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महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर) कस्तूरी मृग - उत्तराखंड का राज्य पशु  कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की।                    महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  यह केंद्र कस्तूरी मृग संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित है जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है, बागेश्वर जनपद गठन से पूर्व महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1974 में पिथौरागढ़ जनपद में की गई थी। किन्तु 15 सितंबर 1997 में बागेश्वर जनपद के गठन के पश्चात् वर्तमान में यह केंद्र उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में महरूढ़ी धरमघर नामक स्थान पर स्थित है।                  महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  *कुछ पुस्तकों में इसकी स्थापना का समय 1977 दिया गया है। और आयोग ने परीक्षा में यह प्रश्न अनेक बार पूछा है और आयोग द्वारा स्थापना व

चमोली का इतिहास - 1960 (उत्तराखंड)

    चमोली जनपद -1960

मेरे प्रिय पाठक आपका प्रेम पूर्वक नमस्कार हमारे इस नए लेख में | इस लेख में चमोली के इतिहास की संपूर्ण जानकारी देंगे अतः आपसे अनुरोध है कि हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ें |

         History of Chamoli

चमोली जनपद ऊंचे-ऊंचे पर्वतों के बीच 7625 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ खूबसूरत जनपद है। क्षेत्रफल की दृष्टि से चमोली उत्तराखंड का दूसरा बड़ा जनपद है। जबकि पहला उत्तरकाशी (8030 वर्ग किमी) है। (आयोग के अनुसार) यह जनपद उत्तराखंड में 6 जनपदों के साथ सीमा साझा करता है । पिथौरागढ़ (पूर्व), बागेश्वर (दक्षिण-पूरब), अल्मोड़ा (दक्षिण) पौड़ी गढ़वाल( दक्षिण-पश्चिम) , रूद्रप्रयाग (पश्चिम) और उत्तरकाशी ( पश्चिमोत्तर)। 
               भौगोलिक दृष्टि से चमोली मध्य हिमालय के बीच में स्थित है। जिस कारण यहां सर्वाधिक मात्रा में ऊंचे शिखर वाले पहाड़ पाए जाते हैं। राज्य की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी (7817 मी.) चमोली जनपद में ही स्थित है । अलकनंदा नदी यहां की प्रसिद्ध नदियों में से एक है। इसे राज्य में सबसे अधिक जल प्रवाह वाली नदी कहा जाता है। अलकनंदा नदी चमोली के संतोपथ शिखर के 'अल्पुकारी बांक हिमनद' से निकलती है। जो चमोली के उत्तर में स्थित तिब्बत की  जास्कर श्रेणी का एक भाग है। अलकनंदा को 'विष्णु गंगा' भी कहा जाता है। 
              चमोली धार्मिक स्थल का प्रमुख केंद्र है। यहां प्रसिद्ध चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम स्थित है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यहीं प्रसिद्ध पर्यटक स्थल फूलों की घाटी एवं ओली स्थित है इसके अलावा कई छोटे और बड़े मंदिर भी स्थित हैं। हर साल सैकड़ों की संख्या में यहां पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं। चमोली जनपद का गठन 24 फरवरी 1960 को पौड़ी गढ़वाल से अलग होकर हुआ था। चमोली का मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है। चमोली जिले के अंतर्गत 12 तहसील आती है। जिनके नाम है- चमोली, गैरसैंण, जोशीमठ, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, पोखरी, थराली, देवाल, नारायणबगड़, आदिबद्री, जिलासू, और घाट। प्रतिशत की दृष्टि से चमोली राज्य का सबसे कम सिंचित क्षेत्रफल वाला जिला है साथ ही सर्वाधिक ऊसर (बंजर भूमि) भूमि वाला भी जनपद है।

चमोली का इतिहास ( History of chamoli)

चमोली का प्राचीन नाम लाल सांगा है। मान्यता है कि हिमालय के निर्माण के हजारों साल बाद यहां बर्फ से ढके सुंदर पहाड़ और घाटियां अस्तित्व में आई। जिस कारण मध्य हिमालय के क्षेत्र में देवी देवताओं का आवागमन बढ़ गया। और यह क्षेत्र 'देवों का निवास कहा' जाने लगा। प्राचीन समय में यह भूमि ऋषि मुनियों की तपोस्थली थी। बद्रीनाथ के पास गंधमादन पर्वत (6984 मी.) कश्यप ऋषि की कर्मभूमि थी।
                धीरे-धीरे मानव ने विकास प्रारंभ किया। और पर्वतों के बीच संकरे भागों में नदियों के किनारे जीवन स्थापित किया। इतिहासकारों का मानना है सर्वप्रथम यहां आर्यों ने निवास किया। पुराणों में समस्त गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। वैदिक काल में चमोली को अलकापुरी के नाम से जाना जाता था। जो राजा कुबेर की राजधानी थी। अलकापुरी को मनुष्य के आदि पूर्वज मनु का निवास स्थान भी कहा जाता है। ऋग्वेद के अनुसार चमोली में स्थित बद्रीनाथ के पास गणेश, नारद, व्यास,  स्कंध व मुचकन्द गुफा में वैदिक ग्रंथों की रचना हुई है। यहीं वेदव्यास जी गणेश जी के साथ व्यास गुफा में महाभारत की रचना की।
                  लगभग 300 ईसा पूर्व गढ़वाल पर खसों ने, कश्मीर, नेपाल और कुमाऊ के शासकों की सहायता से आक्रमण किया था। और गढ़वाली शासकों के किलो पर कब्जा कर लिया। इसी समय केंद्र में मौर्य वंश के राजा चंद्रगुप्त ने संपूर्ण भारत को जीत लिया था। मौर्यों के पश्चात कुषाण वंश, गुप्त वंश और वर्धन वंश जैसे महान राजवंश ने उत्तर भारत में अपना नियंत्रण बनाए रखा।
                  छठी सदीं के उत्तरार्ध में सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात केन्द्र में कोई भी शक्तिशाली शासक न होने के कारण संपूर्ण उत्तर भारत छोटे-छोटे गढ़ों में बंट गया। उत्तराखंड में कत्यूरी वंश का उदय हुआ। कत्यूरी राजवंश के संस्थापक वसंतदेव ने जोशीमठ में राजधानी बनाकर गढ़वाल को नियंत्रण में लिया। परंतु की समस्त गढ़वाल को अपने अधिकार क्षेत्र में लाने में असफल रहे । कत्यूरी राजवंश के विघटन के बाद चांदपुरगढ़ शक्तिशाली गढ था। चांदपुरगढ़ के राजा सोनपाल ने  अपनी पुत्री का विवाह मालवा (गुर्जर प्रदेश) के राजकुमार कनकपाल से करके स्वयं बद्रिकाश्रम चले गए। इस प्रकार गढ़वाल पर पंवार वंश का उदय हुआ और कनकपाल ने अपनी प्रथम राजधानी चांदपुरगढ़ में स्थापित की।  उस समय समस्त गढ़वाल 52 गढ़ों में विभाजित हो चुका था । पंवार वंश के 37 वें राजा अजय पाल ने प्रथम बार राजधानी चांदपुरगढ़ से देवलगढ़ स्थानांतरित की। 

चमोली जनपद का गठन‌ - 1960

               सन् 1803 में विनाशकारी भूकंप ने गढ़वाल राज्य की आर्थिक स्थिति और प्रशासनिक स्थिति को कमजोर कर दिया। इसका लाभ उठाकर गोरखाओं ने गढ़वाल पर हमला किया। और खुढबुड़ा के मैदान (1804) में प्रदुम्न शाह को हराकर  गढ़वाल पर अधिकार कर लिया। परमार शासक सुदर्शन शाह ने ब्रिटिश शासकों की मदद से गढ़वाल को पुनः जीत लिया लेकिन बदले में आधा गढ़वाल ब्रिटिश सरकार को देना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने सन 1840 में पौड़ी गढ़वाल जनपद की स्थापना की। उस समय चमोली पौड़ी गढ़वाल के अंतर्गत आता था आजादी के बाद 24 फरवरी 1960 को पौड़ी गढ़वाल से अलग करके चमोली जनपद का गठन किया गया।

चमोली का मुख्यालय - गोपेश्वर (1970)


20 जुलाई 1970 को अलकनंदा में बाढ़ आने के कारण चमोली शहर का अधिकांश भाग बह गया। जिसमें अधिकतर सरकारी भवन बह गए थे इसलिए चमोली से मुख्यालय गोपेश्वर बनाया गया । तब से अभी तक चमोली जनपद का मुख्यालय गोपेश्वर में है। उत्तराखंड के पर्वतीय नगरों में गोपेश्वर ही एक ऐसा मात्र नगर है जहां न अधिक गर्मी पड़ती है ना ही अधिक सर्दी। इसके समीपवर्ती दर्शनीय स्थलों में रुद्रनाथ, अनुसूया मंदिर , अत्रिमुनि आश्रम , वैतरणी कुंड एवं बांज वृक्ष के समूह आकर्षण का मुख्य केंद्र है। 
                गोपेश्वर का प्राचीन नाम 'गोपाला' है। इसे गोस्थल या गौथला नाम से भी जाना जाता है। यहां का प्रसिद्ध मंदिर गोपीनाथ है। गोपेश्वर के रूद्र शिव मंदिर में छठीं शताब्दी के नाग राजाओं के त्रिशूल लेख मिले हैं। गोपेश्वर मंदिर (गोपीनाथ) का निर्माण विदिशा के नागवंशी राजा गणपति नाथ ने हिमाद्रि शैली करवाया था। जिसका प्राचीन नाम रुद्रमहालय था। गोपेश्वर के पास रुद्रनाथ बुग्याल  है। इसके अलावा जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान गोपेश्वर में स्थित है।

चमोली जनपद के प्रमुख पर्वत/ग्लेशियर

  • नंदा देवी (7817 मी.) - राज्य की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी के अंतर्गत 7 हिमनद आते हैं। जिन्हें 'नंदादेवी ग्रुप ऑफ ग्लेशियर' कहा जाता है । जिसमें बारटोली, रवानी, नंदकाना हिमनद प्रमुख हैं।
  • कामेट पर्वत (7756 मी.) - यह पर्वत चोटी राज्य की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। कामेट पर्वत से सरस्वती नदी "रतकोना" नामक स्थान पर देवताल से निकलती है।
  • माणा चोटी (7272 मी.) - पर्यटक स्थल माणा गांव इसी चोटी पर स्थित उत्तराखंड अंतिम गांव है। पुराणों में माणा को 'मणिभद्रपुरी' कहा गया है। माणा के पास केशवप्रयाग में सरस्वती और अलकनंदा नदी का संगम है। यहां मारछा जनजाति का ग्रीष्मकालीन आवास होता है। माणा के पास सरस्वती नदी पर पाषाण शिला पुल है। इस गांव में मातामूर्ति का मंदिर है जिन्हें बद्रीनाथ की माता कहा जाता है। और यहां घंटाकर्ण का मंदिर भी है। चमोली के माणा के पास अलकनंदा नदी वसुन्धरा जल प्रपात  है। जिसकी ऊंचाई 112 मीटर है। वसुंधरा प्रपात के आसपास लक्ष्मीबन बुग्याल, रता कोण, व घसातोली, हुण्या बुग्याल पाए जाते हैं।
  • बद्रीनाथ चोटी (7140 मी.) - बद्रीनाथ पर्वत पर बद्रीनाथ ग्लेशियर स्थित है जो 10 किलोमीटर लंबा है।
  • त्रिशूल पर्वत (7120 मी.) - त्रिशूल पर्वत से नंदाकिनी नदी , नंदाघुंघटी नामक स्थान से निकलती है जो नंदप्रयाग में अलकनंदा से मिल जाती है। नंदप्रयाग का मूल नाम कंडासू था।
  • संतोपंथ पर्वत (7084 मी.) - संतोपंथ शिखर के 'अल्कापुरी बांक हिमनद' से अलकनंदा नदी निकलती है। इसे विष्णु गंगा के नाम से भी जाना जाता है। अलकनंदा नदी राज्य की सबसे अधिक जल प्रवाह वाली नदी है। अलकनंदा से संथोपथ ताल से देवप्रयाग तक की लंबाई 195 मीटर है। संतोपथ ताल को 'क्षीर सागर' भी कहा जाता है। अलकनंदा नदी सर्वप्रथम पुष्पावती नदी से मिलती है और माणा के पास अलकनंदा से सरस्वती नदी  मिलती है। इन दोनों नदियों के संगम को केशवप्रयाग कहते हैं। संतोपथ एवं भागीरथी ग्लेशियर चमोली में आराम कुर्सी की भांति दिखाई देते हैं। इसके पास के क्षेत्र को अल्कापुरी कहते हैं। अलकनंदा नदी में विरही गंगा और गरुड़ गंगा मिलती है।
  • दूनागिरी पर्वत (द्रोणागिरी) - द्रोणागिरी पर्वत पर दूनागिरी ग्लेशियर स्थित है।
  • नीलकंठ पर्वत (6597 मी.) - नीलकंठ पर्वत चोटी को गढ़वाल की रानी के नाम से जाना जाता है। नीलकंठ पर्वत चोटी माणा गांव के निकट स्थित है।
  • हाथी पर्वत (6727 मी.) - काकभुशुंडी ताल चमोली के हाथी पर्वत के पास स्थित है। ओली-गुरूसों बुग्याल हाथी पर्वत पर है।

इसके अतिरिक्त चमोली में चौखम्भा चोटी, नंदाघुंघटी पर्वत,  देवस्थान पर्वत, मुकुट पर्वत, नर पर्वत,  नारायण पर्वत,  गौरी पर्वत , गंधमादन पर्वत, स्लीपिंग लेडी पर्वत आदि हैं। गुन्नी पर्वत और  नंदा कोट पर्वत दो ऐसे पर्वत है जो चमोली और पिथौरागढ़ के बीच स्थित है। हीराबमक ग्लेशियर, कल्पानी और बर्मा ग्लेशियर चमोली में स्थित है और टिपराबमक ग्लेशियर गोविंदघाट में स्थित है। 

चमोली की प्रमुख झील/ कुण्ड/ताल

 
रूपकुंड झील - रूपकुंड चमोली में रहस्यमयी ताल है जिसे 'कंकाली ताल' भी कहा जाता है। क्योंकि यहां हजारों कंकाल पाए गए थे । रूपकुंड में आज भी राजा यशधवल एवं रानी बल्पा और उनके सैनिकों के कंकाल विद्यमान है। रूपकुंड को दुनिया की नजर में लाने का श्रेय स्वामी प्रणबानंद को जाता है। चमोली में राज्य का सबसे बड़ा बुग्याल बेदिनी है। बेदिनी बुग्याल रूपकुंड के पास स्थित है। 

कुंड

नन्दी कुंड चमोली में ठंडे पानी का कुंड है । यह मधु गंगा नदी पर है। भाप कुंड तपोवन में स्थित गर्म जलकुंड है। ऋषि कुंड चमोली में स्थित है और वैतरणी कुंड गोपेश्वर के पास स्थित है।

चमोली के प्रमुख ताल 

चमोली में बिरही ताल, सुखताल, झलताल, मणिभद्र ताल, सिद्ध ताल, नरसिंह ताल एवं आदि मातृका ताल स्थित है ।  बेनीताल चमोली के आदि बद्री में है। होमकुंड ताल नंदाराज जात यात्रा का अंतिम पड़ाव है।

चमोली जनपद में दर्रे

  • चमोली व तिब्बत के बीच स्थित दर्रे - बालचा दर्रा, शलशला दर्रा, चोरहोती, लमजंग, तन्जुन, भ्यूंडार दर्रा।
  • चमोली व पिथौरागढ़ के बीच दर्रे - बाराहोती, लातुधुरा,  टोपीधुंगा दर्रा ।
  • चमोली व उत्तरकाशी के बीच दर्रा - कालिंदी दर्रा

चमोली की प्रमुख घाटियां

चिनाप घाटी को चमोली में दूसरी फूलों की घाटी कहा जाता है। चमोली की नीति घाटी में टिम्मरसैंण नामक धार्मिक स्थल है। इसके अतिरिक्त चमोली में सोल घाटी , निजमुला, पागल नाला नीति घाटी स्थित है। 

चमोली जनपद के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल

गौचर शहर 

गौचर शहर सात पहाड़ियों से घिरा अलकनंदा नदी के तट पर बसा खूबसूरत हिलस्टेशन है। लेडी विलंग्टन यहां हवाई मार्ग से 1920 में उतरी थी, इसलिए इस शहर को विशेष पहचान मिली थी लेडी वैलिंगटन ने गोचर में चारागाह निर्माण के लिए किसानों को प्रेरित किया था। सन् 1938 में पंडित नेहरू गोचर आए थे। इनके उपलक्ष्य में 14 नवंबर 1943 से चमोली में गौचर मेला का आरंभ बर्नेडी द्वारा शुरू किया गया था। 2016 में गौचर  (चमोली) उत्तराखंड बोली भाषा संस्थान का गठन किया गया था। 2019 में गौचर शहर को स्वच्छ गंगा टाउन का पुरस्कार दिया गया। 

औली - (स्कैनिंग खेलों का स्थल)

चमोली में नंदा देवी, कामेट, माणा, हाथी व गौरी पर्वतों से घिरा लगभग 3000 मी. की ऊंचाई पर स्थित यह स्कैनिंग खेलों के लिए एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यह 6 किलोमीटर लंबा तथा डेढ़ किलो मीटर चौड़ा है। गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा औली में 1987 ईस्वी में स्कीइंग महोत्सव मनाया गया था। स्कीइंग हेतु उपयुक्त समय दिसंबर से मार्च में होता है। ओली परियोजना का शुभारंभ जुलाई 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा शुरू किया गया। यहां अक्टूबर 1993 ईस्वी में शीतकालीन हिम क्रीडा स्थल एवं रज्जू मार्ग का कार्य पूर्ण हुआ। 2004 में सैफ खेलों का आयोजन औली में हुआ था। औली के पास गुरसों बुग्याल और चिनाब झील स्थित है। दयाली सेरा नामक स्थान औली में है। एशिया का सबसे लंबा ऊंचा रोपवे ओली में है जिसकी लंबाई 4.15 किलोमीटर है। यहां अंजनी माता का प्राचीन मंदिर भी है।

हेमकुंड साहिब -1930

चमोली जिले में सिखों के पवित्र स्थल की स्थापना 1930 में हुई। यह साथ भव्य बर्फ से ढके 7 पहाड़ों से घिरा हुआ पवित्र स्थल है । जिनको हेमकुंड पर्वत भी कहा जाता है इसके मध्य स्वच्छ जल की एक झील स्थित है। हाथी पर्वत एवं सप्तश्री पर्वत शिखरों से हिमनद झील का निर्माण हुआ है। जहां से हिमगंगा नामक एक छोटी नदी निकलती  है। झील के समीप एक गुरुद्वारा है। जोकि को एवं हिंदुओं के लिए एक तीर्थ स्थल है । मान्यता है कि सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने पूर्व जन्म में इस झील के तट पर तपस्या की थी। हेमकुंड की भौगोलिक खोज तारा सिंह ने अपनी किताब तीरथ संग्रह में किया है। हेमकुंड साहिब को 'लोकपाल तीर्थ' भी कहा जाता है।

ग्वालदम

ग्वालदम चमोली व बागेश्वर की सीमा पर स्थित पर्यटक स्थल है। जो प्राकृतिक सौंदर्य के श्रेष्ठ स्थलों में जाना जाता है। यहां सेब एवं चाय का उत्पादन भारी मात्रा में होता है । ग्वालदम में एस.एस.बी. का प्रशिक्षण केंद्र भी है।

जोशीमठ - कत्यूरियों की प्राचीन राजधानी


जोशीमठ के बारे में पढ़ने के लिए पोस्ट के अंत में लिंक दिया गया है जहां आप संपूर्ण जोशीमठ का इतिहास पढ़ सकते हैं।

फूलों की घाटी - 1982


खूबसूरत वादी फूलों की घाटी का बारे में पढ़ने के लिए पोस्ट के अंत में लिंक दिया गया है जहां आप संपूर्ण फूलों की घाटी के इतिहास के बारे में पढ़ सकते हैं।

चमोली जनपद की प्रमुख घटनाएं

  • चमोली जनपद में 29 मार्च 1999 में 6.8 रिएक्टर स्केल का भूकंप आया जिससे यहां बहुत नुकसान हुआ था । 1803 में बद्रीनाथ में 8 से 9 रिएक्टर स्केल का भूकंप आया था जो राज्य का सबसे बड़ा भूकंप था।
  • चमोली में स्थित गोना झील, बिरही गंगा पर 1893-94 में बनी और 1894 में प्रथम बार फूटी थी जिससे श्रीनगर को क्षति पहुंची थी और 1970 में यह झील पूर्ण रूप से टूट गई थी।
  • 7 फरवरी 2021 में ऋषिगंगा के ऊपर एक ग्लेशियर फटा था जिससे ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के समीप हिमस्खलन के बाद नदी के छह स्त्रोतों में से एक पश्चिमी धौलीगंगा नदी के जलस्तर में अचानक वृद्धि हो गई। ग्लेशियर टूटने और फिर तेजी से जल के स्तर में वृद्धि होने से ऋषि गंगा में अचानक बाढ़ आ गई। जिसमें लगभग 150 लोगों के लापता होने की आशंका बताई गई। पश्चिमी धौलीगंगा कुनलुन श्रेणी से निकलती है। गिरथी व ऋषि गंगा पश्चिमी धौली गंगा की सहायक नदी हैं। अलकनंदा और पश्चिमी धौली गंगा का संगम विष्णुप्रयाग में होता है।

चमोली से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य


  • चमोली की कुल जनसंख्या 3,91,605 है और जनसंख्या घनत्व घनत्व 49 है।
  • चमोली की साक्षरता दर 82.65% है जिसमें पुरुष की साक्षरता दर 93.40% है व महिला की साक्षरता दर 72.32 प्रतिशत है।
  • चमोली जिले का लिंगानुपात 1019 है।
  • चमोली जनपद में कुल विधानसभा क्षेत्र 3 है और विकासखंड 9 हैं।
  • चमोली में स्थित पश्चिमी धौलीगंगा नदी कुनलुन श्रेणी से निकलती है।  गिरथी व ऋषि गंगा पश्चिमी धौली गंगा की सहायक नदी है।
  • राज्य के पंच प्रयाग में तीन प्रयाग चमोली जिले में है। विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग और कर्ण प्रयाग।
  • राज्य में टिन केवल चमोली जनपद में मिलता है। व तांबा चमोली जनपद के मोहन खाल, धनपुर और पोखरी क्षेत्र में पाया जाता है। अलकनंदा नदी व पिंडर नदी के बालू में सोना मिलता है।
  •  राज्य में सर्वोत्तम श्रेणी का चूना पत्थर व डोलामाइट चमोली के पीपलकोटी में पाया जाता है । चमोली के पोखरी व मंदाकिनी घाटी में मैग्नेटाइट के भंडार पाए जाते हैं। राज्य के सर्वोत्तम गंदक की खोज 1957 में चमोली के रूपगंगा घाटी में की गई थी।


चमोली का खूबसूरत दृश्य - beautiful chamoli








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  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2

Uttrakhand current affairs in Hindi (May 2023)

Uttrakhand current affairs (MAY 2023) देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आपको प्रतिमाह के महत्वपूर्ण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराए जाते हैं। जो आगामी परीक्षाओं में शत् प्रतिशत आने की संभावना रखते हैं। विशेषतौर पर किसी भी प्रकार की जॉब करने वाले परीक्षार्थियों के लिए सभी करेंट अफेयर्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 की पीडीएफ फाइल प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।  उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2023 ( मई ) (1) हाल ही में तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के किस जनपद में स्थित है। (a) चमोली  (b) उत्तरकाशी  (c) रुद्रप्रयाग  (d) पिथौरागढ़  व्याख्या :- तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3640 मीटर (12800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित एशिया का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित शिवालय हैं। उत्तराखंड के पंच केदारों में से तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासकों ने लगभग 8वीं सदी में करवाया था। हाल ही में इस मंदिर को राष्ट्रीय महत्त्व स्मारक घोषित करने के लिए केंद्र सरकार ने 27 मार्च 2023

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु