सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

UKSSSC MOCK TEST - 166

  UKSSSC MOCK TEST - 166 उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  देवभूमि उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड समूह ग परीक्षा हेतु टेस्ट सीरीज का संचालन किया जा रहा है। सभी टेस्ट पाने के लिए संपर्क करें -9568166280 Uksssc mock test -166 ( 1) निम्नलिखित में से कौन-सा वर्ण ह्रस्व स्वर नहीं है? (A) अ (B) इ (C) ऊ (D) उ (2) निम्नलिखित में से कौन-सा संयुक्त वाक्य है? (A) वह खेल रहा था क्योंकि बारिश हो रही थी। (B) वह बाजार गया और फल खरीद लाया। (C) वह इतना थका हुआ था कि तुरंत सो गया। (D) उसने कहा कि परीक्षा कठिन थी। (3) नीचे दिए गए समास और उनके प्रकार का सुमेलित करें।     कॉलम A 1. गुरुकुल 2. जलपान 3. देवालय 4. यथाशक्ति     कॉलम B A. तत्पुरुष B. कर्मधारय C. अव्ययीभाव D. द्वंद्व विकल्प: (A) 1-A, 2-B, 3-C, 4-D (B) 1-A, 2-C, 3-D, 4-B (C) 1-A, 2-B, 3-D, 4-C (D) 1-A, 2-B, 3-A, 4-C (4) वाक्य "राम ने सीता को फूल दिया।" में 'सीता को' किस कारक का उदाहरण है? (a) करण (b) अपादान (c) संप्रदान (d) अधिकरण (05) निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए है?       ...

पंचायती राज व्यवस्था

  पंचायती राज व्यवस्था

                 पंचायत दिवस 

24 अप्रैल 1992 को संविधान में 73वां संशोधन संशोधन हुआ जिसके तहत देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई । जिसके बाद प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल 1993 से पंचायती राज  दिवस मनाने की शुरुआत हुई। प्रस्तुत लेख प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक सदाबहार टॉपिक है । चाहे UPSC हो या राज्य सरकार का कोई भी एग्जाम जैसे- ukpcs, uppcs, mppcs और bppcs  यहां से प्रत्येक वर्ष प्रश्न पूछे जाते हैं अतः दिए गए आर्टिकल को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

पंचायती राज व्यवस्था क्या है? 

जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करने को ही पंचायती राज व्यवस्था कहते हैं। अर्थात ग्रामीण क्षेत्रों से ही एक समझदार और विचारशील व्यक्ति को नेता (सभापति) चुना जाता है । जिसका कार्य होता है कि सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का कार्यान्वयन करें। और इसके अतिरिक्त गांव की समस्या का चयन करके विकास के लिए सुझाव दें। यदि हम किताबी भाषा की बात करें तो लोकतांत्रिक सरकार का विकेंद्रीकरण ही पंचायती राज व्यवस्था कहलाता है । अर्थात लोकतंत्र सरकार की शक्तियों का विभाजन। जिसके द्वारा जमीनी स्तर तक पहुंच कर देश का विकास किया जा सके ।

                   अब जाहिर है कि पंचायती राज व्यवस्था जिसके 5 वर्ष बाद चुनाव आते हैं। जिसके लिए ग्रामीण जनता अत्यधिक रुचि दिखाती हैं। और लाखों पैसा छोटे से चुनाव को जीतने के लिए बहा देते हैं। दुर्भाग्य है देश का,   कि चुनाव जीतने के लिए व्यक्तित्व की पहचान करने की बजाय पैसों से पहचान की करते हैं तो आप को जरूर जाना चाहिए कि यह व्यवस्था कैसे प्रारंभ हुई? किसने प्रारंभ की?  और कब प्रारंभ हुई? 

पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास

पंचायती राज व्यवस्था के मुख्य पक्षधर थे - महात्मा गांधी ।उनका मानना था कि किसी भी देश की सुख-समृद्धि गांव पर निर्भर करती है । वे चाहते थे कि गांव के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाए। लेकिन गांधी जी से भी पहले पंचायती राज व्यवस्था का जिक्र 1773 के चार्टर एक्ट में किया जा चुका था। उसके 1870 में लॉर्ड मेयो  द्वारा ग्राम पंचायतों के लिए वित्त की व्यवस्था की गई ।  बाद में लॉर्ड रिपन ने 1882 ई.  में व्यापक स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया ।  लॉर्ड रिपन को ही "स्थानीय स्वशासन का जनक" माना जाता है । । लेकिन हो सकता है कि यह  प्रेरणा लॉर्ड रिपन को चोल साम्राज्य से मिली हो । क्योंकि चोल साम्राज्य ने सत्ता का विकेंद्रीकरण करके शासन किया था । पंचायत राज व्यवस्था को  विकास का "मैग्नाकार्टाा" भी कहा जाता है।

                    सन् 1935 में भारत सरकार अधिनियम के तहत स्थानीय स्वशासन पूर्णतया राज्य का विषय बन गया। आजादी के बाद ग्रामीण विकास के उद्देश्य से  2 अक्टूबर 1952 में सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई । लेकिन सही ढंग से ना चलने के कारण 1 वर्ष पश्चात बंद कर दिया गया।  उसी के बदले में 2 अक्टूबर 1953 में राष्ट्रीय प्रचार सेवा सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए प्रारंभ किया गया।

 पंचायती स्तरीय व्यवस्था

                 स्थानीय स्वशासन के संबंध में सबसे प्रमुख दो समितियां लाई गई । जिनका व्यापक स्तर पर विश्लेषण किया और रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।  उसके बाद ग्रामीण विकास के उद्देश्य से सबसे पहले  बलवंत राय मेहता समिति 1957 में लागू की गई। जिसके आधार पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था सामने लाई आयी।

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था :1957

 त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन को तीन स्तरों पर विभाजित किया गया। (1) ग्राम पंचायत (2)पंचायत समिति (3) जिला परिषद । यह समिति उत्तराखंड,  उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान,  महाराष्ट्र,  आंध्र प्रदेश, पंजाब,  तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश,  गुजरात और गोवा आदि बड़े स्तर पर राज्यों  में प्रचलित की है। सबसे पहले 1957 में राजस्थान के नागौर जिले से पंचायती शासन व्यवस्था को प्रारंभ किया गया।

अशोक मेहता समिति : 1977

दूसरी मुख्य समिति डॉ अशोक मेहता द्वारा 1977 ई.  में लाई गई। इनके अनुसार पंचायती राज व्यवस्था के केवल दो स्तर होने चाहिए । जिस पर बेहतर ढंग से समन्वय स्थापित किया जा सकता था। अतः (1) जिला पंचायत और (2) मंडल पंचायत का सुझाव दिया । लेकिन केंद्र सरकार ने डॉ बलवंत राय मेहता  के द्वारा लाई गई समिति पर जोर दिया। और राज्य को अपनी इच्छा अनुसार पंचायती व्यवस्था लागू करने की छूट दी । यह समिति असम,  कर्नाटक, उड़ीसा,  हरियाणा,  दिल्ली और पुडुचेरी में प्रचलित है। 

इसके अलावा पश्चिम बंगाल में योजना आयोग की सिफारिश पर डॉ. पी वी राव द्वारा चार स्तरीय पंचायती व्यवस्था सन् 1885  में लागू की गई।

संवैधानिक दृष्टिकोण

संविधान की दृष्टि से ग्राम पंचायतों का गठन अनुच्छेद 40  में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में शामिल किया गया है । सरकार के अथक प्रयासों से 1992 में 73 वा संविधान संशोधन अधिनियम लागू किया गयाजिसके अंतर्गत 11वीं अनुसूची जोड़ी गई । इसमे  16 नए अनुच्छेदों का वर्णन अनुच्छेद 243 में किया गया । अनुच्छेद 243 में पंचायती राज व्यवस्था की परिभाषा दी गई है।  तथा 243(a) से 243(o)  तक पंचायती राज व्यवस्था के सभी प्रारूप और नियमों विवरण किया गया। जिसमें मुख्य अनुच्छेद 243 (c) जिसमें पंचायतों के गठन की बात कही गई है । अनुच्छेद 243 (d) में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय केेेेे लिए आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान है। इसके अलावा  अनुच्छेद 243(i)  में वित्तीय व्यवस्था का उल्लेख है जो   वित्तीय की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी समिति के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। अतः यह महत्वपूर्ण है।

स्थानीय स्वशासन के उद्देश्य

               स्थानीय स्वशासन व्यवस्था के जरिए जनता अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझा सकती है। छोटे-छोटे वाद विवाद अदालत पहुंचने के स्थान पर सभापति के द्वारा न्याय कराए जा सकते हैं। साथ ही साथ सबसे महत्वपूर्ण केंद्र और राज्य की सरकारों का बोझ को कम करना है। इसके साथ ही लोग राजनीति के प्रति जागरूक होंगे और देश के विकास के लिए यह समझ पाएंगे कि एक अच्छा नेता कैसा होना चाहिए। वर्ष 2020 में राष्ट्रीय पंचायत दिवस 24 अप्रैल के मौके पर यह मोदी ने ई-ग्राम स्वराज पोर्टल की शुरूआत की। इसका उद्देश्य गांव में स्वामित्व योजना को ठीक कर संपत्ति को लेकर कलह की स्थिति को खत्म करना है । इसके माध्यम से ग्राम पंचायतों को ग्राम पंचायत विकास योजना व भूमि मैपिंग आदि कार्य किए जाएंगे। जिससे पंचायतों में पारदर्शिता आएगी साथ ही साथ  सभी गाांवों रिकॉर्ड एक ही स्थान पर उपलब्ध हो जाएंगे। प्राप्त रिकार्डों से एक प्रमाण पत्र तैयार किया जाएगा और इस प्रमाण पत्र के जरिए ग्रामवासी चाहेे तो लोन ले सकते हैं।

पंचायत के प्रमुख कार्य

पंचायती राज व्यवस्था का प्रमुख कार्य है कि छोटी-छोटी समस्याओं का निपटारा करना और सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का जमीनी स्तर पर लागू करना । जिसके अंतर्गत पीने के पानी की व्यवस्था कराना,  सड़कों का निर्माण कराना,  जल निकासी के लिए व्यवस्थित नालियां  बनवाना,  स्वास्थ्य के प्रति अस्पताल बनवाना  । साथ ही साथ पंचायतों का पर्यावरण के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना जिसके तहत पौधारोपण करना,  कृषि और भूमि के विकास में सहायता प्रदान करना । शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पुस्तकालय एवं वाचनालय आदि की स्थापना करना। वर्ष  2020 से  पंचायत दिवस के अवसर पर किसी भी पंचायत के उत्कृष्ट प्रदर्शन पर  प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राष्ट्रीय  पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

महत्वपूर्ण अनुच्छेद - पंचायती राज व्यवस्था


 पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित प्रश्न :-

(1) पंचायत दिवस मनाने की शुरुआत कब से हुई ?

(a) 24 अप्रैल 1972

(b) 24 अप्रैल 1973

(c) 24 अप्रैल 1992

(d) 24 अप्रैल 1993

(2) निम्नलिखित में से स्थानीय स्वशासन के जनक किन्हें कहा जाता है ?

(a) लॉर्ड रिपन

(b) लॉर्ड वेलीजली

(c) लॉर्ड डलहौजी

(d) लॉर्ड कर्जन

(3) पंचायत व्यवस्था का उल्लेख संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है?

(a) अनुच्छेद 243

(b) अनुच्छेद 240

(c) अनुच्छेद 40

(d) अनुच्छेद 343

(4) ग्राम पंचायतों के सभापति के लिए संविधान के किस अनुच्छेद में  के अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का प्रावधान किया गया है ?

(a) अनुच्छेद 243 (a)

(b) अनुच्छेद 243 (b)

(c) अनुच्छेद 243 (c)

(d) अनुच्छेद 243(d)

(5) ई पंचायत पोर्टल की शुरुआत कब की गई ?

(a) 2016

(b) 2015

(c) 2018

(d) 2020

(6) संविधान के किस भाग में पंचायती राज व्यवस्था का वर्णन है।

(a) भाग - 4

(b) भाग - 5

(c) भाग -8

(d) भाग -9

(7) किस संविधान संशोधन के तहत देश में पंचायती व्यवस्था लागू की गई है ?

(a) 101 वहां संविधान संशोधन

(b) 73 वां संविधान संशोधन

(c) 93 वां संविधान संशोधन

(d) 42 वां संविधान संशोधन

(8) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सबसे पहले किस राज्य में पंचायती व्यवस्था लागू की गई ?

(a) उत्तर प्रदेश

(b) मध्य प्रदेश

(c) राजस्थान

(d) केरल

(9) निम्नलिखित में से किसके आश्वासन से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था प्रयोग में लाई गई ?

(a) अशोक मेहता

(b) बलवंत राय मेहता

(c) डॉ. पी वी राव

(d) इनमें से कोई नहीं

 (10) अशोक मेहता समिति का संबंध निम्नलिखित में से  किससे है ?

(a) नगर पालिका व्यवस्था

(b) GST 

(c) भ-सुधार से

(d) पंचायती राज व्यवस्था

(11) निम्नलिखित में से  पंचायती राज व्यवस्था 73वें संविधान संशोधन के बाद  किस अनुसूची में शामिल किया गया है ?

(a) अनुसूची 9 वी

(b) अनुसूची 10वीं

(c) अनुसूची 11वीं

(d) अनुसूची 12वीं

Answer - (1)d , (2)b, (3)c, (4)d, (5)d, (6)d,  (7)b, (8)c, (9)b, (10)d, (11)c

यदि आपको हमारे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आते हैं तो अधिक से अधिक लोगों को शेयर कीजिए। इसके अतिरिक्त यदि आप उत्तराखंड की परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। तो देवभूमिउत्तराखंड.com में परीक्षाओं से संबंधित उत्तराखंड का इतिहास के सभी नोट्स उपलब्ध है ंं। साथ ही प्रति सप्ताह करंट अफेयर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। हमसे जुड़ने के लिए फेसबुक पेज देवभूमि उत्तराखंड व टेलीग्राम में देवभूमि उत्तराखंड से जुड़ सकते है।

Sources : भारतीय अर्थशास्त्र (रमेश सिंह)

इन्हें भी जानें



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubts.
Please let me now.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...