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स्वर्ण काल : हैलिट बैटन
उत्तराखंड का इतिहास
हेलिट बैटन के ब्रिटिश काल को कुमाऊ का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? हेनरी रैमजे के काल को क्यों नहीं ?
उत्तराखंड का इतिहास विवादों से घिरा हुआ है। ना तो किसी किसी राजवंश के वास्तविक संस्थापक का पता है और ना ही स्थापना वर्ष का। जिसके मन में जो आया इतिहासकारों ने वैसा अपने अनुसार लिख दिया। ऐसा ही प्रश्न छुपा है उत्तराखंड के इतिहास में ब्रिटिश काल में कुमाऊं का स्वर्ण युग किसके शासनकाल को कहा गया है? कुछ किताबों में हैलिट बैटन के शासनकाल को ब्रिटिश काल का स्वर्ण युग कहा है। जबकि कुछ किताबों में हेनरी रैमजे को कहा गया है। आइए विस्तार पूर्वक जानते हैं पूर्ण सत्य क्या है ?
सबसे पहले हमें यह जानना होगा किसी भी राजा के शासन काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? इसका उत्तर है- जब किसी भी राजा की शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता है तो उस राजा की प्रशासन व्यवस्था को देखा जाता है क्योंकि एक अच्छे प्रशासक के गुण होते हैं कि वह अपनी प्रजा का ध्यान रखें, उसकी प्रजा का कोई भी व्यक्ति भूखा ना सोएं, किसी के साथ शोषण ना हो , सभी को एक समान निष्पक्ष न्याय मिल सके, पर्याप्त मात्रा में रोजगार उपलब्ध हो और अच्छी स्वास्थ सुविधओं के साथ शिक्षा पर भी ध्यान दिया जाए। यदि इस प्रकार कोई शासक शासन करता है तो उसके काल को स्वर्ण युग कहा जाता है।
स्वर्ण युग की उत्पत्ति
भारत में सदियों से अनेक राजवंशों का शासन रहा है। अधिकांश शासकों की इच्छा रही है कि वह अपने साम्राज्य का अधिक से अधिक विस्तार करें। ऐसे ही भारत में अनेक राजवंश आए और चले गए । भारत का पहला सर्वाधिक शक्तिशाली राजवंश मौर्य को कहा गया है। मौर्य के पतन के पश्चात चौथी शताब्दी में गुप्त वंश की स्थापना हुई । जिसका सर्वाधिक शक्तिशाली शासक समुद्रगुप्त था। समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में सीमा का सर्वाधिक विस्तार किया। समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय अत्यधिक बुद्धिमान और न्याय प्रिय शासक था। चंद्रगुप्त द्वितीय का दायित्व था कि पिता के द्वारा विजित क्षेत्रों पर एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करें। उसने प्रजा के सुख दुख की पूर्ण जानकारी रखने के लिए गुप्तचर विभाग की स्थापना की व समय समय पर स्वयं वेश बदलकर जनता की स्थिति जानने के लिए भ्रमण करता था। दरबार में सलाह के लिए विद्वानों की सभा बनाई। सभा का मुख्य कार्य प्रजा के प्रत्येक नागरिक को एक समान न्याय दिलाना था। कृषि व्यवस्था चरमोत्कर्ष पर थी। कहा जाता है कि गुप्त काल के समय किसी के भी घर में ताले नहीं लगाए जाते थे । पूरी जनता राजा का आदर करती थी और अपने राजा से बेहद खुश थी। इसलिए इतिहासकारों ने चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल को स्वर्ण युग कहा है। और गुप्त काल से स्वर्ण युग की उत्पत्ति हुई। इसके बाद जब जब किसी भी राजवंश ने अपनी प्रजा को सुखी जीवन प्रदान किया है तब तब उसके शासनकाल को स्वर्ण युग कहा गया है।
मुगल काल का स्वर्ण युग : शाहजहां
मध्यकालीन युग में मुगल काल के संस्थापक बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव डाली। और तेजी से साम्राज्य विस्तार किया। लेकिन 15 वर्ष हिमायूं के गद्दीहीन रहने से मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया । 1556 में पानीपत के द्वितीय युद्ध के बाद अकबर ने एक बार फिर शक्तिशाली सत्ता स्थापित की और साम्राज्य का विस्तार किया । अकबर और जहांगीर ने मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया और पूरा जीवन साम्राज्य विस्तार में गुजार दिया। शाहजहां के शासनकाल में मुगल वंश का सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद शाहजहां ने प्रजा की ओर ध्यान दिया। शाहजहां ने कई स्मारकों का निर्माण कराया। स्मारकों के निर्माण से भारी मात्रा में रोजगार उत्पन्न हुआ । कठोर न्याय व्यवस्था लागू की। इतिहासकारों ने शाहजहां के काल को मुगल काल का स्वर्ण युग कहा।
उत्तराखंड का स्वर्ण युग - कत्यूरी राजवंश
वहीं दूसरी तरफ भारत के उत्तर में स्थित देवभूमि उत्तराखंड के क्षेत्रों में कुमाऊं और गढ़वाल दो छोटे राज्य शासन कर रहे थे। गढ़वाल में परमार वंश का शासन था, जिसकी स्थापना कनपाल ने की थी। और कुमाऊं में चंद राजवंश का शासन था जिसकी स्थापना सोमचंद ने की थी । चंद्रगुप्त और शाहजहां के भांति कुमाऊं मंडल के शासक जगत चंद ने भी कुशल और प्रभावी प्रशासन की स्थापना की। और जगत चंद के कार्यकाल को चंद वंश का स्वर्ण काल कहा गया । गढ़वाल में मतिराम ने फतेह शाह के शासनकाल को गढ़वाल का स्वर्ण काल कहा गया। जबकि उत्तराखंड में कत्यूरी राजवंश को "उत्तराखंड का स्वर्ण युग" कहा जाता है।
ब्रिटिश काल का स्वर्ण युग : हैलिट बैटन (1848-1856)
आपने उपयुक्त विवरणों को देखा और पाया कि ऐसा कोई शासक नहीं हुआ। जिसने राजवंश की स्थापना भी की हो और उसी के शासन काल को स्वर्ण युग कहा गया है। दरअसल सबसे पहले संस्थापक शासक या पहला शासक पहले थोड़ा सा क्षेत्र विजित करता था और उसका पुत्र तेजी से साम्राज्य का विस्तार करता था। और उसके बाद ही किसी शासन की बागडोर मजबूत शासक के हाथों में आती थी। 1815 में गोरखा सैनिकों के बाद अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआ। क्योंकि उत्तराखंड गैर विनियमित क्षेत्र था अर्थात उसकी संरचना व स्वरूप अन्य क्षेत्रों से अलग थी इसीलिए इसके शासन के लिए अलग से शासन व्यवस्था स्थापित हुई है। 3 मई 1815 में एडवर्ड गार्डनर को प्रथम कमिश्नर बनाकर भेजा गया। उत्तराखंड में ब्रिटिश सत्ता का संस्थापक एडवर्ड गार्डनर को कहा जाता है इसके बाद 1816 में ट्रेल कमिश्नर के पद पर नियुक्त हुआ और उत्तराखंड की प्रशासन व्यवस्था के लिए बहुत सारे कदम उठाए और कुशल व प्रभावी शासन व्यवस्था स्थापित की। लुशिंगटन के बाद सन् 1848 में जॉन हेलिट बैटन को कुमाऊ का कमिश्नर बनाया गया। जॉन हेलिट बैटन उत्तराखंड के विकास के लिए कुशल एवं प्रभावी शासन व्यवस्था स्थापित की।
जॉन हैलिट बैटन के प्रमुख कार्य
- ब्रिटेन ने शासन के प्रारंभ में ही दास प्रथा का अंत कर दिया साथ ही नए कानून और नई सहिताएं बनाई।
- बेटन के द्वारा सन 1840 ईस्वी में बीस साला बंदोबस्त लागू किया गया। जिसकी मुख्य विशेषता खसरा सर्वेक्षण था। अर्थात भूमि मापन का कार्य नए सिरे से प्रारंभ हुआ।
- जॉन हैलिट बैटन ने अशिक्षित पटवारियों को हटाकर प्रशिक्षित पटवारियों की नियुक्ति की।
- बैटन के शासनकाल में चाय की खेती की शुरुआत के साथ तेजी से सर्वाधिक विस्तार हुआ। 1852-53 के लगभग कौसानी, बेनीनाग मेगड़ी, डुंगलोट आदि स्थानों में चाय के बगीचे स्थापित किए गए। सन् 1852-53 में चाय बागान के लिए बंजर भूमि के आवंटन के लिए पहली बार कानून बनाया गया और चाय उद्योग उभरा।
- सन् 1854 में डॉक्टर पियरन के द्वारा नए किस्म के टीका लगाने वाले वैक्सीनेटर से टीकाकरण का काम शुरू करवाया और अस्पतालों की स्थापना का सूत्रपात किया।
- कमिश्नर स्ट्रैची व स्थायी निवासियों के सहयोग से गढ़वाल में लोहे के प्रथम संस्पेंशन पुल का निर्माण श्रीनगर में कराया जो 1853 में बनकर पूर्ण हुआ। पुल की कुल लागत 17078 रू थी।
इस प्रकार बैटन ने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक सुधार किए। आधुनिक इतिहासकर प्रोफ़ेसर अजय रावत ने हैलिट बैटन के कार्यकाल को ही स्वर्ण युग कहा है। हालांकि उत्तराखंड के उत्थान का मुख्य श्रेय सन हेनरी रैमजे को जाता है और रैमजे को कुमाऊ का बेताज बादशाह भी कहा जाता है। क्योंकि रैमजे ने कुमाऊं में 44 वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहते हुए कार्य किया और कमिश्नर के रूप में 28 वर्षों तक कार्य किया। रैमजे ने उत्तराखंड में ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया। अधिसूचित जिला अधिनियम 1874 को पारित को लागू किया और पहली बार वैज्ञानिक तरीके से उत्तराखंड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण 9वां विकेटी बंदोबस्त 1863-73 को लागू किया। लेकिन जॉन हेलिट बैटन ने 8 वर्षों के छोटे से शासनकाल में नयी एवं सुव्यवस्थित व्यवस्था को जन्म दिया और अनेकों महत्वपूर्ण कार्य करवाएं। इस कारण इतिहासकारों ने सर हेनरी रैमजे के स्थान पर जॉन हेलिट बेटन के शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी।
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