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Uttarakhand current affairs 2025 (July Month)

Uttrakhand Current Affairs 2025 (July Month) पूरे एक वर्ष के सभी उत्तराखंड विशेष करेंट अफेयर्स 2025, आगामी उत्तराखंड अपर पीसीएस, लोअर पीसीएस, RO/ARO और समस्त उत्तराखंड समूह ग की परीक्षाओं हेतु 500+ बहुविकल्पीय प्रश्नों के साथ। सभी करेंट पीडीएफ फाइल में प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।  उत्तराखंड करेंट अफेयर्स (जुलाई 2025) प्रश्न 1 : लोक रत्न हिमालय सम्मान 2025 निम्नलिखित में से किसे मिला है? a) अनिल जोशी  b) सविन बंसल c) राजीव कुमार  d) दीपक रावत व्याख्या: देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल को उनके असाधारण निर्णयों और उत्कृष्ट कार्यशैली के लिए लोक रत्न हिमालय सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पर्वतीय बिगुल सामाजिक सांस्कृतिक संस्था के 29वें स्थापना दिवस पर प्रदान किया गया था, जो उत्तराखंड की लोक संस्कृति और प्रशासनिक सेवा के  समन्वय का प्रतीक है। उत्तर: b) सविन बंसल प्रश्न 2 : "छात्रों का सतत कल्याण" पुस्तक का विमोचन किसने किया? a) राज्यपाल b) मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी c) शिक्षा मंत्री d) राष्ट्रपति व्याख्या : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा "छ...

वीर भड़ लोदी रिखोला: गढ़वाल की धरती पर जन्मी अमर वीरता की ज्वाला

वीर भड़ लोदी रिखोला: गढ़वाल की धरती पर जन्मी अमर वीरता की ज्वाला जन्म की धूल में सनी चिंगारी: एक योद्धा का उदय गढ़वाल की हरी-भरी पहाड़ियों में, जहाँ नदियाँ गाती हैं और हवा वीरों की कहानियाँ फुसफुसाती है, सोलहवीं शताब्दी के अंत में (1590 ई.) एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम था – लोदी रिखोला । पौड़ी जनपद के ग्राम बटोला में, उसके पिता एक प्रतिष्ठित थोकदार थे, जिनकी आँखों में गढ़वाल की मिट्टी का गर्व झलकता था। लोदी का बचपन उन पहाड़ों की गोद में बीता, जहाँ हर साँस में स्वतंत्रता की खुशबू थी। लेकिन भाग्य ने जल्दी ही उसे आजमाया। मात्र 13-14 वर्ष की उम्र में, जब पड़ोसी गाँव ईड़ा से एक बारात बटोला पहुँची, तो स्वागत की धूम मच गई। गाँव के नीचे नौले के पास पानी से भरा एक विशाल गैड़ा (गेडू) खड़ा था – इतना भारी कि कई मजबूत कंधे भी उसे हिला न सके। तभी, कौतूहल से भरा बालक लोदी वहाँ पहुँचा। बिना एक पल की झिझक, बिना किसी डर के, उसने अकेले ही उस गैड़ा को सिर पर उठा लिया। जैसे पहाड़ खुद उसके कंधों पर चढ़ गया हो! बारात के स्थान तक पहुँचते ही, सबकी साँसें थम गईं। आश्चर्य की लहर दौड़ पड़ी – "यह तो भड़ है! गढ...

कालू सिंह महरा: कुमाऊं की हरी-भरी वादियों से उठा आजादी का पहला उद्घोष

कालू मेहरा : जीवन परिचय  प्रस्तावना  कुमाऊं की ऊँची-नीची पहाड़ियों और कोहरे से लिपटी घाटियों में, जहाँ हवा में पाइन की सुगंध घुली रहती है, एक ऐसा योद्धा जन्मा जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी। कालू सिंह महरा, जिन्हें उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है, न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक प्रेरणा के स्रोत थे—जो साधारण किसानों को असाधारण वीरों में बदल देते थे। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि साहस की कोई सीमा नहीं होती; यह तो बस एक चिंगारी है, जो पूरे जंगल को भस्म कर सकती है। आइए, इस वीर की यात्रा को जीवंत करें, जहाँ हर कदम प्रेरणा का संदेश देता है। प्रारंभिक जीवन: एक कुशाग्र बुद्धि का उदय कालू सिंह मेहरा (picture credit by Google) सन् 1831 में, चम्पावत जिले के लोहाघाट के निकट थुआमहरा (विसुड) के एक साधारण गाँव में, ठाकुर रतिभान सिंह महरा के घर कालू सिंह महरा का जन्म हुआ। बचपन से ही कालू की बुद्धि इतनी तेज थी मानो हिमालय की चोटियों पर चमकती बर्फ की चादर—स्पष्ट और अटल। गृहस्थी के कार्यों में उनकी दक्षता गाँव वालों की जुबान पर चढ़ गई; वे न केवल खेतों में फसलें उग...

उत्तराखंड लोकगीत और‌ लोकनृत्य (part -01)

उत्तराखंड के लोकगीत और लोक नृत्य पहाड़ की अपनी ही बोली और संस्कृति है यहाँ के लोक गीतों का विस्तृत स्वरूप मुक्तको के रूप में मिलता है। विभिन्न अवसरों तथा विविध प्रसंगी में मुक्तकों का व्यवहार होता है, पहाड़ी समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृति पौराणिक काल से रही है. न्यौली इसे न्यौली, न्यौल्या या वनगीत के नामों से पुकारा जाता है, न्यौली का अर्थ किसी नवीन स्त्री को नवीन रुप में सम्बोधन करना और स्वर बदल बदलकर प्रेम परक अनुभूतियों को व्यक्त करना है। न्यौली प्रेम परक संगीत प्रधान गीत है जिसमें दो-दो पंक्ति होती है। पहली पंक्ति प्रायः तुक मिलाने के लिए होती है। न्यौली में जीवन चिन्तन की प्रधानता का भाव होता है। ब्योली ब्योली रैना, मेरो मन बस्यो परदेश, कब आलो मेरो सैंया, मेरो मन लियो हदेश। (अर्थ: रात बीत रही है, मेरा मन परदेश में बसा है। कब आएगा मेरा प्रिय, जिसने मेरा मन ले लिया।) "सबै फूल फुली यौछ मैथा फुलौ ज्ञान,  भैर जूँला भितर भूला माया भूलै जन,  न्यौली मया भूलै जन", बैरा (नृत्य गीत) बैरा का शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है। अर्थात् यह कुमाऊं क्षे...

उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोककथाएं (एक गंगोल सौ रंगोल)

उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोककथाएं  लोककथा : एक गंगोल सौ रंगोल  बहुत समय पहले की बात है। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में हर महीने 'हाट' यानी 'बाजार' लगा करती थी। जिसमें लगभग सौ व्यापारियों की दुकान लगती थी। दूर-दूर से व्यापारी उस बाजार में व्यापार करने आते थे। तत्कालीन समय में व्यापार के लिए विनिमय प्रणाली और सिक्कों के माध्यम से व्यापार होता था। व्यापार में मुख्य रूप से सूती व ऊनी वस्त्र, सूखे मेवे, विभिन्न प्रकार के बर्तन चीनी, तेल, गुड़, तम्बाकू, साबुन, सौन्दर्य सामग्री, जूते व खालें आदि प्रमुख थे। गंगोलीहाट के लोग उन व्यापारियों को अपने खेतों में दुकान लगाने के लिए जगह देते थे। जिसके बदले किराया और उनकी सामग्री मुफ्त में लिया करते थे जो व्यापारियों के लिए घाटे का सौदा होता था। इससे नाखुश होकर व्यापारियों को एक तरकीब सूझी। और उन्होंने मिलकर यह फैसला किया कि वह अगली बार अपने व्यापार के लिए किसी दूसरे स्थान पर बाजार लगाएंगे।  यह बात एक गंगोल यानी कि गंगोलीहाट के व्यक्ति को मालूम पड़ गई और उसने एक योजना बनाई। वह उन व्यापारियों के पास गया और उनसे कहा - मेरे पास 4 नाल...