सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Uttarakhand Current Affairs 2025

उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2025 नवंबर 2025 से अप्रैल 2025 तक जैसा कि आप सभी जानते हैं देवभूमि उत्तराखंड प्रत्येक मा उत्तराखंड के विशेष करंट अफेयर्स उपलब्ध कराता है। किंतु पिछले 6 माह में व्यक्तिगत कारणों के कारण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा। अतः उत्तराखंड की सभी आगामी परीक्षाओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि नवंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक के सभी करेंट अफेयर्स चार भागों में विभाजित करके अप्रैल के अन्त तक उपलब्ध कराए जाएंगे। जिसमें उत्तराखंड बजट 2025-26 और भारत का बजट 2025-26 शामिल होगा। अतः सभी करेंट अफेयर्स प्राप्त करने के लिए टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। 956816280 पर संपर्क करें। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स (भाग - 01) (1) 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कहां किया गया ? (a) उत्तर प्रदेश  (b) हरियाणा (c) झारखंड  (d) उत्तराखंड व्याख्या :- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी 2025 को राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम रायपुर देहरादून, उत्तराखंड में 38वें ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन किया। उत्तराखंड पहली बार ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की और य...

उत्तराखंड राज्य की 17वीं वन रिपोर्ट (2021)

उत्तराखंड की 17वीं वन रिपोर्ट

भारत में वनों की स्थिति पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का 17वां द्विवार्षिक रिपोर्ट 13 जनवरी 2022 को जारी किया गया, जिसके अनुसार राज्य में वन विभागाधीन वन की स्थिति निम्न प्रकार हैं-

उत्तराखंड राज्य की 17वीं वन रिपोर्ट

17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वनों का कुल क्षेत्रफल 24,305.13 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 45.44% भाग है। रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक वन वृद्धि नैनीताल जनपद में हुयी है।

राज्य में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल पौड़ी जिले में एवं सबसे कम वन क्षेत्रफल वाला जिला ऊधम सिंह नगर है-
  • राज्य में सबसे कम वन क्षेत्रफल वाले जनपद क्रमशः - ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, रूद्रप्रयाग, चम्पावत ।
  • राज्य में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले जनपद क्रमशः पौड़ी गढ़वाल, नैनीताल, उत्तरकाशी एवं चमोली ।
प्रतिशत की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला जिला नैनीताल (71.62%) एवं सबसे कम प्रतिशत वाला जिला ऊधमसिंह नगर (16.84%) है
  • सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले जिले क्रमशः नैनीताल, चम्पावत, पौड़ी, रूद्रप्रयाग ।
  • सबसे कम वन प्रतिशत वाले जिले क्रमशः ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, पिथौरागढ़, चमोली।
इससे पूर्व 16वें वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वनों का कुल क्षेत्रफल 24,303.04 वर्ग किमी. था जो कि राज्य के कुल क्षेत्रफल का 45.44% भाग था। इसका अर्थ यह है कि कुल वनाच्छादन में 17वीं वन रिपोर्ट में 2.09 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।

इसके अलावा 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल वृक्षाच्छादन 1001 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 1.87% है। इसमें 160 वर्ग किमी की वृद्धि पायी गयी। इससे पूर्व 16वीं वन रिपोर्ट के अनुसार 841 वर्ग किमी वृक्षाच्छादन था।

इस प्रकार उत्तराखण्ड में वनाच्छादन एवं वृक्षाच्छादन का कुल क्षेत्रफल 25,306.13 वर्ग किमी हो जाता है।

*बता दें कि उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है। 

वृक्षाच्छादन और वनाच्छादन में अंतर 

वृक्षाच्छादन - 1001 वर्ग किमी (17वीं वन रिपोर्ट)

वृक्षाच्छादन पेड़ों की उपस्थिति का एक व्यापक माप है, जिसमें प्राकृतिक वन और मानव द्वारा लगाए गए वृक्षारोपण दोनों शामिल हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी क्षेत्र में 30% वृक्षाच्छादन है, तो इसका मतलब है कि उस क्षेत्र का 30% हिस्सा पेड़ों से ढका हुआ है। यह पेड़ प्राकृतिक वन का हिस्सा हो सकते हैं, या वे मानव द्वारा लगाए गए वृक्षारोपण का हिस्सा हो सकते हैं।

वनाच्छादन - 24,305.13 वर्ग किमी. (17वीं वन रिपोर्ट)

वनाच्छादन प्राकृतिक जंगलों की उपस्थिति का एक अधिक विशिष्ट माप है, जिसमें पेड़ों के अलावा अन्य वनस्पतियाँ और जानवर भी शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए यदि उसी क्षेत्र में 20% वनाच्छादन है, तो इसका मतलब है कि उस क्षेत्र का 20% हिस्सा प्राकृतिक वन से ढका हुआ है।
इसमें केवल प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़ और अन्य वनस्पतियाँ शामिल होंगी, मानव द्वारा लगाए गए पेड़ नहीं।

उत्तराखंड राज्य वन विभाजन 

राज्य में संघनता के आधार पर वनों को चार भागों में विभाजन किया गया है। 
  1. अतिसघन वन
  2. मध्यम सघन वन
  3. खुले वन
  4. झाड़ीदार वन 

अतिसघन वन

  • अतिसघन वन वे वन होते हैं जिनमें वृक्षों का घनत्व बहुत अधिक होता है। इन वनों में, वृक्षों के छत्र आपस में मिल जाते हैं, जिससे जमीन पर बहुत कम धूप पहुंच पाती है।
  • 17वी वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 5,055.01 वर्ग किमी भाग पर अतिसघन वन पाए जाते है। राज्य में सर्वाधिक अतिसघन वन नैनीताल में है इसके बाद क्रमशः देहरादून व पिथौरागढ़ में है।

मध्यम सघन वन

  • मध्यम सघन वन वे वन होते हैं जहाँ वृक्ष वितान घनत्व 40% और उससे अधिक, लेकिन 70% से कम होता है। इसका मतलब है कि ऊपर से देखने पर, इन वनों में पेड़ों का आवरण 40% से 70% के बीच होता है। 
  • 17वी वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल 12,768.05 वर्ग किमी भाग पर मध्यम सघन वन है जो कुल वन का 52.68% है। सर्वाधिक मध्यम सघन वन पौड़ी जिले में है इसके बाद क्रमशः उत्तरकाशी व नैनीताल में है।

खुले वन

  • खुले वन वे वन होते हैं जहाँ पेड़ों के बीच पर्याप्त जगह होती है, जिससे धूप जमीन तक पहुँच सके और घास, झाड़ियाँ और अन्य पौधे उग सकें। खुले वनों में पेड़ों का घनत्व कम होता है, और वे विभिन्न प्रकार के पेड़ों और पौधों का समर्थन करते हैं । 
  • 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 6482.07 वर्ग किमी भाग पर खुले वन है। राज्य में सर्वाधिक खुले वन पौड़ी जिले में है इसके बाद क्रमशः चमोली व उतरकाशी में है।

झाड़ीदार वन 

  • झाड़ीदार वन, जिन्हें शुष्क वन या कंटीले वन भी कहा जाता है, वनस्पतियों का एक ऐसा समुच्चय है जो कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इन वनों में घने पेड़ों की जगह, झाड़ियाँ, बेलें, और घास के झुरमुट प्रमुख होते हैं। 
  • 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य में झाड़ीदार वन का कुल क्षेत्रफल 392.37 वर्ग किमी. हैं। सर्वाधिक झाड़ीदार वन वाला जनपद टिहरी गढ़वाल है।

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार देश के कुल क्षेत्रफल के 33% भाग पर वन क्षेत्रफल होना चाहिए। जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों में कम से कम 60% और मैदानी क्षेत्रों में कम से कम 25% भाग पर वन होना आवश्यक है।
  • ब्रिटिश काल में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति 1894 ई० को जारी की गयी। जबकि स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति 1952 ई० को जारी हुयी थी।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण की स्थापना 1 जून 1981 ई० में हुयी जिसका मुख्यालय देहरादून में है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) 1987 ई० से प्रत्येक 2 वर्ष में वन स्थिति रिपोर्ट जारी करता है।
  • भारत के कुल क्षेत्रफल का 24.39% भाग पर वन एवं वृक्ष आच्छादन है। भारत में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला राज्य मध्यप्रदेश है। प्रतिशत की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्रफल मिजोरम में है।
  • भारतीय वन अधिनियम 1927 में एवं वन संरक्षण अधिनियम 1980 में पारित हुआ था। तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 ई० में पारित हुआ ।

17वीं वन रिपोर्ट से संबंधित महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय अभ्यास प्रश्न  

(1) उत्तराखंड राज्य में 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार कुल वन क्षेत्रफल कितना है?
(A) 24,303.04 वर्ग किमी
(B) 24,305.13 वर्ग किमी
(C) 25,306.13 वर्ग किमी
(D) 53,483 वर्ग किमी

(2) राज्य का सबसे कम वन क्षेत्रफल वाला जिला कौन सा है?
(A) रुद्रप्रयाग
(B) हरिद्वार
(C) ऊधम सिंह नगर
(D) चंपावत

(3) किस जिले में सर्वाधिक वन प्रतिशत पाया जाता है?
(A) चंपावत
(B) पौड़ी
(C) नैनीताल
(D) रुद्रप्रयाग

(4) 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड राज्य में वृक्षाच्छादन का कुल क्षेत्रफल कितना है?
(A) 841 वर्ग किमी
(B) 1001 वर्ग किमी
(C) 1200 वर्ग किमी
(D) 1500 वर्ग किमी

(5) सर्वाधिक अतिसघन वन किस जिले में पाया जाता है?
(A) देहरादून
(B) नैनीताल
(C) पिथौरागढ़
(D) पौड़ी

(6) राज्य में मध्यम सघन वन का कुल क्षेत्रफल कितना है?
(A) 5055.01 वर्ग किमी
(B) 12,768.05 वर्ग किमी
(C) 6482.07 वर्ग किमी
(D) 392.37 वर्ग किमी

(7) राज्य में सबसे अधिक खुले वन किस जिले में हैं?
(A) उत्तरकाशी
(B) चमोली
(C) पौड़ी
(D) टिहरी गढ़वाल

(8) राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्रों में कम से कम कितने प्रतिशत भाग पर वन होना चाहिए?
(A) 25%
(B) 33%
(C) 45%
(D) 60%

(9) भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की स्थापना कब की गई थी?
(A) 1894
(B) 1952
(C) 1981
(D) 1987

(10) भारत के कुल क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत भाग वन एवं वृक्ष आच्छादन है?
(A) 24.39%
(B) 30%
(C) 33%
(D) 40%

(11) राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार, मैदानी क्षेत्रों में न्यूनतम कितना प्रतिशत भाग पर वन क्षेत्र होना चाहिए?
(A) 20%
(B) 25%
(C) 33%
(D) 40%

(12) वनाच्छादन और वृक्षाच्छादन के बीच क्या अंतर है?
(A) वनाच्छादन मानव द्वारा लगाए गए पेड़ हैं जबकि वृक्षाच्छादन प्राकृतिक वन हैं
(B) वनाच्छादन केवल प्राकृतिक वनस्पतियों को मापता है, जबकि वृक्षाच्छादन मानव और प्राकृतिक दोनों पेड़ों को मापता है
(C) वृक्षाच्छादन केवल पेड़ों के आवरण को मापता है, जबकि वनाच्छादन जानवरों को भी शामिल करता है
(D) वनाच्छादन केवल शहरी क्षेत्रों में होता है, जबकि वृक्षाच्छादन ग्रामीण क्षेत्रों में होता है

(13) 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में वृक्षाच्छादन में कितने वर्ग किमी की वृद्धि हुई है?
(A) 2.09 वर्ग किमी
(B) 160 वर्ग किमी
(C) 841 वर्ग किमी
(D) 1001 वर्ग किमी

(14) 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में वृक्षाच्छादन में 160 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है।"
निम्नलिखित में से कौन सा निष्कर्ष सही है?
(A) वृक्षाच्छादन का कुल क्षेत्रफल अब 1001 वर्ग किमी है।
(B) वृक्षाच्छादन का कुल क्षेत्रफल अब 841 वर्ग किमी है।
(C) 17वीं वन रिपोर्ट में कुल वृक्षाच्छादन का कोई उल्लेख नहीं है।
(D) वृक्षाच्छादन में कमी आई है।

(15) उत्तराखंड की 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार, सर्वाधिक वन वृद्धि नैनीताल जिले में दर्ज की गई है।"
निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
(A) पौड़ी जिले में सर्वाधिक वन वृद्धि दर्ज की गई है।
(B) हरिद्वार जिले में सर्वाधिक वन वृद्धि दर्ज की गई है।
(C) नैनीताल जिले में सर्वाधिक वन वृद्धि दर्ज की गई है।
(D) देहरादून जिले में सर्वाधिक वन वृद्धि दर्ज की गई है।

(16) निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए:
           A                       B
1. नैनीताल              a. सर्वाधिक अतिसघन वन क्षेत्र
2. टिहरी गढ़वाल      b. सर्वाधिक झाड़ीदार वन क्षेत्र
3. पौड़ी गढ़वाल       c. सर्वाधिक मध्यम सघन वन क्षेत्र
4. ऊधम सिंह नगर   d. सबसे कम वन प्रतिशत

(A) 1-a, 2-b, 3-c, 4-d
(B) 1-c, 2-a, 3-b, 4-d
(C) 1-d, 2-c, 3-a, 4-b
(D) 1-b, 2-d, 3-a, 4-c

(17) निम्नलिखित पर विचार करें।
कथन: "उत्तराखंड की 17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार, राज्य का कुल वन क्षेत्रफल 24,305.13 वर्ग किमी है।"
निष्कर्ष:
I. राज्य के कुल क्षेत्रफल का 45.44% वनाच्छादन है।
II. राज्य का कुल वृक्षाच्छादन 1001 वर्ग किमी है।

(A) केवल निष्कर्ष I सही है
(B) केवल निष्कर्ष II सही है
(C) दोनों निष्कर्ष सही हैं
(D) न तो निष्कर्ष I सही है न ही निष्कर्ष II सही है

(18) कथन: "17वीं वन रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में वृक्षाच्छादन में 160 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है।"
कारक:
I. वृक्षारोपण कार्यक्रमों की सफलता।
II. प्राकृतिक वनों की कटाई।

(A) केवल कारक I सही है
(B) केवल कारक II सही है
(C) दोनों कारक सही हैं
(D) न तो कारक I सही है न ही कारक II सही है

(19) कथन: "उत्तराखंड की 17वीं वन रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि राज्य में सर्वाधिक अतिसघन वन नैनीताल में हैं।"
कारक:
I. नैनीताल जिले में उचित जलवायु और पारिस्थितिकीय परिस्थितियाँ।
II. नैनीताल में वृक्षारोपण कार्यक्रमों का अभाव।

(A) केवल कारक I सही है
(B) केवल कारक II सही है
(C) दोनों कारक सही हैं
(D) न तो कारक I सही है न ही कारक II सही है

Answer :- 

(1)B,  (2)C,  (3)C,  (4)B,  (5)B,  (6)B,  (7)C,  (8)D, (9)C,  (10)A,  (11)B,  (12)B,  (13)B,  (14)A,  (15)C,  (16)A,  (17)C,  (18)A,  (19)A

Related posts :-



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...