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मध्यकालीन इतिहास
मुगल काल : शाहजहां का इतिहास
जहांगीर के बाद शाहजहां गद्दी पर बैठा । शाहजहां का जन्म 5 फरवरी 1592 में लाहौर में हुआ था। इनकी मां मारवाड़ के राजा उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाई थी। इसके बचपन का नाम खुर्रम था । अहमदनगर राज्य के विरुद्ध खुर्रम की विजय से प्रसन्न होकर जागीर ने खुर्रम को "शाहजहां" की उपाधि से सम्मानित किया था। शाहजहां का विवाह आसफ खां की पुत्री अर्जुमद बानो बेगम से हुआ था जो बाद में "मुमताज" के नाम से विख्यात हुई। 1631 में 14वें पुत्र के जन्म के समय प्रसव पीड़ा के कारण बुरहानपुर में मुमताज की मृत्यु हो गई। पहले तो मुमताज को एक बाग में बुरहानपुर में ही दफनाया गया लेकिन बाद में उनके अवशेषों को आगरा में यमुना के किनारे दफनाकर उस पर विश्व प्रसिद्ध ताजमहल का निर्माण किया गया। मुमताज की 14 संतानों में से 7 ही बची थी- जहांआरा , दारा शिकोह, शाहशूजा, रोशन आरा, औरंगजब, मुरादबक्श, गोहनआरा । सन 1628 में शाहजहां अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरण सामी गद्दी पर बैठा । राज्यभिषेक के बाद में अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की ।
साम्राज्य विस्तार
दक्षिण अभियान
- अहमदनगर - अकबर व जहांगीर ने दक्षिण भारत के अहमदनगर पर आक्रमण तो किया था किंतु पूर्ण विजय प्राप्त नहीं कर पाए थे। सन 1633 में शाहजहां ने अहमदनगर को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया और अहमदनगर के अंतिम सुल्तान हुसैन शाह को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया ।
- गोलकुंडा - अहमदनगर के पतन से ही भयभीत होकर गोलकुंडा के अल्प वयस्क शासक कुतुब शाह ने 1636 इसी में शाहजहां से संधि कर ली और सिक्कों पर शाहजहां का नाम अंकित करवाया। उसी के बाद गोलकुंडा का वजीर मीर जुमला मुगल सेवा में चला आया । इसी ने शाहजहां को कोहिनूर हीरा दिया था।
- बीजापुर - मुगल सेना ने बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह पर आक्रमण कर सोलापुर, बीदर, गुलबर्गा और परिंदा पर शाहजहां ने अधिकार कर लिया।
- पुर्तगालियों पर विजय - शाहजहां के शासनकाल में पुर्तगालियों ने दक्षिण में नमक व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था और अपना साम्राज्य विस्तार कर रहे थे । इस उदण्डता के कारण शाहजहां ने 1632 उनके व्यापारिक केंद्र को घेरकर उन पर अधिकार कर लिया और उनका व्यापारिक क्षेत्र सीमित कर दिया ।
कंदहार
यह सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण था। यह ईरान के साथ और मुगलों के बीच संघर्ष की वजह था। यह दोनों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था। सन 1649 में कांधार पर ईरानियों ने अधिकार कर लिया। इस प्रकार कंदहार हमेशा के लिए मुगलों के हाथ से चला गया।
शाहजहां के बल्क अभियान
शाहजहां के बल्क अभियान का उद्देश्य काबुल की सीमा से सटीक बल्क और बदख्शा में एक मित्र शासक को लाना था ताकि ईरान और मुगल साम्राज्य के मध्य एक मित्र राज्य बन सके ।
शाहजहां के समय विद्रोह
- शाहजहां के शासनकाल में पहला विद्रोह सन 1628 में जुझार सिंह बुंदेला द्वारा किया गया।
- 1628 ईस्वी में अमृतसर के निकट शाहजहां का एक प्रिय बाज उड़कर सिख गुरु हरगोविंद सिक्के के खेमे से चला गया जिसे हरगोविंद सिंह ने देने से इंकार कर दिया और मुगलों का सिक्का द्वारा दूसरा झगड़ा हो गया।
- सन 1629 में एक अफगान सरदार खान जहां लोधी ने विद्रोह किया।
स्थापत्य कला
शाहजहां रुचि चित्रकला से अधिक स्थापत्य कला में थी। शाहजहां ने मुमताज़ की याद में आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया। इसकी रूपरेखा उस्ताद ईशा ने तैयार की जबकि ताजमहल का मुख्य वास्तुकार "उस्ताद अहमद लाहोरी" था। शाहजहां द्वारा निम्न इमारते बनाई गई -
- लाल किला (दिल्ली)
- दीवान-ए-आम (दिल्ली)
- जामा मस्जिद (दिल्ली)
- मोती मस्जिद (आगरा)
- ताजमहल (आगरा)
*ताजमहल को हुमायूं के मकबरे का पूर्ववर्ती माना जाता हैं। इसमें हिन्दू और ईरानी वास्तुकला का समन्वय है ।
*जामा मस्जिद इसका निर्माण शाहजहां की पुत्री जहाॅआरा ने करवाया था।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था
शाहजहां ने 1632 में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया तत्पश्चात अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की और यमुना नदी के किनारे शाहजहांनाबाद नाम से एक नया नगर बसाया। शाहजहां के पुत्रों में दारा शिकोह सबसे अधिक विद्वान था । इसने सिर-ए-अकबर नाम से 52 उपनिषदों का अनुवाद किया । शाहजहां ने दारा शिकोह को "शाह बुलंद इकबाल" की उपाधि से सम्मानित किया । मजम-उल-बहरीन द्वारा दारा शिकोह की मूल रचना है। दारा शिकोह कादरी सिलसिले "मुल्लाह शाह बदख्शी" का शिष्य था। लेन पुल ने दारा शिकोह को उसकी सहिष्णुता व उदारता के लिए "लघु अकबर" की संज्ञा दी । मोहम्मद फकीर एवं मीर हाशिन शाहजहां के दरबारी चित्रकार थे। वंशीधर मिश्र और हरि नारायण मिश्र 2 संस्कृत के विद्वान थे। कविंद्राचार्य शाहजहां के आश्रित कवि थे। इन्होंने शाहजहां से निवेदन कर बनारस और इलाहाबाद तीर्थ यात्रा कर को समाप्त करवा दिया था। शाहजहां के शासनकाल में उनका राज्य कवि कलीम था । शाहजहां ने अपने संगीतज्ञ लाख खां को "गुण समंदर" की उपाधि प्रदान की। सन 1657 में शाहजहां के गंभीर रूप से बीमार पड़ने व मृत्यु की अफवाह फैलने से उनके पुत्रों में उत्तराधिकार हेतु युद्ध प्रारंभ हो गया। उस समय सूजा बंगाल में, मुराद गुजरात में और औरंगजेब दक्कन में था।
दारा शिकोह और औरंगजेब के मध्य निम्न तीन युद्ध हुए-
- धर्मण्ड का युद्ध 15 अप्रैल 1658 को दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच हुआ । इस युद्ध में औरंगजेब की विजय हई ।
- सामूगढ़ का युद्ध दारा शिकोह और औरंगजेब और मुरादबक्श के बीच हुआ। इसमें दारा शिकोह बुरी तरह पराजित हुआ। इस युद्ध के बाद औरंगजेब ने मुराद को बंदी बनाकर उसकी हत्या करवा दी
- देवराई घाटी का युद्ध दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध के बाद दारा शिकोह को बन्दी लिया गया और इस्लाम की अवेहेलना करने के आरोप में अगस्त 1659 में की हत्या कर दी गई ।
शाहजहां के शासन काल का वर्णन ट्रैवर्नियर बर्नियर एवं मनूची (इटालियन) ने अपनी पुस्तकों में किया है।
Source :- NCERT books
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