टिहरी वंश का प्रशासन
उत्तरवर्ती परमार वंश की प्रशासन व्यवस्था (भाग - 05)
टिहरी वंश का भौगोलिक क्षेत्र
टिहरी वंश के संस्थापक सुदर्शन शाह को कहा जाता है। इस वंश को उतरवर्ती परमार वंश भी कहा जाता है। सुदर्शन शाह परमार वंश का 55वां राजा था। गोरखा युद्ध के दौरान राजा के वफादारों के द्वारा इन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुंचा कर बचा लिया गया था। अंग्रेजों की सहायता से सुदर्शन शाह ने गोरखाओ का अंत किया। ब्रिटिश सरकार ने सुदर्शन शाह को अलकनंदा नदी के पश्चिम का क्षेत्र दिया। सुदर्शन शाह ने समुंद्र तल से 2325 फीट की ऊंचाई पर स्थित 'टिहरी' को अपनी राजधानी बनाई। टिहरी तीन ओर से भागीरथी नदी एवं उसके किनारे स्थित भिलंगना नदी तथा पीछे की ओर पर्वत श्रृंखला से घिरा था। सुदर्शन शाह 18 दिसंबर 1815 ईसवी में राजगद्दी पर बैठा तथा सन 1824 ईस्वी में 'रंवाई' का परगना भी टिहरी राज्य में शामिल कर लिया
टिहरी वंश की प्रशासन व्यवस्था
टिहरी राज्य प्रशासन का विभाजन इस प्रकार बटां हुआ था। टिहरी राज्य - ठाणें - परगना - पट्टी - गांव (ग्राम) । राज्य में सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।
राजा - राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था। राज्य की समस्त प्राकृतिक संपदाओं, भूमि वन, खनिज, जल, पशु-पक्षी आदि पर पूर्ण स्वामित्व राजा का ही माना जाता था। राजा मंत्री परिषद का अध्यक्ष होता था तथा समस्त राज्य कर्मियों की नियुक्ति राजा ही करता था। टिहरी राज्य में राजा के बाद "दीवान व वजीर" का पद सर्वोच्च होता था। राज्य की आंतरिक व्यवस्था व नीतियों का निर्धारण दीवान व वजीर के द्वारा होता था।
ठाणदार (थानेदार) - सुदर्शन शाह ने प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य को चार ठाणों में बांटा था। चारों ठाणों का अधिकारी ठाणदार (थानेदार) कहलाता था।
सुपरवाइजर - ठाणें , परगनों व पट्टियों में बांटे गये थे। परगने की व्यवस्था करने वाले अधिकारी को सुपरवाइजर कहते थे । पटवारी राजस्व विभाग का अधिकारी होने के साथ-साथ पुलिस अधिकारी के रूप में भी कार्य करता था उसके लिए आवश्यक था कि वह अपनी पट्टियों के प्रधानों से निर्धारित राजस्व की राशियां तहसील में जमा कराए।
कमीण व सयाणा - सुदर्शन शाह ने ग्रामों की व्यवस्था के लिए कमीण व सयाणा की नियुक्ति की। सयाणा गांव के मौरूसीदारों में से नियुक्त किया जाता था। (मौरूसीदार एक प्रकार का कृषक होता था)
सैन्य व्यवस्था
ब्रिटिश शासन काल में देशी राजाओं के लिए बाहरी आक्रमण का भय नहीं था। राज्य में शांति व सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए राजा थोड़ी सी सेना व पुलिस रखते थे। राजकोष, न्यायालय, कोषागार आदि की रक्षा के लिए सशस्त्र संतरी होते थे। ग्रामीण क्षेत्र में पटवारियों को पुलिस के अधिकार प्राप्त थे। पटवारी का चाकर भी पटवारी के आदेश से किसी को बंदी बना सकता था।
टिहरी वंश की आर्थिक व्यवस्था
राज्य की आय के प्रमुख स्रोत भू-राजस्व, न्यायालय द्वारा दण्ड, मादक वस्तुओं पर कर, विक्रय कर, आयकर आदि थे। टिहरी नरेशों के समय में दास दासियों का विक्रय होता था इससे भी राज्य की आय बढ़ती थी।
भू-व्यवस्था
राज्य की समस्त भूमि पर पूर्ण स्वामित्व राजा का था। राज्य के गांव में राजा की आज्ञा से जो व्यक्ति कृषि भूमि में कृषि करता था वह "आसामी" कहलाता था।
आसामी तीन प्रकार के थे :-
- मौरूसीदार - जो राजा की आज्ञा से भूमि को बिना किसी दूसरे की अधीनता के कमाता था और टिहरी नरेश को राजस्व देता था।
- खायकर - जो मौरूसीदार के अधीन उसकी भूमि से कमाता था तथा मौरूसीदार को निर्धारित रकम देता था।
- सिरतान - जो मौरूसीदार या खायकर को उसकी भूमि के लिए 'सिरती' नगद रकम दिया करता था।
भूमि कर या लगान का 7/8 नगद राशि के रूप में लिया जाता था जिसे मामला या रकम कहते थे। राज्य में कृषि को भूमि विक्रय करने का अधिकार नहीं था भूमि विक्रय पर रोक लगाने से गांव की भूमि गांव वालों के पास ही रहती थी। ऋण की वसूली के लिए कृषि भूमि की बिक्री नहीं हो सकती थी।
वन व्यवस्था
टिहरी नरेशों के शासनकाल में "घीकर" के नाम से कुछ राशि पशु चराने वालों से ली जाती थी। "घीकर" को 'चराईकर' के नाम से भी जाना जाता है। टिहरी नरेश वनों के विभिन्न घाटों का ठेका ठेकेदारों को देते थे जो कि राशि को राजकोष में जमा करने के लिए उत्तरदायी थे।
टिहरी वंश की सामाजिक व्यवस्था
शिक्षा व्यवस्था
सुदर्शन शाह व भवानी शाह के राज्य काल तक प्रजा के बच्चों की शिक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया था। लेकिन केंद्र में लॉर्ड मैकाले की अनुशंसा पर ब्रिटिश सरकार द्वारा 1830 के दशक में भारत में विधालयों की स्थापना प्रारंभ की गई। केंद्र में शिक्षा का जोर-शोर देखते हुए टिहरी नरेश कीर्ति शाह ने 1890 के दशक में नए ढंग से विद्यालयों की स्थापना की। उन्होंने प्रताप पाठशाला को हाई स्कूल बनवाया। कीर्ति शाह ने टिहरी में कैम्बैल, बोर्डिंग हाउस, हिबेट संस्कृत पाठशाला, मोहम्मद मदरसा तथा कन्या पाठशाला की स्थापना की।
स्वास्थ्य व्यवस्था
1876 में प्रताप शाह ने राजधानी में पहला "खैराती शफाखाना" स्थापित किया। इसमें भारतीय तथा यूरोपीय पद्धति से चिकित्सा होती थी ।
कीर्ति शाह ने तीर्थ यात्रा मार्गो पर छोटे-छोटे और औषधालयों की स्थापना की तथा चेचक को रोकने हेतु टीकाकरण प्रारंभ कराया।
नरेंद्र शाह ने 1925 में नरेंद्र नगर में एक वर्तमान ढंग से चिकित्सालय की स्थापना की साथ ही देवप्रयाग तथा उत्तरकाशी में भी चिकित्सालयों की स्थापना की। टिहरी में 1934 में रेड क्रॉस सोसाइटी की स्थापना की गई।
यातायात व्यवस्था
सुदर्शन शाह व भवानी शाह ने अनेक सड़कों की मरम्मत करवाई तथा नदियों पर झूले वाले पुलों का निर्माण कराया। प्रताप शाह की निर्माण कार्य में विशेष रूचि थी। उन्होंने सड़क भवन निर्माण कार्यों के लिए अधीक्षक नियुक्त किए।
न्याय व्यवस्था
सुदर्शन शाह ने अपने शासनकाल में चार स्तरों पर न्याय व्यवस्था स्थापित की -
- छोटी दीवानी
- बड़ी दीवानी
- सरसरी न्यायालय
- कलेक्ट्री न्यायालय
इसके अलावा जागीरदार अपने जागीर के गांव की दीवानी एवं फौजदारी विवादों का निर्णय स्वयं कर सकते थे। हत्या के विवादों का निर्णय राजा के द्वारा ही होता था।
सन 1919 में राजा नरेंद्र शाह ने नियमों को नरेंद्र हिंदू लॉ के अंतर्गत विधिवत कराया। सन 1938 में नरेंद्र शाह ने हाईकोर्ट की स्थापना की व फौजदारी के विवादों के लिए सेशन कोर्ट की स्थापना की गई। इसका उच्च अधिकारी सेशन जज होता था।
स्रोत - उत्तराखंड का राजनीतिक इतिहास (अजय रावत )
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