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UKSSSC MOCK TEST - 166

  UKSSSC MOCK TEST - 166 उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  देवभूमि उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड समूह ग परीक्षा हेतु टेस्ट सीरीज का संचालन किया जा रहा है। सभी टेस्ट पाने के लिए संपर्क करें -9568166280 Uksssc mock test -166 ( 1) निम्नलिखित में से कौन-सा वर्ण ह्रस्व स्वर नहीं है? (A) अ (B) इ (C) ऊ (D) उ (2) निम्नलिखित में से कौन-सा संयुक्त वाक्य है? (A) वह खेल रहा था क्योंकि बारिश हो रही थी। (B) वह बाजार गया और फल खरीद लाया। (C) वह इतना थका हुआ था कि तुरंत सो गया। (D) उसने कहा कि परीक्षा कठिन थी। (3) नीचे दिए गए समास और उनके प्रकार का सुमेलित करें।     कॉलम A 1. गुरुकुल 2. जलपान 3. देवालय 4. यथाशक्ति     कॉलम B A. तत्पुरुष B. कर्मधारय C. अव्ययीभाव D. द्वंद्व विकल्प: (A) 1-A, 2-B, 3-C, 4-D (B) 1-A, 2-C, 3-D, 4-B (C) 1-A, 2-B, 3-D, 4-C (D) 1-A, 2-B, 3-A, 4-C (4) वाक्य "राम ने सीता को फूल दिया।" में 'सीता को' किस कारक का उदाहरण है? (a) करण (b) अपादान (c) संप्रदान (d) अधिकरण (05) निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए है?       ...

जनसंचार माध्यम और पत्रकारिता (भाग -01)

जनसंचार माध्यम और पत्रकारिता (भाग -01)

समाचार किसे कहते हैं ?

"किसी घटना की रिपोर्ट या जल्दी में लिखा गया इतिहास है समाचार कहलाता है"। समाचार दो शब्दों से मिलकर बना है सम + आचार । सम का अर्थ है समुचित या ठीक । अचार का अर्थ है व्यवहार, इस प्रकार समाचार का अर्थ है 'मानव स्वभाव एवं आचार विचार का समुचित विवरण या जानकारी ।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि "किसी निश्चित समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार है"। अक्सर पाया जाता है कि समाचार को दबाने या छुपाने की कोशिश की जाती है। इसलिए "दबाने छुुुुपाने वाली खबरों" को भी समाचार कहा जाता है।

अच्छे समाचार के गुण

अच्छे समाचार में निम्नलिखित गुण होते हैं ।
1. सत्यता - अच्छे समाचार पत्र सत्यता पर आधारित होते हैं।
2. स्पष्टता - अच्छे समाचार पत्र में तथ्यों की स्पष्टता होती है।
3. सुरुचि -  अच्छेेेेे समाचार पत्रों में संदर्भ जिज्ञासा पूर्ण और रुचिकर होता है । 
4. सूक्ष्मता - अच्छे समाचार पत्र में कम शब्दों में अधिक जानकारी का उल्लेख किया जाता है।
5. शीर्षक - समाचार पत्रों में शीर्षकों को आकर्षक बनाया जाता है ताकि पाठकों का ध्यान जल्दी से समाचार पर जाए।

पत्र-पत्रिकाएं                      

  1. दैनिक पत्र :- प्रतिदिन प्रकाशित होने वाले पत्र को दैनिक पत्र कहते हैं जैसे अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, सहारा, पंजाब केसरी आदि। उत्तराखंड राज्य का प्रकाशित प्रथम दैनिक पत्र 'पर्वतीय' था।
  2. साप्ताहिक पत्र :- सप्ताह में प्रकाशित होने वाले पत्र को साप्ताहिक पत्र कहते हैं। जैसे:-धर्म युद्ध, उदंत,मार्तंड साप्ताहिक हिंदुस्तान, अनोखी,रूपवान, जोश,करियर संगिनी आदि हैं।
  3. पाक्षिक पत्र :- 15 दिन में प्रकाशित होने वाले पत्र को पाक्षिक पत्र कहते हैं। जैसे:-मुक्ताा, सरिता आदि।
  4. मासिक पत्र :- महीन में एक बार प्रकाशित होने वाले पत्र को मासिक पत्र कहते हैं। जैसे:- अहा जिंदगीी, नवनीत, कंदाबनी, नंदन आदि।

पत्रकारिता से आप क्या समझते हो? पत्रकारिता क्या है ?               

पत्रकारिता अंग्रेजी के 'जर्नलिजम' शब्द से बना है। जर्नलिजम शब्द 'जर्नल' (journel) शब्द से बना है। जिसका अर्थ "दैनिकी" होता है। पत्रकारिता समाज का दैनिक इतिहास है। 'यह एक ऐसा साधन है जो हमें समाज में घटित दिन प्रतिदिन घटनाओं का ज्ञान करता है'

पत्रकारिता का संबंध समाचार पत्रों से है | समाचार पत्र समाचारों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाते हैं | समाचार पत्र किसी घटना या सूचना को मुद्रित रूप में पाठकों के सामने लाते हैं | इस प्रकार देश के किसी कोने की घटना की सूचना देहरादून या मुम्बई के समाचार पत्रों के माध्यम से हम तक पहुंचती है | पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि नारद को ‘आदि पत्रकार’ माना जाता हैं जो एक दिशा की बात को दूसरी दिशाओं तक पहुंचाते थे | गुणों के आधार पर पत्रकारिता के विभिन्न प्रकार हैं-                  

पत्रकारिता के प्रकार                    

पत्रकारिता कई प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है।
  • खोजपरक पत्रकारिता :- खोजपरक पत्रकारिता से तात्पर्य 'ऐसी पत्रकारिता से जिसमें गहराई से खोजबीन करके उन तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाना या छिपाना की कोशिश की जा रही हैै'।
  • पीत पत्रकारिता :- पीत पत्रकारिता उस पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की उपेक्षा कर सनसनी फैलाने वाले शीर्षकों का प्रयोग किया जाता है,।
  • वॉचडॉग पत्रकारिता :- यह पत्रकारिता जो सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है तथा गड़बड़ी का पर्दाफाश करती है। वॉचडॉग पत्रकारिता कहलाती है।
  • एडवोकेसी पत्रकारिता :- एडवोकेसी पत्रकारिता वह जो किसी विचारधारा या किसी उद्देश्य को उठाकर जनमत बनाने का प्रयास करती है।
  • वैकल्पिक पत्रकारिता :- इस तरह की पत्रकारिता में मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने तथा उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त किया जाता है।
  • विशेषीकृत पत्रकारिता :- पत्रकारिता में विशेष के अनुसार विशेषता के साथ क्षेत्र माने जाते हैं कितने संसदीय न्यायालय, आर्थिक,खेल,विज्ञान और विकास अपराध का फैशन और फिल्म पत्रकारिता आदि आते हैं।

पत्रकारिता का उद्देश्य

पत्रकारिता का उद्देश्य के निम्नलिखित उद्देश्य हैं।
  • 1. समाज की गतिविधियों का दर्पण।
  • 2. सूक्त में शक्ति।
  • 3. नीर-क्षीर विवेकी।
  • 4. परिवेश से साक्षात्कार।
  • 5. कुशल चिकित्सा।
  • 6. सप्रक्षेण का समाधान।
  • 7. मानवीय गुणों के विकास में सहायक।

पत्रकारिता का इतिहास

भारत में सर्वप्रथम सन् 1550 में 'प्रिंटिंग प्रेस' लाने का श्रेय पुर्तगालियों का जाता है। 1556 में भारत की पहली प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना ओल्ड गोवा के जेसुइट सेंट पॉल कॉलेज में हुई थी। सन् 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका निकाली | अंग्रेजी भाषा में रचित 'बंगाल गजट' को भारत का पहला समाचार पत्र या पत्रिका माना जाता है | भारत में हिंदी का प्रथम समाचार पत्र 'उदंत मार्तंड' था जिसका प्रकाशन 1826 ईसवी को हुआ। चार्ल्स मैटकाफ़ (1835 -1836 ई.)। एक वर्ष तक भारत के गवर्नर जनरल के पद पर कार्य करते हुए प्रेस पर से नियंत्रण हटाने के लिए याद किया जाता है। इसलिए चार्ल्स मैटकाफ़ को "समाचार पत्रों का मुक्तिदाता" कहा जाता है।

उत्तराखंड में पत्रकारिता का इतिहास

  • उत्तराखंड में प्रकाशित होने वाला समाचार प्रथम समाचार पत्र 'द हिल्स' था। जिसका संपादन जान मैकिनन ने सन् 1842 में मसूरी से किया था। 
  • उत्तराखंड की पहली प्रिंटिंग प्रेस जान मैकिनन ने मसूरी में खोली थी। 'द हिल्स' समाचार पत्र का प्रकाशन 1850 ईसवी में बंद हो गया था। 
  • उत्तराखंड का पहला हिंदी समाचार पत्र 'समय विनोद पत्र' था। इसका प्रकाशन 1868 ईस्वी में नैनीताल से हुआ और इसके संपादक जयदत्त जोशी थे। 

अल्मोड़ा अखबार - 1871

समय विनोद पत्र के ठीक 3 वर्ष बाद 1871 में "बुद्धिबल्लभ पंत" द्वारा "अल्मोड़ा अखबार" का संपादन किया गया। अल्मोड़ा अखबार उत्तराखंड में 48 वर्षों तक रहा। वर्ष 1918 में अल्मोड़ा अखबार बंद होने के बाद कुमाऊं में "शक्ति अखबार" का पहला अंक 15 अक्टूबर 1918 को विजयदशमी के दिन निकाला गया। शक्ति अखबार का संपादन का कार्य बद्रीदत्त पांडे (1918), विक्टर मोहन जोशी(1921), दुर्गादत्त पांडे मनोहर पंत, राम सिंह धोनी मथुरादत्त, पूरनचंद्र तिवारी और देवी दत्त पंत ने किया था।

गढ़वाली अखबार - 1905

वहीं दूसरी तरफ देहरादून से प्रकाशित होने वाला प्रथम गढ़वाली भाषा का मासिक समाचार पत्र "गढ़वाली अखबार" थाा। जिसका प्रकाशन "गिरिजा दत्त नैथानी" ने 1905 में किया था। गढ़वाली पत्र का संपादन तीन संपादकों द्वारा किया गया क्रमशः -
गिरिजा दत्त नैथानी, 
तारादत्त गैरोला, 
विश्वभर दत्त चंदौला 

अन्य प्रमुख समाचार

समाचार पत्र                  स्थान                 सम्पादक
युगवाणी (1947)  -       टिहरी         -  भगवती प्रसाद पांथरी                                                        और गोपेश्वर कोठियाल 
प्रजापत्र (1947-1948) - मसूरी      - जयदत्त वैला
हिमाचल (1948) -          मसूरी      - सत्यप्रसाद रतूड़ी
समाज (1942)   -         चमोली      -  रामप्रसाद बहुगुणा
कर्मभूमि (1939) -       लैंसडाउन    -  भैरव दत्त धूलिया  और                                                            भक्त दर्शन   
जागृत जनता (1939) - हल्द्वानी        -   पीताम्बर पाण्डे  
पताका (1939)         - अल्मोड़ा      -    सोबन सिंह जीना
संदेश (1938)           - कोटद्वार       -    कृपाराम मिश्र और                                                              हरिराम मिश्र
हितैषी (1936)        - पौड़ी गढ़वाल  - पीताम्बर दत्त
स्वर्गभूमि (1934)    - हल्द्वानी         - देवकीनन्दन ध्यानी
स्वाधीन प्रजा (1930) - अल्मोड़ा     - विक्टर मोहन जोशी
समता (1934)।      - अल्मोड़ा।        - हरिप्रसाद टम्टा
गढदेश (1929)।     - कोटद्वार।        - कृपाराम मिश्र
कुमाऊं कुमुद (1925)- अल्मोड़ा।      - पूर्ण चंद्र
तरूण कुमाऊं (1922)- लैंसडाउन।    - मुकुन्दी लाल
विशालकीर्ति (1913) - पौड़ी गढ़वाल - सदानंद कुकरेती 
पुरूषार्थ (1918-23) - दुगड्डा (पौड़ी) - नैथानी
गढ़वाल समाचार (1902) - लैंसडाउन - गिरिजा दत्त नैथानी

(*1902 को गढ़वाल में प्रकाशित पहला हिंदी समाचार पत्र 'गढ़वाल समाचार पत्र' का संपादन गिरिजा दत्त नैथानी ने लैंसडाउन से किया। 2 वर्ष बाद संपादन बंद हुआ तथा दुगड्डा में 1913-1915 में पुनः प्रकाशित किया गया।)

उपयुक्त पत्रिकाओं में स्वाधीन प्रजा, पताका और हिमाचल सप्ताहिक पत्रिका थी। इसके अतिरिक्त 1893 में अल्मोड़ा से कुर्मांचल समाचार पत्र का प्रकाशन किया गया था। और अल्मोड़ा से 1913 में हस्तलिखित साप्ताहिक अखबार बाजार बंधु प्रकाशित हुआ था।

संचार क्या है?                    

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान होता है। उसे संचार कहा जाता है। संचार शब्द संस्कृत के 'चर' धातु से बना है। 'चर' का अर्थ - चलना। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी बात को आगे बढ़ाना चलाना या फैलाना संचार कहलाता है।

संचार के प्रमुख घटक एवं माध्यम                      

  • संवाददाता :- जो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में रहकर समाचार पत्र के लिए खबरें भेजता है उसे संवाददाता कहते हैं।
  • प्रुफ रीडर :- समाचार पत्र में प्रकाशितों होने वाली सामग्री को छापने के बाद प्रुफ की गलतियों सुधारने अथवा पढ़ने वालों को प्रुफ रीडर कहते हैं।
  • संपादक :- संपादक किसी पत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है जो संपादकीय कार्यों का निरीक्षण और निर्देशन करता है उसे संपादक कहते हैं।
  • फीडबैक :- संदेश को प्राप्त करने वाला व्यक्ति जब उसे समझ कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो उसे फीडबैक कहते हैं।
  • ऑप एड क्या है :- समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने वाले पन्ने में विश्लेषण फीचर, स्तंभ और साक्षात्कार आदि प्रकाशित होते हैं यही ऑप एड कहलाते हैं।
  • डेडलाइन :- समाचार माध्यमों में किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित होने के लिए पहुंचने की आखरी समय सीमा को डेडलाइन कहा जाता है।
  • डेस्क :- समाचार पत्रों में किसी विशेष लेखन के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों के समूह के निश्चित समय को डेस्क कहते हैं।
  • बीट :- समाचार पत्र में राजनीतिक, आर्थिक, खेल, अपराध फिल्म, कृषि आदि से संबंधित समाचार होते हैं जो पत्रकार जिस क्षेत्र से संबंधित समाचार लिखता है वह उस पत्रकार की बीट होती है।
  • स्तंभ लेखन :- स्तंभ लेखन विचार परख लेखन होता है इस स्तंभकार समसामयिक विषयों पर नियमित रूप से अपने समाचार पत्र लिखते हैं।
  • एंकर बाइट :- दूरदर्शन पर किसी घटना की सूचना और दृश्य से संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुना कर समाचार की पुष्टि करना है, एंकर बाइट कहलाता है।
  • क्लाईमेक्स :- समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्वपूर्ण पक्ष क्लाइमैक्स कहलाता है!
  • फोन इन :- एंकर का घटना स्थल पर उपस्थित रिपोर्टर सेल फोन के माध्यम से घटित घटनाओं की जानकारी दर्शकों तक पहुंचाना फोन इन कहलाता है।
  • ड्राई एंकर :- ड्राई एंकर वह होता है जो समाचार के दृश्य नजर नहीं आने तक दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर समाचार से संबंधित सूचना देता है।
  • इंटरनेट पत्रकारिता :- इंटरनेट पर समाचार पत्रों को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान प्रदान करना इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है
  • लाइव :- जिस समाचार का घटना स्थल से दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण लाइव कहलाता है

संचार माध्यम के प्रकार, गुण एवं दोष

प्रिंट

किसी डाटा या सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लिखना प्रिंट कहलाता है।

प्रिंट के गुण :- 
प्रिंट में छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। इसमें आराम से धीरे धीरे पढ़ सकते हैं। और पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं। बार बार पढ़ सकते हैं। इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएं होती हैं।

प्रिंट के दोष :-
प्रिंट लेखन कार्य करने वालों का शैक्षिक ज्ञान होना आवश्यक है। यह केवल पढ़े लिखे लोगों के काम में आता है। इसमें तुरंत घटित घटनाएं प्रस्तुत नहीं किया जा सकता हैं। और गलतियां सुधारने पड़ती हैं।

रेडियो - 

यह संचार माध्यम का श्रव्य माध्यम है। यह तरंगों द्वारा ध्वनि संचार, जैसे - संगीत, समाचार, और एकल प्रसारण स्टेशनों से अन्य प्रकार के कार्यक्रमों के प्रसारण को अलग-अलग श्रोताओं तक पहुंचाता है।

रेडियो के गुण
रेडियो संचार का श्रव्य माध्यम हैं। इसमें श्रोताओं का साक्षर होना आवश्यक नहीं है। इसमें भ्रामक और उपरुचिकर कार्यक्रम को बंद किया जा सकता है। इसमें शब्दों के साथ संगीत दिया जाता है।

रेडियो के दोष
इसमें कार्यक्रम आरंभ से ही सुनना पड़ता है। इसके शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं कर सकते।
इसमें कार्यक्रम की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कार्यक्रम के दौरान कहीं जा नहीं सकते हैं, और यदि जाते हैं तो पुन: वही कार्यक्रम नहीं सुन सकते हैं।

टेलीविजन -

टेलीविज़न संचार माध्यम का एक ऐसा विद्युत उपकरण है जो छवि और ध्वनि के साथ एक सिग्नल को दूरस्थ रूप से प्रसारित करता है । टेलीविजन का शाब्दिक अर्थ है - दूर की वस्तुओं को देखना

टेलीविजन के गुण -
यह एक संचार का श्रव्य माध्यम है। इसमें कम शब्दों अधिक विचारों का आदान प्रदान किया जा सकता है।
ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुंचाई जा सकती है।
खबरों का सीधा प्रसारण (लाइव) दर्शकों तक पहुंचाता है।
टेलीविजन द्वारा खबर की पुष्टि दिखाई जाती है।

टेलीविजन के दोष
एक ही कार्यक्रम बार-बार नहीं देख सकते हैं। इसमें शब्दों समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यह विभिन्न विषयों पर लोगों के मन में उत्तेजना उत्पन्न करता है। यह अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा देता है।
बाल बुद्धि और अपरिपक्व वृद्धि को विकृत कर सकता है।

इंटरनेट 
इंटरनेट संचार माध्यम की सबसे आधुनिक प्रणाली है। इंटरनेट विभिन्न कंप्यूटर नेटवर्को का एक विश्व स्तरीय समूह (नेटवर्क) है।

इंटरनेट के गुण
इंटरनेट एक ही स्थान पर रहकर विश्व भर का ज्ञान देता है।
मनोरंजन के साथ ज्ञान में वृद्धि में सहायक है। इसमें रिपोर्टर का सत्यापन और पुष्टिकरण होता है। इसमें किसी की भी महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि ढूंढी जा सकती है।

इंटरनेट के दोष
इंटरनेट संचार का सर्वाधिक महंगा माध्यम है। यह विभिन्न प्रकार के एप्लिकेशन के जरिए अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही बच्चों को खेलकूद से दूर करता और शारीरिक कमजोरी का कारण बनता जा रहा है।

डायरी लेखन

डायरी लेखन एक नोटबुक होता है जिसके प्रश्नों पर कार्य के लिए 365 दिन की तिथियों कर्म से लिखी होती हैं। डायरी लेखन अत्यंत निजी स्तर पर घटित घटनाओं और उससे संबंधित बौद्धिक तथा भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का लेखा-जोखा डायरी लेखन कहलाता है।

जनसंचार माध्यम की शब्दावली

न्यूज़ पेग :- न्यूज़ पेग वह हैं,जिसमें किसी मुद्दे पर लिखे जा रहे लेख या फिचर में उसी मुद्दे पर आधारित घटना का उल्लेख मिलता हैं।

पेज थ्री पत्रकारिता :- पेज थ्री पत्रकारिता ऐसी पत्रकारिता है जिसमें फैशन अमीरों की पार्टियां महफिलों का प्रसिद्ध लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है यह आमतौर पर समाचार के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होता है ।

बीट :- समाचार पत्र द्वारा अपने संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रखकर किया जाता है इसे बीट कहते हैं।

स्टि्गर :- स्टि्गर अंशकालिक पत्रकार को कहते हैं ये किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार है।

पत्रकार दीर्घा :- संसद विधानसभा आदि का वह स्थान जो पत्रकारों के बैठने के लिए सुरक्षित रहता है।

पी. टी. आई :- यह एशिया की सबसे बड़ी समाचार समिति है यह अंग्रेजी में समाचार भेजती है।

ओडिएंस :- जनसंचार माध्यमों के साध जोड़ा एक विशेष शब्द यह जनसंचार माध्यमों के दर्शकों श्रोताओं और पाठकों के लिए सामाजिक रूप से इस्तेमाल होने वाला शब्द है।

स्टिंग ऑपरेशन :- जब किसी टेलीविजन चैनल का पत्रकार छिपे टेलीविजन कैमरे के जरिए किसी गैर कानूनी अवैध और असामाजिक गतिविधियों का फिल्माता है और फिर उसे अपने चैनल पर दिखाता है तो इसे स्टिंग ऑपरेशन कहते हैं।

डेस्क :- समाचार पत्रों में किसी विशेष लेखन के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों के समुह के निश्चित समय को डेस्क कहते हैं।

विशेष लेखन के क्षेत्र :- व्यापार खेल विज्ञान फैशन कृषि प्रौद्योगिकी विदेशी रक्षा पर्यावरण शिक्षा स्वास्थ्य फिल्म मनोरंजन अपराध सामाजिक मुद्दे कानून जीवनशैली आदि।

समाचार के छः ककार :- क्या, कौन ,कहां, कब, कैसे, कितने


फीचर‌ क्या है ?

जब किसी घटना के साथ उसका सुदूर अतीत एवं भविष्य भी जुड़ जाता है तब वह एक ही लेख की पूर्णता प्राप्त कर लेता है उसे फीचर कहा जाता है।

फीचर के गुण :-

फीचर पत्रकारिता लेखन की विशेष शैली है जिसमें सन्दर्भ मनोरंजन, ज्ञानवर्धक एवं मानवीय रूचि पर आधारित होता है। इसमें कल्पना के समावेश के साथ साथ ज्ञान एवं भावना संवेदना जगाने की कला निहित है। इसको आकर्षक लिखने के लिए चित्रात्मक विचित्र एवं रोचक
गतिशील शैली होनी चाहिए। तर्कसंगत होनी चाहिए।

संपादकीय क्या है?

संपादक की राय या विचार संपादकीय कहलाती है।

संपादकीय के गुण

संपादकीय लेख संपादक के व्यक्ति का दर्पण होता है। इसलिए संपादकीय की शैली सजीव और प्रभावशाली होनी चाहिए। तथा भाषा सशक्त स्पष्ट और परख होनी चाहिए। साथ ही संपादक की प्रतीक बात में बेबाकीपन हो।

आलेख क्या है ?

आलेख गद्य लेखन की वह विद्या है जिसमें किसी एक विशेष विषय पर सर्वोगीण व सम्यक विचार होते हैं।

आलेख के गुण

आलेख लिखने की भाषा सहज सरल और प्रभावशील होनी चाहिए। आलेख नवीनतम एवं ताजगी से भरा हो।
उसमें जिज्ञासा एवं प्रेरणा उत्पन्न की क्षमता हो। आलेख में विश्लेषण शैली का प्रयोग करते हुए ज्वलंत मुद्दों, विश्व और महत्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि एक बात दोबारा ना लिखी जाए।

टिप्पण क्या है?

टिपणी लिखने की प्रक्रिया को टिपण कहते हैं।
किसी भी विचाराधीन पत्र अथवा प्रकरण को निपटाने के लिए उस पर जो राय, मंतव्य आदि अथवा निर्देश दिया जाता है वह टिप्पणी कहलाता है। टिपणी शब्द अंग्रेजी के नोटिंग शब्द से लिया गया है। आमतौर पर कॉमेंट (comments) कहा जाता है ।
टिप्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं :- 
(1) सहायक स्तर पर टिप्पण (कार्यलयी टिप्पण)
(2) अधिकारी स्तर पर टिप्पण (आनुषंगिक टिप्पण)
  • सहायक स्तर पर टिप्पण - कार्यालय में टिप्पण कार्य अधिकतर सहायक स्तर पर होते हैं। इसलिए इन्हें कार्यालयी टिप्पण भी कहते हैं। इसे आरंभिक टिप्पण या मुख्य टिप्पण भी कहते हैं जिसमें सहायक विचारधाराधीन मामले का संक्षिप्त ब्यौरा देते हुए उसका विवेचन करते हैं.
  • अधिकारी स्तर पर टिप्पण - सहायक, आरंभिक या मुख्य टिप्पणी को जब संबंधित अधिकारी के पास भेजा जाता है तो वह अधिकारी टिप्पणी पढ़ने के बाद नीचे मंतव्य लिखता है। जिसे अनुषांगिक टिप्पणी कहते हैं और यह क्रिया अनुषांगिक टिप्पण कहलाती है।

टिप्पणी और टिप्पण में अन्तर

टिप्पणी का उद्देश्य उन तथ्यों को स्पष्ट तथा तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करना है जिन पर निर्णय लिया जाना है। जबकि टिप्पण का उद्देश्य मामलों को नियमानुसार निपटाना है।

रिपोर्ट या प्रतिवेदन

यह एक प्रकार का लिखित विवरण होता है जिसमें किसी संस्था, सभा, दल, विभाग, सरकारी, गैर-सरकारी, सामान्य विशेष आयोजन की तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत की जाती है।

रिपोर्ट या प्रतिवेदन के गुण

रिपोर्ट की भाषा सरल और सहेली स्पष्ट हो। इसके लिए एक शीर्षक होना चाहिए। प्रतिवेदन संक्षिप्त हो व प्रतिवेदन में महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेश होना चाहिए। प्रतिवेदन सच्चाई पर आधारित होता है इसमें पक्षपात, कल्पना और भावना के लिए कोई स्थान नहीं होता है। प्रतिवेदन ऐसा हो जिसका एक ही अर्थ और निष्कर्ष हो।

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उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...