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वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रत्न

वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में वनबसा, एक ऐसा कस्बा है जो भारत-नेपाल सीमा पर बसा है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। टनकपुर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ग्राम पंचायत, जनपद की सबसे बड़ी पंचायतों में से एक है, जहाँ लगभग 10,000+ लोग निवास करते हैं। यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य समुदायों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो इस क्षेत्र को एक जीवंत सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। प्रकृति और इतिहास का संगम शारदा नदी के तट पर बसा वनबसा, मैदानी और पर्वतीय संस्कृतियों का एक अनूठा मेल है। यह स्थान सदियों से पर्वतीय लोगों का प्रिय ठिकाना रहा है। पुराने समय में, जब लोग माल भावर की यात्रा करते थे, वनबसा उनका प्रमुख विश्राम स्थल था। सर्दियों में पहाड़ी लोग यहाँ अपनी गाय-भैंस चराने आते और दिनभर धूप में समय बिताकर लौट जाते। घने जंगलों के बीच बसे होने के कारण, संभवतः इस क्षेत्र का नाम "वनबसा" पड़ा। यहाँ की मूल निवासी थारू और बोक्सा जनजातियाँ इस क्ष...

रुद्रपुर : एक औद्योगिक शहर

          रुद्रपुर का इतिहास

                    रुद्रपुर के बारे में


मिनी हिंदुस्तान: तराई भाबर का क्षेत्र

रुद्रपुर शहर कल्याणी नदी के तट पर स्थित एक घनी आबादी वाला औद्योगिक शहर है जो उत्तराखंड राज्य के उधम सिंह नगर जिले में स्थित है। उधम सिंह नगर को इतिहासकारों ने मिनी हिंदुस्तान की संज्ञा दी है । क्योंकि तराई और भावर का प्रमुख स्थान है और मैदानी भाग में होने के कारण औद्योगिक विकास और कृषि के विकास में तेजी से वृद्धि हुई है । जैसा कि देखा गया है कि इतिहास के पुराने पन्नों को जब भी खोला जाता है तो मालूम होता है कि प्रत्येक शहर का इतिहास एक गांव से शुरू होता है ऐसा ही एक शहर है "रुद्रपुर"

रुद्रपुर शहर का इतिहास

प्राचीन समय में रुद्रपुर एक गांव था लोक कथाओं के अनुसार रूद्र नाम का एक आदिवासी यहां रहा करता था। जो आदिवासी समुदाय का मुखिया था। उसी के नाम पर रुद्रपुर गांव का नाम रखा गया । जबकि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान रुद्र सिंह के नाम पर रुद्रपुर गांव को बताया गया। गुप्त काल के दौरान यहां तक कत्यूरी राजाओ का शासन रहा है । उसी दौरान अनेकों महाकाव्य की रचना हुई । उनके अनुसार तराई भाबर क क्षेत्र को ऋषि मुनियों की तपोभूमि कहा जाता है । महर्षि वाल्मिकी की कुटिया यहीं रही है। और सीता माता ने लव कुश को जन्म दिया है। साथ ही पांडवों के साथ जीवन की कई स्मृतियां जुड़ी हुई है । यहां आज भी महाभारत काल के अवशेष काशीपुर में अनेक स्थानों पर पाए जाते हैं । कत्यूरी के बाद तराई भाबर क्षेत्र में सबसे अधिक लंबा प्रशासन चंद्र शासकों का रहा है । जो अल्मोड़ा से नियंत्रण रखते थे । 
                  चंद काल में रुद्रपुर को बोक्साड़ नाम से जाना जाता था।  सन 1588 में राजा रुद्र चंद ने नागौर के खिलाफ अकबर के साथ लड़ाई लड़ी । रूद्र चंद के इस सहयोग से अकबर अति प्रसन्न हो गया और राज्य को स्वतंत्र कर दिया। रुद्रचंद की सुरक्षा में राज्य को सौंप कर खुद लाहौर चला गया गया । 1588 से 1599 तक अकबर लाहौर में रहा । उधर रूद्र चंद अब एक कुशल सेना का मतलब समझ चुका था । किस प्रकार अकबर ने इतना विशाल साम्राज्य स्थापित किया?  तो उसने भी एक स्थाई सेना बनाने का विचार किया और एक मिलिट्री कैंप (सैन्य शिविर) स्थापना की। और करें भी क्यों ना आसपास के क्षेत्र के राजाओं का खतरा हर समय मंडराता रहता थाा। इस तरह रुद्रपुर का विकास चंद शासकों से शुरु हो चुका था । रुद्र चंद के दरबारी विद्वानों के अनुसार रुद्रपुर का नाम राजा रुद्रचंद्र के नाम से रखा गया है । लोक कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है कि एक बार राजा रुद्रपुर से गुजर रहा था तो उनका रथ दलदली भूमि में फस गया था। इसलिए उन्होंने उस जगह मंदिर बनाने का फैसला लिया। जिसे अटरिया मंदिर के नाम से जाना गया जो रुद्रपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्रतिवर्ष यहां नवरात्रि के समय 10 दिनों का मेला लगता है।
                 रूद्र चंद के बाद लक्ष्मीचंद और 1816 में रूपचंद राजा बनता है । जो हल्द्वानी शहर का विकास करता है फिर उसके बाद त्रिमल चंद राजा का शासन आता है । 1638 तक चंद्र शासकों का राज्य चरमोत्कर्ष पर था। इस समय बाज बहादुर चंद कुमाऊं पर शासन कर रहा था। आसपास के सभी राजाओं की नजर इसमें रहती थी। इसलिए तराई क्षेत्र में लाट अधिकारी को नियुक्त किया था लेकिन कठोर प्रशासन व्यवस्था के बावजूद तराई क्षेत्र पर  रोहिलखंड (आधुनिक मुरादाबाद) का शासन हो गया  । तत्पश्चात एक बार पुनः बाज बहादुर चंद ने मुगल सम्राट शाहजहां से एक संधि करता है और राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी मुगलों के हाथ आ गयी। चंद व रोहिल्ला युद्ध के समय चंदों की अगुवाई शिवदेव जोशी ने की थी रूहेलाओं की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दीपचंद ने रुद्रपुर में एक किले का निर्माण करवाया।  इस तरह तराई क्षेत्र पर चंद्र शासकों का पुनः कब्जा हो जाता है लेकिन उसके बाद उसका उत्तराधिकारी कल्याण चंद रोहिलो से हार जाता है। 1790 में चंद्र शासकों का साम्राज्य समाप्त हो जाता है और गोरखाओं का शासन प्रारंभ हो जाता है। 1790 ईस्वी में अल्मोड़ा चंद शासन के पतन के बाद काशीपुर के लाट नंदराम में रुद्रपुर क्षेत्र अवध के नवाब को सौंप दिया था। 
              19वीं सदी के आरंभ में  रूहेलो और गोरखा को हराकर अंग्रेजों ने तराई पर कब्जा कर लिया जो कि व्यापार का एक मुख्य केंद्र बन गया । 1815 में कमजोर चंद्र शासकों के चलते कुमाऊं अंग्रेजों के हाथ चला गया। 1818 में कमिश्नर ट्रेल ने तराई भाबर का विकास किया। ( हिस्ट्री ऑफ तराई कुमाऊं उत्तराखंड) । 1835 ईस्वी में रुद्रपुर रोहिलखंड में शामिल हो गया और 1891 में तराई जनपद खत्म कर रुद्रपुर को नैनीताल में शामिल कर लिया गया। रुद्रपुर में रेल सेवा का प्रारंभ 1886 ईसवी में हुआ। 1984 ईस्वी में "ऑपरेशन ब्लू स्टार" के कारण चरमपंथियों ने तराई क्षेत्र में शरण ली अक्टूबर 1991 में रुद्रपुर में बम विस्फोट हुआ।

विशेषताएं

रुद्रपुर सामरिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान है उधम सिंह नगर को 7 ब्लॉकों में बांटा गया है। काशीपुर , रुद्रपुर,  बाजपुर, गदरपुर, जसपुर,  सितारगंज और खटीमा । रुद्रपुर शहर  केंद्र में होने के कारण  उधम सिंह नगर का मुख्यालय बनाया गया । रुद्रपुर की आबादी दो लाख से अधिक हो चुकी है । जनसंख्या के आधार पर कुमाऊं का दूसरा बड़ा नगर है। रुद्रपुर का कुल क्षेत्रफल   27.8 वर्ग किलोमीटर हैै। रुद्रपुर में ज्यादातर शरणार्थी और उद्योगों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर यूपी-बिहार से हैं । 1947 में भारत विभाजन के बाद तथा 1971 में पाकिस्तान विभाजन के बाद सबसे अधिक शरणार्थी रुद्रपुर शहर बसे । इसके अलावा पूरे उधम सिंह नगर में हजारों की संख्या में शरणार्थी आए।  यूं तो आजादी के बाद ही रुद्रपुर शहर का विकास प्रारंभ हो चुका था । लेकिन पंतनगर के आसपास 2002 में सिडकुल की स्थापना से विकास में तेजी मिली । एक बड़ी औद्योगिक केंद्र की स्थापना की गई । जिसका का कुल क्षेत्रफल 3233 एकड़ में था।  टाटा मोटर्स,  अशोक लेलैंड ,  बजाज जैसी कंपनियों ने रुद्रपुर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दी । 
              वर्तमान समय में रुद्रपुर लाखों लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा औद्योगिक केंद्र बन चुका है । जहां पर उत्तराखंड से पहाड़ों से लोग काम की तलाश में आते हैं। और वही यूपी बिहार के लोग भी काफी मात्रा में रुद्रपुर के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं ।‌ रुद्रपुर एक विकसित शहर है जिसका मॉडल एक योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है । शिक्षा का प्रमुख केंद्र है 1986 में जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना की गई।  भगत सिंह महाविद्यालय स्थित है । रुद्रपुर पुस्तकों का भंडार है एवं ब्रांडेड कंपनियों के शोरूम  उपलब्ध है। मेट्रोपोलिस सबसे बड़ा मॉल है । जिला स्तरीय स्टेडियम रुद्रपुर में ही स्थित है जहां प्रतिवर्ष खेलो इंडिया के लिए प्रतिभागियों का चयन किया जाता है। और जिला स्तरीय खेलों का आयोजन किया जाता है। उत्तराखंड ग्राम्य विकास संस्थान रुद्रपुर में स्थित है। पर्वत पुत्र समाचार पत्र का प्रकाशन भी रुद्रपुर में होता है। रुद्रपुर को 2013 में नगर निगम का दर्जा दिया गया। रुद्रपुर में खेड़ा झील का निर्माण 2006 में किया गया जो एक कृत्रिम झील है। झील में बोटिंग की सुविधा उपलब्ध है। झील के पास ही लेक पैराडाइज पर्यटक स्थल है। जो रुद्रपुर को आकर्षित बनाता है। 

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‌उधम सिंह नगर की स्थापना

अंग्रेजो के शासनकाल के दौरान नैनीताल जिले की स्थापना की गई । 1864-65 में पूरे तराई क्षेत्र का "तराई भाबर सरकारी अधिनियम" के तहत रखा गया । 1895 में "भूमि ग्रांट अधिनियम" पारित किया गया । जिसके तहत पट्टे पर भूमि देना प्रारंभ किया गया । भूमि को श्रेणी 1वर्ग क तथा श्रेणी 1वर्ग ख के तहत पहली बार रजिस्ट्रेशन शुरू किया गया ।1870 में अल्मोड़ा का पूर्ण पतन हो गया । पूरे तराई भाबर क्षेत्र में ब्रिटिश साम्राज्य का नियंत्रण पूर्ण तरह से स्थापित हो गया । सन 1891 में रुद्रपुर नैनीताल में शामिल कर लिया गया। उस समय नैनीताल में 4 कस्बे और 511 गांव शामिल किए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नैनीताल को उत्तर प्रदेश में शामिल कर लिया गया। अक्टूबर 1995 में उधम सिंह नगर को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में अलग कर दिया । और शहीद उधम सिंह के नाम पर उधम सिंह नगर जिले की स्थापना की । 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड वासियों के अथक प्रयासों से 27वॉ राज्य के रूप में उत्तराखंड को नई पहचान मिली।



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Sources : Tribes of uttaranchal, (B. S. Bisht), 
History of kumau. 

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टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. चंद्र वंश के शासन के बारे में आप मेरी पोस्ट काशीपुर का इतिहास में देख सकते हैं वेबसाइट देवभूमिउत्तराखंड.com

      हटाएं
  2. Chand vansh ke bare mai pdna ho to... Aap Kasipur ki history dekh skte hain... Kafi detail se likha gya hai..... Website mai jakr

    जवाब देंहटाएं

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