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Uttarakhand Current Affairs 2025

उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2025 नवंबर 2025 से अप्रैल 2025 तक जैसा कि आप सभी जानते हैं देवभूमि उत्तराखंड प्रत्येक मा उत्तराखंड के विशेष करंट अफेयर्स उपलब्ध कराता है। किंतु पिछले 6 माह में व्यक्तिगत कारणों के कारण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा। अतः उत्तराखंड की सभी आगामी परीक्षाओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि नवंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक के सभी करेंट अफेयर्स चार भागों में विभाजित करके अप्रैल के अन्त तक उपलब्ध कराए जाएंगे। जिसमें उत्तराखंड बजट 2025-26 और भारत का बजट 2025-26 शामिल होगा। अतः सभी करेंट अफेयर्स प्राप्त करने के लिए टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। 956816280 पर संपर्क करें। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स (भाग - 01) (1) 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कहां किया गया ? (a) उत्तर प्रदेश  (b) हरियाणा (c) झारखंड  (d) उत्तराखंड व्याख्या :- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी 2025 को राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम रायपुर देहरादून, उत्तराखंड में 38वें ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन किया। उत्तराखंड पहली बार ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की और य...

भारतीय संविधान (संसद का गठन)

भारतीय संविधान 

संसद का गठन 



संसद क्या है ?

संविधान के अनुच्छेद 79 में उल्लेख किया गया है कि भारत की एक संसद होगी। संसद के तीन अंग है।
  1. राष्ट्रपति (अनुच्छेद-52) - भारत का सर्वोच्च नागरिक — अप्रत्यक्ष रीति से चुनाव 
  2. राज्य सभा (अनुच्छेद 80) - उच्च सदन — अप्रत्यक्ष रीति से चुनाव 
  3. लोकसभा (अनुच्छेद 81) - निम्न सदन —  प्रत्यक्ष रीति से चुनाव (जनता का सदन भी कहा जाता है।
संविधान की पांचवें भाग के अंतर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में संसद के गठन, संरचना, अवधि, अधिकारियों, प्रक्रिया, विशेषाधिकार, व शक्ति आदि के बारे में वर्णन किया गया है। सदनों के मुख्य कार्य विधेयकों को पारित करना है।

संसद का गठन

1954 में राज्य परिषद के स्थान पर राज्यसभा एवं जनता का सदन को "लोकसभा" नाम दिया गया । 
भारत का राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है और ना ही वह संसद में बैठता है लेकिन राष्ट्रपति, संसद का अभिन्न अंग है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक कानून नहीं बनता , जब तक राष्ट्रपति उसे अपनी स्वीकृति ना दे दे। राष्ट्रपति संसद के कुछ चुनिंदा कार्य भी करता है।

सदनों की संरचना

राज्यसभा की संरचना

राज्यसभा एक स्थायी संस्था है और इसका विघटन नहीं होता है लेकिन इसके एक तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं। राज्यसभा पहली बार 17 मई 1952 में स्थापित की गई थी।

राज्यसभा की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित है। इनमें में 238 सदस्य राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि (अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित) होंगे, जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।

वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं। इनमें 229 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, चार संघ राज्य क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व करते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं।
संविधान की चौथी अनुसूची में राज्यसभा के लिए राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों में सीटों के आवंटन का वर्णन किया गया है।

राज्य सभा सदस्यों का निर्वाचन 

1. राज्यों का प्रतिनिधित्व : राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधि का निर्वाचन राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं।
2. केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व : राज्यसभा में केंद्र शासित प्रदेशों का प्रत्येक प्रतिनिधि इस कार्य के लिए निर्मित एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाता है। यह चुनाव भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है।
3. मनोनीत सदस्य : राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 ऐसे सदस्यों को मनोनीत करता है जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा, विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो। (12 सदस्यों के मनोनीत की नीति आयरलैंड के संविधान से लिया गया है)

राज्य सभा सदस्य बनने की योग्यता

  • भारत का नागरिक हो
  • 30 वर्ष की आयु हो
  • लाभ के पद पर ना हो

राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन

  • अप्रत्यक्ष रीति (विधानसभा के निर्वाचित सदस्य द्वारा )

राज्य सभा सदस्यों का कार्यकाल

  • 6 वर्ष 
  • एक तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं
  • कभी विघटन नहीं होता है।
  • राज्य सभा का सभापति उपराष्ट्रपति होता है।

लोकसभा की संरचना

लोकसभा की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गई है। इनमें से 530 राज्यों के प्रतिनिधि और 20 केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं। एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को राष्ट्रपति नामित या नाम निर्देशित करता है।

वर्तमान समय में लोकसभा में 545 सदस्य है इनमें से 530 से 10 राज्यों, 13 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित या नाम एंग्लो निर्देशित इंडियन समुदाय से हैं।
  1. राज्यों का प्रतिनिधित्व - राज्यों के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है उसे मतदान करने का अधिकार है। सन् 1988 में 61 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मत देने की आयु को 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दिया।
  2. केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व - संघ राज्य क्षेत्र अधिनियम 1965 के तहत केंद्र शासित प्रदेशों में लोकसभा के सदस्य चुने जाते हैं।
  3. मनोनीत सदस्य - अगर पर्याप्त प्रतिनिधित्व ना हो तो राष्ट्रपति दो लोगों को मनोनीत कर सकते हैं

लोकसभा सदस्य बनने की योग्यता

  • भारत का नागरिक हो
  • 25 वर्ष की आयु हो
  • लाभ के पद पर ना हो

लोकसभा सदस्यों का निर्वाचन

  • प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा
  • लोकसभा में 2 आंग्ल भारतीयों का मनोनयन (अनुच्छेद -331)

लोकसभा सदस्यों का कार्यकाल

  • 5 वर्ष (5 वर्ष पश्चात स्वत: भंग)
  • मंत्री परिषद की सलाह पर राष्ट्रपति लोकसभा भंग कर सकता है।
  • राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद में प्रस्ताव पारित कर (एक बार में 1 वर्ष के लिए कार्यकाल बढ़ा सकती है)

लोकसभा अध्यक्ष का चयन कुल लोकसभा सदस्य में ही किसी एक को चुना जाता है

लोकसभा के कार्य

  • विधेयकों को पारित करना
  • धन विधेयक पर एकाधिकार
  • मंत्री परिषद को उत्तरदायी बनाना

लोकसभा गणपूर्ति या कोरम के कुल सदस्यों की संख्या 1/10 होती है। (सदन में किसी बैठक शुरू करने के लिए निश्चित सदस्यों की संख्या को गणपूर्ति या कोरम कहते हैं। लोकसभा में 55 और राज्य सभा में 25 )

प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन को दो भागों में बांटा गया है-
(अ) राज्यों को लोकसभा में स्थानों का आवंटन
(ब) प्रत्येक राज्य का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन।

परिसीमन आयोग 

संविधान में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्यों को लोकसभा क्षेत्रों का आवंटन व प्रत्येक राज्य का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन के लिए नियमों निर्धारण करें। इसके तहत संसद ने 1952, 1962, 1972 व 2002 में परिसीमन आयोग अधिनियम लागू किए।

42वें संशोधन अधिनियम 1976 में राज्यों को लोकसभा क्षेत्रों का आवंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन को वर्ष 2000 तक स्थिर कर दिया गया। इस प्रतिबंध को 84वें संशोधन अधिनियम 2001 में अगले 25 वर्षों (यानी वर्ष 2026) तक के लिए बढ़ा दिया गया।

लोकसभा का एक निर्वाचन क्षेत्र कितनी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है - 7.5 लाख 

सबसे कम लोकसभा सीट वाले राज्य - सिक्किम, नागालैंड, मिजोरम 

2 लोकसभा सीट वाले राज्य - गोवा, , मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, 

सर्वाधिक लोकसभा सीट वाले राज्य - उत्तर प्रदेश (80) , महाराष्ट्र (48), बिहार (40), मध्यप्रदेश (29) सर्वाधिक अनुसूचित जनजाति - मध्य प्रदेश 

लोकसभा की चुनाव प्रणाली

भारत में लोकसभा के सदस्यों के चुनाव के लिए प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को अपनाया गया है। इसके अंतर्गत पूरे देश को विभिन्न प्रदेशिक निर्वाचन क्षेत्र में बांटा जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक संसद सदस्य निर्वाचित होते हैं यानी कि प्रत्येक संसद सदस्य एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है

MP और क्षेत्र का अनुपात बराबर होता है जिन राज्यों की संख्या कम है (60 लाख से कम) तो उनके लिए अलग प्रावधान किया गया है।

प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आवंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्यों में तथा साध्य एक ही हो।

  • क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र लद्दाख है।
  • प्रथम लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर है।
  • महिला लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमारी है।

संसद सत्र क्या है ?

जिस अवधि के दौरान सदन अपना कार्य करने के लिए बैठक करता है उसे सत्र कहा जाता है। भारत का संविधान राष्ट्रपति को प्रत्येक सदन को इस तरह के अंतराल पर बुलाने का अधिकार देता है कि दो सत्रों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए इसलिए संसद को वर्ष में कम से कम 2 बार अवश्य मिलना चाहिए।

सत्र के तीन प्रकार हैं -

(1) बजट सत्र (फरवरी - मार्च)

(2) मानसून सत्र (जुलाई -अगस्त)

(3) शीतकालीन सत्र (नवंबर - दिसंबर)

विधेयक तथा उनके प्रकार

विधेयक को अंग्रेजी भाषा में बिल कहा जाता है। बिल या विधेयक एक प्रकार का देश की सरकार से कानून बनाने का प्रस्ताव होता है। संसद द्वारा जितने भी कानून व नियम बनाए जाते हैं। उनके लिए सर्वप्रथम एक विधेयक लाया जाता है। और उन्हें संसद के दोनों सदनों लोकसभा तथा राज्यसभा में पारित किया जाता है। और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने के बाद विधेयक कानून (एक्ट) का रूप ले लेता है। अर्थात एक विधेयक को अनेकों प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद कानून या अधिनियम (एक्ट) का बनता है।

संसद में पेश होने वाले विधेयक दो तरह के होते हैं।
  1. सरकारी विधेयक
  2. गैर सरकारी विधेयक

(1) सरकारी विधेयक

(क) मंत्री द्वारा पेश
(ख) सरकार की नीतियों को प्रदर्शित
(ग) सदन द्वारा पारित
(घ) सदन द्वारा अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है।
(ड) सदन में पेश करने के लिए 7 दिनों की नोटिस होना चाहिए।

(2) गैर सरकारी सदस्यों का विधेयक

(क) मंत्री के अलावा कोई भी सदस्य
(ख) सार्वजनिक मामले पर विपक्षी दल के मंतव्य को प्रदर्शित
(ग) कम उम्मीद
(घ) अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(ड) 1 माह का नोटिस

संसद में प्रस्तुत विधेयकों को निम्न 4 श्रेणियों में बांटा गया है।
  1. साधारण विधेयक
  2. धन विधेयक
  3. वित्त विधेयक
  4. संविधान संशोधन विधेयक

(1) साधारण विधेयक

सामान्य विधि निर्माण की प्रक्रिया वाले विधेयक साधारण विधेयक होते हैं उन्हें सदन के किसी भी सदन से प्रस्तुत किया जा सकता है।

साधारण विधेयक को साधारण बहुमत से प्रस्तुत किया जाता है। जिस सदन में विधेयक पेश किया जाता है और उसी सदन में साधारण बहुमत प्राप्त न हो तो विधेयक फेल हो जाता है अंततः में समाप्त हो जाता है। और यदि विधेयक प्रथम सदन में पास हो जाता है तो दूसरे सदन में भेजा जाता है।
यदि दूसरा सदन किसी प्रकार के संशोधन के साथ विधेयक को पारित कर देता है या प्रथम सदन उन संशोधनों को स्वीकार कर लेता है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है तथा इसे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है। और यदि द्वितीय सदन विधेयक को पूरी तरह अस्वीकृत कर देता है। या द्वितीय सदन 6 माह से अधिक समय तक रोक लिया जाता है तो अंत में विधेयक समाप्त हो जाता है।

यदि विधेयक को पारित करवाना अनिवार्य हो तो राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 108 लोकसभा स्पीकर की अध्यक्षता  में संयुक्त बैठक को बुला सकता है। 

संयुक्त बैठक - (अनुच्छेद 108)

(1) किसी विधेयक पर गतिरोध की स्थिति में
(२) यदि विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया
(3) संशोधन मानने से मना करने पर 
(4) 6 माह से अधिक रोक

संयुक्त बैठक राष्ट्रपति साधारण विधेयक और वित्त विधेयक के लिए बुला सकता है 

(2) धन विधेयक (अनुच्छेद 110)

धन निकालना, धन जमा करना, उधार लेना, कोई नया कर लगाना, किसी कर को समाप्त करना से संबंधित प्रस्ताव वाले विधेयक को धन विधेयक कहते हैं।
धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं जिसे राज्यसभा अधिकतम 14 दिन तक ही रोक सकती है।
कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इस पर लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

नोट्स - *धन विधेयक को लोकसभा में अस्वीकृत होने पर सरकार को त्यागपत्र देना पड़ता है।

(3) वित्त विधेयक (अनुच्छेद - 117)

संविधान के अनुच्छेद 117 में दिए गए दूसरे प्रकार के विधेयक अर्थात धन विधेयक से भिन्न-भिन्न वित्त विधेयक संसद के किसी भी सदन में साधारण बहुमत के साथ प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
जैसे - लोकसभा-राज्यसभा-राष्ट्रपति

(4) संविधान संशोधन विधेयक

किसी प्रावधान में परिवर्तित करना, किसी नये प्रावधान को शामिल करना, किसी प्रावधान को समाप्त करना संविधान संशोधन कहलाता है।
संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इस विधेयक को सदन में पारित करने के लिए विशेष बहुमत की आवाश्यकता होती है 
यदि कोई सदन संविधान संशोधन विधेयक को फेल कर दे तो विधेयक पूर्णतः समाप्त हो जाता है।

वार्षिक वित्तीय विवरण (अनुच्छेद 112)

बजट

बजट शब्द का इस्तेमाल संविधान में नहीं किया गया है।
सरकार द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए और आय और व्यय का लेखा जोखा संसद में प्रस्तुत किया जाता है । सामान्य भाषा में इसे बजट कहा जाता है।
यह सरकार की तरफ से राष्ट्रपति द्वारा वित्त मंत्री के माध्यम से संसद में प्रस्तुत किया जाता है। यह एक तरह का धन विधेयक होता है इसलिए इसे लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है।

भारत सरकार के दो तरह के बजट होते हैं।

  • आम बजट
  • रेलवे बजट

(एकवर्थ कमेटी 1921 में बनाई गई जिसके अध्यक्ष एकवर्थ थे। एकवर्थ कमेटी की सिफारिश पर सन् 1924 में रेल बजट को आम बजट से अलग किया गया। किन्तु 2016 में रेल बजट अंतिम बार अलग पेश हुआ। और सन् 2017-18 में वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा एक ही बजट अर्थात् सामान्य बजट प्रस्तुत हुआ।)

बजट में दो प्रकार के व्यय शामिल होते हैं।
भारत की संचित निधि पर भारित व्यय
भारत की संचित निधि से किए गए व्यय

भारित व्ययों के संबंध में सदन में मतदान नहीं होता है। अर्थात इस पर केवल चर्चा होती है।
जबकि अन्य प्रकार के व्यय पर मतदान कराया जाता है।

भारित व्यय

  • राष्ट्रपति की उपलब्धियां एवं भत्ते तथा उनके कार्यकाल व्यय
  • उपराष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष राज्यसभा के उपसभापति लोकसभा के अध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते SC HC न्यायाधीशों के वेतन + भत्ते + पेंशन
  • CAG, UPSC, HC+SC+CAG+UPSC — कार्यकाल व्यय
  • ब्याज निक्षेप आदि.....

विनियोग विधेयक (अनुच्छेद 114)

भारत सरकार संचित निधि से दो प्रकार के व्यय किए जाते हैं।
  1. स्थायी व्यय - सरकारी कर्मचारियों की वेतन पेंशन आदि
  2. अस्थायी व्यय - जो प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए संसद में बहस, मतदान, चर्चा के पश्चात बजट के माध्यम से निर्धारित किया जाता है।
इस प्रकार दूसरे तरह के व्यय के लिए समय-समय पर संचित निधि से धन निकाले जाने की आवश्यकता होती है। जिसके लिए एक अन्य विधेयक सदन में प्रस्तुत किया जाता है जिसे विनियोग विधेयक कहा जाता है।

निधियां

भारत का संविधान केंद्र सरकार के लिए निम्नलिखित तीन प्रकार की निधियों की व्यवस्था करता है -

  1. भारत की संचित निधि (अनुच्छेद 266)
  2. भारत की लोक लेखा निधि (अनुच्छेद 266)
  3. भारत की आकस्मिक निधि (अनुच्छेद 267)

भारत की संचित निधि (अनुच्छेद 266 )

सरकार को प्राप्त सभी राजस्व बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृति ऋणो प्राप्त ब्याज सहित संचित निधि (Consolidated fund) में जमा होते हैं।

संचित निधि - (अनुच्छेद 266)

इसमें धन निकाल निकाले जाने का प्रावधान होने के कारण यह धन विधेयक भी होता है इसलिए इसे लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है। क्योंकि बजट बनाते समय ही इस पर मतदान हो चुका होता है इसलिए दोबारा मतदान की आवश्यकता नहीं होती है।

भारत की लोक निधि (अनुच्छेद 266)

अनुच्छेद 266 प्रत्येक राज्य की समेकित निधि का वर्णन भी करता है। और राज्यों की लोक निधि का वर्णन करता है।
इस निधि से व्यय धन को महालेखानियंत्रक द्वारा जाॅंचा जाता है। लोक निधि 'कर एकत्रीकरण से प्राप्त आय' होती है।
कर्मचारी भविष्य निधि को भारत के लोक निधि में ही जमा किया जाता है।

भारत की आकस्मिक निधि या आपातकालीन निधि - (अनुच्छेद 267)

ऐसी निधि जो आपातकाल में प्रयोग की जा सकती और स्थापित करने का अधिकार देता है । यह निधि राष्ट्रपति के अधीन होता है। राष्ट्रपति से धन स्वीकृत लेने के बाद संसद भवन से व्यय धन के बराबर धन भारत की संचित निधि से निकाल कर डाल दिया जाता है। साथ ही अनुच्छेद 267 राज्यों को अपनी आकस्मिक निधि स्थापित करने का अधिकार देता है।

बजट से जुड़ी महत्वपूर्ण शब्दावली 

  • लेखानुदान (अंतरिम बजट) - जब संपूर्ण वित्तीय वर्ष के लिए बजट ना बनाकर किसी कारणवश कुछ महीनों के लिए ही बजट बनाया जाता है। तो उसे लेखानुदान या अंतिरम बजट कहते हैं।
  • प्रत्यानुदान - कुछ ऐसी सेवाएं होती है जिन पर वर्ष के दौरान व्याख्या जाना निश्चित होता है परंतु कितना व्यय होगा। यह निश्चित नहीं होता है इसलिए इसे बजट का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। समय आने पर इसके लिए अलग से धन की मांग की जाती है जैसे - 2 अक्टूबर को एक करोड़ पेड़ लगाया जाना है।
  • अपवादानुदान - बजट के अतिरिक्त अन्य धन की मांग करना ही अपवादानुदान कहलाता है।

संविधान में प्रयुक्त प्रमुख शब्दावलियों

विश्वास प्रस्ताव :- लोकसभा में सत्ता पक्ष द्वारा बहुमत सिद्ध करने के लिए विश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है यदि यह पारित नहीं हो पाता तो संपूर्ण मंत्री परिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। 

अविश्वास प्रस्ताव :- विपक्षी द्वारा यह सिद्ध करने के लिए सरकार बहुमत में नहीं है यह सिद्ध करने के लिए लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है यदि यह पारित हो जाए तो संपूर्ण मंत्री प्रस्तुत को त्यागपत्र देना पड़ता है। लेकिन यह पारित ना हो तो अगले 6 माह तक दोबारा नहीं लाया जा सकता।

संसद में वाद विवाद (प्रश्नों का स्वरूप)

संसद में किसी सदस्य द्वारा एक दिन में अधिकतम 10 प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जिनमें से अधिकतम 5 प्रश्न तारांकित हो सकते हैं। शेष अंताराकित 

प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं।
  1. तारांकित प्रश्न - ऐसे प्रश्नों का उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है तथा जिस पर पूरक प्रश्न (cross questions) पूछ सकते हैं। और ऐसे प्रश्नों पर बहस होने की संभावना बनी रहती है।
  2. अतारांकित प्रश्न - ऐसे प्रश्नों का उत्तर लिखित रूप से दिया जाता है तथा जिस पर पूरक प्रश्न (cross questions) नहीं पूछ सकते हैं। 
  3. अल्प सूचना प्रश्न - यदि किसी सदस्य द्वारा पहले से ही पूछे गए जाने वाले प्रश्नों की सूची और मुद्दे सदन को नहीं सौपें गए हैं और तत्कालिक कोई प्रश्न पूछता है तो इसके लिए अध्यक्ष या सभापति को सूचना देकर उनकी स्वीकृति मिलने के पश्चात अल्प सूचना प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
प्रश्नकाल :- यह एक प्रकार की संसदीय कार्यवाही है। संसद का प्रथम घंटा प्रश्नकाल का होता है इसमें सदस्यों द्वारा प्रश्नों की सूचियां सदन को सौंपी जाती है। जोकि दिन के 11:00 बजे प्रारंभ होती हैं। 

शून्यकाल :- प्रश्नकाल के बाद का समय तथा अन्य कार्यवाहियों के प्रारंभ होने से पहले का समय शून्यकाल कहलाता है। शून्यकाल भारत की देन है।

सत्र :- संसद की सामान्य बैठके जो राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती है सत्र कहलाती है यह वर्ष में समान्यत: तीन होती हैं। 

स्थगन :- लोकसभा में अध्यक्ष या राज्यसभा में सभापति द्वारा संसद की कार्यवाही को राज्यसभा में सभापति द्वारा रोकना ही स्थगन कहलाता है। यह कुछ मिनट, घंटा, दिन या सप्ताह के लिए हो सकता है। इस स्थगन का सदन में प्रस्तुत किए गए किसी विधेयक प्रस्ताव या संकल्प पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 

सत्रावसान

संसद के सत्र की राष्ट्रपति द्वारा समाप्ति की घोषणा सत्रावसान कहलाता है।
सत्रावसान पर संसद में प्रस्तुत किए गए विधेयकों को छोड़कर अन्य सभी प्रस्ताव, संकल्प व सूचना समाप्त हो जाती हैं।

विघटन :- राज्यसभा और विधान परिषद का विघटन नहीं होता है। लोकसभा 5 वर्ष की समाप्ति पर स्वत: ही विघटित मानी जाएगी। इससे पहले लोकसभा को भंग करना हो तो। मंत्री पद की सिफारिश पर राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर जा कर सकता है ।

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उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...