पिथौरागढ़ जनपद
भारत का छोटा कश्मीर
पिथौरागढ़ जनपद देवभूमि उत्तराखंड राज्य का सबसे पूर्वी जनपद है। पिथौरागढ़ का प्राचीन नाम सोर है। पिथौरागढ़ जनपद का अधिकांश भाग वृहत हिमालय का भाग है जिस कारण चमोली, उत्तरकाशी की भांति यहां भी ऊंचे-ऊंचे पर्वत है और उन्हीं पर्वतों पर बड़े-बड़े ग्लेशियर स्थित है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख ग्लेशियर
पिथौरागढ़ में तीन ग्लेशियर सर्वाधिक लोकप्रिय हैं - (1) मिलम ग्लेशियर, (2) नामिक ग्लेशियर (3) पिंडारी ग्लेशियर
- मिलम हिमनद - मिलम हिमनद पिथौरागढ़ के मुुनस्यारी में स्थित है। मिलम हिमनद को कुमाऊं का सबसे बड़ा ग्लेशियर कहा जाता है। मिलन हिमनद से गौरी नदी निकलती है।
- नामिक हिमनद - नामिक हिमनद पिथौरागढ़ में स्थित दूसरा महत्वपूर्ण ग्लेशियर है। इसमें नमक की मात्रा पाई जाती है। नामिक ग्लेशियर से पूर्वी रामगंगा नदी निकलती है। वर्ष 2018 में नामिक ग्लेशियर को ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित किया गया था।
- पिंडारी ग्लेशियर - पिंडारी ग्लेशियर गंगोत्री के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। लेकिन यह पूर्णतया पिथौरागढ़ जनपद में स्थित नहीं है। पिंडारी ग्लेशियर उत्तराखंड के 3 जनपदों में फैला हुआ है। यह बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चमोली के लगभग 300 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित है। वर्ष 2022 में पिंडारी ग्लेशियर को ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित किया गया है।
इनके अलावा पिथौरागढ़ जनपद में पांछू हिमनद, पिनौरा हिमनद, लसार हिमनद, संकल्प हिमनद, रालम हिमनद, हीरामणि और सोना हिमनद स्थित है। सोना हिमनद से धौलीगंगा नदी निकलती है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख पर्वत
इस जनपद का अधिकांश भाग पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़ है। पिथौरागढ़ में तीन प्रमुख पर्वत है- (1) पंचाचुली पर्वत (2) नन्दाकोट पर्वत और (3) ओम पर्वत
- पंचाचुली पर्वत - यह पर्वत सोना हिम्मत से निकलने वाली धौलीगंगा व मिलम हिमनद से निकलने वाली गोरी गंगा के बीच में स्थित है। पंचाचुली पर्वत की ऊंचाई 6904 मीटर है।
- नंदाकोट पर्वत - यह पर्वत पूर्णतः पिथौरागढ़ जनपद में स्थित नहीं है इस पर्वत का कुछ भाग चमोली जनपद में भी आता है नंदाकोट पर्वत की ऊंचाई 6861 मीटर है।
- ओम पर्वत - ओम पर्वत खोज बिपिन चंद्र पांडे ने की थी जिसकी ऊंचाई 6191 मीटर है। ओम पर्वत को 'छोटा कैलाश' भी कहा जाता है।
इनके अलावा पिथौरागढ़ जनपद में लमकेश्वर पहाड़ी, शैलैश्वर पहाड़ी, तारा पहाड, बेटुलीधार, हरदोल चोटी और मृगतुंग पर्वत स्थित है।
<पिथौरागढ़ की प्रमुख नदियां
पिथौरागढ़ जनपद में तीन प्रमुख नदी बहती हैं (1) पूर्वी रामगंगा, (2) पूर्वी धौलीगंगा (3) काली नदी
- पूर्वी रामगंगा,
- पूर्वी धौलीगंगा
- काली नदी - यह नदी पिथौरागढ़ की 3 नदियों में सर्वाधिक लोकप्रिय नदी है। काली नदी राज्य में बहने वाली सबसे लंबी नदी है और यह राज्य के सबसे पूर्वी सिरे में बहती है। काली नदी की लंबाई 252 किलोमीटर है। काली नदी जैक्सर श्रेणी के लिपुलेख के पास काला पानी नामक स्थान से निकलती है। कालापानी नामक स्थान से निकलने के कारण ही इसे काली नदी कहा जाता है। स्कंदपुराण में काली नदी को श्यामा नदी कहा गया है। पौराणिक रूप से काली नदी का जल पवित्र नहीं माना जाता है। काली नदी चंपावत के पूर्णागिरी से होकर भारत व नेपाल की सीमा बनाते हुए बहती है। और टनकपुर में ब्रह्मदेव मंडी के बाद शारदा नदी के नाम से नेपाल में प्रवेश करती है। काली नदी पर पंचेश्वर बांध स्थित है। पंचेश्वर बांध भारत व नेपाल सरकार की संयुक्त परियोजना जो काली नदी पर 6840 मेगावाट की प्रस्तावित है। कुठीयांगटी नदी काली की प्रारंभिक सहायक नदी है।
काली नदी की मुख्य सहायक नदियां
- सरयू नदी - सरयू काली नदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह काली नदी को ज्यादा पानी देती है। सरयूू नदी पिथौरागढ़ में सेराघाट डाम स्थित है
- पूर्वी धौलीगंगा - पूर्वी धौलीगंगा पिथौरागढ़ में स्थित सोना हिमनद से निकलती है। खेला नामक स्थान पर काली व पूर्वी धौलीगंगा का संगम होता है।
- गौरी नदी - पिथौरागढ़ के जौलजीबी नामक स्थान पर गौरी नदी काली नदी में समाहित हो जाती है। काली व गोरी नदी के संगम पर प्रतिवर्ष जौलजीबी मेला का आयोजन किया जाता है। जौलजीबी मेला मार्ग से सक्रांति 14 नवंबर को लगता है यह मेला भोटिया व्यापार से संबंधित है इस मेले में पहले घोड़ों का व्यापार होता था। जौलजीबी मेले की शुरुआत गजेंद्र बहादुर ने 1914 ईस्वी में की थी।
- लधिया नदी - उत्तराखंड की अंतिम नदी जो काली नदी में मिलती है।
पिथौरागढ़ की भौगोलिक स्थिति
पिथौरागढ़ जनपद का गठन 24 फरवरी 1960 को अल्मोड़ा से अलग करके किया गया था। पिथौरागढ़ का कुल क्षेत्रफल 7090 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से पिथौरागढ़ उत्तरकाशी एवं चमोली के बाद तीसरा सबसे बड़ा जनपद है। व कुमाऊं मंडल का सबसे बड़ा जनपद है। पिथौरागढ़ राज्य का एक ऐसा जिला है जहां वर्ष भर एक सा मौसम रहता है। जिस कारण पिथौरागढ को 'छोटा कश्मीर' भी कहा जाता है। इस जनपद की सीमा चीन व नेपाल को स्पर्श करती है साथ ही पिथौरागढ़ को सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय सीमा स्पर्श करने वाला जनपद भी कहा जाता है। यह जनपद राज्य में 4 जनपदों से सीमा साझा करता है। चमोली, बागेश्वर, अल्मोड़ा और चंपावत।
History of Pithoragarh
पिथौरागढ़ जनपद का इतिहास
जानें क्यों पिथौरागढ़ के संस्थापक राजा पिथौरा या प्रीतमशाही को कहा जाता है। या एटकिंसन के अनुसार चंद राजाओं के सामंत पिरू गोसांई को।
बास्ते अभिलेख से ज्ञात होता है कि पिथौरागढ़ सोर घाटी में स्थित होने से इसका का प्राचीन नाम सोर पड़ा था । माना जाता है कि पहले सोर घाटी में सात सरोवर थे। समय बीतने के साथ सातों सरोवर का पानी पानी सूख गया। और यहां पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमि होने के कारण इसका नाम पिथौरागढ़ पड़ा। किंतु लोक कथाओं से ज्ञात होता है कि पृथ्वीराज चौहान लगभग 12वीं सदी में जब वह अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे तो उन्होंने इस इलाके को अपने राज्य में मिला लिया और इस क्षेत्र को 'राय पिथौरा' नाम दिया। जैसा कि आप भली भांति परिचित हैं कि राजपूतों के शासन का यह नियम रहा है कि वह जिस इलाके पर कब्जा करते थे उसका नाम खुद के नाम पर रखते थे। और यह भी जानते होंगे कि पृथ्वीराज चौहान को 'राजा पिथौरा' के नाम से भी जाना जाता था।
<खस राजवंश : पिथौरागढ़ में शासन करने वाला प्रथम राजवंश
देवभूमि उत्तराखंड की भूमि पर जहां एक तरफ ऋग्वैदिक काल में कुणिंद वंश ने राजनितिक शक्ति के रूप में शासन स्थापित किया। वहीं कुणिंद राजाओं के समकालीन खस राजवंश ने सोर घाटी में शासन स्थापित किया। इसलिए खस राजवंश को पिथौरागढ़ में शासन करने वाला प्रथम राजवंश कहा जाता है। खसों ने पिथौरागढ़ में ऋग्वैदिक काल से 12वीं सदी तक शासन किया था। शासन के दौरान खसों ने पिथौरागढ़ में किलों (कोट) का निर्माण करवाया। खसों द्वारा बनवाए उदयकोट, भाटकोट, व डूंगरकोट प्रमुख हैं।
पिथौरागढ़ में चंद राजाओं का शासन
कुमाऊं में लगभग 1025 ई. के आसपास सोमचंद ने चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित की। और चंद वंश साम्राज्य की स्थापना की। क्योंकि सोम चंद एक मांडलिक राजा था जो नेपाल के राजा के अधीन था। इसलिए वह चम्पावत के क्षेत्र तक ही सीमित था। और पिथौरागढ़ की तरफ ध्यान नहीं दिया किन्तु चंद वंश एक राजा वीणा चंद जो एक भोग विलासी शासक था। इसके राजा बनते ही चंद राजवंश की बागडोर एक कमजोर शासक के हाथ चली गई जिसके कारण खस राजाओं को सर उठाने का मौका मिल गया। और चंद राजा को हराकर चम्पावत में खसों ने भी कुछ वर्ष शासन किया। वहीं दूसरी तरफ नेपाल में (1191 ईसवी ) "मल्ल वंश" का शासन स्थापित हो गया ।
अशोक चल्ल के समय कुमाऊं का शासक वीरचंद था। गोपेश्वर-त्रिशूल लेख से पता चलता है कि चंपावत में भारी उतार-चढ़ाव के बाद वीरचंद ने अशोक चल्ल की सहायता से खस राजाओं को पराजित करके चंद वंश का शासन पुनः स्थापित किया। (वीर चंद की मृत्यु 1206 ईस्वी)। पिथौरागढ़ में खस राजाओं को पराजित करने के बाद अशोक चल्ल ने 'मल्ल वंश' का शासन स्थापित किया। सन 1365 ईस्वी में कुमाऊं की गद्दी पर गरुण ज्ञानचंद बैठता है। और मल्ल वंश के शासकों को पराजित कर सोर व सीरा क्षेत्र पर अधिकार कर लेता है।
चंद वंश के राजा भारती चंद के शासनकाल में उनके बेटे रत्नचंद ने नेपाल के राजा को परास्त कर सोर घाटी पर कब्जा कर लिया और इसके बाद इसे कुमाऊं में मिला लिया। रत्न चंद के शासनकाल में सोर घाटी के सामंत पीरू गोसाईं ने पिथौरागढ़ नाम इस स्थान पर एक किल्ला स्थापित किया और बाद में इस किले के नाम पर ही इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ गया।
सन् 1669 ईसवी में बाज बहादुर चंद ने सोर (पिथौरागढ़) की यात्रा करता है। उस समय सोर को 'खड़ायत का परगना' कहा जाता था। बाज बहादुर चंद ने एक ताम्रलेख में पिथौरागढ़ को 'वाल्दिया' देश कहा है इसके अलावा पिथौरागढ़ के थल में बाज बहादुर चंद ने एक हथिया देवाल मंदिर का निर्माण करवाया था। पिथौरागढ़ में स्थित मूनाकोट नामक स्थान पर एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है। जिसमें चंद राजाओं के करो से संबंधित तथ्यों का उल्लेख है। इसी को मूनाकोट ताम्रपत्र भी कहा जाता है।
सन 1790 ईसवी में चंद वंश का अंतिम शासक महेंद्र चंद गोरखों से पराजित हो जाता है। और कुमाऊं पर गोरखों का अधिकार हो जाता है। गोरखों ने अपने शासनकाल के दौरान पिथौरागढ़ में सिंमलगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था। अपने ब्रिटिश शासन के बाद अंग्रेजों ने इस दुर्ग का नाम 'लंदन फोर्ट कर दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान पिथौरागढ़ में 1924 ईस्वी को राजशाही तंत्र के खिलाफ अस्कोट आंदोलन हुआ था।
<पिथौरागढ़ जनपद का गठन
भारत की स्वतंत्रता के समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश राज्य में सम्मिलित था। और उस समय उत्तराखंड 4 जनपदों में विभाजित था। अल्मोड़ा, नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल और देहरादून। अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल को एक पृथक जनपद के रूप में मान्यता दी गई। तथा 24 फरवरी 1960 को टिहरी से अलग करके उत्तरकाशी, पौड़ी से अलग करके चमोली और अल्मोड़ा से अलग करके पिथौरागढ़ जनपद सहित 3 नये जनपदों की स्थापना की गई। पिथौरागढ़ को सुचारू रूप से चलाने के लिए चार तहसील पिथौरागढ़, डीडीहाट, धारचूला और मुनस्यारी की स्थापना की गई। शासन में प्रशासन को सुदृढ़ करने हेतु 13 मई 1972 को अल्मोड़ा जिले से चंपावत तहसील को निकालकर पिथौरागढ़ में मिला दिया गया। किंतु 15 सितंबर 1997 को पिथौरागढ़ से चंपावत को अलग करके नया जनपद बनाया गया।
अस्कोट वन्य जीव विहार (पिथौरागढ़)
अस्कोट वन्य जीव विहार की स्थापना 1986 ईस्वी में पिथौरागढ़ में की गई। यह वन्य जीव विहार 600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। अस्कोट वन्य जीव विहार सर्वाधिक कस्तूरी मृग के लिए प्रसिद्ध है और यहां लगभग 67 कस्तूरी मृगों की संख्या है। चौकड़ीडांडा पिथौरागढ़ में कस्तूरी मृग फार्म है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख पर्यटक स्थल
पिथौरागढ़ में तीन प्रमुख पर्यटक स्थल है - (1) डीडीहाट (2) मुनस्यारी (3) गंगोलीहाट
- डीडीहाट - डीडीहाट शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें डीडी का अर्थ छोटी पहाड़ी व हाट का अर्थ बाजार है। यह श्रेत्र डिग्टड़ नामक पहाड़ी पर बसा हुआ है। डीडीहाट को प्राचीन समय में सीरा कहा जाता था। सीरा में मल्ल राजाओं ने राजधानी स्थापित की थी। और राजा हरिमल्ल के समय सीरा क्षेत्र डोटी साम्राज्य के अधीन था। डीडीहाट में सीराकोट का किला व मढ़ का सूर्य मंदिर स्थित है।
- मुनस्यारी - मुनस्यारी का प्राचीन नाम तिकसेन है। इसे जोहार क्षेत्र का प्रवेश द्वार कहा जाता है। यहां का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल कलॉमुनि टॉप है। मुनस्यारी में स्थित डार्कोट गांव पश्मीना शॉल के लिए जाना जाता है। इसके अलावा मुनस्यारी में नैन सिंह रावत पर्वतारोहण संस्थान स्थित है।
- गंगोलीहाट - मानसखंड में गंगोलीहाट के लिए शैल देश शब्द का प्रयोग किया गया है। यह क्षेत्र पूर्वी रामगंगा नदी के बीच में स्थित है। यहां किसी समय मनकोटी राजाओं का शासन रहा था जिसका उल्लेख जाहन्वी नौला के एक लेख से मिलता है। गंगोलीहाट के कसुली नामक स्थान पर कामाख्या देवी या कामाक्षा देवी मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1972 ईस्वी में मदन शर्मा द्वारा किया गया। बता दें कि कामाख्या देवी का मुख्य मंदिर गुवाहाटी (असम) में स्थित है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख मंदिर
यूं तो पिथौरागढ़ में अनेक मंदिर स्थित है। जैसे - गुरना माता मंदिर, बेरीनाग मंदिर, छिपला केदार मंदिर, चौमू देवता मंदिर, कोटगाड़ी मंदिर, थल केदार मंदिर (केदारज्यू), मोस्टमानू मंदिर, और मल्लिकार्जुन मंदिर। लेकिन बात की जाए प्रमुख मंदिरों की तो पिथौरागढ़ में तीन प्रमुख मंदिर हैं - (1) पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर (2) हाटकालिका मंदिर (3) कोटली का विष्णु मंदिर
- पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर - पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर गंगोलीहाट के पास पिथौरागढ़ जिले में स्थित है ।इस गुफा में कई द्वार हैं इसमें प्रमुख शेषनाग मोक्ष द्वार मुख्य हैै। माना जाता है यहां 33 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं। पाताल भुवनेश्वर में पाताल गंगा नदी है। पताल भुवनेश्वर गुफा की लंबाई लगभग 160 मीटर है। पाताल भुवनेश्वर गुफा में चार युगों के प्रतीक के रूप में 4 से शिलाए हैं।
- हाट कालिका देवी मंदिर - यह मंदिर गंगोलीहाट (पिथौरागढ़) के पास स्थित है। हाट कालिका देवी मंदिर रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर कुमाऊं की 18 कालिका शक्तिपीठ में सर्वाधिक प्राचीन है। कालिका देवी महिषासुरमर्दिनी का सिद्ध पीठ है। इस मंदिर में देवी की मूर्ति काले संगमरमर से बनी है। मान्यता है कि रात्रि में बिस्तर की व्यवस्था कर बाहर से ताला लगाने के बाद यहां शयन के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते हैं। हाट कालिका मंदिर का जीर्णोद्धार लक्षण बाबा ने करवाया था। हाट कालिका देवी जवानों की रक्षक मानी जाती हैं। प्रतिवर्ष इस मंदिर में हाट कालिका मेला का आयोजन किया जाता है। हाट कालिका माता कुमाऊं रेजिमेंट की इष्टदेवी है।
- कोटली का विष्णु मंदिर - पिथौरागढ़ में कोटली का विष्णु मंदिर है जिसे 2019 में सरकार ने विश्व धरोहर घोषित किया।
पिथौरागढ़ में मनाए जाने वाले प्रमुख उत्सव
- हिलजात्रा उत्सव - सोर घाटी में धान रोपाई के समय हिलजात्त्रा उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव में स्वांग नृत्य (चांचरी) किया जाता है। हिलजात्रा उत्सव नेपाल की देन माना जाता है नेपाल में यात्रा उत्सव को इंद्रजात्रा कहा जाता है हिलजात्रा का अर्थ है दलदली जगह पर किए जाने वाला खेल। हिलयात्रा नाटक का मुख्य कलाकार लखियाभूत है।
- कंडाली उत्सव - पिथौरागढ़ में कंडाली उत्सव भोटिया जनजाति का मुख्य त्योहार है। यह उत्सव 12 वर्ष बाद धूमधाम से मनाया जाता है।
- गबलादेव उत्सव - पिथौरागढ़ के दारमा व ब्यास घाटी में गबला देव उत्सव मनाया जाता है। गबला देव भगवान गणेश का अवतार माना जाता है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख मेले
पिथौरागढ़ के तीन मेले सर्वाधिक प्रमुख हैं -
- थल मेला - इस मेले की शुरुआत पिथौरागढ़ में 13 अप्रैल 1940 को हुई थी। थल मेला जलियांवाला बाग दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- बौराड़ी मेला - पिथौरागढ़ के सैम देवता के मंदिर में लगता है
- जौलजीबी मेला - जौलजीबी का मेला पिथौरागढ़ जनपद के डीडीहाट में काली एवं गोरी नदी के संगम पर लगता है। यह मेला प्रतिवर्ष मार्ग से सक्रांति 14 नवंबर को लगता है यह मेला भाटिया व्यापार से संबंधित है। जौलजीबी मेले की शुरुआत गजेंद्र बहादुर ने 1914 ईस्वी में की थी।
इसके अलावा पिथौरागढ़ में बासुकी नाग मेला, रामेश्वर मेला, छिपला केदार मेला, चौपख्या मेला, कोटगाड़ी देवी मेला, व मोस्टामानू मेला लगता है।
पिथौरागढ़ जनपद के प्रसिद्ध बुग्याल
- छिपलाकोट बुग्याल
- लड़ीपांगती बुग्याल
- रूई बुग्याल
इसके अलावा पिथौरागढ़ में कालामुनि, रातापानी, गैरधार, बनिक और खलिया बुग्याल स्थित है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख जलप्रपात (all imp.)
- विरथी जलप्रपात
- गरूड़ जलप्रपात
- किमसेन जलप्रपात
पिथौरागढ़ जनपद की प्रमुख घाटियां (all imp.)
- व्यासी घाटी
- जोहार घाटी
- दारमा घाटी
- चौदंस घाटी
पिथौरागढ़ जनपद के प्रमुख दर्रे (all imp.)
- लातुधुरा दर्रा - चमोली और पिथौरागढ़ के बीच
- बाराहोती दर्रा - चमोली और पिथौरागढ़ के बीच
- लासपा दर्रा - चंपावत और पिथौरागढ़ के बीच
- ट्रेलपास दर्रा - पिथौरागढ़ व बागेश्वर के बीच
- सिनला दर्रा - दारमा घाटी और व्यास घाटी के बीच
- लिपुलेख दर्रा - पिथौरागढ़ और तिब्बत के बीच
महत्वपूर्ण तथ्य
- पिथौरागढ़ सामरिक दृष्टि महत्वपूर्ण जनपद है इसलिए यहां 1991 ईस्वी में नैनी सैनी हवाई अड्डा पिथौरागढ़ स्थापित किया गया ।
- पिथौरागढ़ की प्रसिद्ध मिठाई का नाम खेंचुआ है।
- कटकुनौला पिथौरागढ़ में स्थित है।
- तालेश्वर परियोजना पिथौरागढ़ में स्थित है।
Very nice sir most important h
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