महासागरों का अध्ययन देवभूमि उत्तराखंड द्वारा कक्षा 6 एनसीईआरटी भूगोल की पुस्तक से नोट्स तैयार किए जा रहे हैं। इस लेख में एनसीईआरटी पुस्तक और प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेशन किया गया है। इस लेख में विश्व में कितने महासागर हैं और उनके सीमांत सागरों के साथ प्रमुख जलसंधियों का उल्लेख किया गया है। अतः लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। साथ ही विश्व का मानचित्र साथ रखें। पृष्ठभूमि अक्सर फिल्मों में, गानों में, कविताओं में और जिंदगी के उन तमाम पन्नों में "सात समुद्र" का जिक्र सुना होगा। और तो और इस शब्द प्रयोग मुहावरों भी करते हैं। तो क्या आप जानते हैं "सात समुद्र" ही क्यों? और यदि बात सात समुद्र की जाती है तो वे कौन-से सात समुद्र हैं? यूं तो अंक सात का अपना एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व हैं । क्योंकि दुनिया में इंद्रधनुष के रग सात हैं, सप्ताह के दिन सात हैं, सप्तर्षि हैं, सात चक्र हैं, इस्लामी परंपराओं में सात स्वर्ग हैं, यहां तक कि दुनिया के प्रसिद्ध 7 अजूबे हैं। संख्या सात इतिहास की किताबों में और कहानियों में बार-बार आती है और इस वजह से...
कृषि विधेयक 2020
किसान : काव्य संग्रह
कितने भोले-भाले , यह इंसान हैं ?
जो दूसरों का पेट भरे ,
ये वो किसान हैं।
धरती को यह पूजते,
करते महादान है ।
अक्सर सुना है मैंने,
कण-कण में भगवान है।
गरीबी में काट दिया है, जीवन
फिर भी कृषक, होने का अभिमान है ।
पिस रहे हैं सरकार की ,
अनसुलझी पहेली में ,
कभी सोचा है ?
इनके बिना भी कोई जहान है?
सैकड़ों वर्ष बीत गए, शासकों के शासन में,
ना अभी तक कोई ऐसा फरमान है।
दिला सके जो, कृषकों का सम्मान है।
कहते तो बहुत सुना होगा !
किसान तो देश की आन है ।
किसान तो देश की शान है।
ए-महलों में रहने वालों
क्या आपको मालूम है?
कृषि ही भारत की पहचान है ।
फिर क्यों नहीं मिलता, इनको सम्मान है???
नमस्कार मित्रों इन्हीं पंक्तियों के साथ मैं सुनील सिंह राणा ।आपके समक्ष वर्तमान समय में किसानों के लिए लाए गए ।किसान बिल 2020 की चर्चा आसान भाषा में करूंगा। ताकि मेरे सभी किसान भाई किसानों के लिए लाए गए बिल को समझने में मदद मिल सके ।
कृषि विधेयक 2020 के बारे में,
5 जून 2020 को एक अध्यादेश के माध्यम से दोनों सदनों में प्रस्तुत करने के बाद बिल पारित किया गया । जिसमें एक साथ किसानों व बाजारों की स्थिति को बेहतर करने के लिए तीन बिल लाए गए ।
- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020
- कृषक कीमत आश्वासन और कृषि सेवा कर विधेयक 2020
- आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020
आता हो, और कुछ कठिन भी लग रहा हो। लेकिन यहां बिल के नाम सरलता पूर्वक स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा । अतः ध्यानपूर्वक पढ़िएगा। चर्चा करने से पहले एक बात स्पष्ट कर दूं। कि पहले दो बिलों में कोई खास कमी नहीं है ! अर्थात यदि आप सकारात्मक सोच रखते हैं तो पारित बिलों के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि होगी। और कृषि का विकास तेजी से होगा । लेकिन तीसरा जो बिल है खतरनाक साबित हो सकता है जिसकी चर्चा की जाएगी।
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020
इस बिल का मुख्य उद्देश्य संवर्धन और सरलीकरण है । अर्थात किसानों द्वारा उपजाई गई फसल की उचित कीमत दिलाने में सहायता करना तथा बेचने की प्रक्रिया को सरल करना । सरकार ने किसानों को देश में कहीं भी फसल बेचने की स्वतंत्रता प्रदान की है। ताकि राज्यों के बीच कारोबार बढे़। जिससे विज्ञापन और परिवहन पर भी खर्च कम आएगा। लेकिन इससे पहले क्या होता था ? 1970 के दशक में कृषि सुधार के लिए APMC(agriculture marketing produce committee) एक्ट लाया गया था । जिसमें किसी भी राज्य को अन्य राज्य में फसल बेचने की स्वतंत्रता नहीं थी । अब चाहे आढ़तिए खरीदते हो या बिचौलिए उत्पादित फसल को पास की मंडी में ही बेचना पड़ता था । जिससे उचित कीमत नहीं मिल पाती थी । मंडी में ही फसल बेचना अनिवार्य था और साथ ही मंडी में अनेकों प्रकार के कर लगाए जाते थे।जिससे लागत अधिक आ जाती थी और लाभ कम मिलता था।
कृषक कीमत आश्वासन और कृषि सेवा कर विधेयक 2020
इस बिल का मुख्य उद्देश्य किसानों का सशक्तिकरण एवं संरक्षण प्रदान करना है। यह बिल प्रथम बिल का पूरक है। क्योंकि फसल बेचने की स्वतंत्रता के बाद किसान को अधिकार दूसरा बिल ही प्रदान करता है। कि वह सीधे निवेशक या बड़े व्यापारी को अपनी फसल बेंच सकें । इस बिल का मुख्य आधार कॉन्ट्रैक्ट खेती (Contact farming) है । जहां किसान सीधे बड़ी-बड़ी कंपनियां एवं फुटकर व्यापारियों से फसल को पहले से तय कीमत पर समझौता करके चल बेंच सकेगा। साथ ही साथ कंपनियों द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग कर सकेंगे। खेती के लिए 5 हेक्टेयर से अधिक भूमि की आवश्यकता होती है तो इसी भी छोटे-छोटे किसानों को संगठित करके खेती का लाभ पहुंचाया जा सकता है।
आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020
इस बिल का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना। जिससे किसान को अच्छी कीमत मिल सके तथा कोल्ड स्टोरेज फूड सप्लाई चैन को आधुनिक बनाना। इसलिए अनाज दाल और तेल प्याज और आलू जैसी फसलों को जरूरी वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है। दरअसल पहले इन खाद्य पदार्थों की पूर्ति की जिम्मेदारी सरकार के पास थी अर्थात अन्य कोई व्यक्ति इनका स्टॉक नहीं रख सकता था जिसे सरकार महंगाई पर लगाम लगा दी थी।
कृषि बिल 2020 का विरोध क्यों?
जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि इन 3 बिलों में सबसे खतरनाक तीसरा बिल आवश्यक वस्तु ( संशोधन ) विधेयक 2020 है । क्योंकि देश की सबसे प्रमुख समस्या महंगाई है और जब जीने की मूलभूत खाद्य पदार्थों पर किसी का भी नियंत्रण नहीं होगा तो महंगाई आसमान छूने लगेगी, व मनमानी चलेगी। इस बिल के माध्यम से बड़े व्यापारी और जो निजी कंपनियां है। जब यह किसान से उनका स्टॉक खरीद कर रख लेंगे तो बाद में दिक्कत यह होगी कि महंगाई उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगी। क्योंकि जाहिर है किसान की फसल का अधिकतम दाम देने वाले कई बड़े व्यापारी होंगे और यदि वह फसल के अधिक दाम देगा तो एक निश्चित समय के बाद वह उस खाद्य पदार्थ को महंगे दामों में बेचेगा भी जिससे खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी । साथ ही साथ जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा । जहां एक समय इस बिल का किसानों को लाभ मिलेगा वहीं मंडियों के लगातार घाटे से मंडियों के समाप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी(MSP) कमजोर हो जाएगा। किंतु में अत्यधिक उतार-चढ़ाव रहेगा । वही किसानों को डर है कि जिस प्रकार सरकारी कंपनियां घाटे में जा रही होती हैं तो सरकार उनके शेयर बेचने लगती हैं । एक प्रकार से निजीकरण करने लगती है । यदि किसी समय की भी यही स्थिति हुई तो निजी व्यापारी व निवेशक (स्टॉक होल्डर) फसल की मनमानी करने लगेंगे। इस तरह ना तो मंडी होगी और ना ही कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य होगा।
अन्य 2 बिलों में यदि किसान सकारात्मक सोच रखें तो ज्यादा खामियां नहीं है ।बस उन्हें डर है कि मंडी व एमएसपी समाप्त ना हो जाए। यदि यह समाप्त होती है तो ई-नाम (e-NAM) जैसी इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में मंडी जैसी व्यवस्था है। यदि मंडिया ही नहीं होंगी तो इनाम का क्या होगा। वहीं दूसरी ओर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग है । जहां किसानों का मानना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के पास मोलभाव की क्षमता कम हो जाएगी तथा खेती पर निजी कंपनियों का अधिकार हो जाएगा।
निष्कर्ष
सरकार का दावा है न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था और मंडी व्यवस्था चालू रहेगी तथा पारदर्शी तरीके से किसानों को संरक्षण प्रदान किया जाएगा । किसानों को सशक्तिकरण बनाया जाएगा। किसान को जो फसल लेकर जोखिम होता है और जो खरीदा घूमने के लिए मेहनत करनी पड़ती है । वह नहीं करनी पड़ेगी । कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में यदि फसल खराबी होती है तो फसल बीमा योजना का भी लाभ पूर्णता सभी किसानों को मिल सकेगा या फिर कांटेक्ट करने वाली कंपनी उस आने की क्षतिपूर्ति करेगी। कोल्ड स्टोरेज के निर्माण से फसलों के उचित दाम मिलेंगे। एक प्रकार से सरकार द्वारा लिए गए सभी निर्णय सही साबित हो सकते हैं । बाकी दुनिया उम्मीद पर चलती है तो हमें भी सरकार पर विश्वास बनाए रखना होगा। सरकार का प्रयास है कि किसानों की आय 2022 तक दुगनी करनी है । हालांकि बिलों में दूरदर्शिता का अभाव नजर आता है क्योंकि 5 से 10 वर्षों के लिए बिल ठीक साबित हो सकते हैं। क्योंकि निजी व्यापारियों को लाभ से मतलब होता है तो वह अत्यधिक लाभ के चक्कर में कॉन्ट्रैक्ट खेती में छोटे और गरीब किसानों का शोषण करेंगे या वे छोटे किसानों को शामिल ही नहीं करेंगे। वहीं दूसरी और पारंपरिक खेती का ज्ञान भी खत्म हो जाएगा ।कंपनियां किसानों को ज्यादा उत्पादन के लिए नई तरीके से फसल उगाने पर मजबूर करेंगी । जिससे भूमि की उर्वरक शक्ति भी खत्म हो जाएगी।
अतः सरकार को दूरदर्शिता रखते हुए या तो पारित बिलों में सुधार करें या फिर निजी क्षेत्रों के व्यापारी व निवेशकों के लिए नियम बनाएं । हालांकि वर्तमान समय में किसानों की सरकार के साथ बिलों से संबंधित पांच बैठकें हो चुकी हैं ।जिसमें कोई स्पष्ट निर्णय नहीं आया है लेकिन सरकार किसानों के अहिंसक रवैया से खुश है इसलिए सरकार ने किसानों के आंदोलन के लिए सकारात्मक रवैया अपनाया है । जल्दी ही इसका निर्णय सामने आ जाएगा । फिलहाल किसानों ने 8 दिसंबर को किसान आंदोलन का बड़ा ऐलान किया है।
मेरी कोशिश रहती है कि अर्थशास्त्र के शब्दों को सरल करके आम नागरिकों को तक पहुंचाया जाए। खासकर यह आर्टिकल उनके लिए बहुत मायने रखता है जो कृषि बिल से अवगत नहीं है। तथा गलत जानकारी के चलते भ्रमित हो गए हैं।
धन्यवाद
इन्हें भी जाने।
nice
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