UKSSSC MOCK TEST - 166 उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर देवभूमि उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड समूह ग परीक्षा हेतु टेस्ट सीरीज का संचालन किया जा रहा है। सभी टेस्ट पाने के लिए संपर्क करें -9568166280 Uksssc mock test -166 ( 1) निम्नलिखित में से कौन-सा वर्ण ह्रस्व स्वर नहीं है? (A) अ (B) इ (C) ऊ (D) उ (2) निम्नलिखित में से कौन-सा संयुक्त वाक्य है? (A) वह खेल रहा था क्योंकि बारिश हो रही थी। (B) वह बाजार गया और फल खरीद लाया। (C) वह इतना थका हुआ था कि तुरंत सो गया। (D) उसने कहा कि परीक्षा कठिन थी। (3) नीचे दिए गए समास और उनके प्रकार का सुमेलित करें। कॉलम A 1. गुरुकुल 2. जलपान 3. देवालय 4. यथाशक्ति कॉलम B A. तत्पुरुष B. कर्मधारय C. अव्ययीभाव D. द्वंद्व विकल्प: (A) 1-A, 2-B, 3-C, 4-D (B) 1-A, 2-C, 3-D, 4-B (C) 1-A, 2-B, 3-D, 4-C (D) 1-A, 2-B, 3-A, 4-C (4) वाक्य "राम ने सीता को फूल दिया।" में 'सीता को' किस कारक का उदाहरण है? (a) करण (b) अपादान (c) संप्रदान (d) अधिकरण (05) निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए है? ...
अमोघभूति कुणिद वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। कुणिद वंश उत्तराखंड में लगभग तीसरी- चौथी शताब्दी की पहली राजनीतिक शक्ति थी । जबकि कत्यूर राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला पहला ऐतिहासिक शक्तिशाली राजवंश था। इसे कार्तिकेयपुर वंश के नाम से भी जाना जाता है। 'कत्यूरी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एटकिंसन ने किया था। कत्यूरी राजवंश के संस्थापक बसंत देव थे । जिन्हें बासुदेव के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी। पांडुकेश्वर ताम्रलेख में पाए गए कत्यूरी राजा ललितशूर के अनुसार कत्यूरी शासकों की प्राचीनतम राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी । बाद में नरसिंह देव ने जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर ) में राजधानी स्थानांतरित कर दी। जहां से कत्यूरी राजवंश को विशिष्ट पहचान मिली ।
कत्यूरी राजवंश का उदय
कुणिंदों के पतन के पश्चात देवभूमि उत्तराखंड की भूमि पर कुछ नए राजवंशों का उदय हुआ। जैसे गोविषाण, कालसी लाखामंडल आदि जबकि कुछ स्थानों पर कुणिंद भी शासन करते रहे। कुणिंदो के बाद शक, कुषाण और यौधेय वंश के शासकों ने कुछ क्षेत्रों पर शासन व्यवस्था स्थापित की। यौधैय कुणिंदों के समकालीन थे। इन्होंने कुणिंदो के दमन में योगदान दिया और जौनसार बावर (देहरादून) के क्षेत्र में कर्तृपुर राज्य की स्थापना की। कर्तृपुर राज्य के अंतर्गत उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और रूहेलखंड का उत्तरी भाग शामिल था। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में गुप्त साम्राज्य की उत्तरी सीमा पर स्थित कर्तृपुर राज्य का उल्लेख है। यह गुप्त शासकों के अधीन थे। पांचवी सदी में कर्तृपुर राज्य पर नागों ने अधिकार कर लिया। छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में कन्नौज के मौखरि वंश ने कर्तृपुर राज्य के पर अधिकार कर लिया। मौखरी वंश के अंतिम राजा गृहवर्मा की हत्या हो जाने के बाद कन्नौज पर हर्षवर्धन ने अधिकार कर लिया। हर्षवर्धन ने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान एक पर्वतीय राजकुमारी से विवाह किया था। बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में हर्षवर्धन के शासनकाल में उत्तराखंड के आए लोगों का वर्णन मिलता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात राज्य में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई संसार में एक नए राजवंश कार्तिकेयपुर राजवंश (कत्यूरी राजवंश) का उदय हुआ । जिसका प्रथम राजा वसंतनदेव था। कार्तिकेयपुर राजवंश अयोध्या केेेे मूल निवासी थे।
कहा जाता है बसंत देव कन्नौज के राजा यशोवर्मन के सामंत थे। यशोवर्मन मौखरी वंश से थे। लेकिन इसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं मिलता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात यशोवर्मन कन्नौज पर शासन करते हैं । यशोवर्मन के द्वारा उत्तराखंड के समस्त क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के बाद बसंतदेव को सामंत बना दिया। लेकिन यशोवर्मन कश्मीर के शासक ललिता द्वितीय मुक्त पीठ हार जाता है । इसी का फायदा उठाकर बसंतदेव एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर देता है। जिससे कत्यूरी राजवंश का उदय हुआ। कत्यूरी राजवंश की तीन शाखाओं ने 300 वर्षों तक शासन किया। बाद में राज्य का विस्तार होने पर राजधानी कार्तिकेयपुर से अल्मोड़ा स्थित कत्यूर घाटी के बैजनाथ नामक स्थान पर स्थापित की गई। इस राजवंश का इतिहास इसके बागेश्वर, कंडारा, पांडुकेश्वर एवं बैजनाथ आदि स्थलोंं से कुटिला लिपि में प्राप्त ताम्रलेखों व शिलालेख के आधार पर लिखा गया है।
बसन्तनदेव वंश
बसन्तनदेव को कत्यूरी राजवंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है । बागेश्वर के शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार जोशीमठ का नरसिंह मंदिर बसंतदेव के द्वारा बनवाया गया है। इनकी पत्नी का नाम राजनारायणी देवी था। बसंत देव ने परमभट्ठारक, परमब्राह्माण तथा महाराजधिराज की उपाधि धारण की थी। बागेश्वर में एक देव मंदिर के लिए स्र्वेणश्वर नामक गांव दान में दे दिया था । इसके अलावा इस वंश से पुत्र संबंधी कोई जानकारी नहीं मिलती है। यदि बसंतदेव का कोई पुत्र होगा भी तो कमजोर रहा होगा। जिससे खर्परदेव ने हटा दिया होगा। और खर्परदेव ने अपने वंश की स्थापना की ।
1- खर्परदेव वंश
खर्परदेव वंश का सबसे पहला शासक खर्परदेव था । यह यशोवर्मन के समकालीन था। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक त्रिभुवन राजदेव था। इसने व्याघ्रेश्वर मंदिर के लिए भूमि दान में दी और किरात पुत्र को हराकर उससे संधि की। भूदेव के अभिलेख के अनुसार त्रिभुवन देव के पिता कल्याण राज थे। और माता का नाम लद्वा देवी था।
नालंदा अभिलेख के अनुसार राजा त्रिभुवन के समय बंगाल के पाल वंश के शासक धर्मपाल ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था और यह माना जाता है कि त्रिभुवन देव की हार हो गई । उसके बाद निबंर वंश की स्थापना हुई।
विशेष तथ्य :- बागेश्वर लेख में बसंतदेव के बाद कत्यूरी राजाओं के नाम का उल्लेख स्पष्ट रूप से नहीं मिलता है। कश्मीरी इतिहासकार कल्हण की राजतरंगिणी पुस्तक में कश्मीरी राजा ललितादित्य मुक्तापीठ द्वारा गढ़वाल क्षेत्र पर जीतने का उल्लेख किया गया । इतिहासकारों के अनुसार उस समय कार्तिकेयपुर में खर्परदेव का शासन था।
2- निम्बर वंश
निम्बर वंश की स्थापना पहले शासक निम्बरदेव ने की । निम्बरदेव शैव मत के अनुयायी थे ? निम्बरदेव ने जागेश्वर के मंदिर समूह व विमानों (मंदिर की चोटी) का निर्माण करवाया था। उनकी पत्नी का नाम नाथू देवी था। निम्बरदेव के पुत्र इष्टगणदेव ने संपूर्ण उत्तराखंड को एकीकरण करने का प्रयास किया। इष्टगणदेव की पत्नी का नाम धरा देवी था। इस शासक ने जागेश्वर (अल्मोड़ा) में सबसे अधिक मंदिर बनवाए नटराज मंदिर , दुर्गा मंदिर,लकुलिश मंदिर और महेश मंदिनी मंदिर आदि।
इष्टगणदेव का पुत्र ललितसूर कत्यूरी राजवंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं शौर्यवान शासक था। ललितसूर ने दो शादियां की । समादेवी और लया देवी दो पत्नियां थी। पांडुकेश्वर ताम्रपत्रलेख में इसे "गरुण भद्र" की उपाधि दी गई व विष्णु का अवतार (बराहअवतार) कहा गया है। ललितसूर का पुत्र भूदेव था। भू-देव ने बैजनाथ मंदिर का निर्माण करवाया और इसी ने कत्यूर वंश के प्रारंभिक सभी शासकों का उल्लेख किया। भूदेव दान के लिए प्रसिद्ध था। भूदेव बौद्ध धर्म का विरोध करता था इसके शासनकाल में सनातन संस्कृति का सर्वाधिक विस्तार हुआ। भूदेव के शासनकाल में शंकराचार्य जी ने जोशीमठ की स्थापना की थी। 820 ईसवी में केदारनाथ में शंकराचार्य जी ने शरीर का त्याग किया।
3- सलोणादित्य वंश
निम्बर वंश के बाद सलोणादित्य वंश की स्थापना हुई। इस वंश के संस्थापक इनके पुत्र इछतदेव थे । अपने पिता के नाम पर नया वंश चलाया । इनकी मां सिंध बलि देवी थी। पांडुकेश्वर के ताम्रपत्र में यह साफ-साफ लिखा है। सलोणादित्य वंश के संस्थापक इछतदेव थे । इनका पुत्र देशक देव जो एक ब्राह्मणों और अनाथो का दान करने वाला शासक था। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक सुभिक्षराज देव था। उसने अपनी राजधानी कार्तिकेयपुर (जोशीमठ) से सुभिक्षपुर स्थानांतरित की । और इसके बाद इसी के पुत्र नरसिंह देव ने पुनः राजधानी स्थानांतरित करके बैजनाथ (बागेश्वर) की सुरम्य घाटी में स्थापित की। कत्यूरी घाटी में अशंतिदेव द्वारा असंतिदेव वंश की नींव रखी गई।
कत्यूरी राजवंश का अंतिम शासक : ब्रह्मदेव
कत्यूरी राजवंश के मुख्य शासकों के अलावा जन स्तुतियों के अनुसार प्रीतम देव, धाम देव और अंतिम शासक ब्रह्मदेव की जानकारी मिलती है। ब्रह्मदेव को वीरमदेव के नाम से भी जाना जाता है । यह अत्यधिक अत्याचारी शासक था इसने कर में आवश्यकता से अधिक वृद्धि कर दी थी। तिलोत्तमा नाम की लड़की से जबरन शादी की । जिससे राजवंश ने अधर्म फैल गया और कत्यूरी राजवंश का अंत हो गया।
उपयुक्त कत्यूरी वंश से संबंधित अधिकांश जानकारियों का उल्लेख बागेश्वर से प्राप्त एकमात्र शिलालेख बैजनाथ में किया गया है। जिसमें कत्यूरी नरेंशों की वंशावली का उल्लेख मिलता है। इसका निर्माण भू-देव ने कराया था।
इसके अलावा कत्यूरी शासन के दौरान बनाए गए मंदिरों, पांडुकेश्वर बालेश्वर व कंडारा के ताम्रपत्र अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है । कत्यूरी राजवंश से संबंधित अभी तक 5 अभिलेख पाए गए हैं। विभिन्न इतिहासकारों ने अपने मत अलग-अलग प्रस्तुत किए हैं। जिस कारण तिथियां उलझ गई है और कोई वास्तविक प्राचीन इतिहास की पुस्तक ना होने के कारण उत्तराखंड का इतिहास जटिल दिखाई पड़ता है। लेकिन प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से उपलब्ध सभी जानकारियां 90% ठीक है । जिनका अध्ययन अजय रावत की पुस्तक व राहुल सांकृत्यायन के विवरण के आधार पर किया गया है।
कत्यूरी राजवंश के शार्ट नोट्स यहां देखें।
कत्यूरी वंश से संबंधित प्रश्न :-
(1) कत्यूरी वंश की नई राजधानी बैजनाथ किस कत्यूरी शासक के दौरान स्थापित हुई थी ?
(a) नरसिंह देव
(b) भूदेव
(c) ब्रह्मदेव
(d) इष्ट देव
(2) कत्यूरी कालीन बागेश्वर शिलालेख किस कत्यूरी राजा ने बनवाया था?
(a) त्रिभुवन राज देव
(b) भू-देव
(c) बसन्तनदेव
(d) इच्छत देव
(3) कत्यूरी राजवंश की प्रारंभिक राजधानी कहां थी ?
(a) कार्तिकेयपुर (जोशीमठ)
(b) बैजनाथ
(c) ब्रह्मपुर
(d) कल्याणपुर
(4) कत्यूरी राजवंश (कार्तिकेयपुर) के संस्थापक कौन थे?
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जवाब देंहटाएंApne mcq qustion no. Rong dale h plzz usko correct kre aur answer key b
हटाएंThanks for information ..and sorry for this mistake
हटाएंThanks
जवाब देंहटाएंSir Panwar vansh bhi pda digiye
जवाब देंहटाएंचंद वंश के बाद
हटाएंAwesome
जवाब देंहटाएंGood sir
जवाब देंहटाएंsir telegram name kya he
जवाब देंहटाएंदेवभूमि उत्तराखंड
हटाएंWait Isi post mai link add kar deta hu .
Tq sir
जवाब देंहटाएंसर जी ,
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी उत्तराखंड gk की pdf चाहिए जो site pai उपलब्ध है