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कौसानी (बागेश्वर)
उत्तराखंड का इतिहास
पृष्ठभूमि
कौसानी को "कुमाऊं का गहना" कहा जाता है। कौसानी की स्थापना हेनरी रैमजे ने की थी। कौन जानता था पहाड़ों के एक छोटे से गांव बलना को विश्व में प्रसिद्धी मिलेगी। जिसे आने वाले समय में "भारत का स्विट्जरलैंड" कहा जाएगा। जी दोस्तों कौसानी का पुराना नाम बलना है । बलना प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पिंगनाथ पर्वत चोटी पर बसा हुआ छोटा सा गांव था। कौसानी की सुंदरता का वर्णन ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि सुमित्रानंदन की कविताओं में देखा जा सकता है। कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 में कौसानी में हुआ था । ये हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख कवियों में से एक थे । क्योंकि कौसानी भौगोलिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत पर्यटक स्थल है और पन्त जी का जीवन प्राकृतिक झरनों, नदियों और देवदार के वृक्षों के बीच बीता था जिससे उनके मन में प्रकृति के प्रति विचार उत्पन्न हुए और अपनी कविताओं के द्वारा कौसानी के सुंदर प्रकृति के दृश्यों का वर्णन किया । पंत जी द्वारा रचित- 'कुसुमों के जीवन का पल,' 'वन-वन उपवन,' 'मधुबन' और 'लाई हूं फूलों का हास' कविताओं में कौसानी की सुंदरता को महसूस किया जा सकता है। कौसानी में आज भी सूर्य उदय का नजारा अद्भुत होता है।
कौसानी का इतिहास
स्वतंत्रता से पूर्व कौसानी अल्मोड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था। सन 1997 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने बागेश्वर को अल्मोड़ा जिले से अलग कर नए जनपद की स्थापना की। जिसके बाद कौसानी बागेश्वर जनपद का प्रमुख हिल स्टेशन के रूप में जाना गया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार पिंगनाथ की पहाड़ी पर कौशिक नाम के मुनि ने लंबे समय तक तपस्या की थी इसलिए इस स्थान का नाम कौसानी पड़ा। छठीं सदी की शुरुआत में कत्यूरी राजाओं ने इस क्षेत्र को अपने राज्य का हिस्सा माना। कत्यूरियों की राजधानी कार्तिकेयपुर थी । माना जाता है कि कत्यूरी राजा बैचलदेव ने काफी बड़ा हिस्सा गुजरात के एक ब्राह्मण श्री चंद तिवारी को दे दिया था।
सन 1929 में महात्मा गांधी ने अनासक्ति योग पर अपना काम करने के लिए कुमाऊं के इस गांव में डेरा डाला और 12 दिनों तक यहां रुके थे। इस पहाड़ी क्षेत्र की सुंदरता देखते हुए महात्मा गांधी जी ने 'यंग इंडिया पुस्तक के लेख' में कौसानी को "भारत का स्विजरलैंड" कहा । गांधी जी ने कौसानी के शांत वातावरण से प्रेरित होकर गीता की भूमिका पर अपनी पुस्तक "अनासक्ति योग पुस्तक" की रचना यहीं की। कौसानी में स्थित "अनासक्ति आश्रम" को गांधी आश्रम भी कहा जाता है। गांधीजी की शिष्या सरला बहन का लक्ष्मी आश्रम भी यही स्थित है। लक्ष्मी आश्रम की स्थापना 1941 में कौसानी में हुई थी। सरला बहन का मूल नाम कैथलीन हेलिमन है। जो एक विदेशी महिला थी । गांधी जी के कहने पर इन्होंने अपना नाम बदलकर सरला रख लिया।
कौसानी की प्रमुख नदी - कोसी (बागेश्वर )
कोसी नदी कौसानी के निकट "धारपानीधार" से निकलती है। पुराणों में कोसी नदी को 'कौशिकी' कहा गया है। कोसी नदी कौसानी (बागेश्वर) के बाद अल्मोड़ा, नैनीताल, उधम सिंह नगर में 168 किलोमीटर तक राज्य में बहने के बाद सुल्तानपुर के पास राज्य से बाहर हो जाती है और उसके बाद उत्तर प्रदेश के चंबल में रामगंगा से मिल जाती है। कुमाऊं में कोसी नदी घाटी को धान का कटोरा कहा जाता है। कोसी नदी की सहायक नदियां उलावगढ़, सुमालीगढ़ और देवगाढ़ हैं।
कौसानी पर्यटक स्थल के रूप में
कौसानी समुद्र तल से लगभग 6075 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक छोटे से पर्वत पिंगनाथ पर बसा है। जहां से सूर्योदय का बेहद खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। यहां से सफेद चादर से ढका विशाल हिमालय , नंदाकोट, त्रिशूल और नंदा देवी पर्वतों को आसानी से देखा जा सकता है । पर्यटक स्थलों में महत्वपूर्ण स्थान मिलने के कारण कौसानी ने समय के साथ एक खूबसूरत शहर का रूप ले लिया । अल्मोड़ा शहर से 53 किलोमीटर के सफर में चीर के घने पेड़ों के बीच मन को उकेरती ठंडी हवा और सुंदर दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है । 208 हेक्टेयर में फैले चाय बागान के नजारे देखे जा सकते हैं। पिनाकेश्वर प्रमुख पिकनिक स्पॉट है। तथा "पंथ म्यूजियम" में बेहतरीन पुस्तकों का संग्रह है। आज कौसानी पर्यटक स्थल के रूप में विशेष स्थान बनाए हुए हैं। कौसानी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगवान शिव का सोमेश्वर मंदिर है जिसका निर्माण कत्यूरी शैली में किया गया है। जो बेहद आकर्षक प्रेतीत होता है।
Bahut sundar jaankaari
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