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उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी 2021
उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी (भाग - 3 )
(1) नीचे दिए गए विकल्पों में से, श्री बद्रीनाथ धाम का प्रमुख मंदिर है -
(a) योग बद्री
(b) वृद्ध बद्री
(c) राज बद्री
(d) कपाल बद्री
व्याख्या :- श्री बद्रीनाथ धाम का प्रमुख मंदिर 'वृद्ध बद्री' हैं। भगवान विष्णु को "वृद्ध बद्री" भी कहा जाता है। श्री बदरीनाथ धाम मंदिर का उल्लेख विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कंंदं पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। श्री बदरीनाथ धाम में बद्री विशाल के अतिरिक्त 4 वृहद मंदिर हैं, जिन्हें योग ध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री तथा आदि बद्री कहा जाता है। इन सब मंदिरों को मिलाकर पंच बद्री के नाम से जाना जाता है। इस धाम की स्थापना शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में की थी।
Answer - (b)
(2) हर्षिल क्षेत्र में सेब की 'विल्सन' प्रजाति विकसित की गई।
(a) एडमिन विल्सन द्वारा
(b) फ्रेडरिक विल्सन द्वारा
(c) जॉन विल्सन द्वारा
(d) उपरोक्त में से कोई नही
व्याख्या :- 19वीं शताब्दी में भागीरथी घाटी में बसने वाले प्रथम अंग्रेज व्यक्ति फ्रेडरिक विल्सन के नाम पर हर्षिल क्षेत्र में उपजायी जाने वाली एक से प्रजाति को 'विल्सन' का नाम दिया गया है। वर्ष 1915 में से प्रजाति का पेटेंट प्राप्त किया गया। फ्रेडरिक विल्सन ने हर्षिल में सेब के बागान की स्थापना की। रॉबर्ट हचिंसन ने अपनी पुस्तक "द राजा ऑफ हर्षिल" में विल्सन का विस्तृत विवरण दिया है।
Answer - (b)
(3) अमोघभूति शासक था -
(a) कुणिन्द वंश
(b) पालवंश का
(c) कुषाण वंश
(d) यौधेय वंश
व्याख्या :- अमोघभूति कुणिन्द वंश का प्रसिद्ध शासक था। कुणिन्द राजवंश का शासन कुमाऊं तथा गढ़वाल क्षेत्र में विस्तृत था। चौथी शताब्दी में यह एक महत्वपूर्ण गणराज्य था। कुणिन्दों का उल्लेख रामायण तथा पुराणों में भी मिलता है। ऐतिहासिक ग्रंथों में कुणिन्दों का निवास स्थान गंगा के उद्भव स्थल पर बताया गया है। कुमाऊं में चित्रशिला स्थान से प्राप्त सिक्कों से अमोघभूति नामक शासक की चर्चा मिलती है।
Answer - (a)
(4) प्रदीप शाह के शासनकाल में गढ़वाल ने काफी समृद्धि प्राप्त की , वह सिंहासन पर बैठे -
(a) 1708 ईस्वी में
(b) 1712 ईस्वी में
(c) 1717 ईस्वी में
(d) 1712 ईसवी में
व्याख्या :- प्रदीप शाह 1717 से 1777 ईसवी तक गढ़वाल क्षेत्र पर शासन किया। प्रदीप शाह के शासनकाल में गढ़वाल ने अत्यधिक समृद्धि प्राप्त की। प्रदीप शाह के शासनकाल में मराठा तथा मुगलों की शक्ति बड़ी थी। पानीपत के तीसरे युद्ध (1761 ईसवी) के दौरान वह इस क्षेत्र का शासक था जिसने गढ़वाल को इन शक्तियों के प्रभाव से पृथक रखा।
Answer - (c)
(5) जौनसार क्षेत्र में कितने 'सयाणा' क्षेत्रों का एक 'सदर सयाणा' होता हैं?
(a) 4
(b) 6
(c) 8
(d) इसमें से कोई नहीं
व्याख्या :- जौनसार क्षेत्र में 'सयाणा' तथा 'सदर सयाणा' परंपरागत प्रशासनिक ढांचा है। चार सयाणा क्षेत्रों में एक सदर सयाणा होता है। चार सदर सयाणा से 'चौंतरा' का गठन होता है। जो जौनसार क्षेत्र की परिषद होती है। चौंतरा की न्यायिक शक्तियां सीमित होती हैं। ब्रिटिश सरकार ने 1849 ईस्वी में चौंतरा , सयाणा तथा सदर सयाणा की व्यवस्था को समाप्त कर नए प्रकार के बंदोबस्त की स्थापना की।
Answer - (a)
(6) सरकार ने भोटिया जनजाति को कब अनुसूचित जनजाति (एस.टी. ) में अधिसूचित किया -
(a) वर्ष 1967 में
(b) वर्ष 1966 में
(c) वर्ष 1965 में
(d) वर्ष 1968 में
व्याख्या :- सरकार द्वारा 'भोटिया जनजाति' को वर्ष 1967 में अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया। भोटिया उत्तराखंड के हिमालय की चोटियों में निवास करने वाली प्रमुख ययावर जनजाति है। भोटिया जनजाति को ही बुग्याल कहा जाता है। वर्ष 1967 में भोटिया के साथ उत्तराखंड की जौनसारी, बुक्सा तथा राजी जनजातियों को भी अनुसूचित जनजाति को भी 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में अधिसूचित किया गया है।
Answer - (a)
(7) निम्नलिखित में से 'गढ़वाल दर्शन' नामक पुस्तक के लेखक हैं -
(a) डॉक्टर शिवानंद नौटियाल
(b) डॉ जसवंत सिंह कठौच
(c) डॉक्टर राम सिंह
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
व्याख्या :- गढ़वाल दर्शन पुस्तक के लेखक डॉक्टर शिवानंद नौटियाल हैं। इनका जन्म 26 जून 1936 को पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में हुआ था। पूर्णविराम प्रसिद्ध रचनाकार डॉक्टर शिवानंद नौटियाल की इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1986 में किया गया था। वह वर्ष 1977 से 1980 तक उत्तर प्रदेश सरकार में उच्च शिक्षा विभाग में मंत्री थे। वर्ष 2004 में इन्हें उत्तराखंड रत्न अवॉर्ड से विभूषित किया गया।
Answer - (a)
(8) कत्यूरी प्रशासन में तहसील स्तर की प्रशासनिक इकाई को कहा जाता है
(a) कर्मान्त
(b) सर्मान्त
(c) धर्मान्त
(d) इसमें से कोई नहीं
व्याख्या :- पांडुकेश्वर दान पत्र तथा सुभिक्षराज के लेख के अनुसार कत्यूरी वंश के प्रशासनिक संरचना के तहत् तहसील स्तर के प्रशासनिक इकाई को 'कर्मान्त' कहा जाता था। कत्यूरी शासन में प्रांतों को विषयों जिला में विभाजित किया जाता था। विषयों को प्रशासनिक दृष्टि से छोटी इकाइयों कर्मान्त में विभाजित किया जाता था। कत्यूरी अभिलेखों एवं ताम्रपत्र में प्रशासनिक संरचना तथा अधिकारियों का उल्लेख मिलता है।
Answer - (a)
(9) श्री बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण हुआ है -
(a) पंवार शैली में
(b) मुगल शैली में
(c) उत्तराखंड शैली में
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
व्याख्या :- बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण पर्वतीय शैली में हुआ है। यह तीनों मंदिरों का समूह है जिसमें प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। गर्भ ग्रह अंतराल एवं मण्डपयुक़्त पूर्वाभिमुखी है। यह मंदिर मंडप विहीन हैं। सामने कुंभ, कलश तथा कपोट पटिका है जिसके ऊपर शिखर बनाया गया है। साक्ष्यों के अन्य अनुसार मंदिर का निर्माण 1048 ईस्वी में किया गया ।
Answer - (d)
(10) शीतकाल में श्री बद्रीनाथ की मूर्ति सांकेतिक रूप में किस स्थान पर स्थानांतरित है ?
(a) वैष्णव मंदिर जोशीमठ
(b) आदि मंदिर नई टिहरी
(c) नरसिंह मंदिर जोशीमठ
(d) उपरोक्त में कोई नहीं
व्याख्या :- शीतकाल में श्री बद्रीनाथ की मूर्ति सांकेतिक रूप से नरसिंह मंदिर जोशीमठ के स्थानान्तरित की जाती है। बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद पुजारी नरसिंह मंदिर में चले जाते हैं, जहां बद्रीनाथ की एक मूर्ति स्थापित है। नरसिंह मंदिर का निर्माण ललितादित्य ने 10वीं शताब्दी में करवाया था। ललितादित्य कश्मीर का प्रसिद्ध शासक था।
Answer - (c)
(11) वैदिक कालीन उत्तराखंड में किस 'जन' का शासन था?
(a) त्रित्स
(b) पांचाल
(c) पुरू
(d) अज
व्याख्या :- वैदिक काल में 'त्रित्सु' जन्म का शासन उत्तराखंड के क्षेत्र में था। ऋग्वेद (वैदिक ग्रंथ) में दशराज्य युद्ध का वर्णन है। इसमें भारत का त्रित्सु नामक आर्य जन की चर्चा है। भरत जन का संघर्ष दस जनों के गठबंधन से हुआ। जिसमें पांच आर्य तथा पांच अनार्य जन शामिल थे। भरत तथा दस अन्य कबीलों का संघर्ष परुष्पणी (रावी) नदी के तट पर हुआ था। भरत कबीले का प्रधान सुदास था, जिसकी जीत हुई थी। दसराज युद्ध में 'त्रित्सु' जन ने भरत जन का साथ दिया था।
Answer - (a)
(12) 'झाली-माली' देवी की पूजा पद्धति की पाण्डुलिपि का पता लगाया -
(a) राजेंद्र प्रसाद बलोन्दी ने
(b) बद्रीदत्त पांडे ने
(c) महेश्वर प्रसाद जोशी ने
(d) डॉ यशवंत सिंह कठौच ने
व्याख्या :- 'झाली-मूली' देवी की पूजा प्रसिद्ध की पांडुलिपि का पता डॉ. यशवंत सिंह कठौच ने लगाया। झाली-माली देवी उत्तराखंड के कई जातियों के कुल देवी हैं। इसमें बोरा जनजाति प्रमुख है। झाली-माली देवी का मंदिर चंपावत के निकट पूगल गांव में स्थित हैं। इस मंदिर में पूजा के बाद, झाली माली की ज्योति को अन्य पवित्र स्थानों पर ले जाया जाता है। वर्ष 1970 से नवरात्रों में इस मंदिर के प्रांगण के भव्य मेला लगता है।
Answer - (d)
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