करेंट अफेयर्स 2025 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रदर्शन विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (World Test Championship, WTC) 2023-2025, इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) द्वारा आयोजित टेस्ट क्रिकेट का तीसरा संस्करण था, जो टेस्ट फॉर्मेट की लोकप्रियता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया। यह चक्र जून 2023 में शुरू हुआ और 15 जून 2025 को लॉर्ड्स, लंदन में फाइनल के साथ समाप्त हुआ। साउथ अफ्रीका ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 5 विकेट से हराकर अपना पहला WTC खिताब और दूसरा ICC खिताब (1998 के बाद) जीता। मुख्य तथ्य अवधि : जून 2023 से 15 जून 2025 तक। फाइनल : 11-15 जून 2025, लॉर्ड्स, विजेता : साउथ अफ्रीका (ऑस्ट्रेलिया को 5 विकेट से हराया)। उपविजेता: ऑस्ट्रेलिया। भारत का प्रदर्शन भारत ने WTC 2023-2025 में शानदार शुरुआत की, लेकिन अंत में फाइनल में जगह नहीं बना सका : न्यूजीलैंड के खिलाफ घर में 0-3 की हार और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी टेस्ट में हार ने भारत को फाइनल की रेस से बाहर कर दिया। भारत पिछले दो संस्करणों (2019-21 और 2021-23) में फाइनल में पहुंचा था, ले...
उत्तराखंड के राष्ट्रीय उद्यान
उत्तराखंड, जिसे "देवभूमि" के नाम से भी जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, जैव विविधता और हिमालयी परिदृश्य के लिए प्रसिद्ध है। राज्य में 6 राष्ट्रीय उद्यान, 7 वन्यजीव अभयारण्य, 4 संरक्षण रिजर्व और 1 बायोस्फीयर रिजर्व हैं, जो इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 12% हिस्सा कवर करते हैं। राज्य का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किमी, जिसमें 86% पहाड़ी और 65% वन क्षेत्र है। नीचे उत्तराखंड के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विस्तृत वर्णन दिया गया है,
राष्ट्रीय उद्यान
हम उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्य के बारे में पढ़ने से पहले यह जान लेते हैं कि राष्ट्रीय उद्यान क्या होते हैं और वन्यजीव अभ्यारण्य में क्या अंतर है?
भारत में राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत स्थापित और संरक्षित किए जाते हैं। इनका प्रबंधन केंद्र या राज्य सरकार के वन विभाग द्वारा किया जाता है।
- राष्ट्रीय उद्यान (National Park) एक विशेष रूप से संरक्षित प्राकृतिक क्षेत्र होता है, जिसे सरकार द्वारा वन्यजीवों, वनस्पतियों, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए स्थापित किया जाता है।
- वन्यजीव अभ्यारण्य - राष्ट्रीय उद्यानों में मानवीय गतिविधियाँ पूरी तरह प्रतिबंधित होती हैं, जबकि वन्यजीव अभ्यारण्यों में सीमित गतिविधियाँ (जैसे चराई) की अनुमति हो सकती है।
- पशु विहार एक संरक्षित स्थान होता है, जो विशेष रूप से पशुओं की सुरक्षा और देखभाल के लिए बनाया जाता है। यह घायल, परित्यक्त, या संकटग्रस्त पशुओं को आश्रय प्रदान करता है।
1. जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान
- स्थापना : 1936 में
- भौगोलिक क्षेत्र : नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल जिले, कुमाऊँ क्षेत्र में।
- क्षेत्रफल: 520.82 वर्ग किमी (पौड़ी: 312.76 वर्ग किमी, नैनीताल: 208.06 वर्ग किमी)।
- प्रवेश द्वार : ढिकाला (नैनीताल से 144 किमी) और रामनगर।
यह भारत और एशिया का पहला राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे शुरू में हैली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था। 1957 में इसका नाम प्रकृति प्रेमी जिम कॉर्बेट के सम्मान में रखा गया, और 1973 में इसे भारत का पहला बाघ संरक्षण पार्क घोषित किया गया।
- रामगंगा नदी इस पार्क का मुख्य जल स्रोत है, जो इसके पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध करती है।
- शिवालिक हिमालय की तलहटी में बसा यह पार्क पहाड़ी और मैदानी इलाकों का मिश्रण है।
यहाँ 570 पक्षी प्रजातियाँ, 25 सरीसृप, 75 स्तनधारी (बाघ, तेंदुआ, हाथी, हिरण) और 800 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ (साल, खैर, शीशम) पाई जाती हैं। बिजरानी, ढिकाला, झिरना और दुर्गादेवी इसके प्रमुख जोन हैं। पर्यटक जंगल सफारी और बर्डवॉचिंग के लिए रामनगर और ढिकाला प्रवेश द्वार से आते हैं । कालाढूँगी में जिम कॉर्बेट म्यूजियम भी एक आकर्षण है।
2. नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान
- स्थापना : 1982 (1988 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित)
- जनपद : चमोली
- क्षेत्रफल : 624.60 वर्ग किमी।
चमोली जिले में गढ़वाल क्षेत्र में स्थित नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान 624.60 वर्ग किमीटर में फैला है। 1982 में स्थापित, इसे 1988 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया,
- ऋषिगंगा और धौली गंगा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं।
- नंदा देवी (7,817 मीटर), भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी, इस पार्क का केंद्र है, जिसके आसपास त्रिशूल और दूनागिरी चोटियाँ हैं।
- यह पार्क हिम तेंदुआ, हिमालयी काला भालू, कस्तूरी मृग, भरल और मोनाल पक्षी के लिए प्रसिद्ध है।
3. फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान
- स्थापना : 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित
- जनपद: चमोली जिला,
- क्षेत्रफल: 87.50 वर्ग किमी (उत्तराखंड का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान)।
- 14 जुलाई 2005 को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में घोषित किया गया।
चमोली जिले में गढ़वाल क्षेत्र में स्थित फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान, है यह 87.50 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है, जो उत्तराखंड का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है।
- फूलों की घाटी की खोज ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ ने 1931 में इसकी खोज की थी।
- पुष्पावती नदी जो कामेट पर्वत से निकलकर यहाँ से बहती है। नर और गंधमादन पर्वतों के बीच 3,600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह घाटी 500 से अधिक फूलों की प्रजातियों (ऑर्किड, प्रिमुला, मैरीगोल्ड) से मानसून में खिल उठती है।
कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ और मोनाल यहाँ के प्रमुख जीव हैं। जोशीमठ इसका मुख्यालय है, और जून से सितंबर तक ट्रैकिंग के लिए खुला जाता है। नंदा देवी तीर्थ यात्रा से इसका सांस्कृतिक महत्व भी है।
4. राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
- स्थापना : 1983 में स्थापित, तीन अभयारण्यों (चिल्ला, मोतीचूर, राजाजी) के विलय से बना।
- भौगोलिक क्षेत्र : हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी गढ़वाल जिले।
- क्षेत्रफल : 820.42 वर्ग किमी।
हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी गढ़वाल जिलों में फैला राजाजी राष्ट्रीय उद्यान 820.42 वर्ग किमी क्षेत्र में है। 1983 में चिल्ला, मोतीचूर और राजाजी अभयारण्यों के विलय से स्थापित, इसका नाम स्वतंत्रता सेनानी सी. राजगोपालाचारी के नाम पर रखा गया।
- गंगा, सोंग और सूसवा नदियाँ इसके पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध करती हैं।
- शिवालिक पर्वत की तलहटी में स्थित, यहाँ साल, खैर, शीशम और चीड़ के जंगल हैं।
23 स्तनधारी (बाघ, तेंदुआ, हाथी) और 315 पक्षी प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं। देहरादून जिले में स्थित मोतीचूर वन्यजीव अभयारण्य 11 वर्ग किमी में फैला है। 1935 में स्थापित, यह उत्तराखंड का पहला वन्यजीव संरक्षण केंद्र है और अब राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा है। गंगा और सोंग नदियाँ यहाँ बहती हैं।
5. गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान
- स्थापना : 1989 में स्थापित, गंगोत्री ग्लेशियर के नाम पर।
- जनपद : उत्तरकाशी
- क्षेत्रफल : 2,390.02 वर्ग किमी (उत्तराखंड का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान)।
उत्तरकाशी जिले में गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान, 2,390.02 वर्ग किमी में फैला, उत्तराखंड का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। 1989 में स्थापित, यह गंगोत्री ग्लेशियर और गंगा के उद्गम स्थल गौमुख के लिए प्रसिद्ध है। भागीरथी नदी यहाँ की मुख्य नदी है।
गंगोत्री, चौखंबा, सतोपंथ और केदारनाथ चोटियाँ इसकी शोभा बढ़ाती हैं। हिम तेंदुआ, हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग, भरल और मोनाल यहाँ के प्रमुख जीव हैं। देवदार, बुराँश और अल्पाइन झाड़ियाँ यहाँ की वनस्पति हैं।
6. गोविंद राष्ट्रीय उद्यान
- स्थापना : 1955 में गोविंद पशु विहार के रूप में स्थापित, 1980 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित।
- जनपद : उत्तरकाशी
- क्षेत्रफल : 427.08 वर्ग किमी।
उत्तरकाशी जिले में गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गोविंद राष्ट्रीय उद्यान 472.08 वर्ग किमी में फैला है। 1955 में गोविंद पशु विहार के रूप में स्थापित, 1980 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला। इसका नाम स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया। टोंस नदी और इसकी सहायक नदियाँ यहाँ बहती हैं।अल्पाइन घास के मैदान और ग्लेशियर बेसिन इसकी विशेषता हैं।
उत्तराखंड के वन्यजीव अभयारण्य
1. बिनसर वन्यजीव अभयारण्य
- जनपद अल्मोड़ा जिला,
- क्षेत्रफल: 47.07 वर्ग किमी।
- इतिहास: 1988 में स्थापित।
अल्मोड़ा जिले में कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित बिन्सर वन्यजीव अभयारण्य 47.07 वर्ग किमी में फैला है। 1988 में स्थापित, यह हिमालय की मध्य श्रृंखला में 2,400 मीटर की ऊँचाई पर है। तेंदुआ, हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग और 200 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं। ओक, रोडोडेंड्रॉन और देवदार यहाँ के प्रमुख वृक्ष हैं। हिमालय का 300 किमी का मनोरम दृश्य और ट्रैकिंग के लिए यह प्रसिद्ध है
2. केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण्य
- भौगोलिक क्षेत्र: चमोली और रुद्रप्रयाग जिले।
- क्षेत्रफल: 975 वर्ग किमी।
- इतिहास: 1972 में स्थापित, कस्तूरी मृग (उत्तराखंड का राज्य पशु) के संरक्षण के लिए।
चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में फैला केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण्य 975 वर्ग किमी में है। 1972 में कस्तूरी मृग (उत्तराखंड का राज्य पशु) के संरक्षण के लिए स्थापित, यह मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के किनारे बस्ता है। केदारनाथ और चौखंबा चोटियाँ यहाँ की प्रमुख भू-आकृतियाँ हैं। कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, भरल और मोनाल यहाँ के जीव हैं। केदारनाथ तीर्थ यात्रा और ट्रैकिंग इसे विशेष बनाते हैं।
3. अस्कोट कस्तूरी मृग अभयारण्य
- भौगोलिक क्षेत्र : पिथौरागढ़ जिला
- क्षेत्रफल : 600 वर्ग किमी।
- स्थापना : 1986
पिथौरागढ़ जिले में कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित अस्कोट कस्तूरी मृग अभयारण्य 600 वर्ग किमी में फैला है। 1986 में स्थापित, यह काली और गोरी गंगा नदियों के किनारे है। पंचचूली और बाबा कैलाश यहाँ की प्रमुख चोटियाँ हैं। कस्तूरी मृग, स्नो लेपर्ड और हिमालयी थार यहाँ के प्रमुख जीव हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर स्थित, यह अभयारण्य धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
4. गोविंद वन्यजीव विहार
- स्थापना - 1955 (1980 में राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्य का दर्जा प्राप्त हुआ।)
- जनपद - उत्तरकाशी
- क्षेत्रफल - 485.89 वर्ग किमी
गोविंद वन्यजीव विहार, उत्तरकाशी जिले में गढ़वाल क्षेत्र में स्थित, 485.89 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। 1955 में गोविंद पशु विहार के रूप में स्थापित, इसे 1980 में राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा प्राप्त हुआ। इसका नाम स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया है।
टोंस नदी और इसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र को जल प्रदान करती हैं। यह अभयारण्य हर की दून और स्वर्गारोहिणी जैसे पर्वतों से घिरा है, जो इसे हिमालयी सौंदर्य प्रदान करते हैं। यहाँ स्नो लेपर्ड, कस्तूरी मृग, हिमालयी थार, भरल, काला और भूरा भालू, मोनाल, चकोर और गोल्डन ईगल पाए जाते हैं। रुइंसियारा झील इसकी एक अनूठी विशेषता है, जो पर्यटकों को आकर्षित करती है। यह उत्तराखंड का सबसे पुराना वन्यजीव अभयारण्य है।
5. मसूरी वन्यजीव विहार:
- स्थापना - 1993
- जनपद - देहरादून
- क्षेत्रफल - 10.82 वर्ग किमी (उत्तराखंड का सबसे छोटा वन्यजीव अभयारण्य)
मसूरी वन्यजीव विहार, देहरादून जिले में मसूरी के निकट स्थित, 10.82 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है, जो उत्तराखंड का सबसे छोटा वन्यजीव अभयारण्य है। 1993 में स्थापित, यह हिमालयी वन्यजीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए बनाया गया।
यहाँ यमुना नदी की सहायक छोटी नदियाँ और झरने जल स्रोत के रूप में हैं। मसूरी की पहाड़ियों और शिवालिक श्रृंखला की तलहटी में बसा यह अभयारण्य कस्तूरी मृग, तेंदुआ, हिमालयी भालू, और पक्षियों में मोनाल, हिमालयी स्नो कॉक और गोल्डन ईगल का निवास स्थान है। वनस्पति में बांज, देवदार और रोडोडेंड्रॉन शामिल हैं। यह पर्यटकों के लिए ट्रैकिंग और प्रकृति अवलोकन का प्रमुख केंद्र है।
6. सोन नदी वन्यजीव विहार:
- स्थापना - 1987
- जनपद - पौड़ी गढ़वाल
- क्षेत्रफल - 301 वर्ग किमी
सोन नदी वन्यजीव विहार, पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित, 301 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। 1987 में स्थापित, यह सोन नदी के किनारे बसा है, जो इस क्षेत्र का प्रमुख जल स्रोत है।
शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस अभयारण्य में हाथी, तेंदुआ, चीतल, सांभर, काकड़, सियार, जंगली सूअर, मगरमच्छ, घड़ियाल और अजगर जैसे जीव पाए जाते हैं।
7. नंधौर वन्यजीव विहार:
- स्थापना : 2012
- जनपद : नैनीताल और ऊधम सिंह नगर
- क्षेत्रफल : 270 वर्ग किमी
नंधौर वन्यजीव विहार, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों की सीमा पर कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित, 270 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। दिसंबर 2012 में स्थापित, यह उत्तराखंड का सबसे नया वन्यजीव अभयारण्य है।
नंधौर नदी और इसके आसपास के क्षेत्र इस अभ्यारण्य का मुख्य आधार हैं। यह शिवालिक श्रृंखला की तलहटी में बस्ता है, और यहाँ बाघ, तेंदुआ, भालू, लंगूर, सांभर और चीतल पाए जाते हैं।
वन संरक्षण आरक्षित क्षेत्र
वन संरक्षण आरक्षित एक ऐसा क्षेत्र है, जो वनों और उनकी जैव-विविधता के संरक्षण के लिए स्थापित किया जाता है। इसका प्रबंधन स्थानीय समुदायों के सहयोग से किया जाता है। इन क्षेत्रों में वन संसाधनों का सतत उपयोग और संरक्षण दोनों पर ध्यान दिया जाता है। यह राष्ट्रीय उद्यानों या अभ्यारण्यों की तुलना में स्थानीय लोगों की भागीदारी को अधिक बढ़ावा देता है।
1. आसन वेटलैंड संरक्षण आरक्षित:
- स्थापना : 2005 (2020 में उत्तराखंड का पहला रामसर स्थल घोषित)
- जनपद : देहरादून
- क्षेत्रफल - 4.44 वर्ग किलोमीटर
आसन वेटलैंड संरक्षण आरक्षित, देहरादून जिले में यमुना नदी और आसन नदी के संगम पर स्थित, 4.44 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। 2005 में स्थापित, इसे 2020 में उत्तराखंड का पहला रामसर स्थल घोषित किया गया, क्योंकि यह रामसर कन्वेंशन के पाँच मानदंडों (जल-पक्षियों और मछलियों के संरक्षण) को पूरा करता है। यह वेटलैंड यमुना नदी और आसन बैराज से जल प्राप्त करता है।
यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों जैसे रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड, रुडी शेल्डक, और बार-हेडेड गूज़ का प्रमुख निवास स्थान है। यहाँ मछलियों की 40 से अधिक प्रजातियाँ और छोटे स्तनधारी पाए जाते हैं। वनस्पति में जल-आधारित पौधे और घास शामिल हैं।
2. झिलमिल वेटलैंड संरक्षण आरक्षित:
- स्थापना : 2005
- जनपद : हरिद्वार
- क्षेत्रफल : 37.84 वर्ग किमी
झिलमिल वेटलैंड संरक्षण आरक्षित, हरिद्वार जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित, 37.84 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। 2005 में स्थापित, यह गंगा नदी के बाढ़ क्षेत्र में बना है और बारहसिंगा (स्वैंप डियर) के संरक्षण के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। गंगा नदी इसका मुख्य जल स्रोत है।
यह क्षेत्र शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में है, और यहाँ बारहसिंगा, सांभर, चीतल, और पक्षियों में हॉर्नबिल और किंगफिशर पाए जाते हैं। वनस्पति में घास के मैदान और दलदली पौधे शामिल हैं।
4. पावलगढ़ वैटलैंड संरक्षण रिजर्व:
- स्थापना : 2012
- जनपद : नैनीताल
- क्षेत्रफल : 58.25 वर्ग किलोमीटर
पावलगढ़ संरक्षण रिजर्व, नैनीताल जिले में कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित, लगभग 58.25 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। यह संरक्षण रिजर्व 2012 में स्थापित किया गया था और जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के निकट, रामनगर वन प्रभाग में पड़ता है। इसका उद्देश्य बाघों, हाथियों और अन्य वन्यजीवों के लिए एक गलियारा (corridor) प्रदान करना है, जो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और आसपास के वन क्षेत्रों को जोड़ता है। यह क्षेत्र शिवालिक पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बस्ता है और भौगोलिक रूप से तराई-भाबर क्षेत्र का हिस्सा है।
पावलगढ़ संरक्षण रिजर्व बाघ, तेंदुआ, एशियाई हाथी, सांभर, चीतल, काकड़, जंगली सूअर और भालू जैसे वन्यजीवों का निवास स्थान है। पक्षियों में हॉर्नबिल, किंगफिशर, और अन्य स्थानीय प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ साल, शीशम, खैर, और बाँस के जंगल प्रमुख हैं, जो तराई क्षेत्र की विशिष्ट वनस्पति हैं।
4. नैनादेवी हिमालयी पक्षी संरक्षण रिजर्व,
- स्थापना : 2015
- जनपद : नैनीताल
- क्षेत्रफल : 10.82 वर्ग किमी क्षेत्र
नैनादेवी हिमालयी पक्षी संरक्षण रिजर्व, नैनीताल जिले में 2015 में स्थापित, 10.82 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है । इसका उद्देश्य पक्षियों की लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण और पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देना है। यह उत्तराखंड का सबसे छोटा संरक्षण रिजर्व है, जो हिमालयी क्षेत्र में मोनाल, हिमालयी स्नो कॉक, और गोल्डन ईगल जैसे पक्षियों का निवास है।
नंदा देवी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व)
नंदा देवी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र, चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों में फैला, हुआ है जिसका क्षेत्रफल 5,860.69 वर्ग किमी है, जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं। यूनेस्को ने संयुक्त रूप से दोनों उद्यानों को 2004 में विश्व संरक्षण नेटवर्क में शामिल किया है।
बता दें कि नंदा देवी को पहले ही 1988 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल जा चुका है और जबकि फूलों की घाटी को बाद में 2005 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
जबरखेत नेचर रिजर्व
- भौगोलिक क्षेत्र: देहरादून (मसूरी-धनोल्टी मार्ग)।
- क्षेत्रफल: 100 एकड़ (0.4 वर्ग किमी)।
- इतिहास: भारत का पहला निजी वन्यजीव अभयारण्य, विपुल जैन और सेजल वराह द्वारा स्थापित।
देहरादून के मसूरी-धनोल्टी मार्ग पर स्थित जबरखेत नेचर रिजर्व 100 एकड़ में फैला है। भारत का पहला निजी वन्यजीव अभयारण्य, यह विपुल जैन और सेजल वराह द्वारा स्थापित किया गया। पक्षी, सरीसृप और छोटे स्तनधारी यहाँ पाए जाते हैं। इकोटूरिज्म और प्रकृति ट्रेल्स इसके लिए यहाँ प्रसिद्ध हैं। यह छोटा रिजर्व जैव विविधता संरक्षण में योगदान देता है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act),
- 1972 भारत में वन्यजीवों के संरक्षण और उनके आवास की सुरक्षा के लिए बनाया गया एक प्रमुख कानून है। यह अधिनियम वन्य जीवों, पक्षियों, पौधों तथा उनके पर्यावास (habitat) को सुरक्षा प्रदान करता है और उनके शिकार, व्यापार और शोषण को रोकने के लिए सख्त प्रावधान करता है।
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 (Forest Conservation Act, 1980)
- भारत सरकार द्वारा 25 अक्टूबर 1980 को पारित एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसका उद्देश्य देश के वनों की रक्षा करना और वनों के अंधाधुंध दोहन को रोकना है।
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