वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में वनबसा, एक ऐसा कस्बा है जो भारत-नेपाल सीमा पर बसा है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। टनकपुर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ग्राम पंचायत, जनपद की सबसे बड़ी पंचायतों में से एक है, जहाँ लगभग 10,000+ लोग निवास करते हैं। यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य समुदायों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो इस क्षेत्र को एक जीवंत सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। प्रकृति और इतिहास का संगम शारदा नदी के तट पर बसा वनबसा, मैदानी और पर्वतीय संस्कृतियों का एक अनूठा मेल है। यह स्थान सदियों से पर्वतीय लोगों का प्रिय ठिकाना रहा है। पुराने समय में, जब लोग माल भावर की यात्रा करते थे, वनबसा उनका प्रमुख विश्राम स्थल था। सर्दियों में पहाड़ी लोग यहाँ अपनी गाय-भैंस चराने आते और दिनभर धूप में समय बिताकर लौट जाते। घने जंगलों के बीच बसे होने के कारण, संभवतः इस क्षेत्र का नाम "वनबसा" पड़ा। यहाँ की मूल निवासी थारू और बोक्सा जनजातियाँ इस क्ष...
पर्यावरण पर कविता
कविता संग्रह
                         वो देश कितना अच्छा होता ,
जहां बिना वजह की गाड़ियां ना होती।
 प्रदूषण की समस्या का जन्म ना होता,
 आसमां धुएं से काला ना होता ।
बस एक ही गाड़ी होती - रेलगाड़ी।।
 ना कोई अमीर होता, 
 ना कोई गरीब होता,
 सड़कों पर साइकिल दौड़ा करती,
 ना कोई दुर्घटना घटती,
 ना किसी की जान जाती ।
वो देश कितना अच्छा होता,
 जहां बिना वजह की गाड़ियां ना होती।।
 किराए पर घोड़ा गाड़ी,
 खेती पर बैलों की जोड़ी चलती।
 कोई किसान कब्जा ना करता,
 खुद के भरोसे खेती करता।
बाकी दुनिया में सब कुछ होता।
 फैक्ट्रियां होती, मोबाइल होता,
रेल होती, जहाज होता
 बस ना होती ये गाड़ियां ।
ना रोजगार की कमी होती ।
ना बैलों की बलि होती ।
अर्थव्यवस्था भले ही धीमी चलती ।
लेकिन जिंदगी सुकून की होती ।
तापमान में वृद्धि ना होती ,
ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खड़ी ना होती।
 चार कदम सभी चलते तो,
 अस्पतालों में मरीजों की वृद्धि ना होती
 सब कुछ होता पर ये गाड़ियां ना होती।
 शान बढ़ा दी महंगी कारों ने ,
जान गवा दी ! बनाने वाले मजदूरों ने।
 रोजगार के नाम पर ठग गए सारे ,
छोड़ दी गाय,  छोड़ दिए बैल सड़कों के सहारे ।
क्या बैर था मासूमों से,
मर कर भी काम आए जिनके अंग हमारे।
चला है देश प्रदूषण मिटाने। 
शिक्षित समाज सभ्य कहलाने को।
 दो कदम इनसे चले नहीं जाते ,
चले हैं वह इतिहास बनाने को।
कविता का भावार्थ - पर्यावरण पर निबंध
उपयुक्त कविता कारों की वजह से बढ़ते प्रदूषण को इंगित करती है। कारों व दुपहिया वाहनों ने सामाजिक दूरी बढ़ा दी हैं।  कहीं ना कहीं कारों की कीमत के आधार पर अमीर और गरीब के बीच भेदभाव उत्पन्न हो गया है । जहां एक तरफ मोटर गाड़ी वाली कंपनियों ने लोगों को रोजगार दिया है तो प्राकृतिक रूप मौजूद रोजगार का अंत कर दिया है। आज के जमाने में घोड़ों और बैलों का अस्तित्व मिटता जा रहा है। अब तो घोड़ों का प्रयोग केवल जुआ खेलने के लिए किया जाता है वही बैल सड़कों पर घूम रहे हैं।
मोटरगाड़ियों का इतिहास
भारत में पहली मोटर कार को 1897 में पहली बार कोलकाता में मिस्टर फोस्टर के मालिक  क्राम्पटन ग्रीवेस ने खरीदी थी। इसी के साथ मुंबई शहर में सन 1898 में 4 कारें खरीदी गई थी। 4 कारों में से एक कार जमशेदजी टाटा ने खरीदी थी। दुनिया में सबसे पहली कार का आविष्कार 1769 में फ्रांस में हुआ था । यह एक भाप से चलने वाली कार थी। दुनिया की पहली कार का प्रयोग आर्मी के लिए किया गया था। मेरे विचार से कारों के उपयोग पर प्रत्येक देश की आर्मी का ही एकाधिकार होना उचित था। लेकिन जैसे ही कारें आम आदमी के प्रयोग में आना शुरू हुई। तब से कारों का उपयोग शानो शौकत के लिए किया जाने लगा । समय के साथ भारी भरकम वाली गाड़ियां और सड़कों का निर्माण किया जाने लगा जबकि इससे बेहतर होता कि ज्यादा ध्यान रेलगाड़ी पर किया जाता । 
भारत में रेलगाड़ी का विकास
भारत में सबसे पहली रेल 1853 मुंबई से थाणे के बीच चलाई गई और रेल का तेजी से विकास हुआ । यदि आजादी के बाद भी हमारी सरकार के पास उचित दूरदर्शिता होती तो कारों व मोटर गाड़ी के स्थान पर रेलगाड़ी का विकास गांव का तक होता। लेकिन आज अधिकांश देश प्रदूषण से जूझ रहे हैं और कई प्रदूषण का काम करने के लिए करोड़ों की योजनाएं और अभियान चला रहे हैं। सब की तरफ ध्यान दिया जा रहा है लेकिन बढ़ते कारों का उत्पादन और बढ़ाया जा रहा है। बता दें कि विश्व का 50% गाड़ियों और गाड़ियों को बनाने वाली फैक्ट्रियों के कारण होता है । वहीं 60% लोगों की मृत्यु गाड़ियों की दुर्घटना होती है और सबसे मुख्य बात आज की युवा पीढ़ी ने मौत को खेल समझ लिया है। 80% गाडियां की दुर्घटनाएं तेज स्पीड व नाबालिक ड्राइवर होने की वजह से हो रही है। जिससे मानव संसाधन की हानि हो रही है। देर रात तक पार्टी और घूमना मोटरगाड़ियों  ने संभव बनाया है। मोटरगाड़ियों के कारण बेरोजगारी बढ़ गई है। बैलगाड़ी विलुप्त हो गई । यदि रेलगाड़ी का विकास ठीक तरह से होता तो किराए के लिए घोड़ा गाड़ी और भारी-भरकम सामान के लिए बेलगाड़ियां व हाथियों का प्रयोग भी संभव था। दूसरी तरफ बड़े-बड़े जमीदारो ने मशीनों के प्रयोग द्वारा पर कब्जा कर भूमिहीन किसानों की संख्या में वृद्धि की । प्रकृति के रक्षक गाय, बैल , घोड़ा जिनका प्रयोग खेती और परिवहन में होता था वो सड़कों पर घूम रहे हैं । एक तरफ देश जैविक खाद की बात कर रहा है । दूसरी तरफ जैविक खाद बनाने वालों को नष्ट किया जा रहा है। 
निष्कर्ष
सरकार चाहे तो गाड़ियों के स्थान पर एक शहर और कस्बों तक 5 से 10 किलोमीटर के दायरे रेलगाड़ी के द्वारा यात्रा संभव बना सकती है क्योंकि अक्सर आपने देखा होगा । जिसके पास पैसा अधिक है  । वह  50-60 किलोमीटर का सफर करता है उतने ही पेट्रोल से 20 लोग सफर कर सकते थे। वही हाल मोटर गाड़ियों का है । अतः शेष 5 से 10 किलोमीटर के लिए साइकिल, व घोड़ा गाड़ी का प्रयोग करके जीवन आसान और प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है । साइकिल चलाना स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। साइकिल चलाने से बिना वजह से व्यायाम में समय गंवाने के स्थान पर उपयोग किया जा सकता है और अस्पतालों में मरने वाले की संख्या में कमी की जा सकती है लेकिन हमारा समाज सभ्य हो चुका है और विलासिता वाली चीजों पर निर्भर हो गया है । जिसके कारण प्रतिदिन ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है वह दिन दूर नहीं होगा जब पृथ्वी की सारी बर्फ पिघल कर समुद्र में सम्मिलित हो जाएगी और पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी।
"मैं सबको नहीं बदल सकता लेकिन मेरे विचारों से एक में भी बदलाव आता है तो पर्यावरण संरक्षण संभव है"
Realted post :-
बादल - कविता संग्रह
कृषि को मैं सींच रहा हूँ, 
समंदरर का मैं रखवाला, 
नदियोंं का मैं दीवाना हूँ,
देश की आन किसान - कविता संग्रह
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