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Uksssc Mock Test -155 (new pattern 2025)

उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर 2025 (Uksssc Mock Test -155) (नये पैटर्न पर आधारित) यहां uksssc mock test - 155 के 40 प्रश्न दिए गए हैं जहां नये पैटर्न पर आधारित टेस्ट को तैयार किया गया है। यदि आप फुल मॉक टेस्ट प्राप्त करना चाहते हैं संपर्क करें -9568166280 । देवभूमि उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड कनिष्ठ सहायक, उत्तराखंड पुलिस, उत्तराखंड प्रवक्ता एवं फोरेस्ट गार्ड हेतु टेस्ट उपलब्ध कराए जाते हैं।  Uksssc Mock Test -155 (1) सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियां के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।      सूची-I।            सूची-II  A. जंगल              1. ब्वारि B. नदी                2. बण C. बहु                 3. गाड़ D. झरना             4. रौल  कूट :       A    B   C   D  (a)  1     2   3 ...

अल्मोड़ा जनपद से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

अल्मोड़ा जनपद से संबंधित महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न  देवभूमि उत्तराखंड द्वारा सभी जनपदों का इतिहास एवं प्रमुख शहरों का विस्तार से जानकारी दी गई है और उनसे संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को तैयार किया गया है। अतः सभी जनपदों के बारे में अवश्य पढ़ें। उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -13 (अल्मोड़ा जनपद) (1) द्वाराहाट का पुराना नाम क्या है (a) मयूरपुर  (b) मयूरध्वज (c) लखनपुर  (d) कुंमु (2) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 1. जागेश्वर धाम को 12 ज्योतिर्लिंग में से 8वां माना जाता है 2. जागेश्वर धाम का सबसे बड़ा मंदिर महामृत्युंजय मंदिर है उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/ कौन से सही है? (a) केवल 1 (b) केवल 2  (c) 1 और 2 दोनों  (d) दोनों कथन सही नहीं हैं । (3) अल्मोड़ा को मानसखंड में किस नाम से संबोधित किया गया है (a) उत्तर कुरु  (b) राम क्षेत्र  (c) मायानगरी  (d) मकरपुर  (4) मानव एवं पशुओं के प्रागैतिहासिक शैल चित्र निम्न में से कहां से प्राप्त हुए ?  (a) फलसीमा (b) ल्वेथाप (c) लाखुउड्यार  (d) इनमें से कोई नहीं  (5) निम्नलिखित कथनों पर विचार क...

पंडित नैन सिंह रावत का जीवन परिचय

 पंडित नैन सिंह रावत  पंडित नैन सिंह रावत (1830-1895) एक महान खोजकर्ता थे। वे हिमालय और मध्य एशिया के क्षेत्र में अंग्रेज़ों के लिए सर्वे करने वाले पहले भारतीयों में से एक थे।  आज जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पिथौरागढ़ (डीडीहाट) में उनकी 194वीं जयंती के उपलक्ष्य में राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। जिसमें उत्तराखंड के महान इतिहासकार व लेखक श्री शेखर पाठक जी के साथ राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की निदेशक श्रीमती वन्दना गर्ब्याल जी और पिथौरागढ़ जिले के जिलाधिकारी श्री विनोद गिरी गोस्वामी जी उपस्थित रहेंगे। जीवन परिचय  पंडित नैन सिंह रावत का जन्म 1830 में उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मिलन गांव में हुआ था । उन्होंने अपने अनुभवों और अवलोकनों को डायरी में रिकॉर्ड किया और साथ ही उन्होंने अपनी पहली देसी अंदाज में सर्वेक्षण ज्ञान की पुस्तिका लिखी, जिसका नाम अक्षांश दर्पण (1871) था । अपने चचेरे भाई किशन सिंह और अन्य अनुवेषकों के साथ अनेक अभियान किए। उनके अभियानों से प्राप्त रिकॉर्ड के आधार पर उन्होंने बताया कि सांगपो नदी ही ब्रह्मपुत्र है।...

महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान (भाग -01)

महात्मा गांधी (1869-1947) ऐसी कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं है जिसमें महात्मा गांधी से संबंधित प्रश्न ना आया हो? महात्मा गांधी की जीवनी से लेकर उनके समस्त आंदोलनों का हमें पूर्ण ज्ञान होना अति आवश्यक है। इसलिए आज के लेख में हम आपको महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों के बारे में बताएंगे। अतः लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें  प्रथम भाग में महात्मा गांधी की जीवनी तथा द्वितीय भाग में महात्मा गांधी आंदोलन और अंततः तृतीय भाग में महात्मा गांधी से संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे। महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन में क्या योगदान था? आधुनिक भारत के इतिहास में महात्मा गांधी सर्वाधिक लोकप्रिय महापुरुष है। जिनका अपना एक इतिहास है जिसे देश के प्रत्येक नागरिक को अवश्य ही पढ़ना चाहिए क्योंकि भारत को स्वतंत्र कराने में सबसे अधिक योगदान महात्मा गांधी का रहा है। महात्मा गांधी राजनीतिज्ञ संगठन करता एवं सुधारक थे आदर्शवादी राजनीतिज्ञ थे उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर देश की जनता को एकत्रित कर अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश किया। जीवन परिचय  महात्मा गांधी के बचपन का नाम मोहनद...

Uttrakhand d.led model paper 2023 (mock test -2)

Uttrakhand d.led model paper 2023 सामान्य ज्ञान अध्ययन  (1) 1906 से 1920 के मध्य मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष (संग्राम) में थी (a) अलगाववादी (b) चरमपंथी (c) राष्ट्रवादी (d) राष्ट्रवादी एवं धर्म निरपेक्ष व्याख्या - वर्ष 1906 से 1920 के मध्य मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उस समय उनकी छवि राष्ट्रवादी एवं धर्मनिरपेक्ष थी। Answer - (d) (2) दलित अधिकारों की सुरक्षा के लिए डॉ. बी आर अम्बेडकर ने तीन पत्रिकाएं निकालीं । निम्न में से कौन उनमें से एक नहीं है  (a) मूक नायक  (b) बहिष्कृत भारत (c) बहिष्कृत समाज (d) इक्वालिटी जनता Answer - भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉक्टर अंबेडकर ने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, इक्वलिटी जनता, जाति के विनाश, हू आर द शूद्राज जैसी कई पत्रिकाएं पुस्तकें लिखी। Answer - (c) (3) ब्रिटिश सरकार ने किस तिथि को भारत को पूर्ण स्वशासन देने की घोषणा की थी ? (a) 26 जनवरी, 1946 (b) 15 अगस्त, 1947 (c) 31 दिसम्बर, 1947 (d) 30 जून, 1948 व्याख्या :- द्...

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास (भाग - 04)

आधुनिक उत्तराखंड का इतिहास (1930-1947) भाग -04 क्योंकि आगे का इतिहास गांधीजी के आंदोलनों से जुड़ा है। इसलिए हम सर्वप्रथम गांधी जी के बारे में जानेंगे और फिर उत्तराखंड के इतिहास को पढ़ेंगे। मित्रों परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण टॉपिक है इसलिए अंत तक जरूर पढ़ें। गांधी जी का उत्तराखंड में आगमन यूं तो गांधीजी उत्तराखंड में प्रथम बार 5 अप्रैल 1915 ईस्वी को हरिद्वार के कुंभ मेले में आए थे। और दूसरी बार राजनीतिक उद्देश्य से सन् 1916 में देहरादून  आए थे। जहां उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत भाषण दिए जिससे वहां की जनता काफी प्रभावित हुई। किंतु उत्तराखंड की यात्रा के उद्देश्य से प्रथम बार जून 1929 में आए थे। जब उत्तराखंड में कुमाऊं परिषद का बोलबाला था उस दौरान देश का राष्ट्रीय आंदोलन गांधीजी के नेतृत्व में आ चुका था। 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद सर्वप्रथम उन्होंने वर्ष 1917 में बिहार के चंपारण में नील की खेती की दमनकारी प्रणाली के लिए भारत में सत्याग्रह आंदोलन चलाया। उसके बाद 1917 में ही खेड़ा सत्याग्रह और वर्ष 1918 में कपास मिल श्रमिकों के लिए अहमदाब...

कुली बेगार आंदोलन -1921 (विस्तार से)

कुली बेगार प्रथा और कुली बेगार आंदोलन  कुली बेगार आंदोलन उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस आंदोलन ने जिस सफलता के साथ क्षेत्र में बरसों से चले आ रहे अत्याचार, अन्याय तथा शोषण के प्रतीक प्रथा की जड़ों का उन्मूलन किया और उत्तराखंड के विभिन्न वर्गों के लोगों ने जिस उत्साह व निर्माता से हिस्सा लिया वह प्रशंसनीय है। इस आंदोलन के अनेक महत्वपूर्ण नेता भी उभर कर आए जिन्होंने आगामी समय में आने वाले आंदोलनों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण  योगदान दिया। कुली बेगार प्रथा का प्रारंभ 1815 में ब्रिटिश काल से प्रारंभ होता है तथा कुली बेगार प्रथा का अंत 14 जनवरी 1921 से प्रारंभ होता है। महात्मा गांधी जी ने कुली बेगार आंदोलन को "रक्तहीन क्रांति" की संज्ञा दी थी। कुली बेगार प्रथा का इतिहास  उत्तराखंड में बेगारी का अस्तित्व प्राचीन काल से ही रहा है कत्यूरी, चंद एवं गोरखों के समय बेगार प्रथा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। सन् 1815 ई. के पश्चात उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ और बेगारी का नया स्वरूप प्रकट हुआ। ब्रिटिश काल ...

उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम (भाग -03)

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास (कुमाऊं और गढ़वाल) भाग -03 दोस्तों आज उत्तराखंड के आधुनिक इतिहास का अति महत्वपूर्ण टॉपिक है। यहां से 2 से 4 प्रश्न उत्तराखंड की प्रत्येक परीक्षा में पूछे जाते हैं अतः लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।  उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम की नींव कैसे और कब पड़ी ? उत्तराखंड स्वतंत्रता संग्राम में किन व्यक्तियों ने सहयोग किया और कौन-कौन से संगठन बनाएं ? इसका विस्तार से अध्ययन करेंगे यहां साथ ही भारत के इतिहास के साथ संबंध बनाते हुए सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा करेंगे।  उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम (1912-1930 ईस्वी) यूं तो उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1857 से पहले 1822 में सर्वप्रथम हरिद्वार जिले के कुंजाबहादुरपुर गांव के गुर्जरों द्वारा "कुंजा क्रांति" के रूप में हो चुकी थी। कुंजा क्रांति के बाद 1857 में क्रांति में कुमाऊं के लोग शामिल हुए थे। जिसमें कालू सिंह मेहरा ने "क्रांतिवीर संगठन" की स्थापना की और प्रथम स्वतंत्रा सेनानी कहलाए। किंतु उत्तराखंड में वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत भारत के स्वदेशी आंदोलन से हुई। भारत में ...

ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी रैमजे को कुमाऊं का बेताज बादशाह क्यों कहा जाता है?

कुमाऊं का बेताज बादशाह "हेनरी रैमजे" यह सब तो आप सब ने सुना होगा कि हेनरी रैमजे को कुमाऊं का बेताज बादशाह कहा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि  सर हेनरी रैम्जे को कुमाऊं का बेताज बादशाह क्यों कहा जाता है ? दरअसल 1857 की क्रांति के दौरान उत्पन्न परिस्थितियों में हैनरी रैमजे ने अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से 10 मई 1857 से 1 नवंबर 1858 तक इलाहाबाद दरबार में शाही घोषणा तक, कुमाऊं एक शांत क्षेत्र बना रहा। 1857 की क्रांति की आग की लपटें बरेली (प्राचीन रूहेलखंड) तक पहुंच चुकी थी। रुहेलखंड के कमिश्नर एलेग्जेंडर व यूरोपीय सैनिकों व व्यक्तियों ने नैनीताल में शरण ली। इस अवधि में उनके रहन सहन की व्यवस्था से लेकर आंशिक वेतन आदि की व्यवस्था भी रैम्जे द्वारा की गई। और क्रांति से उत्तराखंड को बचाने के लिए उत्तराखंड में मार्शल लॉ लागू किया जिससे पहाड़ का संपर्क देश के अन्य भागों से कट गया। यहां तक कि अंग्रेजों का सामान ढोने हेतु कुली तक मिलने बंद हो गए थे। उत्तराखंड में मार्शल लॉ लागू -1857 1857 में क्रांति की संभावना को देखते हुए उत्तराखंड में हेनरी रैमजे ने पूर्ण सतर्कता का परिचय देते...