Uksssc Vdo/Vpdo Mock Test 2025 देवभूमि उत्तराखंड द्वारा आगामी परीक्षा उत्तराखंड पटवारी, ग्राम विकास अधिकारी, फोरेस्ट गार्ड और RO/ARO हेतु टेस्ट सीरीज प्रारंभ की गई है। सभी टेस्ट अनुभवी टीम द्वारा तैयार किए जा रहे हैं। टेस्ट सीरीज का लाभ उठाने के लिए संपर्क करें। 9568166280 Uksssc Mock Test - 212 (1) “अन्याला चोट कन्याला” इस लोकोक्ति का अर्थ क्या है ? (A) सर पर भारी चोट लगा (B) अंधे के हाथ बटेर लगना (C) अंधे पर चोट लगा (D) आने से जाने तक (2) “बाप पेट चय्ल बाजार” कुमाऊनी पहेली का क्या अर्थ है – (A) कददू (B) सेब (C) जीभ (D) पिनालू (3) मकर संक्रांति को स्थानीय भाषा में क्या कहा जाता है (A) घुघुती त्यौहार (B) उत्तरायण (C) चुनिया (D) उपरोक्त सभी (4) उत्तराखंड में ग्रामीण आवासो के निकट की भूमि क्या कहलाती है (A) घरया (B) बण्या (C) बिचौलि (D) जवाणा (5) निम्नलिखित स्वरों में कौन सा युग्म गलत है (A) मध्य स्वर - अ (B) विवृत स्वर - आ (C) अर्धविवृत्त स्वर - ई (D) पश्च स्वर - ऊ (6) सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियां के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए...
वन रिपोर्ट 2023
केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) द्वारा 21 जनवरी, 2024 को भारत में वनों की स्थिति के सम्बन्ध में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की वर्ष 2023 की रिपोर्ट जारी की गई.
18वीं द्विवार्षिक वन रिपोर्ट
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा इस रिपोर्ट का प्रकाशन 2-2 वर्ष के अन्तराल पर वर्ष 1987 से किया जाता है तथा 2023 की यह रिपोर्ट इस श्रृंखला में 18वीं द्विवार्षिक रिपोर्ट है, ऐसी पिछली 17वीं रिपोर्ट (2021 की रिपोर्ट) जनवरी 2022 में जारी की गई थी.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2023 की इस रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वन क्षेत्र 7,15,343 वर्ग किमी है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.76 प्रतिशत है.
- देश में वृक्ष आच्छादित क्षेत्र 1,12,014 वर्ग किमी है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3.41 प्रतिशत है.
- इस प्रकार कुल वन एवं वृक्ष आच्छादित (Forest and Tree Cover) क्षेत्र 8,27,357 वर्ग किमी जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25-17 प्रतिशत है.
(कुल वन क्षेत्र 7,15,343 वर्ग किमी + वृक्ष आच्छादित क्षेत्र 1,12,014 वर्ग किमी = 8,27,357 वर्ग किमी)
वन क्षेत्र में 156 वर्ग किमी तथा वृक्ष आच्छादित क्षेत्र में 1,289 वर्ग किमी इस प्रकार कुल वन एवं वृक्ष आच्छादित क्षेत्र में 1,445 वर्ग किमी (0.32 प्रतिशत) की वृद्धि 2021 की तुलना में देश में हुई है.
देश में राज्यों में सर्वाधिक वन क्षेत्र -
- मध्य प्रदेश में (77,073 वर्ग किमी)
- अरुणाचल प्रदेश (65,882 वर्ग किमी)
- छत्तीसगढ़ (55,812 वर्ग किमी)
सर्वाधिक वन एवं वृक्ष आवरण वाले पहले 3 राज्य -
- मध्य प्रदेश (85,724 वर्ग किमी),
- अरुणाचल प्रदेश (67,083 वर्ग किमी) तथा
- महाराष्ट्र (65,389 वर्ग किमी)
कुल भौगोलिक क्षेत्र में वन क्षेत्र के प्रतिशत की दृष्टि से देश में पहला स्थान लक्षद्वीप का है, जहाँ कुल भू-क्षेत्र का 91.33 प्रतिशत भाग वनाच्छादित है. इस मामले में आगे के स्थान क्रमशः
- लक्षद्वीप (91.33 प्रतिशत)
- मिजोरम (85-34 प्रतिशत) व
- अंडमान-निकोबार (81.62 प्रतिशत)
2021-23 के दौरान वन क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि वाले तीन राज्य
- मिजोरम (242 वर्ग किमी की वृद्धि),
- गुजरात (180 वर्ग किमी) तथा
- ओडिशा (152 वर्ग किमी की वृद्धि)
2021-23 के दौरान वन एवं वृक्ष आवरण में सर्वाधिक वृद्धि वाले 5 राज्य क्रमशः
- छत्तीसगढ़ (684 वर्ग किमी की वृद्धि),
- उत्तर प्रदेश (559 वर्ग किमी की वृद्धि),
- ओडिशा (559 वर्ग किमी की वृद्धि),
- राजस्थान (394 वर्ग किमी की वृद्धि)
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) के बारे में :
मुख्यालय : देहरादून, उत्तराखंड।
वर्तमान महानिदेशक : श्री अनूप सिंह,
स्थापना :
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की स्थापना 1 जून 1981 को हुई थी और इसका मुख्यालय देहरादून, उत्तराखंड में स्थित है। यह भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन एक प्रमुख राष्ट्रीय संगठन है, जो देश के वन संसाधनों का सर्वेक्षण, अध्ययन और अनुसंधान करने के लिए जिम्मेदार है। FSI का गठन "प्री-इन्वेस्टमेंट सर्वे ऑफ फॉरेस्ट रिसोर्सेज" (PISFR) के उत्तराधिकारी के रूप में हुआ, जो 1965 में भारत सरकार द्वारा खाद्य और कृषि संगठन (FAO) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के सहयोग से शुरू किया गया एक प्रोजेक्ट था। PISFR का मुख्य उद्देश्य लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता का आकलन करना था।
उद्देश्य : देश के वन संसाधनों का नियमित सर्वेक्षण, निगरानी और डेटा संग्रह करना, ताकि नीति निर्माण और वन संरक्षण में सहायता मिले।
प्रमुख कार्य :
- हर दो साल में इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) प्रकाशित करना, जो वन और वृक्ष आवरण, कार्बन स्टॉक, और जैव विविधता की स्थिति पर डेटा प्रदान करता है।
- रिमोट सेंसिंग, GIS, और अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके वन आवरण का आकलन।
- वन संसाधनों की सूची तैयार करना, जिसमें वन के बाहर वृक्ष संसाधन भी शामिल हैं।
- वन प्रबंधन, नीति निर्माण, और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण प्रतिबद्धताओं (जैसे UNFCCC) के लिए डेटा प्रदान करना।
- प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएँ प्रदान करना।
संरचना : FSI में दो प्रमुख इकाइयाँ हैं:
- फॉरेस्ट जियोइन्फॉर्मेटिक्स डिवीजन (FGD): थीमैटिक मैपिंग और वन आवरण आकलन।
- फॉरेस्ट इन्वेंट्री एंड ट्रेनिंग डिवीजन (FITD): वन संसाधनों की सूची और प्रशिक्षण।
चार क्षेत्रीय कार्यालय :
शिमला, कोलकाता, नागपुर, और बेंगलुरु।
फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (FRI)
फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (FRI) और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) दोनों भारत के वन संसाधनों के प्रबंधन, संरक्षण और अनुसंधान से संबंधित महत्वपूर्ण संस्थान हैं, जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्य करते हैं। दोनों का मुख्यालय देहरादून, उत्तराखंड में स्थित है।
फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (FRI) की स्थापना
मुख्यालय : देहरादून, उत्तराखंड।
देश के प्रथम वन विद्यालय की स्थापना 1878 में फॉरेस्ट स्कूल ऑफ देहरादून के नाम से हुई, जिसके गठन की सलाह डिट्रिच ब्रैंडिस ने दी थी और 1884 ई0 में इसका नाम बदलकर इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल रखा गया। और 1906 ई० में रिसर्च कार्य के साथ जोड़तें हुए नाम इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट रखा और स्वतंत्रता के बाद इसे नाम इंडियन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के नाम से जाना गया। 1988 में, इसे भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) के तहत लाया गया था। तथा 1991 ई0 में U.G.C ने F.R.I को डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित किया।
फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के उद्देश्य : वानिकी अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार सेवाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करना। यह भारत में वानिकी अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है।
प्रमुख कार्य :
- वनस्पति विज्ञान, वन प्रबंधन, वन आनुवंशिकी, वन उत्पादों, और पर्यावरण संरक्षण पर अनुसंधान।
- भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों और अन्य वन प्रबंधकों के लिए प्रशिक्षण।
- वानिकी में स्नातकोत्तर और पीएचडी स्तर की शिक्षा प्रदान करना।
- जैव विविधता संरक्षण, वन पारिस्थितिकी, और जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन।
- वन उत्पादों (जैसे लकड़ी, रेजिन, औषधीय पौधों) का विकास और उपयोग।
संरचना : FRI के अंतर्गत कई विभाग जैसे वनस्पति विज्ञान, वन पारिस्थितिकी, वन रसायन, और वन आनुवंशिकी कार्यरत हैं। यह इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है।
वर्तमान फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट महानिदेशक : डॉ. रेणु सिंह,
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक - कंचन देवी
18वीं वन रिपोर्ट में उत्तराखंड की स्थिति
राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन क्षेत्रफल होना चाहिए। इस नीति के अनुसार पर्वतीय क्षेत्र में 60 प्रतिशत वन और मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत वन आवश्यक है। ब्रिटिश काल में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति 1894 को जारी की गई। स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति 1952 को जारी हुई थी।
18वीं रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड़ में कुल वन क्षेत्रफल 24,303.83 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 45.44% है जबकि देश के कुल वन का 3.4% वन राज्य में पाया जाता है। वनाच्छादन में 17वीं रिपोर्ट की तुलना में 18वीं वन रिपोर्ट में 1.30 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है ।
18वीं रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड़ में कुल वृक्षाच्छादन 1231.14 वर्ग किमी है, वृक्षाच्छादन में 230 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। जिन्हें नीचे सारणी में प्रस्तुत किया गया है।
उत्तराखंड में 18वीं रिपोर्ट के अनुसार राज्य का 47.86% (25535%) भाग पर वन व वृक्ष आच्छादन है।
वनाच्छादन
वनाच्छादन से तात्पर्य किसी क्षेत्र में वृक्षों, झाड़ियों और अन्य वनस्पतियों से ढके हुए भू-भाग से है, जो उपग्रह चित्रण या भौगोलिक सर्वेक्षण के आधार पर मापा जाता है। इसमें सभी प्रकार के वन शामिल होते हैं, चाहे वे प्राकृतिक हों या मानव-निर्मित। भारत में, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के अनुसार, वनाच्छादन में 10% से अधिक वृक्ष छत्र (canopy) वाले क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें न्यूनतम 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल हो। इसमें घने वन, खुले वन और झाड़ियाँ शामिल हो सकती हैं।
वृक्षाच्छादन
वृक्षाच्छादन वनाच्छादन का एक हिस्सा है, जो विशेष रूप से वृक्षों (trees) से ढके क्षेत्र को दर्शाता है। इसमें वे क्षेत्र शामिल होते हैं जहाँ वृक्षों की छत्र घनत्व (canopy density) 10% से अधिक हो, लेकिन यह वनाच्छादन की तुलना में छोटे पैमाने पर (जैसे खेतों, बागानों या बिखरे हुए वृक्षों) हो सकता है। यह वन के बाहर के वृक्षों को भी शामिल करता है, जैसे कि कृषि भूमि या शहरी क्षेत्रों में लगे वृक्ष।
झाड़ियां
झाड़ियाँ उन क्षेत्रों को कहते हैं जहाँ छोटे-छोटे पौधे, झाड़ियाँ और कम ऊँचाई वाले वृक्ष (आमतौर पर 2-6 मीटर) पाए जाते हैं। इनका छत्र घनत्व कम होता है, और ये अक्सर शुष्क या अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
सर्वाधिक झाड़ियां वाले जनपद
टिहरी - 103.25%
पौड़ी - 99.06%
देहरादून - 80.47%
पिथौरागढ़ - 44.89%
उत्तराखंड में जनपदवार वन क्षेत्रफल
सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले जनपद
- पौडी
- उत्तरकाशी
- नैनीताल
- चमोली
सबसे कम वन क्षेत्रफल जनपद
- ऊधम सिंह नगर
- हरिद्वार
- रुद्रप्रयाग
- चम्पावत
सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले जनपद
- चम्पावत - 69.06%
- नैनीताल - 6743%
- पौड़ी - 63.07%
- टिहरी - 61.03%
सबसे कम वन प्रतिशत वाले जनपद
- ऊधम सिंह नगर - 19.44%-
- हरिद्वार - 23.93%
- पिथौरागढ़ - 30.15%
- चमोली - 32.89%
वन क्षेत्रफल में गिरावट वाले 6 जिले हैं।
- पौड़ी (-36.16 km²)
- उत्तरकाशी (-12.29 km²)
- नैनीताल (-177.94 km² )
- चमोली (-68 km²)
- हरिद्वार (-19 km²)
- चम्पावत (-477 km²)
18वीं रिपोर्ट में चम्पावत जनपद के वन क्षेत्रफल में सबसे कम गिरावट -4.77 km² (0.35%) दर्ज की गई। जबकि नैनीताल जनपद ने सबसे अधिक वन क्षेत्रफल मे -177km² (-4.19%) गिरावट दर्ज की है।
वन क्षेत्रफल में वृद्धि वाले 7 जिले हैं।
- बागेश्वर (+0.7 km²)
- अल्मोडा (+3.16km²)
- रुद्रप्रयाग (+4.31km²)
- देहरादून (+28 km²)
- पिथौरागढ़ (+56 km²)
- ऊधम सिंह नगर (+66 km²)
- टिहरी (+158km²)
18वीं रिपोर्ट में टिहरी जनपद के वन क्षेत्रफल में सबसे अधिक वृद्धि 158 km² दर्ज की गई। जबकि बागेश्वर जनपद ने सबसे सबसे कम -177km² (-4.19%) वृद्धि दर्ज की गई है।
घनत्व के आधार पर वनो के प्रकार
- बहुत सघन वन - 70%
- मध्यम - 40-70%
- खुले वन - 10-40%
अति सघन वन (Very Dense Forest - VDF): +5266.58km² (9.85%)
अति सघन वन वे वन क्षेत्र हैं जहाँ वृक्षों का छत्र घनत्व (canopy density) 70% से अधिक होता है। ये वन अत्यधिक घने होते हैं, जिनमें सूर्य का प्रकाश जमीन तक कम पहुँचता है। ये जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और प्राकृतिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों में अधिक पाए जाते हैं, जैसे राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य।
अति सघन वन वाले जनपद
सर्वाधिक (km²) न्यूनतम (km²)
- नैनीताल - 780.03 हरिद्वार - 76.86
- देहरादून - 680.99 ऊधम सिंह नगर - 157.68
- उत्तरकाशी - 671.29 बागेश्वर + 167.73
- पौड़ी - 588.44 अल्मोडा - 222
मध्यम सघन वन
मध्य सघन वन वे क्षेत्र हैं जहाँ छत्र घनत्व 40% से 70% के बीच होता है। इन वनों में वृक्षों की अच्छी उपस्थिति होती है, लेकिन ये अति सघन वनों की तुलना में कम घने होते हैं। ये वन मानव गतिविधियों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के मिश्रण से प्रभावित हो सकते हैं
सर्वाधिक न्यूनतम
- पौड़ी ऊधम सिंह नगर
- उत्तरकाशी हरिद्वार
- नैनीताल चम्पावत
- चमोली रुद्रप्रयाग
खुले वन (Open Forest - OF): 6519.62km² (12.19%)
निम्न सघन वन वे क्षेत्र हैं जहाँ छत्र घनत्व 10% से 40% के बीच होता है। इनमें वृक्ष बिखरे हुए होते हैं, और जमीन पर घास या अन्य वनस्पति अधिक दिखाई देती है। ये क्षेत्र अक्सर मानव उपयोग (जैसे चराई, लकड़ी कटाई) या प्राकृतिक कारकों (जैसे कम वर्षा) के कारण कम घने होते हैं।
सर्वाधिक (km²) कम (km²)
पौड़ी - 224 ऊधम सिंह नगर -120
टिहरी - 767 हरिद्वार -213
उत्तरकाशी -708 चम्पावत - 266
अल्मोडा 682 रुद्रप्रयाग - 292
सर्वाधिक वनाग्नि वाले राज्य
- उत्तराखंड
- ओडिशा
- छत्तीसगढ़
वर्ष 2023-24 में नैनीताल सर्वाधिक (3320) वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं, और हरिद्वार में सबसे कम (59) है।
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