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राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रदर्शन (करेंट अफेयर्स 2025)

करेंट अफेयर्स 2025 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रदर्शन  विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (World Test Championship, WTC) 2023-2025, इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) द्वारा आयोजित टेस्ट क्रिकेट का तीसरा संस्करण था, जो टेस्ट फॉर्मेट की लोकप्रियता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया।  यह चक्र जून 2023 में शुरू हुआ और 15 जून 2025 को  लॉर्ड्स, लंदन  में फाइनल के साथ समाप्त हुआ। साउथ अफ्रीका ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 5 विकेट से हराकर अपना पहला WTC खिताब और दूसरा ICC खिताब (1998 के बाद) जीता।  मुख्य तथ्य अवधि : जून 2023 से 15 जून 2025 तक। फाइनल : 11-15 जून 2025, लॉर्ड्स,  विजेता : साउथ अफ्रीका (ऑस्ट्रेलिया को 5 विकेट से हराया)। उपविजेता: ऑस्ट्रेलिया। भारत का प्रदर्शन भारत ने WTC 2023-2025 में शानदार शुरुआत की, लेकिन अंत में फाइनल में जगह नहीं बना सका : न्यूजीलैंड के खिलाफ घर में 0-3 की हार और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी टेस्ट में हार ने भारत को फाइनल की रेस से बाहर कर दिया। भारत पिछले दो संस्करणों (2019-21 और 2021-23) में फाइनल में पहुंचा था, ले...

पैसे छापने वाली मशीन

           मुद्रा पूर्ति  

                 Money supply

महंगाई और पैसो में संबंध! 

पैसे छापने वाली मशीन

भारत में मुद्रा आपूर्ति के दो माध्यम हैं।
(1) भारत सरकार व रिजर्व बैंक (C+R)
(2) जनता के पास व बैंक जमाएं(M1+M2+M3+M4)

               अगर आप देश की गरीबी के बारे में सोचते हैं या फिर आप अमीर बनने के बारे में सोचते हैं । एक बात जहन में जरूर आती होगी कि जब भारत के पास पैसा छापने वाली मशीन है। तो अधिक पैसा छाप कर सभी समस्याएं खत्म क्यों नहीं कर देता है?  विदेशों से लिया गया कर्ज क्यों नहीं चुका  देता है? आइए ऐसे ही सवालों की पूर्ण जानकारी आसान शब्दों में जाने।

                 अगर आप सोचते हैं कि पैसा छापने से गरीबी कम होगी । तो बिल्कुल गलत सोचते हो । अगर पैसे छाप कर सरकार मुफ्त में पैसे बांटने लग जाए तो लोग मेहनत करना छोड़ देंगे । जब मेहनत कम होगी तो उत्पादन में गिरावट आएगी और फिर वस्तुएं महंगी होंगी । इस तरह वस्तुएं और सेवाएं इतनी अधिक महंगी हो जाएंगी कि 2 किलो आलू खरीदने के लिए भी आपको  हजारों रुपए देने पड़ सकते हैं। वैसे तो यह एक अर्थशास्त्र का विषय है और अर्थशास्त्र के विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकते हैं लेकिन आम लोगों को समझने में दिक्कत आती हैं। इसलिए एक कहानी के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं । 

               एक शहर के किनारे छोटा सा गांव हैं । जिसकी आबादी लगभग 1000 तक होगी । गांव ना तो ज्यादा अमीर था ना ही गरीब । अधिकांश भूमिहीन किसान कारखानों और फैक्ट्रियों में काम करके गुजारा करते हैं। गांव में एक गणेश नाम का व्यक्ति था जिसके पास सबसे अधिक भूमि 5 एकड़ है । जिसके पास  8 सदस्यों का परिवार शामिल था । एक बेटा जिसने 12 th पास किया था। और एक बेटी जो 10th में  थी । उसकी इच्छा थी कि बेटा 12th करके इंजीनियर बने । जिसके लिए वह दिल्ली जैसे अच्छे शहर में एक अच्छे कॉलेज में पढ़ाना चाहता था। और बेटी को डॉक्टर बनाना चाहता था । इसके अलावा और भी इच्छाऐं थी कि एक बड़ा सा घर हो , घर में गाड़ी हो आदि आदि। वही गणेश के पड़ोस में सोहन नाम  का लड़का था। वह दूसरों की कार चलाता है अर्थात  ड्राइवर है। वह  दूसरों की गाड़ियां चला कर अपनी मां और बहन का खर्च उठाता। वह चाहता है कि खुद की गाड़ी और एक अच्छा सा घर हो। उसके  बाद बहन की शादी और एक-दो साल बाद स्वयं की शादी करना चाहता था। इस तरह उसे बहुत सारे पैसों की जरूरत थी । ऐसे ही एक व्यक्ति और था जिसका नाम श्याम था वह शहर में जमीन खरीद कर होटल बनाना चाहता था । श्याम का बेटा राहुल एक कंपनी में सुपरवाइजर का काम करता था। इसका वेतन भी कम था। गांव के सभी लोग कुछ ना कुछ काम करते थे । 

                      अब यदि सरकार इनको अतिरिक्त पैसे छाप कर इनकी गरीबी दूर कर देे। तो क्या लगता है ?  गणेश अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए मेहनत करेगा या फिर उसका पड़ोसी सोहन गाड़ी खरीदने के लिए दूसरों की गाड़ी चलाएगा? अब होगा ये जब बिना मेहनत के पैसे मिलेंगे तो कोई भी काम नहीं करना चाहेगा। आप स्वयं को देख लीजिए यदि आपके पास बहुत सारे पैसे आ जाएं तो आप क्या करेंगे?   आप भी काम करना छोड़ देंगे । अब मान लीजिए गणेश के द्वारा 100 कुंटल उत्पादन किया जाता है। अब मार्केट में  बेचने के लिए 1000 कुंटल की पूर्ति हुई  होती है ।  1000 लोगों द्वारा 1000 कुंटल प्रति खरीद भी लिया जाता है। यदि गणेश खेती करना बंद कर देता है तो केवल 900 कुंटल का ही उत्पादन होगा। ऐसे में 100 लोगों को अनाज नहीं मिल सकेगा। लेकिन सभी जानते हैं कि भोजन के बिना कोई जीवित नहीं रह सकता । इसलिए वे उस अनाज को खरीदने के लिए अधिक कीमत देने को तैयार हो जाएगेेंं। जिससे महंगाई बढ़ेगी ।  इसी तरह यदि पूरे देश में किसानों को या फिर गरीबों को पैसा बिना मेहनत के बांट दिया जाए तो उत्पादन कम और पैसा ज्यादा हो जाएगा । एक समय ऐसा आएगा एक ब्रेड देने के लिए एक बोरी भरकर पैसा ले जाना पड़ेगा।

           ऐसे ही एक देश है जिंबाब्वे जहां 2008 में सरकार ने पैसों की कमी को दूर करने के लिए अधिक मात्रा में पैसे छाप दिए । इससे सभी के पास अधिक मात्रा में पैसे आ गए । और एकदम से  वस्तुओं की मांग बढ़ गई । उत्पादन कम होने से विक्रेताओं ने कीमत बढ़ा दी और यही हाल प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का हुआ था। 

पैसे कहां से आते हैं? या मुद्रा आपूर्ति क्या है ?

मुद्रा आपूर्ति का आशय है कि किसी निश्चित समय में अर्थव्यवस्था में पब्लिक के पास मौजूद कुल पैसों का योग मुद्रा अपूर्ति कहलाता है।  साधारण शब्दों में कह तो जो मुद्रा पब्लिक के पास होती है और पब्लिक का आशय एक परिवार एक राज्य एक देश में मौजूद सभी व्यक्ति व अन्य  संस्था का फर्म आदि।

जनता (पब्लिक) के पास मुद्रा का क्या अर्थ है ?

जनता के पास मुद्रा का अर्थ है कि जनता के पास दो प्रकार से मुद्रा की आपूर्ति होती है। 
(1) भारत सरकार व RBI के द्वारा जारी मुद्रा
(2) जनता की बैंक में जमा राशि

(1) भारत सरकार व RBI के द्वारा जारी 

भारत सरकार व RBI के द्वारा जारी मुद्रा को उच्च शक्ति वाली मुद्रा भी कहा जाता है। यह तो आप भी जानते होंगे कि पैसों की छपाई भारत में ही होती है। और छापने वाले कोई और नहीं हमारे तरह ही  लेकिन सरकारी कर्मचारी होते हैं। बहुत सारी फिल्मों में पैसों की छपाई के बारे में सुना होगा। यह वैसे ही होता है । जैसे - किसी कंपनी में बिस्किट या फिर कोई और वस्तुएं बनाई जाती है। बस पैसे छापने के कुछ नियम व शर्ते हैं। जिसका पालन अनिवार्य है । भारत देश 1957 से न्यूनतम रिजर्व मनी (न्यूनतम आरक्षित प्रणाली) का पालन कर रहा है। न्यूनतम रिजर्व मनी का अर्थ है । यदि आपको पैसे छापने हैं तो पहले सरकार के खाते में 200 करोड़ रुपए के बराबर सोना और विदेशी मुद्रा होनी जरूरी है। इनमें से 115 करोड़ का सोना होना अति आवश्यक है । यदि इतना पैसा होने के बाद जितना अधिक उत्पादन होगा तो देश की आय उतनी ही बढ़ेगी। और उसी के आधार पर नोट छापे जाएंगे । आप इसे यूं समझ लीजिए कि आप एक परिवार के मुखिया हैं तो घर को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए प्रति वर्ष आपके पास ₹20000 सुरक्षा के लिए रखने होते हैं। अब मेहनत करके इससे ज्यादा हो जाए तो किसी काम में लगाते हैं। अर्थात निवेश करते हैं। ठीक उसी प्रकार सरकार का भी यही रवैया होता है । इसीलिए सरकार अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराने की कोशिश करती है। न कि पैसा।

 पैसा छापने के केंद्र

भारत में दो प्रकार के रुपयों का निर्माण होता है । पहला है नोटों के रूप में और दूसरा सिक्कों के रूप में अर्थात् टकसाल।

नोटों की छपाई के लिए देश में 4 केंद्र बनाए गए हैं।

 देवास   -  (मध्य प्रदेश) 
 मैसूर    -  (कर्नाटक)  
सालबोनी - (पश्चिम बंगाल) 
नासिक  - (महाराष्ट्र) 

 टकसाल (सिक्के ) छापने के चार केंद्र है।

मुंबई          -   (महाराष्ट्र) 
हैदराबाद|   - (तेलंगाना) 
 कोलकाता - (पश्चिम बंगाल) 
 नोएडा      - (उत्तर प्रदेश) 

(2) जनता के पास व बैंक में जमा राशि

जनता के पास व बैंक में जमा मुद्रा को चार प्रकार से मापा जाता है। वास्तव में मुद्रा पूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है किसी एक समय पर जनता के पास मुद्रा का स्टॉक ही मुद्रा की पूर्ति कहलाता है परंतु यह मुद्रा पूर्ति का दूसरा भाग होता है मुद्रा आपूर्ति का पहला भाग उच्च शक्ति मुद्रा अर्थात इसमें जनता के पास जो मुद्रा होती है व मुद्रा भारत सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा छपाई जाती है तथा इसमें नकद आरक्षित अनुपात भी शामिल किया जाता है।

भारत में मुद्रा की पूर्ति को चार प्रकार से मापा जाता है जैसे, M1, M2, M3 तथा M4।
M1- जनता के पास करेंसी + मांग जमाएं + रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं
M2- M1+ डाकखानों के बचत बैंक खातों में जमाएं
M3- M1+ व्यापारिक बैंकों की सावधि जमाएं
M4- M3+ डाकखानों की कुल जमाएं (NSC को छोड़कर)

सभी प्रकार की व्यापारिक बैंक जनता द्वारा जमाओं से  साख निर्माण प्रक्रिया द्वारा मुद्रा आपूर्ति करती है।

Notes* 
NSC -  National Savings Certificates (राष्ट्रीय बचत पत्र ) राष्ट्रीय बचत पत्रों को M4 में शामिल नहीं किया जाता है। क्योंकि यह सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं

उच्च शक्ति मुद्रा (High powered money) - 

इसमें जनता के पास करेंसी (नोट व सिक्के) तथा बैंकों के नगद को सम्मिलित होते हैं।
                             H = C+R

H = High powered money 
C =cash reserve with public (लोगों के पास नगद जमा)
R = Required reserve + Excess reserve ( आवश्यक रिजर्व या स्वयं के लिए नगदी में देने के लिए जो धन पास होता है। साथ ही इसमें आदि के रिजर्व भी शामिल किया जाता है।

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