महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर) कस्तूरी मृग - उत्तराखंड का राज्य पशु कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की। महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र यह केंद्र कस्तूरी मृग संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित है जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है, बागेश्वर जनपद गठन से पूर्व महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1974 में पिथौरागढ़ जनपद में की गई थी। किन्तु 15 सितंबर 1997 में बागेश्वर जनपद के गठन के पश्चात् वर्तमान में यह केंद्र उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में महरूढ़ी धरमघर नामक स्थान पर स्थित है। महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र *कुछ पुस्तकों में इसकी स्थापना का समय 1977 दिया गया है। और आयोग ने परीक्षा में यह प्रश्न अनेक बार पूछा है और आयोग द्वारा स्थापना व
शब्द विचार रूप परिवर्तन प्रयोग के आधार पर विकारी शब्द संज्ञा सर्वनाम विशेषण क्रिया अविकारी अव्यव क्रिया विशेषण संबंधबोधक समुच्चयबोधक विस्मयादिबोधक निपात विकारी शब्द - वह शब्द जिनका रूप, लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है। विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया संज्ञा क्या है ? संज्ञा का शाब्दिक अर्थ है - नाम। संज्ञा सम+ज्ञा से मिलकर बना है जिसका अर्थ समान जानना है । किसी व्यक्ति, वस्तु और स्थान आदि के नाम की जाति अथवा किसी भाव के अर्थ का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते हैं। संज्ञा के भेद व्युत्पत्ति के आधार पर संज्ञा के तीन भेद हैं। रूढ़ संज्ञा - ऐसी संज्ञाऐं जिनके खंड निरर्थक होते हैं। जैसे - आम, घर, हाथ, यौगिक संज्ञा - ऐसी संज्ञाऐं जिनके खंड निरर्थक होते हैं। जैसे - रसोईघर, पुस्तकालय, हिमालय योगरूढ़ संज्ञा - ऐसी संज्ञाऐं जिनके खंड सार्थक हों, परंतु जिसका अर्थ खण्ड शब्दों से निकलने वाले अर्थ से भिन्न हो। जैसे - पंकज, लम्बोदर, दशानन संज्ञा के प्रकार व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा भाववाचक संज्ञा द्रव्यवाचक संज्ञा समूह वाचक स