वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में वनबसा, एक ऐसा कस्बा है जो भारत-नेपाल सीमा पर बसा है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। टनकपुर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ग्राम पंचायत, जनपद की सबसे बड़ी पंचायतों में से एक है, जहाँ लगभग 10,000+ लोग निवास करते हैं। यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य समुदायों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो इस क्षेत्र को एक जीवंत सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। प्रकृति और इतिहास का संगम शारदा नदी के तट पर बसा वनबसा, मैदानी और पर्वतीय संस्कृतियों का एक अनूठा मेल है। यह स्थान सदियों से पर्वतीय लोगों का प्रिय ठिकाना रहा है। पुराने समय में, जब लोग माल भावर की यात्रा करते थे, वनबसा उनका प्रमुख विश्राम स्थल था। सर्दियों में पहाड़ी लोग यहाँ अपनी गाय-भैंस चराने आते और दिनभर धूप में समय बिताकर लौट जाते। घने जंगलों के बीच बसे होने के कारण, संभवतः इस क्षेत्र का नाम "वनबसा" पड़ा। यहाँ की मूल निवासी थारू और बोक्सा जनजातियाँ इस क्ष...
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
अनुबंध खेती
किसानों को डर है कि अनुबंध खेती की वजह से खेती में निजीकरण हो जाएगा । तो मैं पहले ही स्पष्ट कर दूं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत यह सावधान है कि किसी भी हाल में कंपनी किसान की जमीन न तो खरीद-बिक्री कर सकती है और न ही गिरवी रख सकती है । इसका अर्थ यह हुआ कि किसानों के हित यहां पर संरक्षित हैं। अतः जो लोग कह रहे हैं कि  निजी कंपनियां किसानों की जमीन हथिया लेंगी।  वह बस लोगों को गुमराह कर रहे हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं। अतः बेहद जरूरी है यह जानना की "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग क्या है? यह कैसे काम करता है? कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के क्या लाभ है ? और इसके क्या नुकसान है? यदि दिए गए आर्टिकल को आप ध्यान पूर्वक पढ़ते हैं तो स्वयं ही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किसानों के लिए क्या उचित है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का अर्थ
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का हिंदी में अनुवाद करें तो इसका अर्थ अनुबंध या संविदा है। दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच हस्ताक्षर द्वारा किया गया समझौता अनुबंध कहलाता है। और फार्मिंग का संबंध खेती से है । अर्थात प्राथमिक क्षेत्र में आने वाली सभी क्रियाएं जैसे- खेती पशुपालन , मुर्गी पालन, व मत्स्य पालन कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संभव हो सकती है । यहां दो या दो से अधिक व्यक्तियों के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति संगठन या कंपनी हो सकती है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग क्या है?
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसान और कंपनी या व्यक्ति के बीच एक ऐसा समझौता है। जिस पर फसल लगाने से पहले ही फसल की कीमत तय कर ली जाती है। इससे यह होगा कि "किसान अपनी जमीन पर खेती तो करेगा। लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए" इस कथन का अर्थ यह बिल्कुल ना समझे कि किसान किसी का गुलाम हो जाएगा। सामान्यतः आप यह समझिए यदि आप निजी कंपनी व किसी संगठन के अंतर्गत कार्य करते हैं । तो अपनी इच्छा अनुसार कार्य करते हैं। अगर किसानों का सोचना यह होगा की खेती पर भी निजीकरण होने से सभी किसानों का शोषण होगा और गुलाम हो जाएंगेे। तो देश के वह सभी लोग गुलाम कहलाएंगेे। जो निजी कंपनी के अंतर्गत पैसा कमाने के लिए कार्य करते हैंं। यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी सरकार के गुलाम है । जिले का जिले का जिलाअधिकारी भी गुलाम है । वास्तव में जो आजाद हैं वही बर्बाद है । क्योंकि उसी के पास सही दिशा नहीं है। वरना क्यों युवा पीढ़ी खेती छोड़कर उद्योगों और निजी कंपनियों की ओर जाती । वरना क्यों सरकारी नौकरियों के लिए इतनी मेहनत करनी होती । कहीं ना कहीं हमारे सिस्टम में खामियां है इसको दूर करने के लिए सरकार प्रयास कर रही हैं । देश के सभी नागरिकों को मालूम है कि भारत कृषि प्रधान देश है। देश का विकास किस पर आश्रित है । यदि आप समय के साथ नहीं बदलते हैं। और वहीं दो बैलों की जोड़ी से खेती करते हैंं, वही पुरानी बीज और बारिश पर निर्भर खेती करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि किसी का विकास होो। तो जब सरकार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए सभी सुविधाएं प्रदान कर रही है तो विरोध क्यों?  क्या आप वही पारंपारिक खेती से खुश हैं । कुछ महान बुद्धिजीवियोंं का कहना है- कि आधुनिक खेती से पर्यावरण को नुकसान हो रहा हैै। आधुनिक खेती की वजह से खेेेतों की उर्वरक शक्ति समाप्त हो जाएगी तो सवाल यह है पर्यावरण का सारा जिम्मा किसानों ने थोड़े लिया है उद्योगों और फैक्ट्रियों पर  नियंत्रण  स्थापित करें या फिर कोई अन्य उपाय सुझाए । लेकिन आधुनिक कृषि के प्रयोग को बढ़ावा दें । जहां 1 एकड़ में अमेरिका रूस चीन ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश 60 कुंटल गेहूं उगाते हैं । वहीं भारतीय किसान अधिकतम 30-35 कुुुटंल   उगा पाते हैं । छोटे किसानों की तो अलग ही समस्या है ना तो उनके पास ट्रैक्टर है, ना ट्राली है, और ना ही अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध होते हैं । और सिंचाई भी बारिश के भरोसे रहते हैं । फसल पक जाए तो  फसल को बेचने की समस्या जाती है। ऐसी सभी समस्या का समाधान कॉन्ट्रैक्ट खेती है। जिसका प्रत्येक किसान को समर्थन करना चाहिए । मैंं कृषि  विधेयक 2020 के सभी बिलों का समर्थन नहीं करता क्योंकि आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक में बहुत सारी खामियां हैं ।जिनका सरकार को समाधान करना चाहिए। लेकिन मैंं कॉन्ट्रैक्ट   फार्मिंग का पूर्ण समर्थन करता हूं । क्योंकि मुझे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में छोटे किसान हो या बड़े किसान सभी के लिए फायदे नजर आते हैंं।
कांटेक्ट फार्मिंग के लाभ
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए अच्छे गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग प्रत्येक किसान कर सकेंगे क्योंकि इसमें कंपनी को मुनाफा कमाने के लिए वाले बीज उपलब्ध कराने होंगे।
 - कंपनियों द्वारा आवश्यक मशीनें ट्रैक्टर व मशीनों का प्रयोग होगा। व आधुनिक तरीकों द्वारा सिंचाई सम्भव होगी।
 - स्प्रिंकल सिस्टम व ड्रिप सिस्टम के द्वारा सिंचाई की सुविधा संभव हो सकेगी।
 - परिवहन लागत में कमी आएगी।
 - किसानों को फसलों के बेहतर भाव मिल सकेंगे।
 - साथ ही साथ किसानों को एक बड़ा बाजार उपलब्ध होगा।
 - मृदा की पूर्णता जांच के बाद ही मृदा के अनुसार खेती की जा सकेगी जिसके बाद उत्पादन में वृद्धि संभव हो सकेगी।
 - आय में वृद्धि होगी अति शीघ्र किसान की आय दोगुनी करने का सपना पूरा होगा।
 
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नुकसान
हो सकता है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से छोटे किसानों को फायदा ना हो क्योंकि कोई भी कंपनी छोटे किसानों से कांटेक्ट करना नहीं चाहेगी । कॉन्ट्रैक्ट के लिए कम से कम 5 हेक्टेयर से अधिक भूमि होगी। तभी कॉन्ट्रैक्ट संभव हो पाएगा साथ ही जो पढ़े-लिखे किसान नहीं है उन्हें भी समस्या आ सकती है और जो किसान अपनी इच्छा अनुसार कभी भी किसी भी समय फसल उगा सकते थे अब वह कंपनी के इच्छा अनुसार अनुसार ही फसल का उत्पादन करेंगे।
समाधान
देखा जाए तो वर्तमान समय में अधिकांश किसान पढ़े लिखे हैं। और यदि वह पढ़े-लिखे नहीं भी है तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करना इतना अनिवार्य नहीं है । यह कानून कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए बाधित नहीं करता है। और रहा सवाल छोटे किसानों का तो वह सामूहिक खेती द्वारा किसी विशेष व्यक्ति को प्रमुख बनाकर किसी कंपनी या व्यक्ति के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर सकते हैं और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का लाभ उठा सकते हैं । जैसे गांव में अनेक समूह बनाकर अनेकों योजनाओं का लाभ उठाया जा रहा है।
निष्कर्ष
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार अथक प्रयास कर रही है । किसान सम्मान निधि योजना जैसे कार्यक्रमों द्वारा किसानों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। और किसानों के विकास के लिए कृषि विधेयक 2020 के अंतर्गत तीन बिल लेकर आई है। जिसमें पहले 2 बिल तो बहुत ही ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं - "कृषि के विकास के लिए" लेकिन वही जब तीसरे बिल की बात आती है ।आवश्यक वस्तु विधेयक उसमें थोड़ी बहुत खामियां जरूर है ।जिसके लिए किसान का विरोध करना जायज है । सरकार को जल्दी इसका समाधान करना चाहिए और एक अच्छी जिंदगी के लिए मैं तो यही कहूंगा परिवर्तन आवश्यक है। इसलिए समय-समय पर परिवर्तन करते रहना चाहिए।
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