यों? हाल ही में प्रदेश में लगातार चल रही मांग के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एलान किया है कि उनकी सरकार वृहद भू-कानून लाने जा रही है। अगले साल बजट सत्र में कानून का प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि 250 वर्ग मीटर आवासीय और 12.50 एकड़ अन्य भूमि के नियम तोड़ने वालों की भूमि जांच के बाद सरकार में निहित की जाएगी। क्या है उत्तराखंड का वर्तमान भू-कानून ? वर्तमान में लागू भू-कानून के तहत एक व्यक्ति को 250 वर्गमीटर जमीन ही खरीद सकता है। लेकिन व्यक्ति के अपने नाम से 250 वर्गमीटर जमीन खरीदने के बाद पत्नी के नाम से भी जमीन खरीदी है तो ऐसे लोगों को मुश्किल आ सकती है। तय सीमा से ज्यादा खरीदी गई जमीन को सरकार में निहित करने की कार्रवाई करेगी। यह कानून केवल बाहरी राज्यों के लोगाें पर लागू है। उत्तराखंड के स्थायी निवासी कितनी भी जमीन खरीद सकते हैं। भू-कानून का इतिहास राज्य में बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद सीमित करने के लिए वर्ष 2003 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश के कानून में संशोधन किया और राज्य का अपना भूमि कानून अस्तित्व में आया। इस संशोध
बागेश्वर जनपद -1997
उत्तराखंड का इतिहास
बागेश्वर की भौगोलिक स्थिति एवं इतिहास
उत्तराखंड का एकमात्र जनपद जिसे भौगोलिक स्थिति व समय के आधार पर विभिन्न नामों से जाना जाता है। बागेश्वर को "उत्तर का वाराणसी" कहा जाता है। बागेश्वर जनपद के पश्चिम में नीलेश्वर पर्वत है जिस कारण मानसखंड में इसे "नीलगिरी" कहा गया है। दक्षिण में अग्नि कुंड स्थित है जिस कारण पुराणों में बागेश्वर को "अग्नि तीर्थ" के नाम से जाना जाता था। व बागेश्वर के पूर्व में भिलेश्वर पर्वत तथा उत्तर में सूरजकुंड स्थित है। भिलेश्वर पर्वत पर चण्डिका मंदिर स्थित है।
सरयू व गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर जनपद 2246 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तराखंड का तीसरा सबसे छोटा जनपद है। मानसखंड में सरयू को गंगा व गोमती को यमुना नदी का दर्जा दिया गया है। जिस प्रकार गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाए थे। उसी प्रकार सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया। सरयू भगवान विष्णु की मानस पुत्री हैं। सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को जाता है ।
बागेश्वर का प्राचीन इतिहास (पौराणिक इतिहास)
उत्तराखंड भगवान शिव और पार्वती का निवास स्थान रहा है। तो वहीं बागेश्वर शिव की लीलास्थली रहा है। जिस कारण इसे "तीर्थराज" के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव के गण चंदिका ने इसकी स्थापना की थी। स्कंद पुराण में वर्णित कथानुसार कहा जाता है कि एक बार मार्कंडेय नाम के ऋषि नील पर्वत पर तपस्या कर रहे थे और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ देवलोक से विष्णु की मानस पुत्री सरयू को लेकर आ रहे थे। तब तपस्या में लीन मार्कंडेय ऋषि के कारण सरयू नदी को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिला। तब ब्रह्माजी वशिष्ठ ने शिव जी को अपनी व्यथा सुनाई और संकट को दूर करने का निवेदन किया। शिवजी ने तब बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती ने गाय का रूप धारण किया। मां पार्वती गाय के रूप में घास चर रही थी। अचानक बाघ की जोर से गर्जना की आवाज सुनाई दी और गाय डर के कारण जोर-जोर से रंभाने लगी। जिससे मार्कंडेय ऋषि की समाधि भंग हो गई। जैसे ही मार्कंडेय ऋषि गाय को बचाने को दौड़े तो सरयू नदी आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया । भगवान शिव ने जिस स्थान पर शेर का रूप धारण किया था। इसलिए इस स्थान का नाम व्याघ्रेश्वर तथा बागेश्वर पड़ा और यहां भगवान शिव के बागनाथ मंदिर की स्थापना की गई।
बागेश्वर की प्रमुख नदी : सरयू नदी
सरयू नदी को कुमाऊं की सबसे पवित्र नदी मानी जाता है। यह बागेश्वर के सरमूल (झुण्डी) नामक स्थान से निकलती है । जिसकी लंबाई 146 किलोमीटर है। सरयू नदी का स्थानीय नाम 'सरजू' है। यह नदी पंचेश्वर में काली नदी से मिल जाती है। काली नदी में सर्वाधिक जल देने वाली नदी सरयू ही है । सरयू नदी का स्नान मोक्ष प्रदान करता है इसके जल को गंगा के भांति अमृत समान माना गया है। मकर सक्रांति के अवसर पर प्रत्येक वर्ष सरयू नदी के तट पर "उत्तरायणी मेला लगता" है यह कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला है। उत्तरायणी मेले में "चांचरी नृत्य" होता है । सरयू नदी की सहायक नदी गोमती है। गोमती बागेश्वर के डेवरा श्रेणी से निकलती है।
बागेश्वर का मध्यकालीन इतिहास
सातवीं शताब्दी में यह क्षेत्र कत्यूरी शासकों के अधीन था । कत्यूरी शासक भूदेव ने बागेश्वर में गोमती नदी के तट पर बैजनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। और बाद में नरसिंह देव ने जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर) में राजधानी स्थानांतरित की। मध्यकाल में इस क्षेत्र को ऐतिहासिक रूप से 'दानपुर' कहा जाता था। वर्ष 1565 में राजा बालों कल्याण चंद ने पाली, बारामंडल, गंगोली के साथ इस क्षेत्र में कब्जा कर इसे कुमाऊं में शामिल कर लिया। वर्ष 1602 ईसवी में राजा लक्ष्मीचंद ने बागनाथ के मुख्य मंदिर व मंदिर समूह का पुनः निर्माण किया था।
बागेश्वर का आधुनिक इतिहास
14 जनवरी 1921 ईस्वी में उत्तरायणी मेले के अवसर पर बद्रीदत्त पांडे व हरगोविंद पंत आदि के सहयोग से 40 हजार प्रदर्शनकारियों ने कुली बेगार रजिस्टर सरयू नदी में बह दिए गए और नदी के तट पर 1921 में कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ था । उत्तराखंड से जेल जाने वाले प्रथम स्वतंत्रा सेनानी मोहन सिंह मेहता का जन्म बागेश्वर में हुआ था। व स्वतंत्रता के लिए जेल जाने वाली सेनानी महिला "बिशनी देवी शाह" का भी संबंध बागेश्वर से था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सन् 1968 में बागेश्वर नगर पालिका का गठन किया गया तथा 1974 बागेश्वर को अलग तहसील बनाया गया। 2 वर्षों के बाद ही 1976 में बागेश्वर को परगना घोषित किया गया। सन 1997 बागेश्वर जिला अल्मोड़ा से अलग कर दिया गया और 15 सितंबर 1997 ईसवी में जनपद का गठन किया गया।
बागेश्वर जनपद की प्रशासन व्यवस्था
बागेश्वर जनपद को 6 तहसीलों व 3 विकास खंड में विभाजित किया गया है। जो निम्न हैं -
- बागेश्वर
- कपकोट
- गरुण
- कांडा
- काफलीगैर
- दुगनाकरी
उपरोक्त में ऊपर की 3 तहसील को बागेश्वर, कपकोट और गरुड़ विकासखंड क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त 2 विधानसभा क्षेत्र हैं। कपकोट और बागेश्वर अनुसूचित जाति आरक्षित क्षेत्र हैं। बागेश्वर जिले का लिंगानुपात 1090 है। व इसकी कुल जनसंख्या 2.60 लाख है। जनसंख्या की दृष्टि से बागेश्वर तीसरा सबसे छोटा जनपद है। राज्य में सबसे कम नगरीय आबादी बागेश्वर जनपद की है जिसकी कुल नगरीय जनसंख्या 3.5% है।
बागेश्वर जनपद के महत्वपूर्ण बिंदु
- हरि नगरी चाय फैक्ट्री बागेश्वर में स्थित है।
- सेवानाउ नौला बागेश्वर में है।
- बागेश्वर में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र की स्थापना 1977 में हुई।
- मांझ-कुमैया बोली गढ़वाल व कुमाऊं सीमा पर बोली जाती है।
- पिनाथ, मां भद्रकाली, कोटभाई व मूल नारायण का मेला बागेश्वर में लगता है।
- कफनी व मनोहरी बुग्याल बागेश्वर में है।
- पिण्डारी व सुखाराम ग्लेशियर बागेश्वर में स्थित है।
- सुकुण्डा ताल बागेश्वर जिले में है।
बागेश्वर का हिल स्टेशन - कौसानी के बारे में पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें - भारत का स्विट्जरलैंड - कौसानी
कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र बागेश्वर में है या पिथौरागढ़ में है
जवाब देंहटाएंमहरूडी कस्तूरी मृग - बागेश्वर में है जिसकी स्थापना 1977 में हुई थी।
जवाब देंहटाएंऔर पिथौरागढ़ में सर्वाधिक कस्तूरी मृग अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण स्थित है।
1972 में केदारनाथ वन्य जीव बिहार की स्थापना की गई थी। जो चमोली और रूद्रप्रयाग में स्थित है। 1982 में कांचुला खर्क (कस्तूरी मृग प्रजनन और संरक्षण केंद्र) स्थापना हुई.
बागेश्वर की स्थापना कब हुई थी यह भी लिख देते
जवाब देंहटाएंआप जिलों की स्थापना ईयर वाइज भी लिख दिया करो
जवाब देंहटाएंठीक क है अपडेट कर दिया गया है ।। आप देख सकते हैं
हटाएंठीक है
जवाब देंहटाएं