उत्तराखंड के लोकगीत और लोक नृत्य पहाड़ की अपनी ही बोली और संस्कृति है यहाँ के लोक गीतों का विस्तृत स्वरूप मुक्तको के रूप में मिलता है। विभिन्न अवसरों तथा विविध प्रसंगी में मुक्तकों का व्यवहार होता है, पहाड़ी समाज में अपनी विशिष्ट संस्कृति पौराणिक काल से रही है. न्यौली इसे न्यौली, न्यौल्या या वनगीत के नामों से पुकारा जाता है, न्यौली का अर्थ किसी नवीन स्त्री को नवीन रुप में सम्बोधन करना और स्वर बदल बदलकर प्रेम परक अनुभूतियों को व्यक्त करना है। न्यौली प्रेम परक संगीत प्रधान गीत है जिसमें दो-दो पंक्ति होती है। पहली पंक्ति प्रायः तुक मिलाने के लिए होती है। न्यौली में जीवन चिन्तन की प्रधानता का भाव होता है। ब्योली ब्योली रैना, मेरो मन बस्यो परदेश, कब आलो मेरो सैंया, मेरो मन लियो हदेश। (अर्थ: रात बीत रही है, मेरा मन परदेश में बसा है। कब आएगा मेरा प्रिय, जिसने मेरा मन ले लिया।) "सबै फूल फुली यौछ मैथा फुलौ ज्ञान, भैर जूँला भितर भूला माया भूलै जन, न्यौली मया भूलै जन", बैरा (नृत्य गीत) बैरा का शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है। अर्थात् यह कुमाऊं क्षे...
काव्य संग्रह मेरी पहली मोहब्बत, Part -1 अक्सर यह रातों के आंसू , दिल में सैलाब लेकर आते हैं छूट रहा है वो पल मेरा , जहां खुशियों का सवेरा निकलता है। जाने क्यों वक्त कम-सा लगता है। कामयाबी मिलेगी यह तो यकीन है। फिर भी कुछ अधूरा-सा लगता है । कहने को तो जिंदगी बहुत बड़ी है । करने को एक मुकाम बाकी है। हौसलों में तो जान है, बस एक उड़ान बाकी है। हर पल बीत रहा है कुछ ऐसे। मानो मुट्ठी में रेत भरी है जैसे जाने क्यों वक्त कम-सा लगता है सब कुछ तो है जिंदगी में। फिर भी कुछ कम-सा लगता है। मस्ती की, मौज किया, खूब खाया, खूब पिया , हर पल जिंदगी को, एक नया मोड़ दिया। बहुत से राही ही मिले थे सफर में, सपनों का सागर था मन में, डर था टूट ना जाए , मेरा खुदा रूठ ना जाए। मैंने जो भी चाहा मिला था रब से, सब कुछ तो है जिंदगी में, फिर भी कुछ कम-सा लगता है। जाने यह कैसी चाहत है ? जाने यह कैसी नजाकत है? दुखों का साया कुछ यूं घबराया, खुशी का पल जब ऐसे आया । हर लम्हों को जिया मैं ऐसे , फूलों से बाग भरा था ज...