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महाजनपदों का उदय
(600 ईसा पूर्व)
पृष्ठभूमि
जैसा की आप सभी जानते हैं कि पृथ्वी प्रारंभिक समय में एक आग के गोले के समान थी । इसे ठंडा होने में कई वर्ष लगे। अनेक रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए पृथ्वी की ऊपरी परत में पेड़-पौधे वनस्पतियों की उत्पत्ति हुई । साथ ही उन्हीं के बीच अनेकों प्रकार के जीवो का जन्म हुआ। सभी जीवो में से एक जीव था "मानव" जिसके पास सबसे अधिक बुद्धिमत्ता थी। जिसके बल पर पृथ्वी में मौजूद सभी सजीव और निर्जीव वस्तुओं और जीवो पर राज किया।
बचपन की कहानियों में आप सभी यह भी पढ़ते आ रहे हैं कि मानव प्रारंभिक समय में एक आदिमानव था। धीरे-धीरे आदिमानव ने विकास किया और मानव से "सभ्य मानव" कहलाया । जैसा कि प्रारंभ में जब मानव को आग का ज्ञान नहीं था तो जानवरों का शिकार करके कच्चा ही खा जाते थे। यहां तक कि पशुपालन का भी कोई ज्ञान नहीं था । प्राचीन इतिहास को इतिहासकारों ने तीन काल खंडों में बांटा है। पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल। मध्य पाषाण काल में मानव द्वारा सबसे पहले कुत्ता पालने की शुरुआत की गई। हालांकि आग का किसी ने अविष्कार नहीं किया। आग हमेशा से ही मौजूद थी लेकिन कोई महान मानव रहा होगा जिसने सर्वप्रथम आग प्रयोग में लाया । नवपाषाण काल में मानव ने आग का प्रयोग सीखा। आग के प्रयोग के बाद मानव का दिमाग तेज चलने लगा । वह अब प्रकृति के उपयोगों के बारे में सोचने लगा और एक के बाद एक अविष्कार करता गया । नवपाषाण काल में ही पहिए का आविष्कार कर लिया और आप सभी जानते हैं दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कार पहिया ही हैै । आप कल्पना कीजिए पहिया के बिना जीवन कैसे संभव हो । जब पहिए का आविष्कार हुआ तो बर्तन बनाने का भी ज्ञान आया और कुंभकारी वर्ग का निर्माण हुआ। इसी काल में स्थाई कृषि की भी शुरुआत हुई।
अब आदिमानव सभ्य मानव बन चुका था । स्थाई कृषि के कारण सभी अब एक कुटुंब के साथ रहने लगे । क्योंकि पुरापाषाण काल में मानव को कृषि का ज्ञान नहीं था , ना ही आग के उपयोग का ज्ञान था और ना ही पशुपालन का ज्ञान था । वह जानवरों का शिकार करके उन्हें कच्चा ही खा जाते थे और एक स्थान से दूसरे स्थान शिकार व खाद्य के लिए भटकते रहते थे। स्थाई कृषि ने मानव को एक नई पहचान दी और अर्थव्यवस्था का जन्म हुआ। अब गांव की भौगोलिक सीमा बनने लगी थी। धीरे-धीरे समय बीता और बहुत सारे गांव का निर्माण होने लगा। लेकिन इस विकास की दौड़ में ज़रूरी तो नहीं था सभी मेहनती हो। प्रत्येक समाज की यह मनोवृत्ति रही की । अच्छाई के साथ बुराई हर जगह मौजूद हैं । उस समय भी कुछ आलसी और कामचोर थे। जो चाहते थे की मेहनत ना करनी पड़े पका पकाया मिल जाए। जैसे-जैसे गांव में समृद्धि होने लगी। वैसे-वैसे चोर और डकैती भी होने लगी लोगों के दिलों में नफरते भरने लगी । तो कभी-कभी सूखा पड़ने के कारण भी फसलें बर्बाद हो जाती थी। ऐसे में एक गांव दूसरे गांव को लूटने लग जाता था तब जरूरत महसूस हुई सुरक्षा की। गांव की सुरक्षा कैसे की जाए ? ( वैसे तो वर्तमान समय में भी यही स्थिति बरकरार है चीन और पाकिस्तान हमेशा यही ताक में रहते हैं) गांव के लोगों द्वारा बैठक की गई और इन समस्याओं का हल निकाला गया। एक ताकतवर किसान को सुरक्षा का दायित्व दिया गया और उससे यह कहा गया कि "अब आपको खेती करने की आवश्यकता नहीं है जो भी हम उगाते हैं उसमें से प्रत्येक घर अपनी फसल का कुछ भाग आपको दे देगा। आप केवल गांव की बाहरी शत्रुओं से रक्षा कीजिए" इस तरह एक गांव में सुरक्षा की दृष्टि से एक मुखिया या रक्षक का जन्म हुआ।
धीरे-धीरे गांव बड़े होने लगी और वह गांव से प्रांत और प्रांत से जनपदों का रूप ले लिया। और मुखिया का दायित्व बढ़ता गया पहले ग्राम के किसान अपनी इच्छा अनुसार फसल देते थे। लेकिन अब वह कर के रूप में अनिवार्य हो गया। माना जाता है कि 1500 पूर्व ॠग्वैैैैदिक काल की शुरुआत हुुई थी। वैदिक काल के बाद उत्तर वैदिक काल की शुरुआत हुई। और उत्तर वैदिक काल के प्रारंभ का समय 1000 ईसा पूर्व से 600 माना जाता है। एक हजार ईसा पूर्व ही लोहे का आगमन हुआ था। और खेती में भारी बदलाव हुए उत्पादन की मात्रा में वृद्धि हुई।
600 ईसा पूर्व आते-आते भारत की भूमि पर अनेक जनपद हो गए थे । एक जमाने में जो गांव के मुखिया हुआ करते थे । वह अब राजा बन गए। लड़ाई का सिलसिला यूं ही चलता रहा। वह तो आज भी चल रहा है । पहले एक गांव दूसरे गांव पर हमला करते थे । गांव गांव एक-दूसरे को लूटते थे। और कभी-कभी लंबे समय तक अधिकार कर लेते थे। ठीक इसी तरह जनपदों में भी लड़ाई होती थी । और जनपदों का अधिकार किया जाता था।
महाजनपदों के अध्ययन का स्रोत
इस तरह 600 ईसा पूर्व 16 महाजनपदों का उदय हुआ। जिसका वर्णन "सूत्र साहित्य" में मिलता है। वास्तव में वैदिक साहित्य को संक्षिप्त करने के लिए सूत्र साहित्य की रचना की गई थी । वैदिक साहित्य का विभाजन 6 अंगों में विभाजित किया गया था जिन्हें वेदांग कहा गया। महर्षि पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्याही में भी महाजनपदों का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म के ग्रंथ "अंगुतर निकाय" व जैन धर्म के ग्रंथ "भगवती सूत्र" में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
[1] काशी
काशी महाजनपद का राजा ब्रह्मदत्त था। काशी की राजधानी वाराणसी थी। काशी के निकट कौशल महाजनपद था जिसका राजा दीक्षित था। कौशल और काशी में पड़ोसी राज्य होने के कारण लड़ते रहते थे। एक बार युद्ध में राजा ब्रह्मदत्त ने राजा दीक्षित को पराजित कर दिया और कौशल को अपने राज्य में मिला लिया। अंततः कई बरसों के बाद कंस नामक राजा ने पूरी सत्ता पलट दी और काशी कौशल में मिला लिया।
[2] कोसल
कोसल महाजनपद की राजधानी अवध थी। (आधुनिक गोरखपुर का क्षेत्र) और इसकी द्वितीय राजधानी श्रीवास्ती ( फैजाबाद गोंडा बहराइच) थी। प्राचीन श्रीवास्ती का विन्यास अर्धचंद्राकार आकृति का था। काशी कौशल में पहले ही मिला लिया।
कोसल आगे चलकर राजा प्रसेनजीत के नेतृत्व में अत्यधिक शक्तिशाली राज्य बन जाता है। राजा प्रसेनजीत अपनी दानवीरता के लिए सर्व प्रसिद्ध था उसने अपने समय में दो नगर ब्राह्मणों को दान दिए थे। यह बुद्ध के समकालीन था। कौशल नरेश प्रसनजीत का युद्ध मगध के राजा अजातशत्रु से होता है और वह इस युद्ध में विजयी होता है और अजातशत्रु को बंदी बना लेता है। परंतु प्रसेनजीत की पुत्री बजीरा अजातशत्रु से प्रेम करती है अंततः अपनी पुत्री बजीरा का विवाह अजातशत्रु के साथ करा देता है। वृद्धावस्था में प्रसेनजीत शाक्य देश में बुद्ध की शरण में गया था तो उसकी अनुपस्थिति में कौशल में क्रांति हो गई । प्रसेनजीत सहायता मांगने के लिए अजातशत्रु के पास जा ही रहा था कि रास्ते में उसकी मृत्यु हो जाती है। उसके बाद कौशल को मगध राज्य में अजातशत्रु द्वारा विलीन कर लिया जाता है।
[3] अंग
अंग महाजनपद की राजधानी चंपा जो आधुनिक भागलपुर एवं मुंगेर वाला क्षेत्र है। बिंबिसार ने अंग देश के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर अंग को पहले ही मगध में मिला लिया गया था। इस तरह मगध शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभर रहा था।
[4] मगध
मगध महाजनपद का प्रथम व अन्तिम राजा बृहद्रथ के नाम का था। मगध की प्रारंभिक राजधानी गिरीव्रज एवं राजगृह थी। (पटना और गया वाला क्षेत्र) बिंबिसार और अजातशत्रु ने मगध साम्राज्य का विस्तार कर इसे इतना शक्तिशाली बना दिया है कि एक दूसरे के सभी पड़ोसी राज्य इसी में विलीन हो गए । सर्वप्रथम काशी, कौशल और अंग को अपने राज्य में मिलाया था। अजातशत्रु ने अपने शासनकाल में राजधानी राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन महाकश्यप की अध्यक्षता में करवाया था। इसमें बौद्ध की शिक्षाओं का संकलन हुआ। इसमें गौतम बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंंद मोपाली भी मौजूद थे। यह बौद्ध संगति बौद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद आयोजित की गयी थी।
[5] वज्जि
वज्जि महाजनपद (आधुनिक मुज्जफरपुर - बिहार )में कबीले शामिल थे जिन को दो भागों में विभाजित किया गया था ।
(1) विदेह - विदेह के जनक मिथिला नरेश थे । जिसका अंतिम राजा कलार था। ग्रंथों के अनुसार कलार को एक ब्राह्मण कन्या का अपमान करने के कारण श्राप मिला और वह वंश सहित नष्ट हो गया ।
(2) लिच्छवी - लिच्छवी कबीले के लोग अत्यधिक स्वाधीनता प्रिय थे । बिंबिसार के समकालीन लिच्छवी का राजा चेटक था। चेटक की बहन का नाम त्रिशाला था । लिच्छवी वंश की राजकुमारी त्रिशला वर्धमान महावीर की मां थी । चेटक की पुत्री छलना का विवाह बिंबिसार से हुआ था। बिंबिसार मगध के राजा थे। बिंबिसार मगध में हर्यक वंश की स्थापना की थी और इन्होंने वैवाहिक संबंध स्थापित करके साम्राज्य का विस्तार किया था। लिच्छवी बुद्ध के अनुयायी थे। द्वितीय बौद्ध सभा का आयोजन कालाशोक के शासनकाल में वैशाली में ही हुआ था। यह विश्व का प्रथम गणतंत्र राज्य था।
[6] मल्ल
यह एक प्रजातंत्रीय राज्य था। इसकी दो राजधानियां थी- कुशीनगर और पावा । गौतम बुद्ध ने अंतिम भोजन पावा में ही किया था। परंतु बौद्ध की मृत्यु कुशीनगर में हुई थी।
[7] चेदि
चेदि की राजधानी सोत्यिवती/शुक्तिमती थी। यह आधुनिक बुंदेलखंड के क्षेत्र में फैला था। श्री कृष्ण की बुआ का लड़का शिशुपाल चेदि का ही राजा था । जिसका सर भरी सभा में श्री कृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से काट दिया गया था।
[8] वत्स
वत्स की राजधानी कौशांबी (प्रयागराज के निकट) थी । छठी शताब्दी ईसा पूर्व वत्स का राजा उदयन था। यह एक स्वार्थी एवं झगड़ालू प्रवृत्ति का राजा था। इसके के पड़ोसी राज्यों से अच्छे संबंध नहीं थे। मगध का राजा अजातशत्रु उसका शत्रु था। एक बार अवंती के राजा चंडप्रद्योत ने कौशांबी पर आक्रमण किया। तब राजा उदयन ने मगध के राजा के साथ संधि कर ली और अवंती के राजा प्रद्योत युद्ध में असफलता हाथ लगी। फलस्वरुप बदले में राजा प्रद्योत को अपनी पुत्री वासदत्ता का विवाह राजा उदयन से करना पड़ा। प्रारंभिक शासन काल में राजा उदयन बौद्ध धर्म का विरोधी था लेकिन बाद में वह बौद्ध के प्रवचनों से प्रेरित होकर अनुयायी बन गया।
[9] अवंति
अवंती महाजनपद की भी दो राजधानियां थी।
(1)उत्तरी अवंति - उत्तरी अवंति उज्जैन में स्थित क्षिप्रा नदी के किनारे वाला क्षेत्र था। क्षिप्रा नदी को मालवा की गंगा भी कहा जाता है।
(2)दक्षिणी अवंती - दक्षिणी अवंति महिष्मति से विख्यात थी। यहां का प्रमुख राजा प्रद्योत बहुत ही खूंखार प्रवृत्ति का था जिसके कारण इसे चंडप्रद्योत कहा जाता था। इसने मथुरा के राजा शूरसेन से वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे। व कौशांबी के राजा उदयन से अपनी पुत्री वासदत्ता का विवाह किया था। इसने भी बौद्ध धर्म को अपनाकर बौद्ध का अनुयाई बन गया।
[10] कुरू
कुरू महाजनपद की राजधानी इंद्रप्रस्थ थी। वर्तमान दिल्ली व मेरठ का क्षेत्र। गौतम बुध के समकालीन यहां का राजा कौरव्य था।
[11] पांचाल
यह महाजनपद बरेली, बदायूं, फर्रुखाबाद ,आधुनिक रूहेलखंड के क्षेत्र में फैला था। पांचाल भी दो राजधानियों में विभाजित था ।
(1) उत्तरी पांचाल - उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छल थी।
(2) दक्षिणी पांचाल - दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी।
[12] मत्स्य
यह महाजनपद राजस्थान (जयपुर) में स्थित है। इसकी राजधानी विराटनगर थी। महाकाव्यों के अनुसार यहां पांडवों ने 13 साल तक वनवास काटा था।
[13] शूरसेन
शूरसेन महाजनपद की राजधानी मथुरा में थी। बुध के समकालीन राजा प्रद्योत ने मथुरा के राजा शूरसेन की पुत्री से विवाह कर वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे। और बाद में शूरसेन की पुत्री से उत्पन्न पुत्र मथुरा का राजा बनता है।
[14]अस्सक या अश्मक
यह दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था। इसकी राजधानी पोर्टल/पोतना थी। यह आन्ध प्रदेश के पास गोदावरी नदी के तट पर स्थित था।
[15] गांधार
गांधार महाजनपद की राजधानी तक्षशिला थी। वर्तमान कश्मीर और तक्षशिला इसके मुख्य केंद्र थे। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय का निर्माण तक्षशिला में ही किया गया था। जो इतिहास में तक्षशिला विश्वविद्यालय से विख्यात हुआ।
[16] कंबोज
गांधार के पास ही कंबोज महाजनपद था । कंबोज महाजनपद का विस्तार कश्मीर से हिंदू कुश पर्वत तक था। इसकी राजधानी द्वारका थी। इसके दो प्रमुख नगर थे - राजपुर और नंदीपुर राजपुर को वर्तमान समय में राजौरी कहा जाता है। पाकिस्तान का हजारा जिला कंबोज के अंतर्गत ही आता है।
प्राचीन इतिहास से संबंधित प्रश्न :-
(1) 16 महाजनपदों के युग में मथुरा निम्न में से किसकी राजधानी थी ?
(a) वज्जि (b) वत्स
(c) काशी (d) शूरसेन
(2) छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शुक्तिमती निम्न में से किसकी राजधानी थी ?
(a) पांचाल (b) कुरु
(c) चेदी (d)अवंति
(3) चंपा किस महाजनपद की राजधानी थी ?
(a) मगध (b) वज्जि
(c) कोसल (d) अंग
(4) मानव के द्वारा सबसे पहले किस पशु का पालन किया गया
(a) घोड़ा (b) गाय
(c) कुत्ता (d) बिल्ली
(5) अष्टाध्यायी की रचना किसके द्वारा की गई थी ?
(a) पतंजलि (b) कपिल
(d) कालिदास (d) पाणिनी
(6) निम्नलिखित में से किस बौद्ध ग्रंथ में 16 महाजनपदों की जानकारी का उल्लेख है ?
(a) भगवती सूत्र (b) अष्टाध्यायी
(c) अंगुतर निकाय (d) महाभाष्य
(7) प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन कहां पर किया गया था ?
(a) राजगृह (b) वैशाली
(c) तक्षशिला (d) मथुरा
(8) प्रथम बौद्ध संगति के समय मगध का सम्राट कौन था ?
(a) बिंबिसार (b) अजातशत्रु
(c) काल अशोक (d) चंद्रगुप्त मौर्य
(9) निम्न में से किस नदी को मालवा की गंगा कहा जाता है ?
(a) नर्मदा (b) क्षिप्रा
(c) सोन नदी (d) बेतवा
(10) मगध में हर्यक वंश की स्थापना किसने थी ?
(a) बिंबिसार (b) अजातशत्रु
(c) काला अशोक (d) चंद्रगुप्त मौर्य
(11) निम्न में से किस राजधानी का विन्यास अर्धचंद्राकार आकार का था ?
(a) श्रीवास्ती (b) कौशांबी
(c) मथुरा (d) वाराणसी
(12) द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन कहां पर हुआ था ?
(a) राजगृह (b) वैशाली
(c) तक्षशिला (d) मथुरा
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Sources : Indian history (NCERT)
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