मध्यकालीन भारत का इतिहास
जहांगीर का इतिहास : 1605 -1627
अकबर की मृत्यु के बाद नवम्बर (1605) में आगरा के किले में पुत्र सलीम का राज्याभिषेक हुआ। जहांगीर का जन्म 1569 ईसवी में फतेहपुर सीकरी में हुआ था। जहांगीर नूरउद्दीन मोहम्मद बादशाही गाजी के नाम से गद्दी पर बैठा। जहांगीर ने न्याय की जंजीर लगवाई जोकि आगरा के किले शाहबुर्ज एवं यमुना तट पर स्थित एक पत्थर के खंभे पर लगी थी । जिसे खींचकर कोई भी बादशाह से न्याय की मांग कर सकता था।
जहांगीर की माता आमेर के राजा भारमल की पुत्री हरखाबाई (जोधा) थी। अकबर ने अपने पुत्र सलीम (जहांगीर) का नाम सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के नाम पर रखा था। जहांगीर ने प्रथम विवाह आमेर के राजा भगवान दास की पुत्री मानबाई व द्वितीय विवाह मारवाड़ के राजा उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाई से किया। जहांगीर के 5 पुत्र थे- खुसरो, परवेज, खुर्रम, शहरयार और जहांदार। खुसरो ने 1606 में अपने पिता जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । खुसरो जहांगीर की प्रथम पत्नी मानबाई का पुत्र था। जहांगीर ने खुसरो को समझाया पर वार्ता असफल रही। अतः दोनों के मध्य भेरावल नामक स्थान पर युद्ध हुआ । कालांतर में जहांगीर की हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में खुसरों को अंधा करवा दिया गया। खुर्रम दक्षिण अभियान के समय खुसरो को अपने साथ ले गया और 1621 में उसकी हत्या करवा दी। खुसरो की सहायता करने के कारण सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव को फांसी दिलवा दी । विदित हो कि जहांगीर के इशारे वीर सिंह बुंदेला ने अबुल फजल को मरवा दिया । अतः बाद में जहांगीर ने बुंदेला को पुरस्कृत किया था। अहमदनगर के वजीर मलिक अम्बर के विरुद्ध एक युद्ध में जीत के उपरांत जहांगीर ने खुर्राम को "शाहजहां" की उपाधि प्रदान की।
नूरजहां - एक परिचय (जहांगीर की तीसरी बेगम)
नूरजहां ईरान निवासी मिर्जा गियास बेग की पुत्री थी । नूरजहां का वास्तविक नाम मेहरून्निसा था। 1594 में नूरजहां का विवाह अली कुली बेग से हुआ था । अली कुली बेग ने एक शेर को मार दिया । इससे प्रसन्न होकर जहांगीर ने अली कुली बेग को "शेर अफगान" की उपाधि से सम्मानित किया। सन 1607 में शेर अफगान की मृत्यु हो गई । तत्पश्चात मेहरून्निसा को अकबर की पत्नी सलीमा बेगम की सेवा के लिए नियुक्त कर दिया । नवरोज नामक अवसर के त्यौहार पर जहांगीर ने नूरजहां को देखा और उसके के सौंदर्य पर मोहित हो गया। सन 1611 में नूर जहां से विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात जहांगीर ने नूरजहां को नूर महल और नूरजहां की उपाधि से विभूषित किया। नूरजहां हमेशा जहांगीर के साथ रहती थी और वह एक अच्छी घुड़सवार और निशानेबाज थी इसलिए जहांगीर के शिकार के लिए निकलने पर भी साथ हो लेती थी। सन 1627 में महावत ख़ां ने विद्रोह कर दिया था । जिसके बाद बादशाह को बंदी बना लिया। इस दौरान नूरजहां ने बादशाह का साथ दिया। और अपनी धैर्य युक्त साहस और चतुराई से महावत ख़ां के पक्ष को कमजोर कर एक बार पुनः जहांगीर को गद्दी दिलाने में सहायता की। नूरजहां के सम्मान में बादशाह ने चांदी के सिक्के चलवाए। जहांगीर ने मिर्जा गियास बेग को शाही दीवान बनाया और इत्माददुदौला की उपाधि दी।
जहांगीर ने अपने शासनकाल में ईरानियों को उच्च पद प्रदान किये। इत्माददुदौला की मृत्यु के पश्चात आगरा में यमुना नदी के आगरा में तट पर मकबरा बनाया । मुख्य विशेषता यह थी कि यह मकबरा श्वेत संगमरमर से बना है । यह पूर्णतः श्वेत संगमरमर से बनी पहली कृति है । सर्वप्रथम इसी इमारत में "पितृरादुरा नामक जड़ाऊ" काम किया गया। जहांगीर से विवाह के बाद नूरजहां गुट का निर्माण हुआ। गुट के प्रमुख सदस्य सारे ससुराल पक्षी इत्मादद्दौला अस्मत बेगम (मां) आसफ खां (भाई), खुर्रम नूरजहां से प्रभावित जहांगीर के शासनकाल को दो भागों में बांटा जा सकता है ।
- 1611 से 1622 प्रथम काल में खुर्रम नूरजहां का सदस्य था ।
- 1627 दूसरे काल में खुर्रम ने नूरजहां खुद को अलग कर लिया।
जहांगीर के विरुद्ध निम्न विद्रोह हुए -
- सबसे पहला विद्रोह खुसरो द्वारा 1606 में किया गया। जहांगीर के बादशाह बनने के कुछ समय बाद उसके जेष्ठ पुत्र खुसरो ने गद्दी के लिए विद्रोह कर खड़ा कर दिया। जहांगीर ने लाहौर के निकट एक लड़ाई में उसे हरा दिया और उसके कुछ ही दिन बाद उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया।
- दूसरा विद्रोह खुर्रम ( शाहजहां) ने 1623 में किया। विद्रोह का तात्कालिक कारण शाहजहां का कंदहार जाने से इंकार कर देना था। क्योंकि कंदहार पर ईरानियों ने आक्रमण कर दिया था और शाहजहां को उनसे निपटने के लिए भेजा जा रहा था। शाहजहां ने कंदहार जाने के लिए तरह-तरह की शर्ते रखी - जिससे जहांगीर आग बबूला हो गया। और शाहजहां ने खुल्लम-खुल्ला विद्रोह कर दिया। शाहजहां के साथ मुगलों की दक्षिणी सेना का पूरा समर्थन प्राप्त था। शाहजहां को हाराने के लिए जहांगीर ने महावत ख़ां को एक बड़ी फौज के साथ लड़ाई के लिए भेजा और विद्रोह शांत किया। शाहजहां को अपनी गलती का एहसास हुआ और पत्र लिखकर क्षमा याचना मांगी अंत में जहांगीर ने अपने बेटे को राज्य में वापस बुला लिया।
- तीसरा विद्रोह महावत ख़ां ने 1627 किया । महाबत खां की नजर शाहजहां के विद्रोह दबाने के बाद राजगद्दी पर थी। जब बादशाह को इस बात का संदेह हुआ तो महावत ख़ां को हिसाब देने के लिए दरबार में बुला लिया गया। लेकिन महावत ख़ां ने विद्रोह कर दिया और बादशाह को बंदी बना लिया। लेकिन वह एक चतुर कूटनीतिज्ञ या प्रशासनिक शासक नहीं था और वह राजपूत सैनिकों से लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाया। 6 महीने बाद ही कमजोर पक्ष के चलते वह खुद दरबार से भाग खड़ा हुआ।
सन् 1627 में भीमबार (लाहौर) नामक स्थान पर जहांगीर की मृत्यु हो गई । जहांगीर को सहादरा लाहौर में रावी नदी के किनारे दफनाया गया। शेरखान अफगान और मेहरूनिसा की पुत्री लाडी बेगम थी । इसका विवाह जहांगीर के पुत्र शहरयार से हुआ। जहांगीर के शासनकाल में नूरजहां की मां अस्मत बेगम ने "गुलाब से इत्र निकालने की विधि खोज" निकाली।
चित्रकला प्रेमी - जहांगीर
जहांगीर के शासनकाल में चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर थी। जहांगीर के समय के दो प्रसिद्ध चित्रकार निम्न थे। जिन्हें जहांगीर ने कुछ उपाधियां दी थीं -
- उस्ताद मसूंर - प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ चित्रकार (उपाधि - नादिर-उत-असर )
- अबुल हसन - प्रसिद्ध व्यक्ति विशेषज्ञ चित्रकार (उपाधि - नादिर उत जमा)
जहांगीर स्वयं चित्रकला प्रेमी था । जहांगीर की चित्रकारी में बहुत परख थी। जहांगीर का दावा था कि वह किसी भी चित्र में अलग-अलग चित्रकारों के योगदान की पहचान कर सकता है। जहांगीर के दरबार में अन्य चित्रकार आगा रज्जा, मोहम्मद नासिर , मोहम्मद मुराद, विशन दास गोवर्धन, फारुख बेग इत्यादि । जहांगीर ने आगा राजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रण साला की स्थापना की।
प्रशासन व सैन्य व्यवस्था
जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी फारसी भाषा में लिखी। इसके तीन भाग हैं - दूसरा भाग स्वयं जहांगीर ने लिखा जबकि प्रथम व तृतीय भाग जहांगीर की मृत्यु के बाद मोहम्मद हादी ने लिखा । जागीर ने अपनी आत्मकथा में अच्छे बुरे दोनों कर्मों को लिपिबद्ध किया है । जहांगीर ने दो अस्पा और सिंह अस्पा नामक प्रथा चलाई। जिसके अंतर्गत बिना जात पात के पद बढ़ाए जिसके कारण मनसबदारो को अधिक सेना रखनी पड़ती थी ।
- दो अस्पा - इसमें मनसबदारों को सवार पद के दुगने घोड़े रखने पड़ते थे।
- सिंह अस्पा - इसमें मनसबदारों को सवार पर के तिगुने घोड़े रखने पड़ते थे।
मनसबदार तीन वर्गों में विभाजित थे -
100 से 500 मनसबदार वाले उमरा कहलाते थे। 500 से 2500 वाले अमीर कहलाते थे।। 25 सौ से अधिक मनसबदार वाले अमीर-ए-आजम कहलाते थे । मनसबदारों को नगद वेतन और जागीरे देने की व्यवस्था थी । वह मनसबदारों की जागीर स्थानांतरित कर दी जाती थी ।
17 वीं शताब्दी का पूर्वार्ध भारत का कुल मिलाकर भारत के लिए प्रगति और विकास का काल था। जहांगीर ने अकबर के अधीन विकसित शासन प्रणाली को सुदृढ़ बनाया उन्होंने राजपूतों के साथ दोस्ताना रिश्ता कायम रखा और अफगानों तथा मराठो जैसे शक्तिशाली राज्यों के साथ मित्रता का संबंध स्थापित करके साम्राज्य को आधार को और भी अधिक विस्तृत बनाने का प्रयत्न किया। चित्तौड़ की संधि सन् 1615 मुगल का राजा जहांगीर और मेवाड़ का राजा राणा अमर सिंह मध्य हुई । राणा अमीर सिंह ने जहांगीर की अधीनता स्वीकार कर ली । इसके अतिरिक्त कामरूप (असम) और बंगाल में स्थाई शासन व्यवस्था पित्त की नियंत्रण बनाए रखने के लिए राजधानी को राजमहल से हटाकर ढाका ले जाया गया।
ब्रिटिश राजदूतों का आगमन
कैप्टन हॉकिंस (1608-1611)
जहांगीर के दरबार में ब्रिटिश शासक जेम्स प्रथम ने अपने राजदूत के रूप में विलियम हॉकिंस को भेजा। कैप्टन हॉकिंस मुगल दरबार में उपस्थित होने वाला प्रथम अंग्रेज था। इसे अंग्रेज कंपनी के लिए व्यापारिक क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए भेजा गया था। जहांगीर कैप्टन हॉकिंस से बहुत प्रसन्न हुआ और इसे "इंग्लिश खां" उपाधि से सम्मानित किया और आर्मेनिया की युवती से विवाह करा दिया।
सर टॉमस रो -1615
जेम्स प्रथम सन 1615 में अपने द्वितीय राजदूत के रूप में टॉमस रो को भारत भेजा । सन 1616 में थॉमस रो अजमेर से जहांगीर के दरबार में उपस्थित हुआ। सन 1619 ने वह जहांगीर का प्रमाण लेकर इंग्लैंड पहुंचा और प्रमाण में इस बात का उल्लेख था कि मुगल दरबार ने अंग्रेजों का इसी प्रकार स्वागत होता रहेगा । टॉमस रो को जहांगीर के साथ मांडू, अजमेर, मुरादाबाद जैसे स्थानों पर जाने का अवसर मिला। फ्रांसिस्को पेलसर एक डच पर्यटक था । यह जहांगीर के शासनकाल में भारत आया। इसने अपनी पुस्तक रिमोन्स-ट्री में जहांगीर काल का अद्भुत वर्णन किया है।
Sources - ncert book
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