लिंग वचन और कारक (हिन्दी नोट्स भाग - 04) देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर हिन्दी के महत्वपूर्ण नोट्स तैयार किए गए हैं। साथ ही टॉपिक से सम्बन्धित टेस्ट सीरीज उपलब्ध है। सभी नोट्स पीडीएफ में प्राप्त करने के लिए संपर्क करें। 9568166280 संज्ञा के विकार संज्ञा शब्द विकारी होते हैं यह विकार तीन कारणों से होता है लिंग वचन कारक लिंग लिंग का अर्थ है - 'चिन्ह'। संज्ञा के जिस रूप से किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में यह बोध हो कि वह पुरुष जाति का है या स्त्री जाति का, उसे लिंग कहते हैं। जैसे - पिता, पुत्र, घोड़ा, बैल, अध्यापक आदि में पुरुष जाति का बोध है। और माता, पुत्री, घोड़ी, गाय आदि में स्त्री जाति का बोध है। संस्कृत के नपुंसक लिंग का समाहार पुलिंग में हो जाने से हिंदी में दो ही लिंग हैं। पुल्लिंग स्त्रीलिंग पुल्लिंग : वह संज्ञा या सर्वनाम जो नर (पुरुष) का बोध कराता है, उसे पुल्लिंग कहा जाता है। जैसे - लड़का, आदमी, घोड़ा, राजा, आदि। नियम देशों, प्रदेशों, नगरों, वृक्षों, पर्वतों, धातुओं, द्रव पदार्थों के नाम पुलिंग होते हैं। जैसे - भारत, जापान
अमोघभूति कुणिद वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। कुणिद वंश उत्तराखंड में लगभग तीसरी- चौथी शताब्दी की पहली राजनीतिक शक्ति थी । जबकि कत्यूर राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला पहला ऐतिहासिक शक्तिशाली राजवंश था। इसे कार्तिकेयपुर वंश के नाम से भी जाना जाता है। 'कत्यूरी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एटकिंसन ने किया था। कत्यूरी राजवंश के संस्थापक बसंत देव थे । जिन्हें बासुदेव के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी। पांडुकेश्वर ताम्रलेख में पाए गए कत्यूरी राजा ललितशूर के अनुसार कत्यूरी शासकों की प्राचीनतम राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी । बाद में नरसिंह देव ने जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर ) में राजधानी स्थानांतरित कर दी। जहां से कत्यूरी राजवंश को विशिष्ट पहचान मिली ।
कत्यूरी राजवंश का उदय
कुणिंदों के पतन के पश्चात देवभूमि उत्तराखंड की भूमि पर कुछ नए राजवंशों का उदय हुआ। जैसे गोविषाण, कालसी लाखामंडल आदि जबकि कुछ स्थानों पर कुणिंद भी शासन करते रहे। कुणिंदो के बाद शक, कुषाण और यौधेय वंश के शासकों ने कुछ क्षेत्रों पर शासन व्यवस्था स्थापित की। यौधैय कुणिंदों के समकालीन थे। इन्होंने कुणिंदो के दमन में योगदान दिया और जौनसार बावर (देहरादून) के क्षेत्र में कर्तृपुर राज्य की स्थापना की। कर्तृपुर राज्य के अंतर्गत उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और रूहेलखंड का उत्तरी भाग शामिल था। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में गुप्त साम्राज्य की उत्तरी सीमा पर स्थित कर्तृपुर राज्य का उल्लेख है। यह गुप्त शासकों के अधीन थे। पांचवी सदी में कर्तृपुर राज्य पर नागों ने अधिकार कर लिया। छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में कन्नौज के मौखरि वंश ने कर्तृपुर राज्य के पर अधिकार कर लिया। मौखरी वंश के अंतिम राजा गृहवर्मा की हत्या हो जाने के बाद कन्नौज पर हर्षवर्धन ने अधिकार कर लिया। हर्षवर्धन ने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान एक पर्वतीय राजकुमारी से विवाह किया था। बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में हर्षवर्धन के शासनकाल में उत्तराखंड के आए लोगों का वर्णन मिलता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात राज्य में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई संसार में एक नए राजवंश कार्तिकेयपुर राजवंश (कत्यूरी राजवंश) का उदय हुआ । जिसका प्रथम राजा वसंतनदेव था। कार्तिकेयपुर राजवंश अयोध्या केेेे मूल निवासी थे।
कहा जाता है बसंत देव कन्नौज के राजा यशोवर्मन के सामंत थे। यशोवर्मन मौखरी वंश से थे। लेकिन इसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं मिलता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात यशोवर्मन कन्नौज पर शासन करते हैं । यशोवर्मन के द्वारा उत्तराखंड के समस्त क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के बाद बसंतदेव को सामंत बना दिया। लेकिन यशोवर्मन कश्मीर के शासक ललिता द्वितीय मुक्त पीठ हार जाता है । इसी का फायदा उठाकर बसंतदेव एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर देता है। जिससे कत्यूरी राजवंश का उदय हुआ। कत्यूरी राजवंश की तीन शाखाओं ने 300 वर्षों तक शासन किया। बाद में राज्य का विस्तार होने पर राजधानी कार्तिकेयपुर से अल्मोड़ा स्थित कत्यूर घाटी के बैजनाथ नामक स्थान पर स्थापित की गई। इस राजवंश का इतिहास इसके बागेश्वर, कंडारा, पांडुकेश्वर एवं बैजनाथ आदि स्थलोंं से कुटिला लिपि में प्राप्त ताम्रलेखों व शिलालेख के आधार पर लिखा गया है।
बसन्तनदेव वंश
बसन्तनदेव को कत्यूरी राजवंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है । बागेश्वर के शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार जोशीमठ का नरसिंह मंदिर बसंतदेव के द्वारा बनवाया गया है। इनकी पत्नी का नाम राजनारायणी देवी था। बसंत देव ने परमभट्ठारक, परमब्राह्माण तथा महाराजधिराज की उपाधि धारण की थी। बागेश्वर में एक देव मंदिर के लिए स्र्वेणश्वर नामक गांव दान में दे दिया था । इसके अलावा इस वंश से पुत्र संबंधी कोई जानकारी नहीं मिलती है। यदि बसंतदेव का कोई पुत्र होगा भी तो कमजोर रहा होगा। जिससे खर्परदेव ने हटा दिया होगा। और खर्परदेव ने अपने वंश की स्थापना की ।
1- खर्परदेव वंश
खर्परदेव वंश का सबसे पहला शासक खर्परदेव था । यह यशोवर्मन के समकालीन था। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक त्रिभुवन राजदेव था। इसने व्याघ्रेश्वर मंदिर के लिए भूमि दान में दी और किरात पुत्र को हराकर उससे संधि की। भूदेव के अभिलेख के अनुसार त्रिभुवन देव के पिता कल्याण राज थे। और माता का नाम लद्वा देवी था।
नालंदा अभिलेख के अनुसार राजा त्रिभुवन के समय बंगाल के पाल वंश के शासक धर्मपाल ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था और यह माना जाता है कि त्रिभुवन देव की हार हो गई । उसके बाद निबंर वंश की स्थापना हुई।
विशेष तथ्य :- बागेश्वर लेख में बसंतदेव के बाद कत्यूरी राजाओं के नाम का उल्लेख स्पष्ट रूप से नहीं मिलता है। कश्मीरी इतिहासकार कल्हण की राजतरंगिणी पुस्तक में कश्मीरी राजा ललितादित्य मुक्तापीठ द्वारा गढ़वाल क्षेत्र पर जीतने का उल्लेख किया गया । इतिहासकारों के अनुसार उस समय कार्तिकेयपुर में खर्परदेव का शासन था।
2- निम्बर वंश
निम्बर वंश की स्थापना पहले शासक निम्बरदेव ने की । निम्बरदेव शैव मत के अनुयायी थे ? निम्बरदेव ने जागेश्वर के मंदिर समूह व विमानों (मंदिर की चोटी) का निर्माण करवाया था। उनकी पत्नी का नाम नाथू देवी था। निम्बरदेव के पुत्र इष्टगणदेव ने संपूर्ण उत्तराखंड को एकीकरण करने का प्रयास किया। इष्टगणदेव की पत्नी का नाम धरा देवी था। इस शासक ने जागेश्वर (अल्मोड़ा) में सबसे अधिक मंदिर बनवाए नटराज मंदिर , दुर्गा मंदिर,लकुलिश मंदिर और महेश मंदिनी मंदिर आदि।
इष्टगणदेव का पुत्र ललितसूर कत्यूरी राजवंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं शौर्यवान शासक था। ललितसूर ने दो शादियां की । समादेवी और लया देवी दो पत्नियां थी। पांडुकेश्वर ताम्रपत्रलेख में इसे "गरुण भद्र" की उपाधि दी गई व विष्णु का अवतार (बराहअवतार) कहा गया है। ललितसूर का पुत्र भूदेव था। भू-देव ने बैजनाथ मंदिर का निर्माण करवाया और इसी ने कत्यूर वंश के प्रारंभिक सभी शासकों का उल्लेख किया। भूदेव दान के लिए प्रसिद्ध था। भूदेव बौद्ध धर्म का विरोध करता था इसके शासनकाल में सनातन संस्कृति का सर्वाधिक विस्तार हुआ। भूदेव के शासनकाल में शंकराचार्य जी ने जोशीमठ की स्थापना की थी। 820 ईसवी में केदारनाथ में शंकराचार्य जी ने शरीर का त्याग किया।
3- सलोणादित्य वंश
निम्बर वंश के बाद सलोणादित्य वंश की स्थापना हुई। इस वंश के संस्थापक इनके पुत्र इछतदेव थे । अपने पिता के नाम पर नया वंश चलाया । इनकी मां सिंध बलि देवी थी। पांडुकेश्वर के ताम्रपत्र में यह साफ-साफ लिखा है। सलोणादित्य वंश के संस्थापक इछतदेव थे । इनका पुत्र देशक देव जो एक ब्राह्मणों और अनाथो का दान करने वाला शासक था। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक सुभिक्षराज देव था। उसने अपनी राजधानी कार्तिकेयपुर (जोशीमठ) से सुभिक्षपुर स्थानांतरित की । और इसके बाद इसी के पुत्र नरसिंह देव ने पुनः राजधानी स्थानांतरित करके बैजनाथ (बागेश्वर) की सुरम्य घाटी में स्थापित की। कत्यूरी घाटी में अशंतिदेव द्वारा असंतिदेव वंश की नींव रखी गई।
कत्यूरी राजवंश का अंतिम शासक : ब्रह्मदेव
कत्यूरी राजवंश के मुख्य शासकों के अलावा जन स्तुतियों के अनुसार प्रीतम देव, धाम देव और अंतिम शासक ब्रह्मदेव की जानकारी मिलती है। ब्रह्मदेव को वीरमदेव के नाम से भी जाना जाता है । यह अत्यधिक अत्याचारी शासक था इसने कर में आवश्यकता से अधिक वृद्धि कर दी थी। तिलोत्तमा नाम की लड़की से जबरन शादी की । जिससे राजवंश ने अधर्म फैल गया और कत्यूरी राजवंश का अंत हो गया।
उपयुक्त कत्यूरी वंश से संबंधित अधिकांश जानकारियों का उल्लेख बागेश्वर से प्राप्त एकमात्र शिलालेख बैजनाथ में किया गया है। जिसमें कत्यूरी नरेंशों की वंशावली का उल्लेख मिलता है। इसका निर्माण भू-देव ने कराया था।
इसके अलावा कत्यूरी शासन के दौरान बनाए गए मंदिरों, पांडुकेश्वर बालेश्वर व कंडारा के ताम्रपत्र अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है । कत्यूरी राजवंश से संबंधित अभी तक 5 अभिलेख पाए गए हैं। विभिन्न इतिहासकारों ने अपने मत अलग-अलग प्रस्तुत किए हैं। जिस कारण तिथियां उलझ गई है और कोई वास्तविक प्राचीन इतिहास की पुस्तक ना होने के कारण उत्तराखंड का इतिहास जटिल दिखाई पड़ता है। लेकिन प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से उपलब्ध सभी जानकारियां 90% ठीक है । जिनका अध्ययन अजय रावत की पुस्तक व राहुल सांकृत्यायन के विवरण के आधार पर किया गया है।
कत्यूरी राजवंश के शार्ट नोट्स यहां देखें।
कत्यूरी वंश से संबंधित प्रश्न :-
(1) कत्यूरी वंश की नई राजधानी बैजनाथ किस कत्यूरी शासक के दौरान स्थापित हुई थी ?
(a) नरसिंह देव
(b) भूदेव
(c) ब्रह्मदेव
(d) इष्ट देव
(2) कत्यूरी कालीन बागेश्वर शिलालेख किस कत्यूरी राजा ने बनवाया था?
(a) त्रिभुवन राज देव
(b) भू-देव
(c) बसन्तनदेव
(d) इच्छत देव
(3) कत्यूरी राजवंश की प्रारंभिक राजधानी कहां थी ?
(a) कार्तिकेयपुर (जोशीमठ)
(b) बैजनाथ
(c) ब्रह्मपुर
(d) कल्याणपुर
(4) कत्यूरी राजवंश (कार्तिकेयपुर) के संस्थापक कौन थे?
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ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु
उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)। गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा। जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्
भूमि बंदोबस्त व्यवस्था उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है। हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्
चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है। चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक
उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2
भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे । भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष्टि
उत्तराखंड का इतिहास गोरखा शासन (भाग -1) पृष्ठभूमि मल्ल महाजनपद का इतिहास (आधुनिक नेपाल) 600 ईसा पूर्व जब 16 महाजनपदों का उदय हुआ। उन्हीं में से एक महाजनपद था - मल्ल (आधुनिक नेपाल का क्षेत्र)। प्राचीन समय में नेपाल भारत का ही हिस्सा था। मल्ल महाजनपद का उल्लेख बौद्ध ग्रंथ के " अगुंत्तर निकाय " में किया गया है। और जैन ग्रंथ के भगवती सूत्र में इसका नाम " मौलि या मालि " नाम से जनपद का उल्लेख है। मल्ल महाजनपद की प्रथम राजधानी कुशीनगर थी । कुशीनगर में गौतम बुद्ध के निर्वाण (मृत्यु) प्राप्त करने के बाद उनकी अस्थि-अवशेषों का एक भाग मल्लो को मिला था । जिसके संस्मारणार्थ उन्होंने कुशीनगर में एक स्तूप या चैत्य का निर्माण किया था। मल्ल की वित्तीय राजधानी पावा थी । पावा में ही महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था । 322 ईसा पूर्व समस्त उत्तर भारत में मौर्य साम्राज्य ने अपना शासन स्थापित कर लिया था। मल्ल महाजनपद भी मौर्यों के अधीन आ गया था। गुप्त वंश के बाद उत्तर भारत की केंद्र शक्ति कमजोर हो गई । जिसके बाद लगभग 5वीं सदीं में वैशाली से आए 'लिच्
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जवाब देंहटाएंApne mcq qustion no. Rong dale h plzz usko correct kre aur answer key b
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जवाब देंहटाएंSir Panwar vansh bhi pda digiye
जवाब देंहटाएंचंद वंश के बाद
हटाएंAwesome
जवाब देंहटाएंGood sir
जवाब देंहटाएंsir telegram name kya he
जवाब देंहटाएंदेवभूमि उत्तराखंड
हटाएंWait Isi post mai link add kar deta hu .
Tq sir
जवाब देंहटाएंसर जी ,
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी उत्तराखंड gk की pdf चाहिए जो site pai उपलब्ध है