बेरोजगारी क्या है ?
"एक बेरोजगार व्यक्ति वह होता है जो अपनी योग्यता के अनुसार प्राप्त होने वाली मजदूरी की दर कार्य करने को तैयार है परंतु उसे कार्य नहीं मिल पाता। "
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग-अलग है। यूएसए यदि किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के हिसाब से नौकरी नहीं मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है।
बेरोजगारी के प्रकार
विकासशील देश - मौसमी बेरोजगारी , प्रच्छन्न बेरोजगारी, संरचनात्मक बेरोजगारी पायी जाती है।
विकसित देश - चक्रीय बेरोजगारी, घर्षण बेरोजगारी, प्रतिरोधक बेरोजगारी (घर्षाणत्मक बेरोजगारी) के अन्य प्रकार ऐच्छिक बेरोजगारी , खुली या अनैच्छिक बेरोजगारी विकासशील देश मौसमी बेरोजगारी इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
(1) मौसमी बेरोजगारी
कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई बुआई कटाई आदि कार्यो के समय तो रोजगार मिलता है लेकिन जैसे ही कृषि कार्य खत्म हो जाता है तो कृषि में लगे लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
(1) प्रच्छन्न बेरोजगारी
प्रच्छन्न बेरोजगारी उसको कहते हैं। जिसमें कुछ लोगों की उत्पादकता शून्य होती है अर्थात उन लोगों को उस काम में से हटा दिया जाए तो भी उत्पादन में कोई अंतर नहीं आएगा।
(3) संरचनात्मक बेरोजगारी
संरचनात्मक बेरोजगारी दीर्घकाल प्रकृति की संरचनात्मक बेरोजगारी अर्थव्यवस्था के ढांचे का पिछड़ापन सीमित पूंजी एवं क्षय के बाहुल्य के कारण उत्पन्न होता है। तीव्र प्रतियोगिता से सामना नहीं करने के कारण कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं और उसके कामगार बेरोजगार हो जाते हैं।
(4) चक्रीय बेरोजगारी
विकसित देशों में पाई जाने वाली बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी इस प्रकार की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होती है । जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। और जब अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आता है तो उत्पादन कम होता है और कम लोगों की जरूरत होती है जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ती है।
(5) घर्षाणत्मक बेरोजगारी
घर्षण जनित प्रतिरोधक बेरोजगारी ऐसा व्यक्ति जो एक रोजगार को छोड़कर किसी दूसरे रोजगार में जाता है तो दोनों रोजगार के बीच की अवधि में वह बेरोजगार हो सकता है या नयी टेक्नोलॉजी के प्रयोग के कारण एक व्यक्ति एक रोजगार या निकाल दिए जाने के कारण रोजगार की तलाश कर रहा हो तो पुरानी नौकरी छोड़ने और नया रोजगार पाने की अवधि की बेरोजगारी।
(6) ऐच्छिक बेरोजगारी
बेरोजगारी के अन्य प्रकार ऐच्छिक बेरोजगारी ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार नहीं है। अर्थात वह ज्यादा मजदूरी की मांग कर रहा है जो कि उसको मिल नहीं रही । इस कारण वह बेरोजगार है।
(7) अनैच्छिक बेरोजगारी
खुली व अनैच्छिक बेरोजगारी ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है लेकिन काम नहीं मिल रहा। भारत में बेरोजगारी के कारण देश में श्रम शक्ति का तीव्र विकास आर्थिक विकास की दर धीमी गति दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली तकनीकी विकास का अभाव अपर्याप्त रोजगार, योजनाऐ , भारतीय कृषि का पिछड़ापन, परंपरागत हस्तकला, उद्योगों का कम, श्रमिकों में गतिशीलता का अभाव स्वरोजगार की इच्छा का अभाव आदि।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO)
भारत में बेरोजगारी का अनुमान राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा बेरोजगारी मापने की 3 अवधारणाएं विकसित की गई।
सामान्य स्थिति बेरोजगारी
यह दीर्घकालीन बेरोजगारी को दर्शाता है इसमें समान्ता यह देखा जाता है कि लोग रोजगार में हैं , बेरोजगार है या श्रम शक्ति से बाहर है इसमें लंबी अवधि के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है।
साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी
इसमें व्यक्ति की पिछले 7 देशों की गतिविधियों का ही विश्लेषण किया जाता है। यदि इन 7 दिनों में कोई व्यक्ति एक भी घंटा काम प्राप्त करने में सक्षम रहता है तो इसे रोजगार में मान लिया जाता है।
दैनिक स्थिति बेरोजगारी
इसमें किसी व्यक्ति के प्रत्येक दिन की गतिविधियों पर गौर किया जाता है इसमें समय दर का आकलन किया जाता है।
सामान्य और साप्ताहिक स्थिति में बेरोजगारी की प्रतिव्यक्ति दर का आकलन किया जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- वार्षिक रोजगार के आकलन के लिए कार्य दिवसों की मानक संख्या 270 है। अगर किसी व्यक्ति के पास 35 से भी कम दिनों का रोजगार हो तो वार्षिक स्तर पर उसे पूर्ण बेरोजगार माना जाता है।
- यदि उसके कार्य दिवस 35 से ज्यादा एवं 135 दिनों से कम हो तो उसे अध्दृ बेरोजगार माना जाएगा। वही 135 दिनों से अधिक के रोजगार की स्थिति से उसे पूर्ण रोजगार माना जाता है।
- सामान्य रूप से 15-59 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों की आर्थिक रूप से सक्रिय माना जाता है।
- भारत में असंगठित क्षेत्र अधिकांश रोजगार उपलब्ध कराए जाते हैं। भारत में बेरोजगारी के संबंध में क्षेत्रीय असंतुलन भी देखने को मिलता है । इससे बड़े पैमाने पर अंतर राज्य क्षमिक प्रवानन होता है। देश में (labour force participation rate ,lfpr) अर्थात कुल जनसंख्या में श्रमशक्ति का अनुपात 40% है। ग्रामीण 41%, शहरी 27% है। पुरुष 56% , महिला 23%, शहरी स्वरोजगार 42%, नियमित वेतन 15%, अस्थायी श्रमिक 43%, ग्रामीण स्वरोजगार 56%, नियमित वेतन 9% और अस्थायी श्रमिक 35% हैं।
कुछ महत्वपूर्ण सूचकांक
श्रम शक्ति की भागीदारी = रोजगार व्यक्ति की संख्या +बेरोजगार व्यक्ति की संख्या ×1000 ÷ कुल जनसंख्या
कामगार जनसंख्या अनुपात = रोजगार व्यक्ति की संख्या ×1000
बेरोजगार अनुपात = बेरोजगार व्यक्ति की संख्या ×1000
बेरोजगारी दर = बेरोजगारी व्यक्ति की संख्या /रोजगार + बेरोजगार व्यक्ति की संख्या ×1000
श्रम बल क्या होता है ? -
ऐसे व्यक्ति जो कार्य में सम्मिलित है या कार्य की तलाश में है।
अर्जुन सेनगुप्ता समिति 2006
85% कार्यशील जनसंख्या असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रही है। सिफारिशें इस समिति में कामगारों की सुरक्षा के लिए कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में कार्य की न्यूनतम शर्तें सुनिश्चित करने तथा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों द्वारा न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। सीमांत और छोटे किसानों के लिए विशेष कार्यक्रमों त्वरित भूमि और जल प्रबंधन पर बल सीमांत और छोटे किसानों के लिए क्रेडिट की सुविधा किसान ऋण राहत आयोग स्थापित करने आदि की भी सिफारिशें की हैं। रोजगार विस्तार और नियोजन सामर्थ्य में सुधार हेतु स्वतः रोजगार सृजन कार्यक्रमों को सख्त बनाकर रोजगार का विस्तार करना। कुछ सरकारी योजनाएं महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम ये संसद द्वारा पारित है ।
मनरेगा
यह ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित प्रावधान देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के वयस्क सदस्य को बस में न्यूनतम 100 दिन का अकुशल श्रम वाला रोजगार प्राप्त करने की गारंटी दी जाती है। इस योजना का 33% लाभ महिलाओं को प्राप्त होगा। मनरेगा के तहत शामिल क्रियाकलापों में जन संरक्षण तथा जल संग्रहण धोखे से बचाव सिंचाई सुविधा, वनारोपण, पारस्परिक जलाशयों का नवीनीकरण सभी मौसमों में जुड़ाव के लिए ग्रामीण सड़कों का भारत निर्माण के तहत निर्माण कार्य तथा कोई अन्य कार्य को राज्य सरकार की परंपरा से केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित थे।
मनरेगा यह दूसरी पीढ़ी का मनरेगा कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य स्थाई संपदा का निर्माण तथा कृषिगत उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ कार्य में देरी जैसी बड़ी शिकायतों तथा कार्यक्रम के ऊपर भ्रष्टाचार के कारणों को दूर करना। विशेषताएं भुगतान में देरी को कम करना स्वीकार्य कार्यों विस्तारित सूची पर्याप्त मानव संसाधन सख्त समय सारणी का पालन कार्यक्रम में योग आधारित पहलू को मजबूत करना।
(1) प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है-
(b) वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध नहीं है।
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य होती है।
(d) श्रमिक की उत्पादकता
(2) निम्नलिखित में से कौन मनरेगा के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं ?
(b) गरीबी रेखा से नीचे परिवारों के व्यस्क सदस्य
(c) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के व्यस्क सदस्य
(d) किसी भी परिवार के व्यस्क सदस्य।
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