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श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति

श्यामलाताल : विवेकानंद आश्रम की मनमोहक शांति हिमालय की गोद में बसा विवेकानंद आश्रम, श्यामलाताल, उत्तराखंड के चम्पावत जिले का एक ऐसा रत्न है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। समुद्र तल से लगभग 5,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्थल अपने आलौकिक सौंदर्य और शांति से हर किसी का मन मोह लेता है। यहाँ से टनकपुर-वनबसा और शारदा नदी घाटी के मनोरम दृश्यों के साथ-साथ नंदादेवी, पंचाचूली और नंदकोट जैसी बर्फीली चोटियों का लुभावना नजारा देखने को मिलता है, जो आत्मा को सुकून और आँखों को तृप्ति देता है। श्यामलाताल : एक झील का जादू आश्रम के ठीक निकट एक छोटी, परंतु अत्यंत आकर्षक झील है, जिसे श्यामलाताल के नाम से जाना जाता है। इस झील की लंबाई लगभग 500 मीटर और चौड़ाई 200 मीटर है। इसका गहरा श्याम वर्ण वाला जल इतना मनमोहक है कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं इसे 'श्यामलाताल' नाम दिया। झील के शांत जल में आसपास की हरी-भरी पहाड़ियों और नीले आकाश की छवि ऐसी दिखती है, मानो प्रकृति ने स्वयं एक कैनवास पर चित्र उकेरा हो। कैसे पहुँचें? विवेकानंद आश्रम, चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर ...

उत्तराखंड लोकगीत और‌ लोकनृत्य (part -01)

उत्तराखंड के लोकगीत और लोक नृत्य पहाड़ की अपनी ही बोली और संस्कृति है यहाँ के लोक गीतों का विस्तृत स्वरूप मुक्तको के रूप में मिलता है। विभिन्न अवसरों तथा विविध प्रसंगी में मुक्तकों का व्यवहार होता है, पहाड़ी समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृति पौराणिक काल से रही है. न्यौली इसे न्यौली, न्यौल्या या वनगीत के नामों से पुकारा जाता है, न्यौली का अर्थ किसी नवीन स्त्री को नवीन रुप में सम्बोधन करना और स्वर बदल बदलकर प्रेम परक अनुभूतियों को व्यक्त करना है। न्यौली प्रेम परक संगीत प्रधान गीत है जिसमें दो-दो पंक्ति होती है। पहली पंक्ति प्रायः तुक मिलाने के लिए होती है। न्यौली में जीवन चिन्तन की प्रधानता का भाव होता है। ब्योली ब्योली रैना, मेरो मन बस्यो परदेश, कब आलो मेरो सैंया, मेरो मन लियो हदेश। (अर्थ: रात बीत रही है, मेरा मन परदेश में बसा है। कब आएगा मेरा प्रिय, जिसने मेरा मन ले लिया।) "सबै फूल फुली यौछ मैथा फुलौ ज्ञान,  भैर जूँला भितर भूला माया भूलै जन,  न्यौली मया भूलै जन", बैरा (नृत्य गीत) बैरा का शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है। अर्थात् यह कुमाऊं क्षे...

उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोककथाएं (एक गंगोल सौ रंगोल)

उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोककथाएं  लोककथा : एक गंगोल सौ रंगोल  बहुत समय पहले की बात है। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में हर महीने 'हाट' यानी 'बाजार' लगा करती थी। जिसमें लगभग सौ व्यापारियों की दुकान लगती थी। दूर-दूर से व्यापारी उस बाजार में व्यापार करने आते थे। तत्कालीन समय में व्यापार के लिए विनिमय प्रणाली और सिक्कों के माध्यम से व्यापार होता था। व्यापार में मुख्य रूप से सूती व ऊनी वस्त्र, सूखे मेवे, विभिन्न प्रकार के बर्तन चीनी, तेल, गुड़, तम्बाकू, साबुन, सौन्दर्य सामग्री, जूते व खालें आदि प्रमुख थे। गंगोलीहाट के लोग उन व्यापारियों को अपने खेतों में दुकान लगाने के लिए जगह देते थे। जिसके बदले किराया और उनकी सामग्री मुफ्त में लिया करते थे जो व्यापारियों के लिए घाटे का सौदा होता था। इससे नाखुश होकर व्यापारियों को एक तरकीब सूझी। और उन्होंने मिलकर यह फैसला किया कि वह अगली बार अपने व्यापार के लिए किसी दूसरे स्थान पर बाजार लगाएंगे।  यह बात एक गंगोल यानी कि गंगोलीहाट के व्यक्ति को मालूम पड़ गई और उसने एक योजना बनाई। वह उन व्यापारियों के पास गया और उनसे कहा - मेरे पास 4 नाल...