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सबसे पुराना स्थल : काशीपुर
गोविषाण का किला
काशीपुर का इतिहास 25 सौ वर्ष पुराना है । ऊधम सिंह नगर का सबसे पुराना स्थल है । बहुत सारे लोगों ने सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पढ़ा होगा कहा जाता है । कि सिंधु घाटी सभ्यता का अंत बाढ़ के कारण हुआ। हालांकि कारण और भी बताए जाते हैं लेकिन सर्वमान्य बाढ़ ही है तो अधिकांश लोग समझते हैं कि समस्त मानव जाति का विनाश हो गया।
बचपन में मुझे भी यही लगता था की 1750 के बाद पुनः जीवन शुरू हुआ होगा। जिस प्रकार ऋग्वेद की रचना का प्रारंभ बताया जाता है 1500 ईसा पूर्व वहीं से लोगों ने पढ़ना शुरू किया होगा । वेदों की रचना हुई होगी तो जानकारी के लिए मैं बता दूं कि जब सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हुआ । तो सिर्फ सिंधु घाटी के तटीय क्षेत्रों का अंत हुआ था । ना कि भारत में रह रहे समस्त मानव जाति का का अंत हुआ था। विभिन्न स्थानों पर आदिवासी समुदाय एक साथ रहते थे । स्थाई कृषि अपनाने से कुल या ग्राम बनने की प्रक्रिया शुरू हुई । जैसे-जैसे यह क्षेत्र बड़े हुए पहले तो जनपद में फिर महाजनपद में तब्दील हो गए । ऐसा ही एक शहर है जो अपने में ऐतिहासिक तथ्य संजोए हुए हैं जहां "गोविषाण का किला" है जिसका काल 600 ईसा पूर्व से बताया गया है और जिसको "काशीपुर शहर" के नाम से जाना गया है
काशीपुर का इतिहास
काशीपुर का पुराना नाम "गोविषाण" है जिसका अर्थ है "गाय की सींग" कहा जाता है । 600 ईसा पूर्व महात्मा गौतम बुद्ध काशीपुर आए थे। उन्होंने "उज्जैन नगर" को बसाया थाा। जिसके बाद हर्षवर्धन के शासनकाल में उज्जैन का नाम बदलकर गोविषाण कर दिया गया। उज्जैन वास्तव में किला था जो द्रोण सागर के निकट स्थित था। पुरातत्व विभाग के अनुसार 60 फुट ऊंची दीवार से बना हुआ । 15 फुट लंबाई ,10 फुट चौड़ाई, 21 फुट ऊंचाई का एक सुंदर किला था । गोविषाण (काशीपुर) सुुुुवणभद्रा के तट पर स्थित था । वर्तमान में सुुुुवणभद्रा को "ठेला नदी" के नाम से जाना जाता है । ठेला नदी राम गंगा की सहायक नदी है।
हर्ष काल के दौरान चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था । जिसने गोविषाण की भी यात्रा की और अपनी यात्रा वृतांत में गोविषाण का सुंदर वर्णन किया । हर्षवर्धन के बाद सभी क्षेत्रीय शक्तियां स्वतंत्र हो गई । फिर तुषार, यादव , गुर्जर -प्रतिहार आदि ने शासन किया। आठवीं सदी में गोविषाण स्थान पर कत्यूरी के अधीन आ गया । जिसकी राजधानी कार्तिकेयपुर में थी । कत्यूरियों के बाद तेरहवीं सदी में कुमाऊ के चंद्र शासकों ने अपना राज्य स्थापित किया । चंद्र वंश के संस्थापक सोमचंद थे। चंद वंश के वास्तविक संस्थापक गरुड़ ज्ञानचंद (1374-1419) थे जिन्होंने तराई और भावर का क्षेत्र दिल्ली के सुल्तानों से प्राप्त किया था । उसके बाद आए सभी चंद्र शासकों ने कीर्ति चंद्र, रुद्र चंद ने गोविषाण स्थान पर ध्यान नहीं दिया। हालांकि रुद्र चंद (1816-1826) रुद्रपुर तक आया और रुद्रपुर की स्थापना की । उसी के बाद बाज बहादुर चंद(1838-1878) ने बाजपुर की स्थापना की। देवी चंद ने तराई का मुख्यालय रुद्रपुर से काशीपुर में स्थानांतरित किया था। देवी चंद के लाट अधिकारी "काशीनाथ" ने तराई भाबर का मुख्यालय रुद्रपुर से गोविषाण स्थापित कर दिया । और गोविषाण को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया। और जिसके बाद गोविषाण को "काशीपुर" नाम से जाना गया। 1872 में अंग्रेजों द्वारा काशीपुर में नगर पालिका की स्थापना हुई । 2011 में नगर निगम की मान्यता मिल गयी। 11 जनवरी सन 1908 काशीपुर को रेल नेटवर्क से जोड़ा गया था । राज्य की सबसे पुरानी सूती मिल काशीपुर में स्थित है। वर्ष 2011 में काशीपुर में देश का 13वां इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट की स्थापना की गई। यहां चौराहा, बिगुल व वाणी प्रवाह नामक समाचार पत्रों पत्र का प्रकाशन किया जाता है।
विशेषताएं
द्रोण सागर
काशीपुर एक पौराणिक शहर है साथ ही औद्योगिक शहर भी है जहां काशीपुर की कुल जनसंख्या २ लाख के आसपास है ।एचसीएल, वीडियोकॉन , इंडिया ग्लाइकोल लिमिटेड आदि बड़ी कंपनियां है। माना जाता है कि काशीपुर ऐतिहासिक व्यापार से जुड़ा हुआ था । यहां पर कपड़े और धातु का मुख्य व्यापार हुआ करता था। रेशम मार्ग का रास्ता जहां से अफगानिस्तान बामियान तक व्यापार किया जाता था ।
1868 से काशीपुर में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई का कार्य प्रारंभ किया गया । अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थान का दौरा किया व्हेन सांग के यात्रा वृतांत में उल्लेखित गौतम बुद्ध के नख एवं बाल यहां उसे नहीं मिले । उसके बाद डॉ. बाई. डी. शर्मा के नेतृत्व में खुदाई करने के दौरान भीमगोड़ा पुरातत्विक स्थल मिला । साथ ही उज्जैन किला मिला । तांबे के कई सिक्के , बर्तन निकासी करने बाली काखानी, ताबीज, मिट्टी के बने हुए दिए, अगरबत्ती रखने की खाचे, तीनों की नोक, लोहे की छड़, और चाकू मिला। 1965 में कुछ समय के लिए खुदाई रोक दी गई । 1969 में पुन: खुदाई शुरू हुई तो 140 लंबाई 82 चौड़ाई 19 ऊंचाई फुट ऊंचे विशाल चैत्य के अवशेष मिले । मिट्टी के पहिए के आकार के बर्तन मिले। यहां ऐसे प्राकृतिक साक्ष्य मिले जहां कहीं और नहीं थे । गोविषाण की खुदाई में शुंग और कुषाण काल तक के साक्ष्य मिले ।
1100 से लेकर 1500 ईसा पूर्व तक के चिकनी मिट्टी की कलाकृतियों वाले मृदभांड मिले। इस क्षेत्र का संबंध महाभारत काल से भी रहा है। जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी महाभारत का काल संभवत है 1000 ईसा पूर्व क्या बताया गया है। "द्रोण सागर", जो कि एक पर्यटक स्थल का मुख्य आकर्षक केंद्र बनकर उभर रहा है जिसके बारे में बताया जाता है कि पांडवों ने गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा के रूप में द्रोण सागर भेंट किया था । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि काशीपुर उधम सिंह नगर का सबसे पुराना स्थल है । जिसका ऐतिहासिक काल अत्यधिक विस्तृत है।
बाला सुंदरी का मंदिर (चैती मेला)
बाला सुंदरी का मंदिर काशीपुर में स्थित है। बाला सुंदरी देवी को ज्वाला देवी उज्जैनी देवी के नाम से भी जाना जाता है। यहां के स्थानीय लोग इन्हें चैती देवी के नाम से पुकारते हैं। प्रत्येक वर्ष यहां चैत्र माह 15 दिनों चैती का मेला लगता है। बाला सुंदरी देवी का मंदिर शाक्त संप्रदाय से संबंधित है। बाला सुंदरी चंद राज वंश के राजाओं की कुलदेवी थी इस मंदिर के परिसर पर चैती मेला लगता है इसमें बुक्सा लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। अजीम समय में चैती मेले में घोड़ों का क्रय विक्रय होता था। काशीपुर में स्थित गिरीताल के पास मां मनसा देवी का छोटा सा मंदिर है जो गिरीताल की आकर्षण का मुख्य कारण है। इसके अतिरिक्त यहां मोटेश्वर महादेव व चामुंडा देवी मंदिर स्थित है।
काशीपुर शहर के महत्वपूर्ण बिंदु
- गन्ना विकास संस्थान ऊधम सिंह नगर के काशीपुर में स्थित है।
- राज्य की अधिकांश पेपर मिल कलस्टर काशीपुर में है।
- हस्तकला वा हथकरघा के लिए काशीपुर में क्राफ्ट डिजाइन केंद्र की स्थापना की गई है।
- राज्य के प्रसिद्ध कवि गुमानी पंत का जन्म काशीपुर में 1790 ईस्वी में हुआ था इनके पितामह का नाम पुरुषोत्तम पंत था।
आगे की राह
काशीपुर एक ऐसा स्थान है जिसका अपना एक इतिहास है । ऐसे में सरकार का दायित्व है कि उच्च श्रेणी के इतिहासकारों एवं पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर गहन अध्ययन करें और राजस्थान की भांति समस्त स्थलो को पर्यटन के लिए आकर्षक बनाने के प्रयत्न करें । इतना कुछ होने के बाद भी अभी तक काशीपुर को पर्यटन स्थल के रूप में स्थान नहीं मिला है । काशीपुर में जिस तरह खुदाई की जा रही है । इसके अनुसार काशीपुर को विश्व में विशेष पहचान मिल सकती है । काशीपुर का चैती मेला, द्रोण सागर , गिरीताल , बाला सुंदरी मंदिर और तुमरिया बांध पर्यटन का मुख्य केंद्र है काशीपुर का चैती मेला पूरे अप्रैल महीने तक चलता है । 2002 में पुरातत्व विभाग द्वारा 14 किलो की खोज की गई थी । जिसमें 2 टीले खड़कपुर में थे इस सब के बावजूद अभी तक काशीपुर को पर्यटक स्थलों में नाम क्यों नहीं मिला है ? सवाल खड़ा करता है? यदि पर्यटक स्थलों का विकास होगा तो देश में रोजगार की क्षमता में वृद्धि होगी। और देश का विकास होगा।
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Source : History of kumau by C. M. Agarwal, A travel count of kumau Himalaya range.
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