भारतीय बाजार और डॉलर
डॉलर के मुकाबले रूपया क्यों गिर रहा है? रूपए के कमजोर होने के क्या कारण हैं? रूपए का गिरना या कमजोर होने का अर्थ क्या है? जानें विस्तार से आसान भाषा में
2022 में ही भारत के रुपए में तकरीबन 10-11 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है। सबसे पहले यह जानेंगे कि साल 2022 में रुपए का प्रदर्शन किस तरह का रहा और साथ ही रुपए में लगातार गिरावट किस तरह से आई है। इसके अलावा इस गिरावट का असर क्या होगा और भविष्य में किस तरह की उम्मीद की जा सकती है? आदि प्रश्नों पर चर्चा करेंगे साथ ही जानेंगे कि रुपये के कमजोर होने से आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा? रूपए के कमजोर होने से आपका क्या लेना देना और आपकों यह क्यों पढना चाहिए।
तो आप सभी जानते हैं कि साल 2022 में डॉलर के मुकाबले रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया था। अक्टूबर महीने के अंत में रुपया जो है तकरीबन 83.2 पर पहुँच गया था, जोकि अब तक रुपए का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। इसके अलावा सबसे विशेष बात ये रही कि साल 2022 में रुपए का जो प्रदर्शन रहा वो अन्य एशियाई देशों की तुलना में खराब रहा। भारत ने एशिया के तमाम देशों की तुलना में सबसे खराब प्रदर्शन किया। यदि हम भारत की तुलना चीन से करेंगे, फ़िलीपीन्स से करेंगे और इंडोनेशिया से करेंगे तो इन देशों में रुको। इनके जो करेन्सी थी उनकी करेन्सी में मात्र 9% प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली जब किसी ऐसी समान अवधि में इसी अवधि में साल 2022 में ही भारत के रुपए में तकरीबन 10-11 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। इसके अलावा दक्षिण कोरियाई देश की जो करेंसी है, उसमें तकरीबन 7% की गिरावट आई और मलेशिया की करेंसी में मात्र 6% की गिरावट देखने को मिली। गिरावट तो लगभग सभी देशों में देखने को मिल रही है, लेकिन भारत के रुपए में तुलनात्मक रूप से बहुत ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। रुपये के मूल्य में गिरावट आई है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ये गिरावट आई क्यों है? किस तरह से आई है, किस वजह से आई है? उस वजह को जानने की कोशिश करें तो इस कहानी की शुरुआत होती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध 1922
फरवरी 2022 में जब रूस यूक्रेन पर हमला कर देता है, जिस कारण रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत होती है। इस युद्ध के फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) बाधित हो जाती है। साधारण शब्दों में कहें तो आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने का अर्थ है । "बाजार में वस्तुओं की पूर्ति में कमी" जब पूर्ति में कमी आती है। चीजों की कीमतें बढ़ जाती है। अर्थात महंगी हो जाती है। और महंगाई को अर्थशास्त्र की भाषा में मुद्रास्फीति (inflation) कहते हैं।
साल 2022 में रूस यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ने लगी और इसी के साथ महंगाई बढ़ने की आशंका भी बहुत ज्यादा बढ़ने लगी। अर्थशास्त्रियों का मानना था कि आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ भी सकती है। इसलिए सभी देशों की सरकारों ने मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है । अमेरिका में भी महंगाई आसमान छूने लगी। जिसको नियंत्रित करने के लिए अमेरिका की केंद्रीय बैंक फेडरल रिज़र्व बैंक ने "हॉकिश मौद्रिक" नीती अपनायी, इस पॉलिसी के तहत इसने अपनी मौद्रिक नीति को बहुत ज्यादा सख्त कर दिया। फेडरल रिज़र्व बैंक ने अपनी ब्याज दरों में बहुत ज्यादा वृद्धि कर दी। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने जब ब्याज दरों में वृद्धि की तो इसका परिणाम ये हुआ। अन्य सभी विकसित देशों के यूरोपीय देशों के केंद्रीय बैंकों ने भी अपनी ब्याज दरों में वृद्धि करनी शुरू कर दी। बैंक की ब्याज दरों में वृद्धि होने की वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो निवेशक थे । उन्होंने विकासशील देशों से अपना पैसा निकाल कर इन विकसित देशों में अपना पैसा लगाना शुरू कर दिया।
ऐसा उन्होंने क्यों किया ? यह उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए आप एक निवेशक हैं और आपके पास अपना पैसा जमा करने के लिए दो बैंको के विकल्प मौजूद हैं। जिसमें एक बैंक रिटर्न अधिक दूसरा थोड़ा कम देता है। तो आप किस बैंक में पैसा जमा करेंगे। ज़ाहिर है आप उस बैंक में अपना पैसा जमा करेंगे जो आपको ज्यादा रिटर्न देगा। यही कुछ निवेशकों के साथ भी हुआ क्योंकि अमेरिकी बैंको द्वारा यूरोपीय बैंको द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की गई तो इस वजह से निवेशकों ने गरीब देशों से अर्थात विकासशील देशों से अपना पैसा निकाल कर विकसित देशों में लगाना शुरू कर दिया और जैसा कि आप सभी जानते हैं भारत एक विकासशील देश है। जिस कारण साल 2022 में भारतीय बाजार से भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशकों ने तकरीबन 1.2 लाख करोड़ रुपए भारत से बाहर निकाल लिए। इसके अलावा भारतीय ऋण बाजार से भी। नेट मार्केट से तकरीबन 17,000 करोड़ रुपए बाहर निकाले गए। जिस कारण भारत में पूंजी का आउटफ्लो बहुत ज्यादा देखने को मिला। और जब कैपिटल आउटफ्लो हुआ तो इसकी इसका भारतीय रुपए पर देखने को मिला और भारतीय रुपया और ज्यादा कमजोर होने लगा। अब जब भारतीय रुपया कमजोर होने लगा है तो भारत के व्यापार घाटा भी तेजी से बढ़ने लगा। व्यापार घाटा बढ़ने का मतलब है कि भारत को महंगे दामों पर अंतरराष्ट्रीय बाजार से चीजें खरीदनी पड़ रही थी तो भारत को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही थी और जब ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही थी तो इसका प्रभाव भारतीय रुपये पर पड़ा। अंततः भारतीय रुपया बहुत ज्यादा कमजोर हो गया और अपनी सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया।
यही वजह है कि साल 2022 में रुपए की कीमत में लगभग 10-11 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। तो यह तो रहा जबाब रुपए की कीमत में कमी क्यों आई है? लेकिन अब यहाँ पर एक सवाल ये उठता है कि
रुपये के इतना कमजोर होने से आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा? रूपए के कमजोर होने से आप क्या लेना देना और आपकों यह लेख क्यों पढना चाहिए।
तो यह जान लें इससे न केवल किसी देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है बल्कि रुपये का कमजोर होना वहाँ के आम नागरिको के लिए भी बहुत ज्यादा खतरनाक माना जाता है। कैसे होता है ये तो इसके लिए हमें पहले रुपए की कमजोर होने का मतलब समझना होगा। रुपए की कमजोर होने का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में कुछ कमी होना। जैसे आजादी के समय एक डॉलर में ₹4.76 पैसे हुआ करते थे। और वर्तमान समय 2023 में रूपए गिरते गिरते 82 रूपए का एक डॉलर हो गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब रुपए के मूल्य में कुछ कमी आती है तो जो किसी भी देश की सरकार है या वहाँ की कंपनियां या वहाँ के जो आम नागरिक हैं? इन सब में आम नागरिको को बहुत ज्यादा भुगतान करना पड़ता है। एक डॉलर की वस्तु खरीदने के लिए अब ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा। ज्यादा रुपए देने पड़ेंगे। इसका मतलब यह होगा कि हमारे देश में आयात आधारित मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी। उदाहरण के तौर पर आप समझ लीजिए हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पैन की कीमत एक डॉलर थी और एक डॉलर का मूल्य था 50 रूपए था। अब एक डॉलर का मूल्य बढ़कर ₹70 हो जाता है, तो हमें वही पहन खरीदने के लिए जिसका मूल्य एक डॉलर था । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उस पेन को खरीदने के लिए ₹70 चुकाने पड़ेंगे । जाहिर है अब ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है और ज्यादा भुगतान करने का मतलब यह है कि विदेशों मंगाई जाने वाली सभी वस्तुओं की महंगी हो जाएंगी है। और ऐसा वर्तमान समय में हुआ है कि आय आयतित वस्तुएं बहुत महंगी हो गई है, उनकी कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गई है और आयात आधारित मुद्रास्फीति बढ़ने से ये होता है वस्तुओं सेवाओं का आयात महंगा हो जाता है। उन्हें हमारे देश में लाना बहुत ज्यादा महंगा हो जाता है।
आयात महंगा होने से घरेलू बाजार पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
आयात महंगा होने से हमारे घरेलू बाजार पर भी प्रभाव पड़ता है। कैसे पड़ता है इसको हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। हम जानते हैं कि भारत में तेल बहुत ज्यादा उपभोग किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। सबसे बड़ा तेल उपभोग करने वाला देश है। भारत से अपनी आवश्यकता का तकरीबन 80% के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का आयात किया जाता है। रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से जब कीमतें बढ़ने लगी तो तेल की कीमतें भी बढ़ी और जब तेल की कीमतें बढ़ी तो इसकी वजह से भारत का आयात बिल बढ़ गया। भारत का जो निर्यात लागत थी, उसमें बढ़ोतरी हुई क्योंकि तेल की कीमतें बढ़ गई थी तो भारत को ज्यादा दाम पर भी पड़ रहा था। और जब भारत को ज्यादा दाम पर तेल खरीदना पड़ेगा तो इसका मतलब यह होगा कि भारत में घरेलू स्तर पर भी महंगाई बढ़ जाएगी।
क्यों? क्योंकि अब परिवहन लागत भी बढ़ जाएगी, क्योंकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने परिवहन की आवश्यकता होती है और परिवहन को तेल की जरूरत पड़ती है। तो जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसके वजह से परिवहन लागत बढ़ जाती है और परिवहन लागत बढ़ने से अंततः जो अंतिम वस्तुएं होती हैं और जिनका उपभोग किया जाता है तो उनकी कीमत भी बढ़ जाती है। इसकी वजह से भारत में समग्र तौर पर महंगाई में वृद्धि हुई है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपए के कमजोर होने का नुकसान ये होता है कि आम नागरिक को बाजार में, घरेलू बाजार में ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं तो आपको समझ आ गया होगा रुपए गिरने से बहुत ज्यादा नुकसान होता है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था भी इसकी वजह से प्रभावित होती है, लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू भी है।
भारत में रूपए के कमजोर होने से निर्यात में वृद्धि क्यों होती है?
रुपये के कमजोर होने से किसी देश का निर्यात बढ़ जाता है इसका मतलब ये हुआ की अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपया कमजोर हो गया है तो विदेशी निवेश कम समान मूल्य से सामान डॉलर की राशि ज्यादा भारतीय रुपयों के मामले में ज्यादा चीजें खरीद सकते हैं और जब विदेशी निवेश ज्यादा चीजें खरीदेंगे तो उनकी वजह से हमारा निर्यात बढ़ जाएगा। महंगाई बढ़ने से भारत की अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक फायदा जरूर होता है।
विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से भरोसा
इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात ये भी रही है की अभी तक वैश्विक निवेशकों का भारतीय बाजार से भरोसा नहीं उठा है और वो भरोसा अभी भी बरकरार है। तो इसकी वजह से भी भारत में निवेश लगातार हो रहा है। लगातार विदेशी पूंजी देश में आ रही है। हालांकि जाने की गति अभी ज्यादा है जिसकी वजह से हम इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं। लेकिन ये उम्मीद जताई जा रही है कि जैसे ही अमेरिकी फेडरल रिज़र्व बैंक अपनी ब्याज दरों में। कुछ हद तक कम करेगा। ये अपनी साख पॉलिसी में कुछ हद तक ढील देगा तो इसकी वजह से भारत में जो निवेश होता है, उस निवेश में कैपिटल इनफ्लो में कुछ हद तक बढ़ोतरी जरूर देखने को मिलेंगी।
इसके अलावा की शुरुआत हुई। बहुत लंबा समय बीत गया है और इस लंबे समय बीत जाने की वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अब वैश्विक ऊर्जा कीमतों में भी तेल की कीमतों में भी कुछ हद तक कमी जरूर देखने को मिल रही है। आप जब तेल की कीमतों में कमी आ रही है। तो भारत का आयात बिल भी कम होगा और जब भारत का आयात बिल कम होगा तो ज़ाहिर तौर पर इसकी वजह से रुपए में जो कमजोर हो रहा है।
भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका -
भारतीय रिज़र्व बैंक ने रुपए के गिरते मूल्य को रोकने के लिए और उसमें स्थिरता लाने के लिये बहुत सारे प्रयास किए हैं।
- रिज़र्व बैंक ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया।
- साल 2022 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तकरीबन 70 अरब डॉलर की कमी देखने को मिली है। साल 2022 का अंत हुआ तो दिसंबर महीने में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार तकरीबन 562 अरब डॉलर था। तो इससे ज्ञात होता है रिज़र्व बैंक ने रूपए गिरने के संबंध में प्रयास जरूर किए हैं लेकिन इस तमाम प्रयास के बावजूद भी साल 2022 में रुपए की कीमत में रुपए के मूल्य में बहुत ज्यादा गिरावट देखने को मिल रही है।
- रिज़र्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयार रुपये की कीमत कम हो रही है उसको रोकने के लिए और भारत में महंगाई को रोकने के लिए लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है। जल्द ही मुद्रास्फीति को रिज़र्व बैंक द्वारा नियंत्रित कर लिया जाएगा।
ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि साल 2023 के मध्य तक हम रुपये में स्थिरता देख सकेंगे। 2023 में अमेरिकी फेडरल रिज़र्व बैंक द्वारा जो ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी की जा रही थी, उस तीव्रता में कुछ हद तक कमी जरूर देखने को मिल सकती है। अर्थात जब फेडरल रिज़र्व बैंक अपनी ब्याज दरों की वृद्धि की तीव्रता में कुछ कमी करेगा तो भारतीय बाजार में निवेश और ज्यादा बढ़ सकता है।
Source : इंडियन एक्सप्रेस
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