कुमाऊं का बेताज बादशाह
"हेनरी रैमजे"
यह सब तो आप सब ने सुना होगा कि हेनरी रैमजे को कुमाऊं का बेताज बादशाह कहा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि सर हेनरी रैम्जे को कुमाऊं का बेताज बादशाह क्यों कहा जाता है ?
दरअसल 1857 की क्रांति के दौरान उत्पन्न परिस्थितियों में हैनरी रैमजे ने अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से 10 मई 1857 से 1 नवंबर 1858 तक इलाहाबाद दरबार में शाही घोषणा तक, कुमाऊं एक शांत क्षेत्र बना रहा।
1857 की क्रांति की आग की लपटें बरेली (प्राचीन रूहेलखंड) तक पहुंच चुकी थी। रुहेलखंड के कमिश्नर एलेग्जेंडर व यूरोपीय सैनिकों व व्यक्तियों ने नैनीताल में शरण ली। इस अवधि में उनके रहन सहन की व्यवस्था से लेकर आंशिक वेतन आदि की व्यवस्था भी रैम्जे द्वारा की गई। और क्रांति से उत्तराखंड को बचाने के लिए उत्तराखंड में मार्शल लॉ लागू किया जिससे पहाड़ का संपर्क देश के अन्य भागों से कट गया। यहां तक कि अंग्रेजों का सामान ढोने हेतु कुली तक मिलने बंद हो गए थे।
उत्तराखंड में मार्शल लॉ लागू -1857
1857 में क्रांति की संभावना को देखते हुए उत्तराखंड में हेनरी रैमजे ने पूर्ण सतर्कता का परिचय देते हुए सभी सैनिकों की छुट्टी निरस्त करने के क्रम में मार्शल लॉ लागू किया गया। और रैम्जे की कुशल रणनीति ने क्रांति को उत्तराखंड में असफल किया। कुशल रणनीति के तहत् प्रमुख बिंदु -:
- सेना के द्वारा मार्शल लॉ न्यायालय की स्थापना की गई और डिप्टी कलेक्टर को पर्वतीय घाटों की सुरक्षा व चौकसी बरतनी का दायित्व दिया गया ।
- गोरखा सेना ने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया। रैम्जे द्वारा नेपाल से पूर्व गोरखा सैनिक और गोरखा सैनिकों की भर्ती की कार्यवाही प्रारंभ की गई। सैन्य संग्राम को असफल करने हेतु नेपाल से सैनिक सहयोग के रूप में "रनवीर सेना" प्राप्त की गई।
- क्रांति को का सामना करने के लिए टिहरी नरेश से सहायता मांगी। और टिहरी राज्य ने भी ब्रिटिश सरकार का साथ दिया। जिसमें मोतीराम शाह, कुंदनलाल साह तथा टिहरी राजा सुदर्शन शाह ने वित्तीय सहयोग व राशन आवश्यकता की पूर्ति सुनिश्चित की ।
- मेरठ कमिश्नर के द्वारा जो कोषागार के धन आदेश जारी किए गए। उनका पर्वतीय व मैदानी कोषागरों में भुगतान किया गया।
- अल्मोड़ा पर नियंत्रण रखने हेतु एक अधिकारी नियुक्त किया और नैनीताल में एक में पूर्णकालिक अधिकारी नियुक्त किया गया । जबकि स्वयं हेनरी रैमजे ने अपना ध्यान तराई सीमा पर केंद्रित किया।
क्रांतिकारियों का हल्द्वानी पर कब्जा
रूहेलखंड के नवाब ने काले खां के नेतृत्व में 17 सितंबर 1857 में 3000 पैदल और घुड़सवार सैनिकों को हल्द्वानी पर अधिकार करने के लिए भेजे। क्रांतिकारियों ने कप्तान मैक्सवेल व चैपमैन को हराकर हल्द्वानी पर अधिकार कर लिया। किंतु कुछ समय बाद ग्रीवज एवं मि. रीड के सेना के आगे नहीं टिक सकी और क्रांतिकारी भागने पर मजबूर हुए। हल्द्वानी पुनः अंग्रेजों के अधीन हो गया। इस असफलता से खान बहादुर खान विचलित नहीं हुआ उसने पुनः एक शक्तिशाली सेना फजल हक के नेतृत्व में हल्द्वानी भेजी। परंतु कमिश्नर हेनरी रैम्जे जी की कूटनीति के आगे फजल हक की सेना की एक न चली । अनंत: क्रांतिकारियों की सेना को वापस बरेली लौटने पड़ा। जनवरी 1858 में एक बार पुनः क्रांतिकारियों द्वारा रुद्रपुर मार्ग से हल्द्वानी पर अधिकार जमाने का प्रयास किया गया । जो पुनः असफल कर दिया गया। इसका श्रेय तत्कालीन प्रशासक रैम्जे को दिया जाता है।
शांति स्थापित होने पर विभिन्न स्थानों से कुमाऊं व नैनीताल भ्रमण पर आए थे सैन्य व सिविल अधिकारियों, पर्यटक जो एक गत एक वर्ष से नैनीताल में निवास कर रहे थे उनसे संपर्क कर वापस भेजने की व्यवस्था की गई। साथ ही इस अवधि में जिन्हें वित्तीय कठिनाई हुई उन्हें राज्य सरकार की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की गई तथा राजभक्त नागरिकों, अधिकारियों को सम्मानित किया गया ।
कुमाऊं का बेताज बादशाह - हेनरी रैम्जे
इस प्रकार कुमाऊं कमिश्नर संपूर्ण नॉर्थ वेस्ट प्रोविंसेज में एक ऐसी एकमात्र प्रशासनिक इकाई के रूप में उभरी जहां कंपनी प्रशासन को न केवल स्थानीय सहयोग प्राप्त हुआ अपितु स्थानीय प्रशासन के द्वारा विभिन्न स्थानों से आए हुए शरणार्थी, पर्यटक, अधिकारी, मिशनरी, व सैनिकों को भी सुरक्षा व सहायता प्राप्त हो सकी।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि हेनरी रैम्जे ने क्रांति की लपटों को विपरीत पहाड़ी हवा की लहरों ने पहाड़ों में बढ़ने से रोक दिया। निश्चय ही 1 वर्ष के कार्यकाल के पूरा होते ही सैन्य विद्रोह के घटना काल में अभूतपूर्व प्रशासन की स्थिति का सफलतापूर्वक सामना करना रैम्जे की बड़ी उपलब्धि थी । इस सफलता के फलस्वरूप हेनरी रैम्जे 26 वर्षों तक पद पर बने रहे। और उन्हें जीवनकाल में ही "कुमाऊं का बेताज बादशाह" कहा गया।
विशेष नोट्स -
बता दें कि सर हेनरी रैम्जे ने कुमाऊं कमिश्नर के रूप में तक 28 वर्षों (1856-1884) तक शासन किया था। ब्रिटिश कुमाऊ के छठें कमिश्नर थे। रामजी ने कुमाऊं में कुल 44 वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया था । "कुमाऊं का बेताज बादशाह" के अतिरिक्त कुमाऊं में इन्हें "रामजी साहब" कहकर पुकारा जाता था।
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