उत्तराखडं राज्य के प्रतीक
9 नवम्बर 2000 को उत्तर प्रदेश (UP) के 13 पहाड़ी जिलों को काटकर भारतीय गणतन्त्र के 27वेंराज्य के रूप उत्तराखंड का गठन किया गया। उत्तराखंड को हिमालयी राज्यों के गठन के क्रम में 11वें राज्य के रूप में शामिल किया गया
उत्तराखडं का राज्य पुष्प – ब्रह्मकमल
- उत्तराखडं का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल "मध्य हिमालयी क्षेत्र" में 4800 से 6000 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है, जिसकी औसत ऊँचाई 70 से 80 सेमी. के मध्य तक होती है।
- यह ऐसटेरसी कुल का पौधा है, ब्रह्मकमल का वैज्ञानिक नाम सोसूरिया अबवेलेटा है जिसकी उत्तराखंड में 24 और सपंर्णू विश्व में 210 प्रजातियाँ पाई जाती है।
- ब्रह्मकमल को स्थानीय भाषा में "कौल पद्म" के नाम से जाना जाता है, तथा महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है।
- हिमाचल प्रदेश में ब्रह्मकमल को दूधफला कहा जाता है तथा कश्मीर में गलगल कहा जाता है। और पड़ोसी देश नेपाल में ब्रह्मकमल को टोपगोला कहते जाता हैं।
- यह पुष्प उत्तराखडं के केदारनाथ, फूलों की घाटी, पिडांरी ग्लेशियर आदि क्षेत्रों में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है, जिसे केदारनाथ स्थित भगवान शिव और महानंदा (पार्वती) को अर्पित किया जाता है। उत्तराखंड में ब्रह्मकमल नंदा अष्टमी को तोड़े जाने का महत्व है। यह मुख्यतः जुलाई से सितम्बर के मध्य तक खिलता है।
- सोसूरिया गार्मिफोलिया (फेनकमल), सोसूरिया अबवेलेटा (ब्रह्मकमल), सोसूरिया लम्पा, सोसूरिया सिमेसोनिया तथा सोसूरिया ग्रासोफिफेरा (कस्तुराकमल) उत्तराखंड में पाई जानेवाली प्रमुख प्रजातियाँ है। इनमें से सोसूरिया गार्मिफोलिया, (फेनकमल), सोसरिुरिया अबवेलेटा (ब्रह्मकमल), तथा सोसूरिया ग्रासोफिफेरा (कस्तुराकमल) के पुष्प बैंगनी रंग के होते है।
उत्तराखंड का राज्य पक्षी – मोनाल
उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद सन् 2000 में सरकार द्वारा मोनाल को उत्तराखंड का राज्य पक्षी घोषित किया गया, जिसे "हिमालय के मयूर" के नाम से भी जाना जाता है।
- यह पक्षी हिमालयी क्षेत्र में 2500 से 5000 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है।
- इसका वैज्ञानिक क नाम 'लोफोफोस इंपीजेंस' है तथा स्थानीय भाषा में इस पक्षी को मन्याल या मुनाल के नाम से जाना जाता है।
- मोनाल पक्षी अपना घोंसला नहीं बनाती जबकि अपने अंडे किसी पेड़ या चट्टान के छिद्र में देती है।
- आलू मोनाल पक्षी का प्रिय भोजन है।
- यह पक्षी नीले, काले, हरे आदि रंगों के मिश्रण का होता है । इस पक्षी की पूंछ हरे रंग की तथा डफिया (नर पक्षी) के सिर पर रंगीन कलगी होती है।
NOTE - मोनाल तथा डफिया एक ही प्रजाति के पक्षी है, किंतु मोनाल मादा पक्षी है जबकि डफिया नर पक्षी है। मोनाल उत्तराखडं के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी तथा नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी है।
उत्तराखंड का राज्य पशु – कस्तूरी मृग
उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद सन् 2001 में सरकार द्वारा मोनाल को उत्तराखंड का राज्य पशु घोषित किया गया, यह हिमालय क्षेत्र में 3600 से 4400 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगास्टर है तथा इसे "हिमालयन मास्क डियर" के नाम से जाना जाता है।
कस्तूरी मृग की ऊंचाई 20 इंच तथा इसका वजन 10 से 20 की किग्रा होता है। कस्तूरी मृग की सूंघने की क्षमता व सुनने की क्षमता अधिक होती है। इसका रंग भूरा तथा औसत आयु 20 वर्ष होती है कस्तूरी मृग में आत्मरक्षा के लिए दो बड़े बड़े दांत होते हैं जो बाहर की ओर निकले होते हैं।
कस्तूरी केवल नर मृग में पाया जाता है। इसका निर्माण 1 वर्ष से अधिक आयु के नर मृग के जननांग के समीप स्थित ग्रंथि से स्रावित द्रव के नाभि के पास गांठनुमा थैली में एकत्र होने से होता है। एक बार में एक नर मृग से 30 से 45 ग्राम तक कस्तूरी प्राप्त की जा सकती है।
कस्तूरी मृग से प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल में कस्तूरी प्राप्त की जा सकती है। जिसका उपयोग सुगंधित सामग्रियों के निर्माण में तथा हृदय रोग, टाइफाइड, दमा आदि रोगों की औषधियों के निर्माण में किया जाता है।
- कस्तूरी मृग के संरक्षण के लिए वर्ष 1972 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा केदारनाथ वन्यजीव विभाग (चमोली) के अंतर्गत 967.2 वर्ग किलोमीटर में कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई।
- वर्ष 1977 में उत्तराखंड में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (बागेश्वर व पिथौरागढ़) की स्थापना की गई।
- वर्ष 1986 में अस्कोट अभ्यारण की स्थापना पिथौरागढ़ में की गई।
- वर्ष 1982 में चमोली जिले की कांचुला खर्क में एक कस्तूरी मृग प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई
उत्तराखंड का राज्य वृक्ष : बुरांश
उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद सन् 2001 में सरकार द्वारा बुरांश को उत्तराखंड का राज्य वृक्ष घोषित किया गया, उत्तराखंड के राज्य वृक्ष बुरांश का वानस्पतिक नाम रोड़ोडेन्ड्रोन अरबोरियम है। जिसकी ऊंचाई लगभग 20 से 25 फिट होती है।
- भारत में बुरांश की 87 प्रजाति पाई जाती हैं। भारत में सर्वप्रथम बुरांश के रोड़ोडेन्ड्रोन अरबोरियम प्रजाति की खोज श्रीनगर जम्मू में हुई थी। बुरांश एरिकेसई कुल का वृक्ष है।
- बुरांश को हिमाचल प्रदेश में "बुरांशो, मेघालय में तिन-शां और कन्नड़ में "बिल्ली" कहा जाता है। इसके अलावा यह बुरुंशी, आर्डवाल, बुरांशी के नाम से भी जाना जाता है।
- बुरांश उत्तराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश और नागालैंड का राज्य पुष्प है।
- बुरांश के फूलों का रंग चटक लाल होता है । यह लगभग 1500 से 4000 मीटर की ऊंचाई के मध्य पाया जाता है और ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ बुरांश के फूलों का रंग गहरा लाल हल्का लाल मिलता है तथा 11000 फुट (3300 मीटर) से अधिक की ऊंचाई पर बुरांश के फूलों का रंग सफेद होता है।
- बुरांश के फूलों का खेलने का समय मुख्यतः फरवरी से अप्रैल (बसंत ऋतु) के बीच होता है। बुरांश के फूलों से जूस बनाया जाता है। इसके फूल में मिथेनॉल की प्रचुरता होती है जिस कारण हृदय रोग अर्थात डायबिटीज जैसी बीमारियों पर के लिए फायदेमंद होता है।
बुरांश वृक्ष को वन अधिनियम 1974 के तहत संरक्षित वृक्ष घोषित किया गया है।
उत्तराखंड की राज्य तितली : कॉमन पीकॉक
उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद 15 वर्षों के बाद 7 नवंबर 2016 में सरकार द्वारा कॉमन पीकॉक को उत्तराखंड की राज्य तितली घोषित किया गया।
- कॉमन पीकॉक हिमालय क्षेत्रों में 2100 मीटर (7000 फीट) की ऊंचाई पर मिलती हैं।
- कॉमन पीकॉक का वैज्ञानिक नाम पैपिलियों बायनर है। 1996 में इसे भारत की सबसे सुंदर तितली का खिताब मिला और लिम्का बुक में नाम दर्ज किया गया।
- यह तितली टिमरू के पेड़ पर अंडे देती है और उसी की पत्तियों को खाती हैं।
- 2016 में देहरादून के लच्छीवाला में बटरफ्लाई पार्क खोला गया।
- कॉमन पीकॉक का जीवनकाल 30 से 35 दिन का होता है ।
उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र - ढोलक
ढोल एक प्राचीन वाद्य यंत्र है जिसको लकड़ी, तांबे, पीतल व चांदी धातु पर बकरी की खाल लगाकर बनाया जाता है। भंडारी कमेटी की सिफारिश पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने वर्ष 2015 में ढोल को उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र घोषित किया।
- ढोल से 22 तरह के ताल बजाए जाते हैं। जिसमें नौबात, रहमानी, बढैं आदि ताल प्रमुख हैं।
- उत्तराखंड में मांगलिक कार्यक्रम शुरू करने से पहले बढैं ताल बजाया जाता है।
- उत्तराखंड राज्य में एकमात्र ढोल सागर के ज्ञाता उत्तम दास है।
महत्वपूर्ण तथ्य :-
- उत्तराखंड का राज्य चिन्ह समचतुर्भुज के आकार का है जिसका प्रयोग शासकीय कार्यों के लिए किया जाता है। इसमें तीन पर्वत चोटी व अशोक की लाट अंकित है। लाट के नीचे संस्कृत भाषा में "सत्यमेव जयते" लिखा गया है। (सत्यमेव जयते - मुण्डकोपनिषद)
- राज्य चिन्ह के बीच वाले भाग में श्वेत पृष्ठ पर चार जलधाराएं को नीले रंग में दिखाया जाए गया है। जो उत्तराखंड की 4 नदियों गंगा, यमुना, रामगंगा एवं काली नदी को दर्शाती हैं।
- राज्य चिन्ह के सबसे नीचे नीले रंग में "उत्तराखंड" नाम अंकित है।
- उत्तराखंड का राज्य खेल फुटबॉल है जिसे 2011 में राज्य खेल घोषित किया गया था।
- उत्तराखंड राज्य भाषा हिंदी है तथा द्वितीय राजभाषा संस्कृत है।
- उत्तराखंड सरकार ने 2010 में संस्कृत को राज्य की दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया।
- उत्तराखंड का राज्य गीत "उत्तराखंड देवभूमि मातृभूमि शत-शत वंदन अभिनंदन है" जिसके रचनाकार हेमंत बिष्ट है।
- उत्तराखंड राज्य गीत गाने की अवधि 9 मिनट है। जिसे श्री नरेंद्र सिंह नेगी और अनुराधा निराला द्वारा संगीत दिया गया है।
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