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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर) कस्तूरी मृग - उत्तराखंड का राज्य पशु  कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की।                    महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  यह केंद्र कस्तूरी मृग संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित है जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है, बागेश्वर जनपद गठन से पूर्व महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1974 में पिथौरागढ़ जनपद में की गई थी। किन्तु 15 सितंबर 1997 में बागेश्वर जनपद के गठन के पश्चात् वर्तमान में यह केंद्र उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में महरूढ़ी धरमघर नामक स्थान पर स्थित है।                  महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  *कुछ पुस्तकों में इसकी स्थापना का समय 1977 दिया गया है। और आयोग ने परीक्षा में यह प्रश्न अनेक बार पूछा है और आयोग द्वारा स्थापना व

पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास

पूर्णागिरी मंदिर : धार्मिक पर्यटक स्थल  पूर्णागिरी मंदिर के बारे में उधम सिंह नगर का शायद ही कोई ऐसा वासी हो जिसने पूर्णागिरी मंदिर का नाम नहीं सुना होगा। सभी धर्मों के लोग यहां भारी संख्या में मनोकामना पूरी करने के लिए श्रद्धा भाव से आते हैं । खटीमा, सितारगंज के लोगों की इतनी आस्था है कि मंदिर में दर्शन करने के लिए परिवार सहित ट्रैक्टर ट्राली में प्रतिवर्ष पूर्णागिरी आते हैं। पूर्णागिरी मंदिर का नाम इतनी दूर दूर तक है कि भारत के सभी स्थलों से श्रद्धालु अपने सभी दुखों को दूर करने के लिए पूरे मन-तन से माता रानी के दर्शन को आते हैं। पूर्णागिरी मंदिर टनकपुर से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यूं तो आपने भी कई बार पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा की होगी। कभी परिवार के साथ,  कभी दोस्तों के साथ, तो कभी हमसफर के साथ लेकिन कभी आपने सोचा है की पूर्णागिरि का अपना एक इतिहास रहा है । शायद ही कोई होगा जिसने इतिहास जानने की कोशिश की होगी और लोग इतने ऊंचे पर्वत पर इतनी दूर क्यों आते हैं? कौन से पर्वत में पूर्णागिरी मंदिर स्थित है? व इसका निर्माण किसने कराया?  आइए हम आपको ले चलते हैं - देवभूमि उत्तराखंड के

हल्द्वानी शहर का इतिहास

हल्द्वानी : कुमाऊं का प्रवेश द्वार (नैनीताल)  क्या आपको मालूम है हल्द्वानी शहर किसने बसाया?  यहां पर सबसे पहली सड़क कब बनी?  और पहली ट्रेन कब चली?   सभी प्रश्नों के जवाब से पहले इतिहास को रोचक बनाना अति आवश्यक है इसीलिए इतिहास का महत्व जान लीजिए यह आर्टिकल उत्तराखंड के सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के हेतु सभी विद्यार्थियों के लिए कारगर सिद्ध हो सकता हैै। मेरा मानना है कि बिना किसी वजह या समझ के पढ़ना और केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कुछ राजाओं के नाम तारीख और स्थान याद करना इतिहास के साथ न्याय नहीं है। इतिहास को भी विज्ञान की भांति समझना चाहिए और वर्तमान जीवन में प्रयोग करना चाहिए । इससे से प्रेरणा लेनी चाहिए कि जो गलती हमारे पूर्वजों की है वह हम ना करें । जैसे वंशवाद,  आपसी लड़ाई,  सत्ता की लालच और पर्यावरण से खिलवाड़, साथ ही साथ इतिहास हमें अनुमान लगाने में मदद करता है और देखा जाए तो पूरी दुनिया अनुमानित आंकड़ों पर चल रही है। आपको बता दूं कि मजदूरी (पुरानी मजदूरी के आधार पर तय),  कृषि( पुरानी फसलों की मांगों पर) , व्यापार,  बाजार,  शेयर बाजार और बजट सभी अनुमान आंकड़ों पर निर्भर है और अ

नानकमत्ता : एक पर्यटक स्थल

नानकमत्ता  सबसे पुरानो गांव : सिद्धा ( नानकमत्ता के क्षेत्र से)   क्या आपको मालूम है कि नानकमत्ता से भी पुराना स्थान कौन सा है नहीं पता है तो इसे जरूर पढ़ लीजिए । ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत अपने इतिहास की जानकारी होनी चाहिए । मान लो कल नानकमत्ता पर्यटक स्थलों का मुख्य केंद्र बन गया तो बाहर से आए विदेशियों को क्या बताओगे। नानकमत्ता का इतिहास : उधम सिंह नगर ( उत्तराखंड)  वैसे तो इंटरनेट में नानकमत्ता के इतिहास को लेकर बहुत सारे आर्टिकल मौजूद है। आप उनको पढ़ सकते हैं और फोटो भी देख सकते हैं लेकिन इन सब में नानकमत्ता की कहानी नानक जी के आने से प्रारंभ की है तो प्रश्न उठता है कि इससे पहले नानकमत्ता से पहले क्या रहा होगा?  तो मैं बता दूं कि नानकमत्ता पहाड़ों से ठीक नीचे तराई और भांवर क्षेत्र में स्थित हैै। जहां घने जंगल पाए जाते थे। यहां अभी भी रनसाली वन क्षेत्र देखा जा सकता है, घने जंगल होने के कारण यहां जंगली जानवरों व कीड़े मकोड़ों की संख्या अधिक पाई जाती थी, और जैसा कि पता है कि उत्तराखंड देवभूमि के नाम से जानी जाती है जहां समस्त ऋषि मुनि तपस्या और सिद्धि प्राप्ति के लिए यहां आते थे उन्ह

हरिपुरा डैम : photos

      Beautiful Outside aram of hari pura dam                           Inner aream od haripura dam                                                     Picnic area                                                Full view of gurdan                                                   Full view of haripura dam                                               Side view of haripura dam                                                             Boat in haripura dam                                             Family boating                          Motor boat with friends haripura dam                                         Parasaliding in haripura dam

हरीपुरा डैम: गूलरभोज (उधम सिंह नगर)

 हरिपुरा बांध - गूलरभोज (बाजपुर) हरिपुरा डैम : एक उभरता पर्यटक स्थल बहुत समय पहले एक फिल्म आई थी "मैंने प्यार किया"(1989) जिसमे भाग्यश्री  और सलमान खान का एक गाना था "दिल दीवाना बिन सजना के" जिसको गाया था लता मंगेशकर जी ने लता मंगेशकर जी ने। इस गाने में एक दृश्य दिखाया गया है। झील में वोटिंग के साथ रोमांस करते हुए उस सीन को देखकर कुछ हलचल तो आपके मन में भी हुई होगी तो मैं उत्तराखंड के वासियों को अवगत करा दूं कि उधम सिंह नगर में स्थित हरीपुरा डैम जो गूलरभोज के निकट स्थित है। सुंदर बागों बगीचों से सुसज्जित विभिन्न प्रकार के फूलों के दृश्य मन को मोह लेते हैं । अक्सर फोटोशूट के लिए यहां पर अनेक लोगों को देखा गया है यह फोटो शूट के लिए एक अच्छी जगह है वोटिंग और वाटर स्पोर्ट्स गेम्स की सुविधा बनाई जा रही है ।                    ऊधम सिंह नगर के निवासियों को अब पिकनिक, टूर, वोटिंग वह मनोरंजन के लिए नैनीताल नहीं जाना पड़ेगा। अक्सर देखा गया है कि अधिकांश लोग पहाड़ के सफर के दौरान उल्टियां करते हैं और जिस कारण उनकी तबीयत पर असर पहुंचता है और नैनीताल जैसी जगहों में जाकर भी एंजॉय

नानक सागर का इतिहास

 नानक सागर का इतिहास नानकमत्ता क्या आपने कभी सोचा है नानकमत्ता डैम में कौन सी नदी बहती है?  जलाशय की लंबाई कितनी है?  और इसका निर्माण कब हुआ?  यूं तो आप अक्सर बैराज पुल से गुजरे होंगे । जल से भरा सागर देखा होगा। लेकिन शायद ही कल्पना की होगी कि उसमें इतना पानी आता कहां से है?  और यह कितना बड़ा है जब हम छोटे होते हैं । ऐसे अनेक सवाल आते हैं लेकिन पता नहीं लग पाता है तो उस समय उनको यूं ही छोड़ देते हैं। और शायद वह हमेशा छूटे ही रह जाते।            नानकमत्ता डैम जो कि आजकल लव पॉइंट के नाम से जाना जाता है। नानकमत्ता डैम कोई ज्यादा पुराना नहीं है। आज से 60 वर्ष पहले इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था ।और  1962 में पूरा निर्माण हुआ। उस समय उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा बनाया गया था। इसलिए आज उत्तराखंड में होने के बावजूद नानक सागर में उत्तर प्रदेश का अधिकार है। इसका संचालन बरेली सिंचाई विभाग के पास है । डैम की कुल लंबाई 19200 मीटर ( 19.2 किलोमीटर) है,  जिसने जलाशय में पानी भरने की क्षमता 59.82 मिलियन घन लीटर है,  इसके द्वारा कुल 96750 एकड़ भूमि की सिंचाई नेहरों के द्वारा की जाती है । कहा जा

थारू समाज : एक विकसित सभ्यता

थारू समाज : एक विकसित सभ्यता क्या आप जानते हैं कि थारू  समाज एक विकसित सभ्यता है?  यदि कोई इस सभ्यता का पूर्ण रूप से अध्ययन करें तो उसको नजर आएगा कि जो विश्व जिस तरह के समाज की कल्पना करता है। वह सारे गुण थारू सभ्यता में सम्मिलित है शायद आपको इस बात का यकीन ना हो लेकिन यदि आप अपनी पूरी जीवन शैली और थोड़ा प्राचीन इतिहास टटोलकर देखेंगे तो आप पाएंगे कि थारू सभ्यता  एक विकसित सभ्यता थी।हालांकि वर्तमान समय में तकनीकी स्तर पर पीछे रह गई हैै। शायद तकनीकी स्तर पर पीछे रहने का भी एक कारण हो जैसा कि आपको मालूम है कि थारू सभ्यता एक प्रकृति की रक्षक हैै। वह सदैव प्रकृति से जुड़ कर रही है। और प्रकृति में ही देवी-देवताओं का निवास माना है 1947 में आजादी के बाद यह सभ्यता निरंतर विकास करती रही। और काफी प्रसिद्धि हासिल कर ली। लेकिन अशिक्षित होने के कारण इस सभ्यता का कोई इतिहास नहीं है। बाहरी इतिहासकारों ने अपने अपने अनुसार इस सभ्यता का वर्णन किया है। पलायन की मुख्य वजह          जब-जब कोई भी सभ्यता अगर तेजी से विकास करती है तो उसके आलोचक बहुत सारे हो जाते हैं । उसी प्रकार थारू समाज जो महाराणा प्रताप को अ

पहाडी फौज का इतिहास

  पहाड़ी फौज सामाजिक स्थिति   क्या आपने कभी सोचा है? की फौज में पहाड़ियों की संख्या अधिक क्यों है? गांव से प्रत्येक तीसरे घर में एक फौजी है?   नहीं न,  आइए मैं बताता हूं आपको इसका राज क्या है ?              अगर इतिहास के पन्नों को टटोला जाए तो भारत में सभी मनुष्य 4 जातियों बटा हुआ है  जिसका वर्णन ऋग्वेद के दसवें मंडल में "पुरुष सूक्ति" में किया गया है । ब्राह्मण, क्षत्रिय,  शूद्र और वैश्य  । उस समय शूद्र और वैश्य जातियों को पढ़ने का अधिकार नहीं दिया गया थाा। इसलिए उन्हें वेदों और पुराणों का कोई ज्ञान नहीं था। लेकिन ब्राह्मणों द्वारा शूद्र और  वैश्य को कहानियां सुनाई जाती थी। और उस समय जो व्यापारी वर्ग और किसान वर्ग था। उनके घरों में पूजा-पाठ व हवन ब्राह्मणों के द्वारा संपन्न कराया जाता था । संपन्न कराने वाले लोग ब्राह्मण  जाति से थे । जिनका जीवन यापन राजा व्यापारी और किसान वर्ग के द्वारा दी गई दान दक्षिणा पर निर्भर था । जिसके कारण संपूर्ण वेदों और पुराणों का ज्ञान केवल ब्राह्मणों तक ही सीमित रह गया । लेकिन जैसे-जैसे समय बदला और बाहरी शक्तियों का आक्रमण होने लगा । भारतीय राजाओ