सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

UKSSSC MOCK TEST - 166

  UKSSSC MOCK TEST - 166 उत्तराखंड समूह ग मॉडल पेपर  देवभूमि उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड समूह ग परीक्षा हेतु टेस्ट सीरीज का संचालन किया जा रहा है। सभी टेस्ट पाने के लिए संपर्क करें -9568166280 Uksssc mock test -166 ( 1) निम्नलिखित में से कौन-सा वर्ण ह्रस्व स्वर नहीं है? (A) अ (B) इ (C) ऊ (D) उ (2) निम्नलिखित में से कौन-सा संयुक्त वाक्य है? (A) वह खेल रहा था क्योंकि बारिश हो रही थी। (B) वह बाजार गया और फल खरीद लाया। (C) वह इतना थका हुआ था कि तुरंत सो गया। (D) उसने कहा कि परीक्षा कठिन थी। (3) नीचे दिए गए समास और उनके प्रकार का सुमेलित करें।     कॉलम A 1. गुरुकुल 2. जलपान 3. देवालय 4. यथाशक्ति     कॉलम B A. तत्पुरुष B. कर्मधारय C. अव्ययीभाव D. द्वंद्व विकल्प: (A) 1-A, 2-B, 3-C, 4-D (B) 1-A, 2-C, 3-D, 4-B (C) 1-A, 2-B, 3-D, 4-C (D) 1-A, 2-B, 3-A, 4-C (4) वाक्य "राम ने सीता को फूल दिया।" में 'सीता को' किस कारक का उदाहरण है? (a) करण (b) अपादान (c) संप्रदान (d) अधिकरण (05) निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए है?       ...

वित्तीय बाजार और भारतीय रिजर्व बैंक

वित्तीय बाजार क्या है? 

What is financial Market?

वैसे तो यह सब सामान्य बातें हैं । जिनका दैनिक जीवन में प्रयोग होता है । प्रत्येक माह आप एक या दो बार बैंक तो जरूर जाते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है? बैंक कैसे काम करते हैं?  और बैंक को कौन संचालित करता है?  जब अर्थशास्त्र के अंदर यह सब पढ़ते हैं। तो परीक्षार्थी परेशान हो जाते हैं, इसलिए आसान शब्दों में बात करें। तो जहां पैसों की खरीद-बिक्री होती है। वह वित्तीय बाजार कहलाता है । पैसों की खरीद बिक्री  ऑनलाइन भी हो सकती है,  ऑफलाइन भी हो सकती है और कॉल पर भी हो सकती है । लेकिन पैसा कुछ ही देशों में ही मान्य है । जहां डॉलर अधिकांश देशों में प्रचलित है इसलिए वित्तीय बाजार में पैसों के स्थान पर मुद्रा का प्रयोग करते हैं।                          जैसे-जैसे समय बीता पैसों की खरीद-बिक्री का कार्य चलने लगा  । तो एक नई समस्या उत्पन्न हुई- समय की। कोई व्यक्ति तुरंत पैसा दे देता थाा। तो कोई उधार चुकाने में लंबा समय लगा देता था  । पैसे तो आप भी उधार देते होंगे लेकिन जब बहुत बड़ी रकम देने की बात आती है। तब सोच समझकर पैसे दिए जाते हैं। वर्तमान समय में पैसों के स्थान पर सुरक्षा के लिए कोई पत्र या कोई वस्तु देनी पड़ती है।  और मुद्रा उधार मिल जाता है । इसलिए पैसों की देखरेख के लिए वित्तीय बाजार की आवश्यकता होती है। वित्तीय बाजार क्या है ?   आप जान चुके हैं । जहां पैसों की खरीद-बिक्री होती है। वह वित्तीय बाजार कहलाता है । और इस तरह वित्तीय बाजार को मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार मेें विभाजित  करकेे अध्ययन  करते हैं।

 वित्तीय बाजार को समय के आधार पर दो भागों में बांटा गया

 (१) मुद्रा बाजार

 (२) पूंजी बाजार

[1] मुद्रा बाजार (Money Market)

 एक ऐसा बाजार है जिसमें अल्पकालीन समय के लिए लेनदेन होता है । अल्पकालीन का आशय जिसके लेन देन में एक वर्ष से कम समय लगता है। जैसे - संस्थागत (संगठित) ऋण जो बैंक व अन्य सरकारी स्रोतों से प्राप्त होते हैं ,  इसके अतिरिक्त गैर संस्थागत ऋण अर्थात असंगठित क्षेत्र जैसे - महाजन व्यापारी और सगे संबंधियों से मजदूर और किसान ऋण प्राप्त करते हैं।  इसका संचालन बैंकों को सौंपा गया है । और बैंकों का बैंक आरबीआई (RBI) को इसके लिए नियम और अधिनियम बनाने का दायित्व दिया गया है।

संगठित बैंकिंग सेक्टर के औजार

  1. कॉल मनी बाजार 
  2. बिल बाजार                                                             (a) वाणिज्यक बिल   (b) खजाना बिल
  3. जमा प्रमाण पत्र 
  4. वाणिज्यिक पत्र

 (1) कॉल मनी बाजार  (call money market)

यह एक ऐसी मुद्रा का बाजार होता है, जिसमें केवल 1 दिन के लिए मुद्रा उधार दी जाती है उसे कॉल मनी कहते हैं।

(2) बिल बाजार 

बिल बाजार को पर्याय दो खंडों में विभाजित किया जाता है।     (a) वाणिज्यक बिल (b) खजाना बिल

(a) वाणिज्यक बिल ( Commercial Bill )

वाणिज्यिक बिल एक प्रकार का व्यवसायिक बिल है। जिसमें एक क्रेता और विक्रेता के बीच परस्पर संबंध होता है जिसके कारण वह कच्चे माल की आपूर्ति विक्रेता से ऋण में प्राप्त कर सकता है जिसको चुकाने के लिए 90 दिन का समय होता है।

(b) खजाना बिल ( Treasury Bill )

ट्रेजरी बिल एक सुरक्षित बिल है जो केंद्रीय सरकार  द्वारा जारी किया जाता है। RBI इसमें जनता  और बैंकों  को डिस्काउंट पर ऋण जारी करती है। जिसकी न्यूनतम राशि ₹25000 है और यह बिल 91, 182 या 364 दिन के लिए जारी होता है ।

(3) CDs - जमा प्रमाण पत्र

यह एक प्रकार का बचत पत्र होता है जो व्यवसायिक बैंकों द्वारा जारी किया जाता है। यह पत्र कंपनी,  ट्रस्ट, व्यक्ति एवं NRI को भी जारी किया जा सकता है। इसकी न्यूनतम राशि ₹100000 होती हैयह वेबसाइट बैंकों के लिए 7 दिन से 1 साल की अवधि के लिए जारी किया जाता है जबकि वित्तीय संस्थानों के लिए 1 साल से 3 साल तक के लिए जारी किया जाता है। जमा प्रमाण पत्र के आधार पर लोन नहीं दिया जा सकता है अथवा इसकी पुणे खरीद भी नहीं की जा सकती है।

(4) CPs - वाणिज्यिक पत्र

एक प्रकार का असुरक्षित पत्र है जो अल्पकाल के लिए जारी किया जाता है। इस की न्यूनतम राशि 4 करोड़ से अधिक होती है । यह किसी व्यक्ति, बैंकिंग, कंपनी , वित्तीय संस्थान आदि को जारी किया जाता है।

[2] पूंजी बाजार (Capital Market )

एक ऐसा बाजार है जिसमें दीघ्रकालीन समय के लिए लेनदेन होता है।  दीघ्रकालीन का आशय लेन-देन के  लंबी अवधि से है। जैसे - शेयर खरीदना या प्रतिभूति खरीदना। इनमें लाभ एक विशेष समय के बाद मिलता है। इसका संचालन शेयर बाजार को दिया गया है। जिसमें नियम और अधिनियम बनाने का दायित्व सेवी (SEBI) को दिया गया।

वित्तीय बाजार के कार्य

  1. तरलता प्रदान करना -: वित्तीय बाजार जरूरतमंदों को जल्द से जल्द पैसा उपलब्ध कराता है। यहां तरलता का अर्थ- नकदी से हैं । अर्थात हम बैंकों में जमा राशि को शीघ्र निकाल सकते हैं और उसका उपयोग बाजार में अपनी आवश्यक वस्तुओं व संसाधनों को खरीदने में कर सकते हैं।
  2. बचत को सही जगह निवेश करना :- अधिकांश लोग बचत को बढ़ावा देते हैं । और बैंक को पोस्ट ऑफिस व बीमा आदि में जमा करते हैं । फिर वहां से बड़ी बड़ी संस्था में निवेश करते हैं। और बड़ी संस्थाएं निवेशकर्ताओं को पूंजी उपलब्ध कराती है। जो वित्तीय बाजार में ही संभव है।
  3. लागत को कम करना -: एक निश्चित स्थान पर पैसे मिल जाने के कारण परिवहन लागत में कमी आती है। वित्तीय बाजार अर्थव्यवस्था की विकास के लिए अत्यधिक लाभदायक वित्तीय बाजार लागत और समय दोनों की बचत करता है।

आरबीआई (RBI) और सेबी (SEBI) की तरह ही बीमा कंपनियों को नियंत्रण करने के लिए आईआरडीए ( IRDA )  तथा पेंशन के लिए पीएफआरडीए (PFRDA) इसके अलावा जींस बाजार के लिए भी एफएमएमसी( FMC) नियम और अधिनियम बनाती है। और इन सब को नियंत्रण करने के लिए FSDC की स्थापना की गई है।

भारतीय रिजर्व बैंक - RBI

  • गठन. : 1 अप्रैल 1935 
  • मुख्यालय  -  मुंबई 
  • 1949 में राष्ट्रीयकरण
  •  वर्तमान 25th गवर्नर - शक्तिकांत दास

भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य

  1. मुद्रा जारी करना -: आरबीआई भारत सरकार का बैंक है। जिसका मुख्य कार्य पैसों को छापना है। पैसों की छपाई का अधिकार केवल दो संस्था के पास है। (१) आरबीआई और (२) वित्त मंत्रालय ने। वित्त मंत्रालय एक रुपए के सिक्के जारी करता है तथा आरबीआई शेष सभी प्रकार की मुद्रा को चाहती है जिसमें निम्न स्थान पर छपाई करता  है।
  2. सरकार के बैंकर के रूप में कार्य -: आरबीआई सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करती है जिसका मुख्य कार्य है आरबीआई और सरकार द्वारा छपे नोटों को जगह-जगह पहुंचाना तथा जरूरत के समय सरकार के ऋण का प्रबंधन करना जैसे- ट्रेजरी बिल,  कॉल मनी आदि के रूप में।
  3. बैंकों का बैंक :- RBI साधारण बैंक नहीं है। यह बैंकों का बैंक है। देश में मौजूद सभी बैंक आरबीआई के पास सुरक्षा की दृष्टि से नकद आरक्षित अनुपात रखते हैं। और संकट के समय आरबीआई से मदद ले सकते हैं।
  4.  उधार के अंतिम स्रोत के रूप में :- जब देश में मौजूद बैंक में अचानक से पैसों की कमी या किसी कारण बस जनता का विश्वास उठ जाता है । और सभी बैंकों मे एक साथ पैसे निकालने आते हैं तो आरबीआई बाड़ी के बैंकों को ऋण प्रदान करती है । और ऋण देने का केवल अंतिम स्रोत आरबीआई ही है।
  5. विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक :- आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को संरक्षित करता है यह भारत की विदेशी विनिमय भंडार का अंतिम संग्रह करता है तथा इसका प्रबंधन भी करता है। यदि भारत को किसी अन्य देश से कोई भी वस्तु आयात करनी होती है तो आरबीआई में मौजूद विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग करता है।
  6. विदेशी विनिमय दर में स्थिरता :- आरबीआई विदेशी विनिमय दर को नियंत्रण करता है । विदेशी विनिमय दर स्थिर रहे  इसके लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं ।जिसके आधार पर  देश के आर्थिक विकास को संभव बनाता है।
  7. साख नियंत्रण :- वैसे तो साख नियंत्रण एक व्यापक टॉपिक है लेकिन इतना समझ लीजिए जो पैसा बाजार आ रहा है या जा रहा है पैसा  RBI  के नियम के अनुसार किया नियंत्रण जा रहा है जो मौद्रिक एवं साख  नीति के आधार पर नियंत्रण किया जाता है।
  8.  सरकार की मौद्रिक नीति बनाना एवं क्रियान्वित करना :- आरबीआई समय-समय पर सरकार के कार्यों की मौद्रिक समीक्षा करती है। और 3 महीने में आंकड़े प्रस्तुत करती है मौद्रिक नीतियां बनाकर  क्रियान्वित करती है।

सेबी - SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया )

सेबी का गठन 12 अप्रैल 1988 को हुआ था लेकिन इसे वैधानिक मान्यता जनवरी 1992 में प्राप्त हुई। इसके वर्तमान अध्यक्ष अजय त्यागी जी है। और सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है। इसमें 4 पूर्णकालिक सदस्य 4 अंशकालिक सदस्य व एक अध्यक्ष होता है।

सेबी के प्रमुख कार्य

  • सेबी निवेशकों के हितों के संरक्षण प्रदान करती है।
  • यह प्रतिभूति बाजार के विकास एवं विनियमन संगठन निर्धारित करती है
  • स्टॉक एक्सचेंज तथा अन्य मध्यस्थों की जांच करना
  • निवेशक शिक्षा का प्रोत्साहन करना।

बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण - IRDA (Insurance Regularity and development)


इसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है । यह एक संवैधानिक निकाय है इसका गठन सन् 2000 में किया गया था इसके वर्तमान अध्यक्ष सुभाष चंद खुंटियां है। इसके कार्य संचालन के लिए एक अध्यक्ष 5 पूर्णकालिक सदस्य व चार अंशकालिक सदस्य की नियुक्ति भारत सरकार के द्वारा की जाती है। इसके प्रमुख कार्य बीमा क्षेत्र का विनियमन ( regulations of insurance ) और बीमा एजेंटों के लिए नियम व पॉलिसी के नियम तैयार करना है।

वित्तीय स्थायित्व एवं विकास परिषद - FSDC
(Financial stability and development)

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा 2010 में FSDC का गठन किया गया। 2008 में रघुराम राजन ने FSDC के गठन का प्रस्ताव रखा था। FSDC की फुल फॉर्म है - फाइनेंशियल स्टेबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल । इसका मुख्य कार्य अर्थव्यवस्था में वित्तीय समावेशन लाना है व विभिन्न वित्तीय संस्थाओं में सामंजस्य के साथ वित्तीय स्थायित्व लाना है। इसके अतिरिक्त वित्तीय शिक्षा को बढ़ावा देना है। एक प्रकार से FSDC मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार दोनों को नियंत्रण करती है। इसका अध्यक्ष वित्त मंत्री होता है। वह इसके सदस्य RBI का गवर्नर , SEBI का अध्यक्ष, IRDA का अध्यक्ष व PFRDA  का अध्यक्ष होते हैं ।

पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण - PFRDA (pension fund regulatory and development authority)

PFRDA मुख्यालय नई दिल्ली में स्थापित है। इसकी स्थापना सन 2003 में की गई थी । इसके वर्तमान अध्यक्ष हेमंत कांट्रेक्टर है। इसके कार्य संचालन के लिए 6 सदस्यों की नियुक्ति की जाती है जिसमें एक अध्यक्ष होता है और 3 पूर्णकालिक सदस्य व दो अंशकालिक सदस्य होते हैं। इसका प्रमुख कार्य पेंशन प्रणाली को विनियमन करना है।  

वायदा बाजार आयोग - FMC ( forward Market commission)

वायदा बाजार आयोग को जींस बाजार भी कहते हैं इसका गठन 1953 मैं मुंबई में किया गया था। 28 मार्च 2015 को FMC का विलय सेबी में कर दिया गया था। इसका प्रमुख कार्य वस्तु की बाजार  कीमतों में घटाना और बढ़ाना है।

वित्तीय बाजार से संबंधित प्रश्न :-

(1) IRDA का मुख्यालय कहां पर स्थित है ?
(a) दिल्ली 
(b) मुंबई
(c) हैदराबाद
(d) बैंगलोर

(2) आरबीआई का राष्ट्रीयकरण कब किया गया था
(a) 1935 
(b) 1949 
(c) 1945 
(d) 1947

(3) सेबी को एक संवैधानिक निकाय के रूप में कब मान्यता मिली थी? 
(a) सन 2000 
(b) सन 1995
(c) सन 1992
(d) सन 1990

(4) वायदा बाजार आयोग का विलय सेवी में कब किया गया था?
(a) सितंबर 2015 
(b) अप्रैल 2018 
(c) सितंबर 2012 
(d) अप्रैल 2020

(5) निम्न में से कौन मुद्रा बाजार के प्रतिभागियों में शामिल नहीं है?
(a) भारतीय रिजर्व बैंक
(B)  बैंक ऑफ इंडिया
(c)  इंश्योरेंस कंपनी 
(d) महाजन

(6) मुद्रा बाजार में ऋण का लेन देन किस काल के लिए होता   है?
(a) दीर्घ काल 
(b) अल्पकाल 
(c) a और b दोनों 
(d) इनमें से कोई नहीं

(7) निम्न में से ट्रेजरी बिल के बारे में क्या सही नहीं है ?
(a) यह सरकार द्वारा जारी किया जाता है।
(b) इसकी न्यूनतम राशि 25000 होती है।
(c) इसको डिस्काउंट पर जारी किया जाता है।
(d) आरबीआई के द्वारा जारी किया जाता है।

(8) निम्न में से कौन भारत के वित्तीय बाजार के भागीदार के रूप में शामिल नहीं है ? 
(a) IRDA
(b) PFRDA
(c) SEBI
(d) IMF

Answer :- (1) c  (2) b (3) c (4) a (5) d (6)b (7) d (8) d
यदि आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आती है तो अधिक से अधिक शेयर कीजिए और ukpcs , uppcs, ukssc , upsc की तैयारी करने के लिए हमारी वेबसाइट देवभूमिउत्तराखंड को फॉलो कीजिए।

Source :  भारतीय अर्थव्यवस्था( रमेश सिंह) 

Related posts :-



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...