उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2025 उत्तराखंड की प्रमुख नियुक्तियां उत्तराखंड के नव नियुक्त मुख्य सचिव - आनंदवर्धन सिंह आनंद बर्द्धन (Anand Bardhan), उत्तराखंड के नव नियुक्त मुख्य सचिव, 1992 बैच के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने 1 अप्रैल 2025 को उत्तराखंड के 19वें मुख्य सचिव के रूप में कार्यभार संभाला। इससे पहले वह अपर मुख्य सचिव (ACS) के पद पर कार्यरत थे और उत्तराखंड कैडर के सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं। इनसे पूर्व राधा रतूड़ी इस पद पर कार्यरत थीं। आनंदवर्धन सिंह जन्म : 12 जून 1967, कटोरिया, बांका (बिहार)। शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय से फिजिक्स में बीएससी ऑनर्स (विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान) और मास्टर इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (MCA)। उत्तराखंड के प्रथम मुख्य सचिव - अजय विक्रम सिंह थे। 18वीं राज्य मुख्य सचिव - राधा रतूड़ी 17वें राज्य मुख्य सचिव - एस.एस. संधु राज्य सूचना आयोग उत्तराखंड राज्य सूचना आयोग के वर्तमान अध्यक्ष राधा रतूड़ी हैं राधा रतूड़ी उत्तराखंड की पहली महिला मुख्य सूचना आयुक्त हैं। इन्हें 5 अप्रैल 2025 में इस पद पर नियुक्त किया गया साथ ही श्री कुश...
तीर्थस्थल और पर्यटक
क्या आपने कभी सोचा है? कि तीर्थस्थलों का निर्माण क्यों किया गया होगा और आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक है?
जब दुनिया में कहीं भी मंदिर, मस्जिद, इमारत या फिर कोई भी तीर्थस्थल की स्थापना की जाती है, तो किसी एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्थापना नहीं की जाती है। अपितु एक दूरगामी सोच होती है, विकास की बुनियादी नीव रखी जाती है़ं।
यूं तो आप से सामान्यतः पूछा जाए कि तीर्थ स्थलों की स्थापना क्यों की गई होगी? तो अधिकांश विद्वानों का जवाब होगा - धर्म की रक्षा के लिए, तो कुछ असमंजस में पड़ जाएंगे। भारत में ऐसे अनेक तीर्थ स्थल है, जैसे- वैष्णो मंदिर, पूर्णागिरी मंदिर, हरिद्वार, चार धाम, कोणार्क सूर्य मंदिर, ऋषिकेश और तिरुपति मंदिर । चार धाम की यात्रा जिसमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है । और उससे भी ज्यादा उत्तराखंड के छोटे चार धाम जिसमें बद्रीनाथ धाम सभी दृष्टि से महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह उत्तराखंड का ही नहीं अपितु भारत के उन चारों धामों में से एक हैं जिनकी यात्रा करने से संपूर्ण भारत का भ्रमण हो जाता है । उत्तर में बद्रीनाथ धाम (उत्तराखंड) दक्षिण में रामेश्वरम(तमिलनाडु) , पश्चिम में द्वारिकापुरी (गुजरत) तथा पूरब में जगन्नाथपुरी (ओडिशा) । जिनकी स्थापना आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों और दूरगामी दृष्टि रखते हुए चार दिशाओं मे चार धाम बनाए। ऐसे ही भारत में अनेक राजाओं ने मंदिरों में इमारतों का निर्माण कराया है । वहीं वर्तमान सरकार ने भी सरदार वल्लभभाई पटेल(गुुुजरात) की विशाल मूर्ति की स्थापना की है । तो जाहिर है सवाल तो मन में उठना ही चाहिए कि इनका निर्माण क्यों?
तीर्थस्थल और पर्यटक
पहले तो यह बता दूं कि तीर्थ स्थल और पर्यटक स्थलों में अंतर है , लेकिन कहीं ना कहीं उद्देश्य समान है क्योंकि मनुष्य जब अपने दैनिक कार्यों और कोलाहल भरे माहौल से अधिक परेशान हो जाता है, मन अत्यधिक विचलित हो जाता है, तब आवश्यकता होती है - शांतिपूर्ण व आध्यात्मिक स्थलों की ।इसलिए सभी आस्तिक तीर्थ स्थलों का चुनाव करते हैं। और नास्तिक पर्यटक स्थलों का चुनाव करते हैं । जैसे - हिल स्टेशन और प्राचीन कालीन इमारतें व किले जहां शांतिप्रिय माहौल तो होता है लेकिन आध्यात्मिकता का अभाव होता है। लेकिन तीर्थ स्थल आध्यात्मिकता से जुड़े होते हैं । जिनके पीछे महत्वपूर्ण रहस्य छुपे होते हैं और धार्मिक कहानियां जो पुराणों में और ग्रंथों में लिखी गई हैंं। सबसे महत्वपूर्ण भारतीयों के धर्म व संस्कृति के प्रतीक होते हैं। पुराणों और ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां भी देवी देवताओं के अंश मौजूद हैं । किसी भी रूप में वहां तीर्थ स्थलों की स्थापना की गई । उनका दर्शन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है जो की मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्ति में सहायक हैंं। जबकि पर्यटक स्थलों , इमारतों का केवल एंजॉयमेंट के लिए ही भ्रमण किया जाता है । ज्ञान के उद्देश्य की पूर्ति की भावना छुपी होती हैै। जब आदि गुरु शंकराचार्य ने चार धाम की स्थापना की थी तो दुनिया में अनेक धर्मों का प्रचार-प्रसार जोर शोर से हो रहा था और सनातन धर्म अत्यधिक खतरे में दिखाई दियाा। तभी शंकराचार्य द्वारा समस्त भारत में सनातन धर्म की रक्षा हेतु चार धाम की स्थापना की । चार धाम की स्थापना उन्हीं स्थानों पर की गई जहां जहां स्वयं भगवान विराजमान थेे। इन सब कार्यों से एक प्रकार से धार्मिक वातावरण वातावरण उजागर हुआ । तीर्थस्थलों की यात्रा से भारत भ्रमण हो जाता है। और ज्ञान में वृद्धि भी होती हैं । और एक प्रकार की सकारात्मक उर्जा का प्रसार होता है । आप ही सोचिए यदि इंसान अपने घर में ही बैठ जाए। तो वह अपने आप को ही भूलने लगता है तो धर्म क्या चीज है ? सम्मान का जीवन जीने के लिए और धर्म का प्रचार तथा भक्ति भाव बनाए रखने के लिए ही तीर्थ स्थल बनाए गए।
समानताएं
तीर्थ यात्रा एक प्रकार से एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण करना ही है। आपको नए-नए स्थानों को देखने का अवसर मिलता है तथा मानसिक शांति की प्राप्ति होती है तो साथ ही साथ तीर्थस्थल अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। रोजगार में वृद्धि होती है। स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है। वहीं पर्यटक स्थलों का भी यही योगदान है । जहां दूर-दूर से खूबसूरती की तलाश में सैलानी आंतरिक अशांति और मनोरंजन के उद्देश्य से आते हैं।
दिखावे की भक्ति
आजकल अधिकांश लोग तीर्थ स्थलों को भी पर्यटन स्थलों के रूप में लेने लगे हैं । जो कि गलत है , "श्रद्धा" नाम का शब्द कहीं गुम हो गया है। पैसा और व्यापार के चकाचौंध में खो गया। मैंने बचपन में पूर्णागिरी मंदिर और ब्यानधुरा बाबा की बहुत बार यात्रा की है तब एक बड़े से समूह में सभी लोग एक साथ जयकारा लगाते हुए सच्ची श्रद्धा भाव से जाया करते थे ।घर से बनाया हुआ सादा भोजन, ना तो कोई अच्छा रेस्टोरेंट, ना ही कोई धर्मशाला और पैसे तो केवल चढ़ाने के लिए ही ले जाया करते थे। वह भी प्रतिकात्मक। वही के कुछ स्थाई निवासी यात्रियों को देखकर खुश भी हो जाया करते थे और भोजन भी खिला दिया करते थे । लेकिन आज की तीर्थ यात्राएं चार लोग कर लेते हैं। वह भी एक गाड़ी में। ना कोई जयकारा और ना कोई भक्ति भाव । श्रद्धा मन में तो दूर-दूर तक नहीं है समझ नहीं आता जब आस्था है ही नहीं तो जाते क्यों है? ऊपर से पैदल चलकर यात्राएं करने से एक अलग ही भक्ति जगाती है लेकिन अब गाड़ियां वहां वहीं तक पहुंच जाती हैं।
निष्कर्ष
विकास की दृष्टि से देखा जाए तो दोनों ही अर्थव्यवस्था की गति के लिए लाभदायक है । लेकिन जब आप तीर्थ यात्रा के लिए ही जाते हैं तो रोमांस या फिर भ्रमण के नाम से ना जाएं। इसका असर शायद आपको मालूम ना हो । आपको देखकर आपके पड़ोसी और भावी पीढी सीखते हैं । आप ने अक्सर यह तो सुना ही होगा कि इतनी यात्राएं करने, मंदिर जाने के, गुरुद्वारा जाने के बावजूद भी समझदारी नहीं है। वही गुस्सा, वही लालच, वही बेचैनी आदि तो कहीं ना कहीं भावी पीढ़ी पर प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि आध्यात्मिक सुख तो उन्हीं को मिलेगा जो पूरे मन तन से तीर्थ स्थलों की यात्रा करेगा । अत: भारत की संस्कृति बनाए रखें। यदि दिल में श्रद्धा , भक्ति-भाव है तो यात्रा करें ।
यदि आप उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा के बारे में आना चाहते हैं तो दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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