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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर) कस्तूरी मृग - उत्तराखंड का राज्य पशु  कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की।                    महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  यह केंद्र कस्तूरी मृग संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित है जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है, बागेश्वर जनपद गठन से पूर्व महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1974 में पिथौरागढ़ जनपद में की गई थी। किन्तु 15 सितंबर 1997 में बागेश्वर जनपद के गठन के पश्चात् वर्तमान में यह केंद्र उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में महरूढ़ी धरमघर नामक स्थान पर स्थित है।                  महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  *कुछ पुस्तकों में इसकी स्थापना का समय 1977 दिया गया है। और आयोग ने परीक्षा में यह प्रश्न अनेक बार पूछा है और आयोग द्वारा स्थापना व

काव्य संग्रह : किसान ही भविष्य हैं

काव्य संग्रह किसान ही भविष्य  हैं। किसान ही भविष्य होते हैं,  चीर कर धरती का जिगर  जब वो अनाज बोते हैं , जो बैठे हैंं इंसाफ करने को , वो तो महलों में सोते हैं , वर्षा हो या धूप कड़ी , वो फिर भी पौधे रोपते हैं, जुल्मों से जी ना भरा तो , कानून पर कानून थोपते हैं।  सींचा है - जिसने भारत को,  वो आज भी क्यों रोते हैं ? किसान ना चाहे शोर शराबा,  फिर क्यों आंदोलन होते हैं ? उन्हें क्या मालूम ? कैसे-खेती, कैसे-खेत होते हैं ?  कभी पैर रखोगे जमीं पर  तब एहसास होगा , किसान कितना कुछ सहते हैंं?  दलालों के आगे झुक गई हैै सत्ता ,  उद्योगपति ही दौलत ढोते हैं। किसान तो खिलौना है माटी का,  वो तो  माटी में बोते हैं। संकट आए कुटुंब पर,  किसान ही हमेशा खोते हैं , घर आज भी खाली हैं उनके , सिर्फ़ वही हक से वंचित रहते हैं। क्यों भूल जाती है सरकारें ?  किसान ही भविष्य होते हैं। किसान ही भविष्य  हैं काव्य संग्रह जब ख्वाब पूरे होते हैं। सुकून मिलता है ना,  जब ख्वाब पूरे होते हैं।  जो बैठे थे - उपहास करने को  वही सफलता पर हमारी रोते हैं।  जानते हो न, कुछ पाने के लिए , सभी , कुछ ना कुछ खोते हैं , किस्मत के दीवाने

Top 10 weekly current affair in hindi

 7 days challenge Top 10 weekly current affair in hindi 22 February to 28 February 7 days challenge के अंतर्गत यहां देवभूमिउत्तराखंड.com के द्वारा सप्ताह के most important Top 10 weekly current affair हिंदी में तैयार किए जाते हैं। जिनकी 2021 में होने वाली आगामी परीक्षाओं  शत-प्रतिशत आने की संभावना होती है। यहां से आप जनवरी 2021 से फरवरी तक के प्रत्येक सप्ताह के करंट अफेयर पढ़ सकते हैं।  (1) निम्न में से किसे हाल ही में बेस्ट एक्टर के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार 2021 से सम्मानित किया गया है ? (a) राजकुमार राव (b) अक्षय कुमार (c) अमिताभ बच्चन (d) इमरान खान व्याख्या : दादा साहब फाल्के पुरस्कार की शुरुआत 1969 में की गई थी इसमें पुरस्कार के साथ 10 लाख रुपए और एक शाल  उपहार में दिए  जाते हैं । सर्वप्रथम इस प्रकार से एक्ट्रेस देविका रानी को सम्मानित किया गया था । 2020 से इस पुरस्कार को विभिन्न वर्गों में विभाजित करके सम्मानित किया जाता है। वर्ष 2021 में बेस्ट एक्टर का अवार्ड - अक्षय कुमार (लक्ष्मी) और बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड दीपिका पादुकोण (छपाक) व बेस्ट फिल्म "तानाजी - द अनसंग वॉरिय

उत्तराखंड का इतिहास : चंद राजवंश (भाग-3)

     उत्तराखंड का इतिहास          चंद राजवंश का इतिहास   भाग-3 नमस्कार मित्रों उत्तराखंड के इतिहास में चंद राजवंश का यह तीसरा भाग है। जिसमें चंद वंश के शेष सभी राजाओं का वर्णन है । देवभूमिउत्तराखंड.com द्वारा बहुत ही सरल भाषा में आपके समक्ष उत्तराखंड के संपूर्ण नोट्स उपलब्ध कराए जा रहे हैं । जिनका आगामी उत्तराखंड की परीक्षाओं में लाभ उठा सकते हैं। इससे पहले कत्यूरी राजवंश के और चंद्र वंश के शार्ट नोट्स तैयार किए गए थे। जिनका लिंक नीचे दिया गया है वहां से पढ़ सकते हैं। त्रिमल चंद (1625 - 1638 ईसवी ) लक्ष्मीचंद के पश्चात उसका योग्यतम पुत्र  त्रिमल चंद गद्दी पर बैठा। त्रिमल चंद ने गढ़वाल अभियान में अपने पिता की पूरी सहायता की थी। गड्यूडा़ ताम्रपत्र से पता चलता है कि चंद वंश में आंतरिक गृह क्लेश की घटना घटित हुई थी।  1616 से युवराज के रूप में 5 वर्ष तक शासन किया । क्योंकि लक्ष्मीचंद बूढ़ा हो गया था । लेकिन लक्ष्मी चंद की मृत्यु के बाद 1621 में दिलीप चंद गद्दी पर बैठता है। जो 1624 तक शासन करता है। 1624 के बाद विजय चंद राजा बनता है और वह केवल 2 वर्ष  ही शासन कर पाता है और एक षड्यंत्र में मार

Top 10 weekly current affair in hindi

 7 days challenge Top 10 weekly current affair (14th - 21th February) 7days challenge की सीरीज देवभूमिउत्तराखंड.com के द्वारा तैयार की गई है । जिसमें प्रति सप्ताह 10 से 11 प्रश्न तैयार किए जाएंगे। जो आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं । यदि मेरे द्वारा दी गई पोस्ट को प्रति सप्ताह पढ़ते हैं या फिर यूट्यूब चैनल imi में देखते हैं। तो आपको साल के अंत तक सफलता आसानी से मिल सकती है। (1) हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनिया गुटेरस द्वारा किसे UNDP का सहायक प्रशासक और अंडर सेक्रेट्री जनरल नियुक्त किया है (a) कमला हैरिस (b) उषा राय मोनारी (c) प्रीति सिन्हा (d) जयंती घोष व्याख्या : भारत की उषा राय मोनारी एमबीए की विद्यार्थी रही हैं। इन्होंने इन्वेस्टमेंट के क्षेत्र में विशेष योग्यता प्राप्त की है। जिस कारण एंटोनिया गुटेरस द्वारा इन्हें संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का सहायक प्रशासक और अंडर सेक्रेट्री जनरल नियुक्त किया है। (2) हाल ही में कोविड-19 के मैनेजमेंट को लेकर सार्क देशों के बीच वर्चुअल मीटिंग हुई । सार्क का मुख्यालय कहां स्थित है ? (a) बीजिंग (ची

उत्तराखंड का इतिहास : चंद राजवंश (भाग-2)

  उत्तराखंड का इतिहास चंद राजवंश का इतिहास (भाग-२) विस्तार से चंद राजा कन्नौज के शासकों के वंशज थे । जो महमूद गजनवी के आक्रमण के समय कुर्मांचल में प्रविष्ट हुए थे। उस समय कुर्मांचल में ब्रह्मदेव का शासन था। ब्रह्मदेव कत्यूर वंश का अंतिम सम्राट था। 10 वीं शताब्दी में लोहाघाट के आसपास सुई राज्य था। सुई राज्य पर ब्रह्मदेव शासन कर रहा था। *इतिहासकार श्यामलाल, एटकिंसन, वाल्टन व बद्रीदत्त पांडे के अनुसार चंद शासक इलाहाबाद के निकट झूंसी से आया था। चंद राजवंश का उदय चंद वंश के संस्थापक - (1) सोमचंद (1025-1046 ईसवी) 1025 ईस्वी के आसपास सोमचंद ने चंपावत में अपनी राजधानी स्थापित की। इतिहासकार श्यामलाल के अनुसार सोमचंद इलाहाबाद के निकट झूंसी से आया था। कुमाऊं में सोमचंद के आने की अनेक कहानियां है । परीक्षाओं की दृष्टि से यह मान सकते हैं कि सोमचंद 11 वीं सदी के आरंभ में बद्रीनाथ की यात्रा पर आया था। संयोगवश उसकी मुलाकात कत्यूरी नरेश ब्रह्मदेव से हो जाती है। ब्रह्मदेव सोमचंद की राजोचित, योग्यता, रूप-रंग व व्यक्तित्व को देखकर अत्यधिक प्रभावित हो जाता है। और अपनी एकलौती पुत्री चंपा का विवाह सोमचंद के

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक

Weekly current affair (8 feb. To 14 Feb)

 7 days challenge Weekly current affairs in hindi 8 February to 14 February (Top -11) नमस्कार मित्रों जिन अभ्यर्थियों को लगता है कि उनके करंट अफेयर की तैयारी नहीं हो पाती है । किसी कारणवश उन्हें करंट अफेयर की तैयारी करने का समय नहीं मिलता है। उन परीक्षार्थियों के लिए हर सप्ताह के विशेष 11 questions की तैयारी कराई जाएगी। जिनकी 90% संभावना प्रतियोगी परीक्षाओं में आने का होती है। कोई फालतू क्वेश्चन नहीं होंगे। केवल उन्हीं प्रश्नों पर बात की जाएगी। जो आते ही आते हैं। यदि आप सप्ताह में इन 11 most important question को अच्छे से तैयार कर लेते हैं तो इतना दावा कर सकता हूं कि परीक्षा में 50 नंबर की सामान्य ज्ञान के questions में से 30+ ला सकते हो । और जो प्रतिदिन करंट अफेयर पढ़ते हैं उनके लिए यह क्वेश्चन एक अच्छा रिवीजन साबित करेंगे। Top 10 current quiz (1) हाल ही में "महात्मा गांधी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार 2021" किसे दी जाने की घोषणा की है? (a) संदीप कुमार (b) मृदुल सिन्हा (c) प्रदीप सरदाना (d) सुनील अरोड़ा व्याख्या : वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना को यह पुरस्कार पत्रकारिता क

कत्यूरी राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास (भाग-2)

 कत्यूरी राजवंश का इतिहास                          (भाग - 2) कत्यूरी राजवंश का भौगोलिक विस्तार कत्यूरी राजवंश की प्रारंभिक राजधानी जोशीमठ ( चमोली ) में थी। कत्यूरी नरेशों का राज्य चमोली के पश्चिम में सतलुज नदी के तट से लेकर दक्षिण के मैदान तक फैला था। पूरब में भारत तिब्बत की सीमा पर कुछ गांव तक सीमित था। वर्तमान काशीपुर, पीलीभीत और संपूर्ण रूहेलखंड उनके शासन के अंतर्गत आते थे। राजनैतिक व्यवस्था मौर्य वंश की भांति ही कत्यूरी नरेश ने प्रशासन व्यवस्था बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण पद नियुक्त किए थे। राजा ने सीमाओं की सुरक्षा के लिए प्रांतपाल नियुक्त किया था। ताकि बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा मिल सके। और सीमाओं में होने वाली गतिविधियों की सूचना अति शीघ्र प्राप्त हो ।  जैसे कि कत्यूरी राजवंश ने पहाड़ों पर शासन व्यवस्था स्थापित की थी। तो जरूरी था उसके क्षेत्र में सभी पहाड़ों की रक्षा की जाए । इसके लिए प्रत्येक पहाड़ पर घटृपाल नियुक्त किए थे । इसके अलावा सड़क परिवहन की सुविधाएं बनाए रखने के लिए वर्मपाल पद स्थापित किया । वर्मपाल सीमावर्ती मार्गो से आने-जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर कड़ी निगाह र

कत्यूरी राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

 कत्यूरी राजवंश का इतिहास भाग -1 अमोघभूति कुणिद वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। कुणिद वंश उत्तराखंड में लगभग तीसरी- चौथी शताब्दी की पहली राजनीतिक शक्ति थी । जबकि कत्यूर राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला पहला ऐतिहासिक शक्तिशाली राजवंश था। इसे कार्तिकेयपुर वंश के नाम से भी जाना जाता है। 'कत्यूरी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एटकिंसन ने किया था।  कत्यूरी राजवंश के संस्थापक बसंत देव थे । जिन्हें बासुदेव के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी। पांडुकेश्वर ताम्रलेख में पाए गए कत्यूरी राजा ललितशूर के अनुसार कत्यूरी शासकों की प्राचीनतम राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी । बाद में नरसिंह देव ने जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर ) में राजधानी स्थानांतरित कर दी । जहां से कत्यूरी राजवंश को विशिष्ट पहचान मिली । कत्यूरी राजवंश का उदय कुणिंदों के पतन के पश्चात देवभूमि उत्तराखंड की भूमि पर कुछ नए राजवंशों का उदय हुआ। जैसे गोविषाण, कालसी लाखामंडल आदि जबकि कुछ स्थानों पर कुणिंद भी शासन करते रहे। कुणिंदो के बाद शक, कुषाण और यौधेय  वंश के शासकों ने कुछ क्षेत्रों पर शासन व्यवस्था स्थ