सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उत्तराखंड बजट 2025-26

उत्तराखंड बजट 2025-26 उत्तराखंड के वित्त मंत्री श्री प्रेमचंद अग्रवाल राज्य की रजत जयंती वर्ष में 20 फरवरी 2025 को वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए राज्य का बजट प्रस्तुत किया। 2025-26 के लिए उत्तराखंड का राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 4,29,308 करोड रुपए (वर्तमान मूल्यों पर) होने का अनुमान है जो 2024-25 के संशोधित अनुमान से 13% अधिक है। उत्तराखंड बजट 2025-26 उत्तराखंड सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए ₹1,01,175.33 करोड़ का बजट प्रस्तुत किया है, जो राज्य का अब तक सबसे बड़ा बजट होने के साथ साथ ₹1 लाख करोड़ से अधिक का बजट है। यह बजट पिछले वर्ष (2024-25) के बजट (₹89,230.07 करोड़) की तुलना में 4% अधिक है। बजट 2025-26 में महिला सशक्तिकरण के लिए जेंडर बजट में 16.66 प्रतिशत की वृद्धि जेंडर बजट के लिए ₹16,911 करोड़ का प्रावधान किया गया है । इस बजट में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन हेतु - ₹30 करोड़ का प्रावधान है। कुल प्राप्तियां: ₹1,01,034.75 करोड़। (इसमें कर राजस्व ₹39,917 करोड़, और गैर-कर राजस्व ₹22,622 करोड़ शामिल हैं।) राजस्व  प्राप्तियां : 62,540.54  करोड़ पूंजीगत प्राप्तियां...

विश्व के प्रमुख सूचकांक 2025 (current affairs 2025)

करेंट अफेयर्स 2025

विश्व के प्रमुख सूचकांक 2025

वर्ष 2025 में विभिन्न सूचकांक की रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी हैं। जिसमें परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण सूचकांकों की नीचे सूची दी गई है। साथ ही विस्तार भी किया गया है अतः लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।


विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2024

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2024 (World Press Freedom Index 2024) पेरिस स्थित गैर-सरकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RWB या RSF) द्वारा 3 मई 2025 को प्रकाशित किया गया।


यह सूचकांक 180 देशों में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति का आकलन करता है, जिसमें पत्रकारों की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वायत्तता, और प्रेस पर राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी, सामाजिक, और सुरक्षा संबंधी दबावों को मापा जाता है। सूचकांक 0 से 100 के स्कोर पर आधारित है, जहां 100 सर्वश्रेष्ठ (उच्चतम प्रेस स्वतंत्रता) और 0 सबसे खराब स्थिति दर्शाता है।


विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2024 में भारत की स्थिति


  • 2024 में भारत 180 देशों में 151वें स्थान पर है, जो 2023 के 159वें स्थान से 8 पायदानों का सुधार दर्शाता है।

  • भारत में प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, जिसमें पत्रकारों पर राजनीतिक और कॉरपोरेट दबाव, हिंसा, और सेंसरशिप की समस्याएँ प्रमुख हैं।


शीर्ष और सबसे निचले देश:

  • नॉर्वे लगातार शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद एस्टोनिया और नीदरलैंड।
  • सबसे निचले स्थान पर इरीट्रिया, सीरिया, वियतनाम, चीन, और उत्तर कोरिया हैं, जहां प्रेस स्वतंत्रता गंभीर रूप से सीमित है।

भारत में प्रेस स्वतंत्रता:


भारत में प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

फिर भी, RSF की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पत्रकारों पर शारीरिक हिंसा, हिरासत, और मीडिया पर सरकारी दबाव की घटनाएँ चिंता का विषय हैं।

मानव विकास सूचकांक (HDI) 2025 

मानव विकास सूचकांक (HDI) 2025 की रिपोर्ट, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी किया गया है, 6 मई 2025 को प्रकाशित हुई। यह रिपोर्ट 2023 के आंकड़ों पर आधारित है। इस रिपोर्ट का शीर्षक "ए मैटर ऑफ चॉइस: पीपल एंड पॉसिबिलिटीज इन द एज ऑफ एआई" है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के युग में मानव विकास की संभावनाओं और चुनौतियों पर केंद्रित है।


भारत का प्रदर्शन:

  • भारत ने वर्ष 2025 में प्रकाशित HDI रैंकिंग में 193 देशों में 130वां स्थान प्राप्त किया, जो 2022 में 133वें स्थान से तीन पायदान की सुधार है।
  • भारत का HDI स्कोर 2022 में 0.676 से बढ़कर 2023 में 0.685 हो गया, जो मध्यम मानव विकास श्रेणी में है और उच्च मानव विकास (HDI ≥ 0.700) की सीमा के करीब है।

1. जीवन प्रत्याशा : 2023 में भारत की जीवन प्रत्याशा बढ़कर 72 वर्ष हो गई, जो 1990 के बाद सबसे अधिक है।

2. शिक्षा: औसत स्कूली शिक्षा के वर्ष 6.57 से बढ़कर 6.88 हो गए, और स्कूली शिक्षा की अपेक्षित अवधि 13 वर्ष तक पहुंच गई।

3. आय: प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) में भी सुधार हुआ, लेकिन यह भारत के HDI रैंक से सात पायदान नीचे है, जो आय असमानता को दर्शाता है।


भारत की प्रमुख समस्या

असमानता के कारण भारत के HDI स्कोर में 30.7% की कमी आती है, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है। लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) में भारत 102वें स्थान पर है।


वैश्विक परिप्रेक्ष्य:

  • शीर्ष रैंक वाले देश: आइसलैंड (HDI 0.972) पहले स्थान पर रहा, इसके बाद नार्वे और स्विट्जरलैंड हैं।
  • निम्न रैंक वाले देश: दक्षिण सूडान (HDI 0.388) सबसे निचले स्थान पर रहा।

HDI एक समग्र सूचकांक है जो जीवन प्रत्याशा, शिक्षा (औसत और अपेक्षित स्कूली वर्ष), और प्रति व्यक्ति आय (GNI) जैसे संकेतकों के आधार पर देशों के विकास को मापता है।


ग्लोबल पीस इंडेक्स (Global Peace Index - GPI) वैश्विक शांति सूचकांक

ग्लोबल पीस इंडेक्स (Global Peace Index - GPI) वैश्विक शांति सूचकांक इसका प्रकाशन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) द्वारा जून 2025 (2024 डेटा के आधार पर) में किया। इसका उद्देश्य हिंसा, संघर्ष, और सैन्यीकरण के आधार पर देशों की शांति को मापना है।

  • भारत की स्थिति (2025) इस सूचकांक में 115वां (163 देशों में) स्थान पर है जिसमें स्कोर 2.229 रहा है। जबकि 2024 में 116वें स्थान पर था। 
  • आइसलैंड पहले और आयरलैंड व न्यूजीलैंड दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे 
  • अन्तिम अर्थात् 163 स्थान पर रूस को रखा गया है 

क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स (Climate Change Performance Index - CCPI)

क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स का प्रकाशन जर्मनवॉच, न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट, और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क द्वारा

जनवरी 2025 में किया गया। इसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा, और जलवायु नीतियों में देशों के प्रदर्शन को मापना है।

  • भारत इस सूचकांक में 10वां (60 देशों में) स्थान है जिसमें स्कोर 67.99 हासिल किया।
  • इस सूचकांक में पहले दूसरे और तीसरे स्थान पर कोई भी देश नहीं है हालांकि चौथे स्थान पर डेनमार्क, उसके बाद क्रमशः नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, फिलीपींस, मोरक्को और नार्वे हैं। उसके बाद भारत।

विशेष नोट: भारत शीर्ष 10 में रहा, जो नवीकरणीय ऊर्जा और कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के कारण है। हालांकि, कोयला निर्भरता और जलवायु नीति कार्यान्वयन में सुधार की आवश्यकता है।


ऊर्जा सुधार सूचकांक (Energy Transition Index - ETI)

ऊर्जा सुधार सूचकांक (Energy Transition Index - ETI)

का प्रकाशन विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा जून 2025 को किया गया। इसका उद्देश्य ऊर्जा प्रणालियों की स्थिरता, पहुंच, और नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति को मापना है।

  • भारत इस सूचकांक में 71वां (120 देशों में) स्थान प्राप्त किया। जबकि 2024 में 63वें स्थान से 8 पायदान की गिरावट हुई
  • सूचकांक में स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्क शीर्ष स्थान पर है

ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स (Global Gender Gap Index - GGGI)


ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स का प्रकाशन विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum - WEF) द्वारा 12 जून 2025 को किया गया। इसका उद्देश्य चार क्षेत्रों (आर्थिक भागीदारी, शिक्षा प्राप्ति, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता, राजनीतिक सशक्तिकरण) में लैंगिक समानता को मापता है।

  • भारत को इस सूचकांक में 131वां (148 देशों में) स्थान मिला। जिसमें स्कोर 64.1% रहा । जबकि 2024 में भारत 129वें स्थान पर था, जो दो पायदान की गिरावट दर्शाता है।
  • रिपोर्ट में आइसलैंड लगातार 16 वर्ष शीर्ष पर रहा और इसके बाद फिनलैंड, नॉर्वे, यूके और न्यूजीलैंड का स्थान है 

वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स 2025


वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 को 20 मार्च 2025 को प्रकाशित किया गया, जो अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस (International Day of Happiness) के अवसर पर जारी की गई। यह रिपोर्ट यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के वेलबीइंग रिसर्च सेंटर, गैलप, और यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क (UNSDSN) के सहयोग से तैयार की गई है।

  • भारत को इस सूचकांक में 118वें स्थान पर है। यह 2024 की रैंकिंग (126वां) की तुलना में 8 पायदान की सुधार दर्शाता है।
  • फिनलैंड लगातार 8वीं बार इस सूचकांक में शीर्ष पर रहा। उसके बाद डेनमार्क और स्वीडन का स्थान है।

हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025

हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025 (Henley Passport Index) की पहली छमाही की रैंकिंग 9 जनवरी 2025 को प्रकाशित हुई। यह रैंकिंग हेनली एंड पार्टनर्स द्वारा जारी की गई, जो इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के डेटा पर आधारित है।

  • फिनलैंड लगातार आठवें वर्ष शीर्ष स्थान पर है इसके बाद डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन है ।
  • अफगानिस्तान सबसे कम खुशहाल देश बना। 
  • भारत 2025 हेनली पासपोर्ट इंडेक्स में 85वें स्थान पर है, जो 2024 में 80वें स्थान से पांच पायदान की गिरावट दर्शाता है।

वीजा-मुक्त यात्रा : भारतीय पासपोर्ट धारक 57 देशों में वीजा-मुक्त या वीजा ऑन अराइवल के साथ यात्रा कर सकते हैं, जो 2024 में 62 देशों से कम है। इन देशों में अंगोला, भूटान, बोलिविया, फिजी, हैती, केन्या, मॉरिशस, श्रीलंका, और कतर शामिल हैं।


भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2024


ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा 2024 भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI), जिसे 2025 में प्रकाशित किया गया, 11 फरवरी 2025 को जारी किया गया।

  • भारत 2024 CPI में 96वें स्थान पर है, जो 2023 में 93वें स्थान से तीन पायदान की गिरावट दर्शाता है।
  • भारत का स्कोर 38 है, जो 2023 के 39 से एक अंक कम है। यह वैश्विक औसत (43) से नीचे है, जो गंभीर भ्रष्टाचार की समस्याओं को दर्शाता है।

पड़ोसी देशों की तुलना:

  • पाकिस्तान: 135वां रैंक (स्कोर 29)
  • श्रीलंका: 121वां रैंक
  • बांग्लादेश: 149वां रैंक
  • चीन: 76वां रैंक

शीर्ष देश : डेनमार्क (90 स्कोर) लगातार छठे वर्ष शीर्ष पर रहा, इसके बाद फिनलैंड (88) और सिंगापुर (84) हैं।

निम्नतम देश: दक्षिण सूडान (8), सोमालिया (9), और वेनेजुएला (10) सबसे निचले स्थान पर हैं।


ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2024


ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 की रिपोर्ट 10 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित हुई। यह रिपोर्ट आयरलैंड की मानवीय संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की सहायता एजेंसी वेल्थहंगरहिल्फ द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई, जिसमें रुहर-यूनिवर्सिटी बोखम के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल लॉ ऑफ पीस एंड आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट (IFHV) ने अकादमिक साझेदार के रूप में योगदान दिया।

  • भारत को इस सूचकांक में 127 देशों में 105वें स्थान पर है, जो 2023 में 111वें स्थान से छह पायदान की सुधार को दर्शाता है।
  • भारत का GHI स्कोर 27.3 है, जो "गंभीर" (serious) श्रेणी में आता है। यह 2016 के स्कोर 29.3 से थोड़ा बेहतर है, लेकिन 2000 (38.4) और 2008 (35.2) के "अलार्मिंग" स्कोर की तुलना में काफी सुधार है।

संकेतक :

  • कुपोषण (Undernourishment): 13.7% आबादी कुपोषित है, जो खाद्य पहुंच में गंभीर समस्या को दर्शाता है।
  • बाल स्टंटिंग (Child Stunting): 35.5% बच्चे पांच वर्ष से कम उम्र में अपनी उम्र के लिए कम ऊंचाई के हैं, जो दीर्घकालिक कुपोषण को दर्शाता है।
  • बाल वेस्टिंग (Child Wasting): 18.7% बच्चे पांच वर्ष से कम उम्र में अपने कद के लिए कम वजन के हैं, जो विश्व में सबसे अधिक है और तीव्र कुपोषण का संकेत है।
  • बाल मृत्यु दर (Child Mortality): 2.9% बच्चे पांचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं, जो अपर्याप्त पोषण और अस्वास्थ्यकर वातावरण को दर्शाता है। यह दर 2000 के बाद से काफी कम हुई है।

पड़ोसी देशों की तुलना:

  • श्रीलंका: 56वां रैंक (मध्यम श्रेणी)
  • नेपाल: 68वां रैंक (मध्यम श्रेणी)
  • बांग्लादेश: 84वां रैंक (मध्यम श्रेणी)
  • पाकिस्तान: 109वां रैंक (गंभीर श्रेणी)
  • अफगानिस्तान: गंभीर श्रेणी में भारत से पीछे।

विशेष नोट: भारत का प्रदर्शन अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों (श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश) से पीछे है, जो "मध्यम" (moderate) श्रेणी में हैं। भारत का उच्च बाल वेस्टिंग दर और स्टंटिंग दर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बने हुए हैं।

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2025

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (Global Terrorism Index - GTI) 2025 की रिपोर्ट अर्थशास्त्र और शांति संस्थान (Institute for Economics and Peace - IEP) द्वारा 8 मार्च 2025 को प्रकाशित की गई थी। यह सूचकांक आतंकवाद के वैश्विक रुझानों और प्रभावों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें 163 देश शामिल हैं, जो विश्व की 99.7% आबादी को कवर करते हैं।


आंतकवाद से प्रभावित शीर्ष देश :- 

  • बुर्किना फासो
  • पाकिस्तान 
  • सीरिया

भारत के संदर्भ में

  • भारत की रैंकिंग (14वां स्थान) दर्शाती है कि देश आतंकवाद से प्रभावित है, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में।
  • पड़ोसी देशों में, पाकिस्तान में TTP की गतिविधियों में तेज वृद्धि चिंता का विषय है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
यदि आपको हमारे द्वारा तैयार किए गए नोट्स पसंद आते हैं तो इन्हें शेयर कीजिए और लेख से संबंधित अभ्यास प्रश्नों को प्राप्त करने के लिए टेलीग्राम चैनल से जुड़े। 

Related posts. :-




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...