आंग्ल-नेपाल युद्ध -1814
पृष्ठभूमि
आंग्ल-नेपाल युद्ध की शुरुआत ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय सन् 1814 में हुई थी और आंग्ल-नेपाल युद्ध का अंत संगोली की संधि (1816) से हुआ। आंग्ल नेपाल युद्ध के समय नेपाल का प्रधानमंत्री भीम सिंह थापा (1806-1837) था। युद्ध से पहले के वर्षों में, ब्रिटिश अपने प्रभाव क्षेत्र का तेजी से विस्तार कर रहे थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता , मद्रास, मुम्बई के अपने मुख्य ठिकानों से भारत में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। ईस्ट इंडिया कंपनी की विस्तारवादी नीतियों ने आंग्ल-मराठा युद्धों को जन्म दिया। जबकि नेपाली भी अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे - पूर्व में सिक्किम , पश्चिम में कुमाऊं और गढ़वाल, दक्षिण में अवध तक सम्राज्य का विस्तार कर चुके थे ।
साम्राज्य विस्तार
सन् 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन भारत में हुआ था। प्रारंभ में ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्य उद्देश्य व्यापार करना था लेकिन भारतीय राजाओं के आपसी मतभेद के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर शासन करने की रणनीति बनाई। फलस्वरूप सन 1757 में रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला से प्लासी के युद्ध हुआ। प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर अधिकार कर लिया साथ ही मीर जाफर को कठपुतली राजा नियुक्त किया। सन 1764 में अंग्रेजों ने बक्सर के युद्ध में दिल्ली के बादशाह शाह आलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाऊदौला और मीर कासिम की संयुक्त सेना को हराकर दिल्ली तक ब्रिटिश सत्ता का डंका बजाया। बक्सर के युद्ध के बाद सन् 1773 में इंग्लैंड के राजा द्वारा चार्टर एक्ट पारित किए गए। जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन गवर्नर जनरल के अधीन आ गया। भारत का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था। सन 1798 में लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि द्वारा अनेकों भारतीय रियासत ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गई।
वहीं दूसरी तरफ नेपाल के राजा रण बहादुर शाह (1778-1804) भी गोरखा साम्राज्य का तेजी से विस्तार कर रहे थे। गोरखों ने सन् 1790 में चंद वंश के अंतिम राजा महेंद्र चंद्र को हराकर कुमाऊं पर अधिकार कर लिया और सन् 1804 में गढ़नरेश प्रदुम्न शाह को खुडबुड़ा (देहरादून) के मैदान में हराकर गढ़वाल पर अधिकार कर लिया । जब अंग्रेजों के साथ गोरखों का टकराव प्रारंभ हुआ। उस समय नेपाल के प्रधानमंत्री भीमसेन थापा (1806-1837) थे । भीमसेन थापा ने भी पूर्वजों के भांति विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया। उसने अंग्रेजों से गोरखपुर में 200 ग्राम छीने।
युद्ध के प्रमुख कारण
- भीम सिंह थापा ने अपने पिता को पाल्पा के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया। जिससे अंग्रेजों और ब्रिटिशों के बीच गंभीर सीमा विवाद पैदा हो गए। वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन बुटवल प्रांत (गोरखपुर) के तराई भाग पर गोरखों ने कब्जा कर लिया। जो 1814 में आंग्ल-नेपाल युद्ध का तात्कालिक कारण बना।
- युद्ध का प्रमुख कारण गोरखों की आर्थिक नीतियां थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने तिब्बत के लिए व्यापार मार्ग खोलने की मांग की थी। लेकिन नेपाली सरकार ने देश से मार्ग खोलने को मना कर दिया।
- लॉर्ड हेस्टिंग्स हिमालयी क्षेत्र में व्यावसायिक अवसरों की तलाश कर रहे थे।
- हेस्टिंग्स ने केवल व्यावसायिक कारणों से नेपाल पर आक्रमण किया था। यह एक रणनीतिक फैसला था। वह मराठों, सिखों और गोरखाओं के बीच मुगल साम्राज्य के पतन के बीच हिंदू पुनरुत्थान और एकजुटता से सावधान था। वह मध्य भारत में मराठों के खिलाफ विजय की पूर्व-खाली योजनाएं बना रहा था, और दो मोर्चों पर लड़ने से बचने के लिए उसे पहले नेपाल को अपंग करने की जरूरत थी।
गोरखों के साथ विवादित इलाकों के बारे में समझौता करने के लिए अंग्रेजों ने मेजर ब्रेडसा को चुना था।
आंग्ल नेपाल युद्ध -1814
लॉर्ड हेस्टिंग्स ने नवंबर 1814 में गोरखों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और फौज को चार भागों में बांटा।
- काठमांडू (नेपाल) - मेजर जनरल मार्ले को बिहार में हजार सैनिकों की सेना लेकर सीधे नेपाल की राजधानी काठमांडू पर हमला करने का आदेश दिया गया।
- गोरखपुर - मेजर जनरल वुड को 4 हजार सैनिकों के साथ गोरखपुर से आक्रमण किया था। बाद में भूतनील दर्रे से नेपाल की पहाड़ियों में प्रवेश किया और पूर्व की ओर मुड़कर पहाड़ी जिलों में प्रवेश करने के लिए काठमांडू की ओर सहयोग किया। 23 अप्रैल 1815 को गणनाथ - डांडा के युद्ध में हस्तीदल चौतरिया मारा गया।
- खलंगा किला (देहरादून) - मेजर जनरल जिलेस्पी के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने देहरादून के खलंगा किले व नालापानी किले से गोरखों पर आक्रमण किया। गोरखों का नेतृत्व बलभद्र सिंह थापा कर रहा था। 31 अक्टूबर 1814 ईसवी में कर्नल जिलेस्पी नालापानी दुर्ग में मारा गया। और 30 नवंबर 1814 ईसवी में अंग्रेजों ने खलंगा के दुर्ग पर पुनः बमबारी की। 25 अप्रैल 1815 में अंग्रेजों ने अल्मोड़ा पर आक्रमण कर दिया। 27 अप्रैल 1815 में गार्डनर व बमशाह के बीच संधि हुई। तथा 28 अप्रैल 1815 को बमशाह व कर्नल निकोलसन के बीच संधि हुई।
- सतलुज नदी - मेजर जनरल ऑक्टरलोनी ने पश्चिमी मोर्चे पर सतलुज और यमुना नदी के मध्य भाग में आक्रमण किया। ऑक्टरलोनी ब्रिटिश जनरलों में सर्वाधिक योग्यतम सेनापति था। पश्चिम में सतलुज नदी के तट पर अमर सिंह थापा गोरखा सैनिकों की कमान संभाले हुए था। 15 मई 1815 ईसवी में मलॉवगढ़ की संधि अमर सिंह थापा व ऑक्टरलोनी के बीच हुई।
संगौली की संधि - 4 मार्च 1816
कुमाऊं और गढ़वाल में गोरखों की हार के बाद 2 दिसंबर 1815 ईसवी में गजराज मिश्र और कर्नल ब्रेडसा के बीच संगोली की संधि हुई।
जिनके समक्ष अंग्रेजों ने निम्नांकित शर्तें रखी-
- युद्ध के पूर्व झगड़े के क्षेत्र लौटा दिए जाएं।
- काली-रापती की तराई स्थली अंग्रेजों को मिले।
- बुटवुल को छोड़कर रापती और गंडक की तराई भूमि की अंग्रेजी लेंगे।
- गंडक - कोसी के मध्य की तराई जमीन अंग्रेजों के अधिकृत होगी।
- मेची-विस्ता के मध्य का तराई भाग एवं पर्वतीय प्रदेश पर अंग्रेजों की सत्ता होगी।
- काली नदी के पश्चिम का संपूर्ण गोरखा राज्य भी अंग्रेजों के अधीन होगा।
अंतिम शर्त को नेपाल सम्राट ने अस्वीकार कर दिया एवं पुन: युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। फरवरी 1816 ईसवी में अंग्रेजी सेना ने नेपाल पर चढ़ाई कर दी थी। 4 मार्च 1816 को नेपाल सरकार ने संगोली की संधि स्वीकार कर ली। संगोली संधि अनुसार टिहरी रियासत सुदर्शन शाह को प्रदान की गई और शेष को नॉन रेगुलेशन प्रांत बनाया गया। नॉन रेगुलेशन प्रांत सन् 1891 में खत्म कर दिया गया तथा सन् 1901 में संयुक्त प्रांत, आगरा एवं अवध बना तो उत्तराखंड को इस में विलय कर दिया गया।
महत्वपूर्ण तथ्य
*लार्ड हेस्टिंग्स को लार्ड मोयेरा नाम से भी जाना जाता है
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