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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर) कस्तूरी मृग - उत्तराखंड का राज्य पशु  कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की।                    महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  यह केंद्र कस्तूरी मृग संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित है जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है, बागेश्वर जनपद गठन से पूर्व महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1974 में पिथौरागढ़ जनपद में की गई थी। किन्तु 15 सितंबर 1997 में बागेश्वर जनपद के गठन के पश्चात् वर्तमान में यह केंद्र उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में महरूढ़ी धरमघर नामक स्थान पर स्थित है।                  महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  *कुछ पुस्तकों में इसकी स्थापना का समय 1977 दिया गया है। और आयोग ने परीक्षा में यह प्रश्न अनेक बार पूछा है और आयोग द्वारा स्थापना व

उत्तराखंड के आधुनिक इतिहास से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण टॉप 50 प्रश्न

आधुनिक उत्तराखंड से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न  उत्तराखंड स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित 100 महत्वपूर्ण प्रश्न  उपर्युक्त प्रश्नोत्तरी आधुनिक इतिहास के सभी नोट्स (भाग -01 से भाग -04 तक) को ध्यान में रखकर अभ्यास के लिए तैयार की गई है। सभी प्रश्न परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यदि आपने देवभूमि उत्तराखंड द्वारा तैयार किए गए सभी नोट्स का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है तो pdf file download करके अभ्यास करें। और नीचे दिए गए उत्तर सहित प्रश्नों का मिलान करें। उम्मीद करते हैं यह प्रश्नोत्तरी आपकी तैयारी में सर्वोत्तम सहायक सिद्ध हो। उत्तराखंड के आधुनिक इतिहास से 100 महत्वपूर्ण प्रश्नों को तैयार किया गया है जिसको दो भागों (भाग -01 और भाग -02) में विभाजित किया गया है इस लेख में भाग 1 के 50 प्रश्नों को दिया गया है। भाग -01 (1) "उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी" पुस्तक के लेखक हैं? (a) यशवंत सिंह कठौच (b) धर्मपाल सिंह मनराल (c) अजय रावत (d) हरिकृष्ण रतूड़ी Answer - (b) (2) "उत्तराखंड राज्य आंदोलन का इतिहास" पुस्तक के लेखक हैं? (a) खेमराज कृष्णदास (b) मदन चंद्र भट्ट (c) शेख

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास (भाग - 04)

आधुनिक उत्तराखंड का इतिहास (1930-1947) भाग -04 क्योंकि आगे का इतिहास गांधीजी के आंदोलनों से जुड़ा है। इसलिए हम सर्वप्रथम गांधी जी के बारे में जानेंगे और फिर उत्तराखंड के इतिहास को पढ़ेंगे। मित्रों परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण टॉपिक है इसलिए अंत तक जरूर पढ़ें। गांधी जी का उत्तराखंड में आगमन यूं तो गांधीजी उत्तराखंड में प्रथम बार 5 अप्रैल 1915 ईस्वी को हरिद्वार के कुंभ मेले में आए थे। और दूसरी बार राजनीतिक उद्देश्य से सन् 1916 में देहरादून  आए थे। जहां उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत भाषण दिए जिससे वहां की जनता काफी प्रभावित हुई। किंतु उत्तराखंड की यात्रा के उद्देश्य से प्रथम बार जून 1929 में आए थे। जब उत्तराखंड में कुमाऊं परिषद का बोलबाला था उस दौरान देश का राष्ट्रीय आंदोलन गांधीजी के नेतृत्व में आ चुका था। 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद सर्वप्रथम उन्होंने वर्ष 1917 में बिहार के चंपारण में नील की खेती की दमनकारी प्रणाली के लिए भारत में सत्याग्रह आंदोलन चलाया। उसके बाद 1917 में ही खेड़ा सत्याग्रह और वर्ष 1918 में कपास मिल श्रमिकों के लिए अहमदाबाद स

कुली बेगार आंदोलन -1921 (विस्तार से)

कुली बेगार प्रथा और कुली बेगार आंदोलन  कुली बेगार आंदोलन उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस आंदोलन ने जिस सफलता के साथ क्षेत्र में बरसों से चले आ रहे अत्याचार, अन्याय तथा शोषण के प्रतीक प्रथा की जड़ों का उन्मूलन किया और उत्तराखंड के विभिन्न वर्गों के लोगों ने जिस उत्साह व निर्माता से हिस्सा लिया वह प्रशंसनीय है। इस आंदोलन के अनेक महत्वपूर्ण नेता भी उभर कर आए जिन्होंने आगामी समय में आने वाले आंदोलनों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण  योगदान दिया। कुली बेगार प्रथा का प्रारंभ 1815 में ब्रिटिश काल से प्रारंभ होता है तथा कुली बेगार प्रथा का अंत 14 जनवरी 1921 से प्रारंभ होता है। महात्मा गांधी जी ने कुली बेगार आंदोलन को "रक्तहीन क्रांति" की संज्ञा दी थी। कुली बेगार प्रथा का इतिहास  उत्तराखंड में बेगारी का अस्तित्व प्राचीन काल से ही रहा है कत्यूरी, चंद एवं गोरखों के समय बेगार प्रथा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। सन् 1815 ई. के पश्चात उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ और बेगारी का नया स्वरूप प्रकट हुआ। ब्रिटिश काल में

उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम (भाग -03)

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास (कुमाऊं और गढ़वाल) भाग -03 दोस्तों आज उत्तराखंड के आधुनिक इतिहास का अति महत्वपूर्ण टॉपिक है। यहां से 2 से 4 प्रश्न उत्तराखंड की प्रत्येक परीक्षा में पूछे जाते हैं अतः लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।  उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम की नींव कैसे और कब पड़ी ? उत्तराखंड स्वतंत्रता संग्राम में किन व्यक्तियों ने सहयोग किया और कौन-कौन से संगठन बनाएं ? इसका विस्तार से अध्ययन करेंगे यहां साथ ही भारत के इतिहास के साथ संबंध बनाते हुए सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा करेंगे।  उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम (1912-1930 ईस्वी) यूं तो उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1857 से पहले 1822 में सर्वप्रथम हरिद्वार जिले के कुंजाबहादुरपुर गांव के गुर्जरों द्वारा "कुंजा क्रांति" के रूप में हो चुकी थी। कुंजा क्रांति के बाद 1857 में क्रांति में कुमाऊं के लोग शामिल हुए थे। जिसमें कालू सिंह मेहरा ने "क्रांतिवीर संगठन" की स्थापना की और प्रथम स्वतंत्रा सेनानी कहलाए। किंतु उत्तराखंड में वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत भारत के स्वदेशी आंदोलन से हुई। भारत में

ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी रैमजे को कुमाऊं का बेताज बादशाह क्यों कहा जाता है?

कुमाऊं का बेताज बादशाह "हेनरी रैमजे" यह सब तो आप सब ने सुना होगा कि हेनरी रैमजे को कुमाऊं का बेताज बादशाह कहा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि  सर हेनरी रैम्जे को कुमाऊं का बेताज बादशाह क्यों कहा जाता है ? दरअसल 1857 की क्रांति के दौरान उत्पन्न परिस्थितियों में हैनरी रैमजे ने अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से 10 मई 1857 से 1 नवंबर 1858 तक इलाहाबाद दरबार में शाही घोषणा तक, कुमाऊं एक शांत क्षेत्र बना रहा। 1857 की क्रांति की आग की लपटें बरेली (प्राचीन रूहेलखंड) तक पहुंच चुकी थी। रुहेलखंड के कमिश्नर एलेग्जेंडर व यूरोपीय सैनिकों व व्यक्तियों ने नैनीताल में शरण ली। इस अवधि में उनके रहन सहन की व्यवस्था से लेकर आंशिक वेतन आदि की व्यवस्था भी रैम्जे द्वारा की गई। और क्रांति से उत्तराखंड को बचाने के लिए उत्तराखंड में मार्शल लॉ लागू किया जिससे पहाड़ का संपर्क देश के अन्य भागों से कट गया। यहां तक कि अंग्रेजों का सामान ढोने हेतु कुली तक मिलने बंद हो गए थे। उत्तराखंड में मार्शल लॉ लागू -1857 1857 में क्रांति की संभावना को देखते हुए उत्तराखंड में हेनरी रैमजे ने पूर्ण सतर्कता का परिचय देते

Uttrakhand patwari/lekhpal solved paper 2023

Uttrakhand patwari/lekhpal solved paper 2023 (Paper set -C) मित्रों पटवारी एवं लेखपाल पेपर 2023 प्रश्न पत्र व्याख्या सहित उपलब्ध कराया जा रहा है। यह 98% शुद्धता के साथ उत्तर कुंजी तैयार की गई। व्याख्या सहित देखने के लिए दो दिन का इंतजार करें। इसके अलावा जिनका भविष्य में उत्तराखंड का कोई भी एक्जाम है । वह पूरे प्रश्न पत्र को अंत तक जरूर देखें। उत्तराखंड पटवारी एवं लेखपाल पेपर 2023 -  उत्तराखंड पटवारी एवं लेखपाल परीक्षा 2023 का पेपर बेहद शानदार था। पटवारी का पेपर जिस प्रकार होना चाहिए था पेपर उसी के अनुरूप है। जिसने ध्यानपूर्वक सभी टॉपिक का अध्ययन किया है। उनके लिए आसान था। जिसमें 15-16 प्रश्न ही कठिन थे। 20-25 के प्रश्न औसत दर्जे के थे। और 50-60 प्रश्न बहुत सरल थे। आमतौर पर सरल प्रश्नों की संख्या 40 ही रखी जाती है। उत्तराखंड की लिखित परीक्षा में 60 मार्क्स तो लगभग 70% अभ्युर्थी के आएंगे। और कट ऑफ मार्क्स कुछ इस प्रकार रहने की संभावना है। संभावित उत्तराखंड पुलिस पेपर 2022 कट ऑफ मार्क्स Cut off marks for boys - (72-75)Cutt off marks for sc/st - (65-70) (1) महर्षि का सही संधि विच्छेद होगा

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास (भाग -02)

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास  भाग -02 (सन् 1857 से सन् 1912 ई. तक) 29 मार्च 1857 में बैरकपुर में भारतीय ब्रिटिश सैनिकों द्वारा चर्बी लगे कारतूस का प्रयोग से इनकार करना एवं मंगल पांडे का बलिदान भारतीय सैनिकों के लिए बारूद में चिंगारी साबित हुआ। इस घटना से लगी आग की लपटों से संपूर्ण भारत में 10 मई 1857 ई. से देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ। क्रांति की आग की आंच से उत्तराखंड भी अछूता नहीं रह । और उत्तराखंड में 1857 की क्रांति का प्रभाव कुमाऊं के दो स्थानों पर देखने को मिला। जबकि गढ़वाल में क्रांति से संबंधित कोई उल्लेखनीय घटना नहीं घटी थी। हल्द्वानी में क्रांति का प्रभाव - 1857 की क्रांति की लपटें बरेली पहुंच चुकी थी जो कि उत्तराखंड से जुड़ा क्षेत्र था। बरेली क्षेत्र का नेतृत्व "खान बहादुर खान" कर रहे थे। उन्होंने सेनापति काले खां के नेतृत्व में क्रांति का विस्तार करने के लिए उत्तराखंड में 1000 सैनिकों की टुकड़ी भेजी। जिसने ब्रिटिश सेना के कैप्टन मैक्सवेल एवं लै. चैपमैन को हराकर कुमाऊं क्षेत्र के हल्द्वानी में 17 सितंबर 1857 को कब्जा कर लिया था। किंतु कुछ ही समय में