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सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र

महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर) कस्तूरी मृग - उत्तराखंड का राज्य पशु  कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। वर्ष 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई । और वर्ष 1974 में बागेश्वर जनपद में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की।                    महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  यह केंद्र कस्तूरी मृग संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित है जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है, बागेश्वर जनपद गठन से पूर्व महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1974 में पिथौरागढ़ जनपद में की गई थी। किन्तु 15 सितंबर 1997 में बागेश्वर जनपद के गठन के पश्चात् वर्तमान में यह केंद्र उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में महरूढ़ी धरमघर नामक स्थान पर स्थित है।                  महरुढ़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र  *कुछ पुस्तकों में इसकी स्थापना का समय 1977 दिया गया है। और आयोग ने परीक्षा में यह प्रश्न अनेक बार पूछा है और आयोग द्वारा स्थापना व

भारत के वायसराय (भाग -03)

भारत के वायसराय (भाग -03) (1858 से 1847) भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल के बाद भारत के वायसराय के रूप में 18 वायसराय ने 1858 से 1847 तक शासन किया। जिसमें सर्वाधिक प्रमुख थे - लार्ड रिपन, लॉर्ड लैंसडाउन , लार्ड कर्जन, लॉर्ड इरविन और लॉर्ड माउंटबेटन थे। लार्ड कैनिंग (1856-1862) भारत का अन्तिम गर्वनर और भारत का प्रथम वायसराय। लार्ड कैनिंग को प्रथम वायसराय बनने के बाद भारतीय दण्ड संहिता -1861 एक्ट लाया गया था। आर्थिक सुधार के लिए अर्थशास्त्री विल्सन को बुलाया गया । इसके अलावा नोट (₹) का प्रचलन शुरू किया गया।  लार्ड एल्गिन (1862-1863) इसके कार्यकाल में बहावी आन्दोलन का दमन -1862 सर जॉन लारेंस (1863 -1869) लॉर्ड लॉरेंस के शासनकाल में भूटान की सेना ने ब्रिटिश साम्राज्य पर सन् 1865 में आक्रमण किया। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना ने भूटान को पराजित किया और संधि करने पर विवश किया। लॉरेंस द्वारा अफगानिस्तान के प्रति अहस्तक्षेप की नीति अपनाई गई । जिसे 'शानदार निष्क्रियता' के नाम से जाना गया। भारत तथा यूरोप के बीच प्रथम समुंद्री टेलीग्राफ सेवा -1865 इसके शासनकाल में उड़ीसा (1866) और बुंदेलखंड

भारत के गर्वनर जनरल (भाग -02)

भारत के गवर्नर जनरल (1833 - 1858 ई.) बंगाल के गवर्नर जनरल के बाद भारत के गवर्नर जनरल के रूप में 7 ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने 1833 से 1858 तक शासन किया। जिसमें सर्वाधिक प्रमुख थे - लार्ड विलियम बेंटिक, लॉर्ड चार्ल्स मैटकॉफ, लार्ड हार्डिंग, लॉर्ड डलहौजी और लॉर्ड कैनिंग थे। लार्ड विलियम बेंटिक (1828 - 1835) भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक था (चार्टर एक्ट 1833 के अनुसार) चार्टर एक्ट 1833 के अनुसार ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के चीन से चाय और चीनी पर एकाधिकार समाप्त कर दिया । लॉर्ड विलियम बेंटिक के शासनकाल में ईसाई मिशनरियों के बसने लिए लाइसेंस व्यवस्था समाप्त करने के साथ ही किसी भी भाग में बसने रहने खरीदने का अधिकार दिया गया केंद्रीय सरकार की शक्ति में वृद्धि तथा प्रांतीय सरकार की शक्ति को घटा दिया गया। इनके शासनकाल में लॉर्ड मैकाले को प्रथम विधि आयोग नियुक्त किया गया तदुपरांत मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत की। भारत का गवर्नर जनरल बनने के बाद बैंटिक 1835 ईसवी में कोलकाता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की। चार्ल्स मैटकॉफ (1835-1836) चार्ल्स मैटकॉफ को भारतीय प्रेस

भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल (भाग -01)

भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल (भाग -01) दोस्तों उत्तराखंड की आगामी परीक्षाओं को हुुए देखते संक्षिप्त रूप में भारत के सभी ब्रिटिश गवर्नर के कार्यकाल में घटित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया जा रहा है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारत में लगभग साढ़े 350 वर्ष ब्रिटिश सरकार ने शासन किया है। जिसका वास्तविक प्रशासन 1773 के चार्टर एक्ट से शुरू होता है। उस दौरान भारत में सर्वप्रथम बंगाल में गवर्नर जनरल नियुक्त किए गए तत्पश्चात 1833 का चार्टर एक्ट में बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल घोषित कर दिया गया। और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के बाद भारत के गवर्नर जनरल के पद को वायसराय से विभूषित किया गया। इस प्रकार हम भारत के सभी गवर्नर जनरल का इतिहास तीन भागों में विभाजित करके अध्ययन करेंगे। बंगाल के गवर्नर जनरल (1773) भारत के गवर्नर जनरल (1833) भारत के वायसराय (1858)  नीचे दिए गए लेख में हम सर्वप्रथम बंगाल के गवर्नर जनरल के कार्यकाल में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में अध्ययन करेंगे। अतः लेख को अंत तक जरूर पढ़े।  बंगाल के गवर्नर जनरल (1773-1833) बंगाल के गवर्नर जनरल के रूप में 10 ब्

Top 25 विलोम शब्द (हिन्दी) : भाग - 01

हिन्दी प्रश्नोत्तरी (भाग - 01) विलोम शब्द (विपरीतार्थक शब्द) देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी परीक्षाओं को देखते हुए हिंदी का क्रैश कोर्स प्रारंभ किया गया है। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि उत्तराखंड की अधिकांश परीक्षाओं में 40 अंक की उत्तराखंड और 20 अंक की हिंदी आनी है जिसके लिए देवभूमि उत्तराखंड एक लंबे समय से उत्तराखंड की सभी परीक्षाओं के लिए विशेष नोट्स उपलब्ध करा रहा है। आज हिंदी का प्रथम दिन है जिसमें हम हिंदी में टॉप 25 विलोम शब्द की अर्थ सहित चर्चा करेंगे। और उसके बाद हिंदी से विलोम शब्द संबंधित प्रश्न करेंगे। (1) आलोक - अंधकार आलोक - आलोक संस्कृत भाषा का एक शब्द है जो आ+लोक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें आ का अर्थ है - जिसका कोई अंत ना हो। लोक का अर्थ है संसार। और लोक शब्द की बात करें तो ज्ञात होता है कि लोक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत धातु लोक् से हुई है। जिसका मतलब होता है - नजर डालना, देखना अथवा प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना । इससे बने संस्कृत के लोक: का अर्थ हुआ - संसार। मूल धातु लोक: में समाहित अर्थों पर ध्यान दें तो ज्ञात होता है कि आंखों से देखने पर, व नजर डालने पर क्या नजर

उत्तराखंड भर्ती घोटाले पर कविता

उत्तराखंड भर्ती घोटाले पर कविता क्या होगा मेरे देश का ? चोला पहने हैं ईमानदारी का, आंखों में पट्टी सजा के, करते हैं न्याय भर्ती घोटाले का, चोर ही चोर को बचा रहे हैं। देश के मंत्री कुछ छुपा रहे हैं। शपथ लेते हैं मैं न्याय करूंगा। ईमानदारी से शासन करूंगा। जनता जानती है, पुलिस जानती है, नहीं जानते तो बस टोपी वाले, ऐसा सबको जता रहे हैं। पहले भी होता था ऐसा यह बात सबको बता रहे हैं। देवभूमि उत्तराखंड उत्तराखंड भर्ती घोटाला 2022 सुना है पुलिस जांच पूरी होने वाली है। जिसमें 41 गिरफ्तारियां हो चुकी है। और इन सभी 41 गिरफ्तारियां में न किसी अधिकारी का नाम आया है और न ही विधायकों का । यह कैसे संभव हो सकता किसी भी विधायक ने घोटाला न‌ किया हो । ये तो बच्चा बच्चा जानता है प्रत्येक विधायक कम से कम दो से तीन सीट पर अपने रिश्तेदारों या परिवार वालों को लगवाता है। और भर्ती के घोटाले को देखते हुए यह तो कहा ही नहीं जा सकता एक विधायक ने कितने लगवाए होंगे। और पुलिस वाले कहते हैं। घोटाले की जांच पूर्ण होने वाली है। ऐसे में क्या होगा देश का। अधिकारियों ने नेताओं को बचाया नेताओं ने अधिकारियों को। और पुलिस वालों

उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास (1815-1857)

आधुनिक उत्तराखंड का इतिहास (भाग -01) उपयुक्त लेख उत्तराखंड में लोकसभा द्वारा आयोजित सभी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है और मुख्य परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं। लेख में ब्रिटिश शासन स्थापित होने के पश्चात उत्तराखंड में क्या हुआ, क्या बदलाव हुए, किसके द्वारा किए गए। आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। अतः लेख को पूरा अवश्य पढ़ें। यहां पर 1815 से 1857 के इतिहास का वर्णन किया गया है। उत्तराखंड में ब्रिटिश प्रशासन व्यवस्था (1815-1857) जैसा कि आप सभी जानते हैं कि 1815 में कुमाऊं और गढ़वाल में ब्रिटिश शासन की स्थापना हो चुकी थी। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन की स्थापना से पूर्व गोरखों का शासन था। जिन्होंने जनता का सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न किया था इसलिए गढ़वाल में गोरखा शासन को "गोरख्याली" नाम से संबोधित किया गया। गोरखों का उत्तराखंड में शोषण अत्यधिक बढ गया था। जिस कारण यहां के राजवंश और स्थानीय जनता ने गोरखों को भगाने के लिए अंग्रेजी सेना से सहयोग लिया। ब्रिटिश प्रशासन उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन की स्थापना से परंपरागत सामंती मूल्यों और प्रथाओं पर आधारित शासन समाप्त हो