कोरोना के चलते : शिक्षा बेहाल
विश्वविद्यालयों की उलझन
जब देश के पास कश्मीर का, धर्म का, नेपाल का और पाकिस्तान का कोई मुद्दा नहीं बचा। तो देश के नेता उलझ गए हैं कोरोना में । सब अपनी अपनी राय दे रहे हैं। सभी को मालूम है आज तक सर्दी जुखाम की कोई दवाई नहीं बनी है। बीमारी से बचना है तो एक ही उपाय है। इम्यून सिस्टम को मजबूत करो जिसका रहस्य भारत देश में शुरुआत मे ही जान लिया था। बाबा रामदेव ने कोरोना का समाप्त करने के लिए व इम्यून सिस्टम मजबूत करने के लिए आयुर्वेद से निर्मित दवा तैयार कर ली थी। लेकिन हमें तो आदत है- ना विदेशी दवाइयों का उपयोग करने की । अब हम इम्यून सिस्टम को बढ़ाने के लिए फिर से अमेरिका, फ्रांस और चीन से वैक्सीन खरीदेंगे । चीन ने तो वैक्सीन बनाकर पेटेंट का अधिकार भी ले लिया है । और हमारा देश यही सोच में डूबा है कि विश्वविद्यालय की परीक्षा कराई जाए या नहीं। विभिन्न प्रकार के सरकारी विभागों पर भर्ती कराई जाए या नहीं । वही स्कूल खोलें या बंद रखें। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट कहता है कि कोरोना के कारण विद्यार्थियों के भविष्य के साथ नहीं खेल सकते हैं। तो वही बच्चों के 64% अभिभावक कहते हैं कि कोरोना का खतरा अभी ज्यादा है। हम बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते हैं। तो दूसरी तरफ ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली अपनाने की तूल पकड़ ली गई है । जो अच्छे शहर मे निवास करते हैं उन्हें तो पता भी नहीं है कि भारत में इंटरनेट की स्थिति क्या है । कितने स्थानों तक तो नेटवर्क आते ही नहीं। और आधे से ज्यादा देश में नेटवर्क इतने कमजोर हैं। संभव ही नहीं कि ऑनलाइन कक्षाएं हो सके । और सच कहूं तो दसवीं तक के कोई भी विद्यार्थी ऑनलाइन कक्षाओं को नहीं समझ सकते हैं। क्योंकि 9 th , 10th , 11th और 12 th ऐसी कक्षाएं हैं जिनमें बच्चों का वास्तविक दिमाग खुलता है। यदि किसी प्रकार शंका होती है तो मैं ऑनलाइन से नहीं सुलझाई जा सकती है । इसलिए एक वास्तविक अध्यापक का होना जरूरी है। कोरोना के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है वह है " शिक्षा"। कोरोना के कारण ना तो कोई प्रतियोगी परीक्षा संभव हो पा रही है । और ना तो कोई स्कूल चल पा रहा है । वहीं दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारी और अधिकारी और कुछ नेता देशवासियों को उलझा रहे हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है जब देश में कोई विवाद नहीं बचा है तो विद्वान खाली बैठे हैं । और सरकार को उल्टी-सीधी राय दे रहे हैंं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था को उभारने के लिए मुझे तो एक ही तरीका दिखाई देता है।
कोरोना : एक सपना
कोरोना को एक सपने के रूप में ले लीजिए । जरा सोचिए जिस दिन कोरोना आरंभ हुआ अर्थात प्रथम लॉकडाउन 22 मार्च को लगा था । उस रात में चले जाइए और कोरोना को एक सपना मान लीजिए । अब सपने में आपने देखा कि एक भयानक बीमारी पूरे विश्व में आई है। जिसने सबको मास्क लगाने पर मजबूर कर दिया है । मजदूरों का भारी पलायन हो रहा है । अर्थव्यवस्था की सारी गतिविधियां रुक गई है। सारा वातावरण शांत हो गया है ।चारों ओर कोरोना वायरस ही चर्चा है 1- 2 महीने बीत जाने के बाद फिर अचानक विवाद उठता है। विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का, कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों का और फिर देश की पार्टियों को मौका मिल जाता है । एक दूसरे की आलोचना करने का । जहां भाजपा कहती है कि मैं देश देशवासियों के लिए बहुत कुछ कर रही हूं । तो दूसरी तरफ कांग्रेस कहती हैं कि भाजपा क्या कर रही है ? इसी तरह की तू- तू मैं-मैं मैं सुप्रीम कोर्ट दखल देता है । और वह कहता है कि "कोरोना के चलते हम अर्थव्यवस्था को बंद नहीं कर सकते हैं। विद्यार्थियों के जीवन को खतरे में नहीं डाल सकते , और शायद कोई विद्यार्थी नहीं चाहेगा कि उनका 1 साल बर्बाद हो जाए"। तो दूसरी तरफ अभिभावकों से राय ली जाती है विद्यार्थियों के स्कूल खोले जाएं या नहीं ? तब 64 % से अधिक अभिभावक कहते हैं कि कोरोना का असर अभी खत्म नहीं हुआ है । इसलिए स्कूल बंद ही रहने दें तो ज्यादा अच्छा है । वहीं यूजीसी(UGC) ने अंतिम वर्ष के सभी विद्यार्थियों की परीक्षाओं को कराने की ठान ली है । उन्हें लगता है कि यदि केवल अंतिम वर्ष के विद्यार्थी एग्जाम नहीं देंगेे। तो वह देश के भविष्य के लिए खरे नहीं उतर पाएंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सही मापदंड नहीं होगा। इस तरह के विवादों से युवा परेशान हो गए हैं । जिस कारण परीक्षाएं होंगी या नहीं इसका कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं । क्योंकि सरकार ही कंफ्यूज है । बेहतर यह है कि बार-बार निर्णय बदलने से अच्छा एक निश्चित निर्णय हो । जिससे ना गरीबों की समस्या हो ना अमीरों को। और वह तरीका है की 2020 को भुला दिया जाए । अर्थात एक सपना समझ लिया जाए साधारण शब्दों में मैं यह कहना चाहता हूं कि 2020 का साल उसकी सूची में डाल दो जो हमने जिया ही नहीं। और जिंदगी का 1 साल कम कर लो। इस से अधिकतर समस्याएं हल हो सकती हैंं। रहा प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में उम्र की सीमाओं का । तो अब क्योंकि हमने मान लिया है कि 2020 एक सपना था । लेकिन उम्र तो बढ़ेगी ही । इसलिए जितनी भी प्रकार की जॉब है या जिनमें भी उम्र का मापदंड है, उनमें 10 वर्षों के लिए 1 वर्ष बढ़ा दें । कोई भी विद्यार्थी या प्रतियोगी 1 वर्ष कम हो जाएगा तो मरेगा नहीं। जैसे कि यूपीएससी के अंतिम उम्र सीमा 32 वर्ष है तो 33 कर कर दिया जाए । इस प्रकार जिन विद्यार्थियों की परीक्षा नहीं हुई है उनकी परीक्षा भी आसानी से हो जाएगीी। और जितनी भी प्रतियोगी परीक्षाएं हैं जिनकी तिथि 2020 में सुनिश्चित की थी। तो उसी दिनांक को 2021 में सुनिश्चित कर दें । इससे जो प्रतिभागी हैं उन्हें एक दिशा मिलेगी और वह तैयारी में फोकस कर पाएगा।
अब आप सपने से बाहर निकल जाइए और वास्तविकता देखिए वर्तमान समय में जो हो रहा है। शिक्षा से संबंधित मुद्दों को बार-बार अदालत में लाया जा रहा है । और हर बार कोई नया निर्णय सामने आ रहा है । और हर महीने बदले भी जा रहे हैं जिससे अनेक संस्थाएं और व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग याचिकाएं नीतियों के खिलाफ डाल रहे हैं। कोई एग्जाम का विरोध करता है । कोई एग्जाम का सपोर्ट करता है । और एक नई समस्या आन खड़ी है निजी करण की पहले ही सरकारें रोजगार दिलाने में असमर्थ थी। अब और भी मुश्किल बढ़ने वाली है।
निष्कर्ष
ऊपर दी गई राय मेरे हिसाब से तो उचित लगती है । बस समस्या आ सकती है तो वह वित्त अर्थात पैसों की ।अर्थव्यवस्था में हलचल ना हो और जितने भी सरकारी कर्मचारी हैं जो बिना वजह के दफ्तर के चक्कर लगाते हैं।वही सरकार को उल्टी-सीधी राय देते हैं। पहले तो वह शांति से घर में बैठ जाएं । क्योंकि बार-बार सुप्रीम कोर्ट के चक्कर लगाने से और हर सप्ताह कोई नई मीटिंग करने से सरकार का बहुत सारा व्यय हो जाता है। बिना वजह के पैसा बहाने से अच्छा है कि यह पता लगाएं जो गरीब है जिनके कोरोना वायरस के चलते आय के स्रोत बंद हो गए हैं । उन तक थोड़े पैसे और राशन की व्यवस्था करें। ना कि बिना कारण के ऑफिस में जाकर वेतन बनाएं । वहीं सरकारी अध्यापक कोरोना के चलते घर में बैठे हैं विश्वविद्यालय और स्कूल बंद हो गए हैं । सभी जानते हैं ऑनलाइन शिक्षा के कारण सभी अध्यापकों का कार्य आसान हो गया है। जिनके लिए पूरी सैलरी देना न्याय नहीं है। जहां एक प्रोफेसर को 80000 सैलरी दी जा रही है । वही टीजीटी (TGT) और (PGT) को 45000 सैलरी दी जा रही है। तो सरकार चाहे तो उनकी आधी कटौती करके भी गरीबों की मदद कर सकती है। इससे होगा यह जो गरीब है वह भी यह 2020 काट लेंगे । वहीं डॉक्टर और नर्स जो इस समय मौत से लड़ाई करके जिंदगी बचा रहे हैं । उनकी सैलरी में कटौती क्यों ? आप लोग समझदार हैं । आपको जब लगता है कि कोरोना की वजह से यह विभाग रेस्ट में है तो उन की कटौती करें । न कि जो मेहनत कर रहे हैं जो पूरा सहयोग दे रहे हैं उनकी। अत: प्रार्थना है कि फालतू के कार्य करके अर्थव्यवस्था में हलचल पैदा ना करें । वैसे भी यह साल आधा गुजर चुका है और जिस तरह की पढ़ाई हो रही है। केवल 20% बच्चे ही सीरियस से आप पढ़ रहे हैं । अब यदि मार्च से परीक्षा ले भी ले तो केवल 20 से 25% बच्चे परीक्षा में पास होंगे । और यदि पेपर का सिलेबस कम करते हैं या फिर पेपर सरल बनाते हैं तो मुझे बिल्कुल नहीं लगता कि यह उचित है। क्योंकि पूर्व विद्यार्थियों के साथ न्याय नहीं होगा । क्योंकि बहुत सारे विभाग प्रतिशत के आधार पर भी जॉब उपलब्ध कराते हैं।
उपयुक्त लेख में हो सकता है कुछ गलतियां हो सकती हैं ।लेकिन बात सत्य है कि देश की जनता को और युवा बेरोजगारों को उलझाया जा रहा है । यदि कोई बात खराब लगी हो तो कमेंट करें और अच्छी लगी हो तो शेयर करें।
Mind blowing
जवाब देंहटाएंNice
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