मुद्रा पूर्ति
Money supply
महंगाई और पैसो में संबंध!
पैसे छापने वाली मशीन
अगर आप सोचते हैं कि पैसा छापने से गरीबी कम होगी । तो बिल्कुल गलत सोचते हो । अगर पैसे छाप कर सरकार मुफ्त में पैसे बांटने लग जाए तो लोग मेहनत करना छोड़ देंगे । जब मेहनत कम होगी तो उत्पादन में गिरावट आएगी और फिर वस्तुएं महंगी होंगी । इस तरह वस्तुएं और सेवाएं इतनी अधिक महंगी हो जाएंगी कि 2 किलो आलू खरीदने के लिए भी आपको हजारों रुपए देने पड़ सकते हैं। वैसे तो यह एक अर्थशास्त्र का विषय है और अर्थशास्त्र के विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकते हैं लेकिन आम लोगों को समझने में दिक्कत आती हैं। इसलिए एक कहानी के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं ।
एक शहर के किनारे छोटा सा गांव हैं । जिसकी आबादी लगभग 1000 तक होगी । गांव ना तो ज्यादा अमीर था ना ही गरीब । अधिकांश भूमिहीन किसान कारखानों और फैक्ट्रियों में काम करके गुजारा करते हैं। गांव में एक गणेश नाम का व्यक्ति था जिसके पास सबसे अधिक भूमि 5 एकड़ है । जिसके पास 8 सदस्यों का परिवार शामिल था । एक बेटा जिसने 12 th पास किया था। और एक बेटी जो 10th में थी । उसकी इच्छा थी कि बेटा 12th करके इंजीनियर बने । जिसके लिए वह दिल्ली जैसे अच्छे शहर में एक अच्छे कॉलेज में पढ़ाना चाहता था। और बेटी को डॉक्टर बनाना चाहता था । इसके अलावा और भी इच्छाऐं थी कि एक बड़ा सा घर हो , घर में गाड़ी हो आदि आदि। वही गणेश के पड़ोस में सोहन नाम का लड़का था। वह दूसरों की कार चलाता है अर्थात ड्राइवर है। वह दूसरों की गाड़ियां चला कर अपनी मां और बहन का खर्च उठाता। वह चाहता है कि खुद की गाड़ी और एक अच्छा सा घर हो। उसके बाद बहन की शादी और एक-दो साल बाद स्वयं की शादी करना चाहता था। इस तरह उसे बहुत सारे पैसों की जरूरत थी । ऐसे ही एक व्यक्ति और था जिसका नाम श्याम था वह शहर में जमीन खरीद कर होटल बनाना चाहता था । श्याम का बेटा राहुल एक कंपनी में सुपरवाइजर का काम करता था। इसका वेतन भी कम था। गांव के सभी लोग कुछ ना कुछ काम करते थे ।
अब यदि सरकार इनको अतिरिक्त पैसे छाप कर इनकी गरीबी दूर कर देे। तो क्या लगता है ? गणेश अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए मेहनत करेगा या फिर उसका पड़ोसी सोहन गाड़ी खरीदने के लिए दूसरों की गाड़ी चलाएगा? अब होगा ये जब बिना मेहनत के पैसे मिलेंगे तो कोई भी काम नहीं करना चाहेगा। आप स्वयं को देख लीजिए यदि आपके पास बहुत सारे पैसे आ जाएं तो आप क्या करेंगे? आप भी काम करना छोड़ देंगे । अब मान लीजिए गणेश के द्वारा 100 कुंटल उत्पादन किया जाता है। अब मार्केट में बेचने के लिए 1000 कुंटल की पूर्ति हुई होती है । 1000 लोगों द्वारा 1000 कुंटल प्रति खरीद भी लिया जाता है। यदि गणेश खेती करना बंद कर देता है तो केवल 900 कुंटल का ही उत्पादन होगा। ऐसे में 100 लोगों को अनाज नहीं मिल सकेगा। लेकिन सभी जानते हैं कि भोजन के बिना कोई जीवित नहीं रह सकता । इसलिए वे उस अनाज को खरीदने के लिए अधिक कीमत देने को तैयार हो जाएगेेंं। जिससे महंगाई बढ़ेगी । इसी तरह यदि पूरे देश में किसानों को या फिर गरीबों को पैसा बिना मेहनत के बांट दिया जाए तो उत्पादन कम और पैसा ज्यादा हो जाएगा । एक समय ऐसा आएगा एक ब्रेड देने के लिए एक बोरी भरकर पैसा ले जाना पड़ेगा।
ऐसे ही एक देश है जिंबाब्वे जहां 2008 में सरकार ने पैसों की कमी को दूर करने के लिए अधिक मात्रा में पैसे छाप दिए । इससे सभी के पास अधिक मात्रा में पैसे आ गए । और एकदम से वस्तुओं की मांग बढ़ गई । उत्पादन कम होने से विक्रेताओं ने कीमत बढ़ा दी और यही हाल प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का हुआ था।
पैसे कहां से आते हैं? या मुद्रा आपूर्ति क्या है ?
जनता (पब्लिक) के पास मुद्रा का क्या अर्थ है ?
(1) भारत सरकार व RBI के द्वारा जारी
पैसा छापने के केंद्र
भारत में दो प्रकार के रुपयों का निर्माण होता है । पहला है नोटों के रूप में और दूसरा सिक्कों के रूप में अर्थात् टकसाल।
नोटों की छपाई के लिए देश में 4 केंद्र बनाए गए हैं।
मैसूर - (कर्नाटक)
सालबोनी - (पश्चिम बंगाल)
नासिक - (महाराष्ट्र)
टकसाल (सिक्के ) छापने के चार केंद्र है।
हैदराबाद| - (तेलंगाना)
कोलकाता - (पश्चिम बंगाल)
नोएडा - (उत्तर प्रदेश)
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