लोहाघाट का इतिहास
जनपद - चम्पावत (उत्तराखंड का इतिहास)
लोहाघाट का इतिहास
लोहाघाट के प्रमुख मंदिर व पर्यटक स्थान
- ऋषेश्वर महादेव मंदिर
- मानेश्वर मंदिर
- हरेश्वर मंदिर
- बाणासुर का किला
- मायावती आश्रम
ऋषेश्वर महादेव मंदिर
मानेश्वर मंदिर
मानेश्वर मंदिर को चंपावत जनपद का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। मानेश्वर मंदिर का निर्माण चंद राजवंश के राजा निर्भय चंद ने 12वीं सदी में करवाया था। यह मंदिर चंपावत शहर से 7 किलोमीटर दूर लोहाघाट में स्थित है यहां प्रत्येक वर्ष फागुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी में हजारों लोग पूजा करने आते हैं । इस मंदिर के निकट ही "गुप्तनौली" नामक जलधारा बहती है।
माना जाता है कि गुप्तनौली जलधारा को कुंती पुत्र अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष से उत्पन्न किया था। पांडवों के अज्ञातवास के दौरान पिता पांडू की श्राद्ध तिथि फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को पड़ती है। उस समय वह लोहाघाट के इसी क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे। यहां पानी का अभाव था और माता कुंती ने मानसरोवर के जल से श्राद्ध करने की इच्छा व्यक्त की। जिस कारण युधिष्ठिर के आदेश पर अर्जुन ने धरती पर एक बाण चलाकर गुप्तनौली जलधारा का निर्माण किया। तत्पश्चात् उस स्थान पर एकादशी के दिन शिवलिंग की स्थापना कर वहां पूजा-अर्चना की और उसके बाद से ही फरवरी के महीने में यहां प्रतिवर्ष "मानेश्वर मेला" लगता है। मानेश्वर मंदिर के दर्शन करने से मनवांछित मनोकामनाएं पूर्ण होती है। व गुप्तनौली के जल से स्नान करने से लाभ मिलता है, कई रोग व विकार दूर हो जाते हैं। इसी मंदिर के ठीक सामने क्रांतिश्वर मंदिर है जो भगवान विष्णु कूर्म अवतार की तपस्थली कहा जाता है। समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु ने यही तपस्या की थी।
हरेश्वर मंदिर
चंपावत के 7 मंदिरों के समूह से अलग हरेश्वर मंदिर शिव के अत्यधिक शक्तिशाली साक्षात न्यायकारी बेताल मंदिर के रूप में विख्यात हैं। यह मंदिर लोहावती नदी के तट पर स्थित है। कहा जाता है कि बेताल के दरबार अर्थात हरेश्वर मंदिर में दुनिया का हर वह फरियादी न्याय पाता है, जिसे कहीं न्याय नहीं मिलता है। यहां वर्षभर न्याय पाने वालों का तांता लगा रहता है। इस कारण इस मंदिर को "काली कुमाऊं का न्यायालय" भी कहा जाता है। और श्रावण मास के महीने में यहां प्रतिवर्ष "हरेश्वर मेला" लगता है।
बाणासुर का किला
यह स्थान चंपावत शहर से मात्र 16 किलोमीटर दूर लोहाघाट के एक शिखर पर स्थित है। इसके अंदर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। बाणासुर को शिव का अन्यय भक्त माना जाता है। बाणासुर की एक पुत्री थी उषा। उषा को श्रीकृष्ण के पौत्र ( प्रद्युम्न का पुत्र) था। अनिरुद्ध से प्रेम हो जाता है। और उषा की सहेली चित्रलेखा की मदद से दोनों गंधर्व विवाह कर लेते हैं। इसकी जानकारी जब बाणासुर को मिलती है तो बाणासुर अनिरुद्ध को कैद कर कारागार में डाल देता है। तत्पश्चात् श्री कृष्ण अपने पौत्र की रक्षा के लिए लोहाघाट के कर्णरायत नामक स्थान पर बाणासुर पर आक्रमण करता है और उसका वध कर देता है। यहां के स्थानीय निवासी इस स्थान को मटकोट या बाणाकोट कहते हैं।
मायावती आश्रम
मायावती आश्रम की स्थापना 19 मार्च 1899 को "एच. सेवियर" के प्रयासों से हुई। यह स्थान लोहाघाट से 9 किलोमीटर दूर हरे-भरे जंगलों के नीचे बसा हुआ है। इसे अद्वैत आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। आदित्य आश्रम रामकृष्ण मठ की एक शाखा है । यहां स्वामी विवेकानंद को इसी स्थान पर अध्यात्मिक शांति की प्राप्ति हुई थी जिसके बाद सन् 1901 में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण शांति मठ की स्थापना की। मायावती आश्रम के प्रथम प्रमुख स्वामी स्वरूपानंद थे। यहां धमार्थ अस्पताल की स्थापना 1903 में की गयी थी। स्वामी विवेकानंद को इस आश्रम से इतना अधिक लगाव हो गया था कि स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा की अपनी तीसरी यात्रा के दौरान "प्रबुद्ध भारत" का प्रकाशन कार्यालय को मद्रास से हटाकर मायावती आश्रम में स्थापित करने का निर्णय लिया । वर्तमान समय में भी यहां एक छोटा सा संग्रहालय और एक पुस्तकालय है।
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