भारत के 15वें उपराष्ट्रपति भारत के 15वें उपराष्ट्रपति C. P. (Chandrapuram Ponnusamy) Radhakrishnan बने हैं । राष्ट्रपति के बाद यह देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। निर्वाचन की जानकारी उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 का मतदान 9 सितम्बर, 2025 को हुआ। चुनाव भारत के दोनों सदनों (लोकसभा + राज्यसभा) के सांसदों द्वारा गुप्त मताधिकार से हुआ। कुल निर्वाचक (electors) 781 थे, जिनमें से 767 ने मतदान किया। 15 मतपत्र अमान्य घोषित हुए। परिणाम C. P. Radhakrishnan (NDA उम्मीदवार) ने 452 मत प्राप्त किये। उनके मुकाबले B. Sudershan Reddy, जिन्हें विपक्ष (INDIA गठबंधन) ने समर्थन दिया था, ने 300 मत प्राप्त किये। मतों का अंतर 152 रहा। सी. पी. राधाकृष्णन — व्यक्तिगत एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि जन्म : 20 अक्टूबर, 1957, तिरुप्पुर, तमिलनाडु। शिक्षा : उन्होंने BBA (बैचलर ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन) की डिग्री प्राप्त की है। आरएसएस और जनसंघ से जुड़ाव: युवावस्था से ही RSS/भाजपा के संगठनों से सक्रियता रही है। पहले के पद : महाराष्ट्र राज्यपाल (Governor of Maharashtra) झारखंड राज्यपाल का...
स्वाभिमानी राजपूत
काव्य संग्रह
यह कैसी स्वाभिमानी है?
यह कैसी बुद्धिमानी है?
माना कि तुम राजपूत हो,
लेकिन फितरत वही पुरानी,
सौ गजो का बल है तुम में,
कहीं इस बात का अभिमान तो नही,
माना कि तुम राजपूत हो,
कभी दुश्मन से हारे नहीं,
मस्तक - ए - सर झुकाया नहीं,
पहचान तो कर लो बैरी कि,
भाई हमारा दूसरे पार तो नहीं,
क्यों सत्ता की लालच है इतनी,
हाथ मिला बैठे हो गैरों से,
क्या यही स्वाभिमानी है,
क्या यही बुद्धिमानी है,
सदियों से जो करते आए हो,
क्या इतिहास वही दोहराना है,
रण छोड़ दिया जयचंद नेे,
मान गए क्यों अकबर की शरण में,
मैं बात कर रहा हूं उन राणा कि,
मैं बात कर रहा हूं चौहानों की,
अभी भी कुछ नहीं बदला तुम में,
गांव में ही बैर है इतना,
जमीन के कुछ टुकड़ों से,
आपस में क्यों लड़ते हो,
राष्ट्रीय भाव जगाओ मन में,
यह कैसी स्वाभिमानी है?
यह कैसी बुद्धिमानी है?
सहनशीलता क्यों नहीं है तुम में,
वक्त बदला, दुनिया बदली,
राजपूत क्यों नहीं बदले,
हठी को छोड़ो अपनों को खोजो,
प्रेम भाव जगाओ मन मेंं,
माना कि तुम राजपूत हो,
जानता हूं हठी को नही छोड़ोगे,
ऊपर लिखा सच नहीं मानोगे तुम,
यह कैसी स्वाभिमानी है?
यह कैसी बुद्धिमानी है?
जिद के आगे झुक गई है दुनिया,
राज कर गए तुम पर अनपढ़ राजा।
कविता का उद्देश्य
प्रस्तुत पंक्तियों की रचना स्वयं के द्वारा की गई है, यह भाव उत्पन्न होने का मुख्य कारण है कि अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों के लिए लोगों को लड़ाई करते पाया है। क्योंकि आजादी के बाद देश की रक्षा के लिए बहुत सारे राजपूत सेना में भर्ती हो गए। वहीं अन्य खेती पर भी निर्भर हो गए थे। जैसा की आप सबको मालूम है कि कन्नौज के शासक हर्षवर्धन के बाद देश में विभिन्न प्रकार के राजपूताना राज्यों का उदय हुआ । परमार, चौहान , राणा, चंद, कत्यूरी आदि ने नए राज्यों की स्थापना की। कहीं ना कहीं भारत में सबसे अधिक मात्रा में राजपूतों की संख्या है । और वह किसी ना किसी जाति या धर्म से संबंध रखते हैं । राजपूत हमेशा की तरह ही स्वाभिमानी से जिए हैं , और जिसकी मुख्य पहचान भी स्वाभिमानी ही है । लेकिन मेरे अनुभव के अनुसार राजपूतों में सहनशीलता की कमी होती है। वे अत्यधिक उग्र स्वभाव के होते हैं। बहुत जल्दी ही हाथापाई और लड़ाई पर आ जाते हैं। मैं यहां पर अधिकांश राजपूतों की बात कर रहा हूं ना कि सभी की बहुत से ऐसे भी हैं जो अत्यधिक प्रेम भाव से रहते हैं। और उनमें सहनशीलता का भंडार है ।
मेरा उद्देश्य किसी जाति धर्म को रात को बढ़ावा देना है। और ना ही किसी की निंदा करना है। मेरी कोशिश है कि अपनों की कमियों को उजागर करना । यदि आपको इन बातों का यकीन ना हो तो कभी महसूस करना आपको सच्चाई खुद-ब-खुद दिख जाएगी । अतः जरूरत देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए सभी को सहनशीलता और प्रेम भाव को बनाने की सदैव कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि आप लोग देश की आन हैं। जिनका लोहा विदेशियों ने भी माना है जिसका जिक्र बाबर ने भी किया है । अकबर ने भी किया है। हारे हैं तो बस अपनों से, जिसके लिए भाईचारे की भावना जरूरी है।
यदि मेरे विचार जातिवाद या किसी व्यक्ति विशेष को कष्ट देती हैं। तो उसके लिए क्षमा करें।। लेकिन सच्चाई यही है और सच्चाई को स्वीकार करें।
धन्यवाद
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Bahut axchi h poem h Bhai
जवाब देंहटाएंKatai suuper.. se uper tk...
Bhut sundar कविता hai 😊
जवाब देंहटाएंBahut sundar ...
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