सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Uttarakhand Current Affairs 2025

उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2025 नवंबर 2025 से अप्रैल 2025 तक जैसा कि आप सभी जानते हैं देवभूमि उत्तराखंड प्रत्येक मा उत्तराखंड के विशेष करंट अफेयर्स उपलब्ध कराता है। किंतु पिछले 6 माह में व्यक्तिगत कारणों के कारण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा। अतः उत्तराखंड की सभी आगामी परीक्षाओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि नवंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक के सभी करेंट अफेयर्स चार भागों में विभाजित करके अप्रैल के अन्त तक उपलब्ध कराए जाएंगे। जिसमें उत्तराखंड बजट 2025-26 और भारत का बजट 2025-26 शामिल होगा। अतः सभी करेंट अफेयर्स प्राप्त करने के लिए टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। 956816280 पर संपर्क करें। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स (भाग - 01) (1) 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कहां किया गया ? (a) उत्तर प्रदेश  (b) हरियाणा (c) झारखंड  (d) उत्तराखंड व्याख्या :- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी 2025 को राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम रायपुर देहरादून, उत्तराखंड में 38वें ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन किया। उत्तराखंड पहली बार ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की और य...

हैलिट बैटन के काल को कुमाऊं का स्वर्ण युग क्यों कहते हैं?

 स्वर्ण काल : हैलिट बैटन

        उत्तराखंड का इतिहास

हेलिट बैटन के ब्रिटिश काल को कुमाऊ का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? हेनरी रैमजे के काल को क्यों नहीं ?

उत्तराखंड का इतिहास विवादों से घिरा हुआ है। ना तो किसी किसी राजवंश के वास्तविक संस्थापक का पता है और ना ही स्थापना वर्ष का। जिसके मन में जो आया इतिहासकारों ने वैसा अपने अनुसार लिख दिया। ऐसा ही प्रश्न छुपा है उत्तराखंड के इतिहास में  ब्रिटिश काल में कुमाऊं का स्वर्ण युग किसके शासनकाल को कहा गया है? कुछ किताबों में हैलिट बैटन के शासनकाल को ब्रिटिश काल का स्वर्ण युग कहा है। जबकि कुछ किताबों में हेनरी रैमजे को कहा गया है। आइए विस्तार पूर्वक जानते हैं पूर्ण सत्य क्या है ?
             सबसे पहले हमें यह जानना होगा किसी भी राजा के शासन काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? इसका उत्तर है- जब किसी भी राजा की शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता है तो उस राजा की प्रशासन व्यवस्था को देखा जाता है क्योंकि एक अच्छे प्रशासक के गुण होते हैं कि वह अपनी प्रजा का ध्यान रखें, उसकी प्रजा का कोई भी व्यक्ति भूखा ना सोएं,  किसी के साथ शोषण ना हो , सभी को एक समान निष्पक्ष न्याय मिल सके, पर्याप्त मात्रा में रोजगार उपलब्ध हो और अच्छी स्वास्थ सुविधओं के साथ शिक्षा पर भी ध्यान दिया जाए। यदि इस प्रकार कोई शासक शासन करता है तो उसके काल को स्वर्ण युग कहा जाता है।

स्वर्ण युग की उत्पत्ति

भारत में सदियों से अनेक राजवंशों का शासन रहा है। अधिकांश शासकों की इच्छा रही है कि वह अपने साम्राज्य का अधिक से अधिक विस्तार करें। ऐसे ही भारत में अनेक राजवंश आए और चले गए । भारत का पहला सर्वाधिक शक्तिशाली राजवंश मौर्य को कहा गया है। मौर्य के पतन के पश्चात चौथी शताब्दी में गुप्त वंश की स्थापना हुई । जिसका सर्वाधिक शक्तिशाली शासक समुद्रगुप्त था। समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में सीमा का सर्वाधिक विस्तार किया। समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय अत्यधिक बुद्धिमान और न्याय प्रिय शासक था। चंद्रगुप्त द्वितीय का दायित्व था कि पिता के द्वारा विजित क्षेत्रों पर एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करें। उसने प्रजा के सुख दुख की पूर्ण जानकारी रखने के लिए गुप्तचर विभाग की स्थापना की व समय समय पर स्वयं वेश बदलकर जनता की स्थिति जानने के लिए भ्रमण करता था। दरबार में सलाह के लिए विद्वानों की सभा बनाई। सभा का मुख्य कार्य प्रजा के प्रत्येक नागरिक को एक समान न्याय दिलाना था। कृषि व्यवस्था चरमोत्कर्ष पर थी। कहा जाता है कि गुप्त काल के समय किसी के भी घर में ताले नहीं लगाए जाते थे । पूरी जनता राजा का आदर करती थी और अपने राजा से बेहद खुश थी। इसलिए इतिहासकारों ने चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल को स्वर्ण युग कहा है। और गुप्त काल से स्वर्ण युग की उत्पत्ति हुई। इसके बाद जब जब किसी भी राजवंश ने अपनी प्रजा को सुखी जीवन प्रदान किया है तब तब उसके शासनकाल को स्वर्ण युग कहा गया है।

मुगल काल का स्वर्ण युग : शाहजहां

मध्यकालीन युग में मुगल काल के संस्थापक बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव डाली। और तेजी से साम्राज्य विस्तार किया। लेकिन 15 वर्ष हिमायूं के गद्दीहीन  रहने से मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया । 1556 में पानीपत के द्वितीय युद्ध के बाद अकबर ने एक बार फिर शक्तिशाली सत्ता स्थापित की और साम्राज्य का विस्तार किया । अकबर और जहांगीर ने मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया और पूरा जीवन साम्राज्य विस्तार में गुजार दिया। शाहजहां के शासनकाल में मुगल वंश का  सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद शाहजहां ने प्रजा की ओर ध्यान दिया। शाहजहां ने कई स्मारकों का निर्माण कराया। स्मारकों के निर्माण से भारी मात्रा में रोजगार उत्पन्न हुआ । कठोर न्याय व्यवस्था लागू की। इतिहासकारों ने शाहजहां के काल को मुगल काल का स्वर्ण युग कहा।

उत्तराखंड का स्वर्ण युग - कत्यूरी राजवंश

वहीं दूसरी तरफ भारत के उत्तर में स्थित देवभूमि उत्तराखंड के क्षेत्रों में कुमाऊं और गढ़वाल दो छोटे राज्य शासन कर रहे थे। गढ़वाल में परमार वंश का शासन था, जिसकी स्थापना कनपाल ने की थी। और कुमाऊं में चंद राजवंश का शासन था जिसकी स्थापना सोमचंद ने की थी । चंद्रगुप्त और शाहजहां के भांति कुमाऊं मंडल के शासक जगत चंद ने भी कुशल और प्रभावी प्रशासन की स्थापना की। और जगत चंद के कार्यकाल को चंद वंश का स्वर्ण काल कहा गया । गढ़वाल में मतिराम ने फतेह शाह के शासनकाल को गढ़वाल का स्वर्ण काल कहा गया। जबकि उत्तराखंड में कत्यूरी राजवंश को "उत्तराखंड का स्वर्ण युग" कहा जाता है।

ब्रिटिश काल का स्वर्ण युग : हैलिट बैटन (1848-1856)

आपने उपयुक्त विवरणों को देखा और पाया कि ऐसा कोई शासक नहीं हुआ। जिसने राजवंश की स्थापना भी की हो और उसी के शासन काल को स्वर्ण युग कहा गया है। दरअसल सबसे पहले संस्थापक शासक या पहला शासक पहले थोड़ा सा क्षेत्र विजित करता था और उसका पुत्र तेजी से साम्राज्य का विस्तार करता था। और उसके बाद ही किसी शासन की बागडोर मजबूत शासक के हाथों में आती थी। 1815 में गोरखा सैनिकों के बाद अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआ। क्योंकि उत्तराखंड गैर विनियमित क्षेत्र था अर्थात उसकी संरचना व स्वरूप अन्य क्षेत्रों से अलग थी इसीलिए इसके शासन के लिए अलग से शासन व्यवस्था स्थापित हुई है। 3 मई 1815  में एडवर्ड गार्डनर को प्रथम कमिश्नर बनाकर भेजा गया। उत्तराखंड में ब्रिटिश सत्ता का संस्थापक एडवर्ड गार्डनर को कहा जाता है इसके बाद 1816 में ट्रेल कमिश्नर के पद पर नियुक्त हुआ और उत्तराखंड की प्रशासन व्यवस्था के लिए बहुत सारे कदम उठाए और कुशल व प्रभावी शासन व्यवस्था स्थापित की। लुशिंगटन के बाद सन् 1848 में जॉन हेलिट बैटन को कुमाऊ का कमिश्नर बनाया गया। जॉन हेलिट बैटन उत्तराखंड के विकास के लिए कुशल एवं प्रभावी शासन व्यवस्था स्थापित की। 

जॉन हैलिट बैटन के प्रमुख कार्य

  • ब्रिटेन ने शासन के प्रारंभ में ही दास प्रथा का अंत कर दिया साथ ही नए कानून और नई सहिताएं बनाई।
  • बेटन के द्वारा सन 1840 ईस्वी में बीस साला बंदोबस्त लागू किया गया। जिसकी मुख्य विशेषता खसरा सर्वेक्षण था। अर्थात भूमि मापन का कार्य नए सिरे से प्रारंभ हुआ।
  • जॉन हैलिट बैटन ने अशिक्षित पटवारियों को हटाकर प्रशिक्षित पटवारियों की नियुक्ति की।
  • बैटन के शासनकाल में चाय की खेती की शुरुआत के साथ तेजी से सर्वाधिक विस्तार हुआ। 1852-53 के लगभग कौसानी, बेनीनाग मेगड़ी, डुंगलोट आदि स्थानों में चाय के बगीचे स्थापित किए गए। सन् 1852-53 में चाय बागान के लिए बंजर भूमि के आवंटन के लिए पहली बार कानून बनाया गया और चाय उद्योग उभरा। 
  • सन् 1854 में डॉक्टर पियरन के द्वारा नए किस्म के टीका लगाने वाले वैक्सीनेटर से टीकाकरण का काम शुरू करवाया और अस्पतालों की स्थापना का सूत्रपात किया।
  • कमिश्नर स्ट्रैची व स्थायी निवासियों के सहयोग से  गढ़वाल में लोहे के प्रथम संस्पेंशन पुल का निर्माण श्रीनगर में कराया जो 1853 में बनकर पूर्ण हुआ। पुल की कुल लागत 17078 रू थी। 
इस प्रकार बैटन ने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक सुधार किए। आधुनिक इतिहासकर प्रोफ़ेसर अजय रावत ने हैलिट बैटन के कार्यकाल को ही स्वर्ण युग कहा है। हालांकि उत्तराखंड के उत्थान का मुख्य श्रेय सन हेनरी रैमजे को जाता है और रैमजे को कुमाऊ का बेताज बादशाह भी कहा जाता है। क्योंकि रैमजे ने कुमाऊं में 44 वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहते हुए कार्य‌ किया और कमिश्नर के रूप में 28 वर्षों तक कार्य किया। रैमजे ने उत्तराखंड में ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया। अधिसूचित जिला अधिनियम 1874 को पारित को लागू किया और पहली बार वैज्ञानिक तरीके से उत्तराखंड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण 9वां  विकेटी बंदोबस्त 1863-73 को लागू किया। लेकिन जॉन हेलिट बैटन ने 8 वर्षों के छोटे से शासनकाल में नयी एवं सुव्यवस्थित व्यवस्था को जन्म दिया और अनेकों महत्वपूर्ण कार्य करवाएं। इस कारण इतिहासकारों ने सर हेनरी रैमजे के स्थान पर जॉन हेलिट बेटन के शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी। 



Source : उत्तराखंड का राजनीतिक इतिहास (डॉ अजय रावत)

यदि आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आती है अधिक से अधिक शेयर करें और उत्तराखंड के सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की मॉक टेस्ट सीरीज प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम चैनल को फॉलो करें।

Related posts :






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...