सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Uttarakhand Current Affairs 2025

उत्तराखंड करेंट अफेयर्स 2025 नवंबर 2025 से अप्रैल 2025 तक जैसा कि आप सभी जानते हैं देवभूमि उत्तराखंड प्रत्येक मा उत्तराखंड के विशेष करंट अफेयर्स उपलब्ध कराता है। किंतु पिछले 6 माह में व्यक्तिगत कारणों के कारण करेंट अफेयर्स उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा। अतः उत्तराखंड की सभी आगामी परीक्षाओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि नवंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक के सभी करेंट अफेयर्स चार भागों में विभाजित करके अप्रैल के अन्त तक उपलब्ध कराए जाएंगे। जिसमें उत्तराखंड बजट 2025-26 और भारत का बजट 2025-26 शामिल होगा। अतः सभी करेंट अफेयर्स प्राप्त करने के लिए टेलीग्राम चैनल से अवश्य जुड़े। 956816280 पर संपर्क करें। उत्तराखंड करेंट अफेयर्स (भाग - 01) (1) 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कहां किया गया ? (a) उत्तर प्रदेश  (b) हरियाणा (c) झारखंड  (d) उत्तराखंड व्याख्या :- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी 2025 को राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम रायपुर देहरादून, उत्तराखंड में 38वें ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन किया। उत्तराखंड पहली बार ग्रीष्मकालीन राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की और य...

मगध साम्राज्य : भारत का इतिहास

 प्राचीन भारत का इतिहास

              मगध साम्राज्य

 साम्राज्य का विस्तार

600 ईसा पूर्व 16 महाजनपदों के उदय के पश्चात मगध महाजनपद ने एक ताकतवर साम्राज्य की स्थापना की। मगध साम्राज्य के विस्तार के अनेक कारण थे लेकिन इसका प्रमुख कारण भौगोलिक स्थिति था। मगध राज्य का विस्तार वर्तमान बिहार के दक्षिणी भाग में स्थित पटना और गया किलो में था। इसके उत्तर और पश्चिम में क्रमशः  गंगा और सोन नदियां थी।दक्षिण में विद्यांचल पर्वत की श्रेणियां और पूर्व में चंपा नदी थी। तीनों ओर नदियों से घिरे होने के कारण यहां की आर्थिक स्थिति में असीम वृद्धि हुई। साथ ही दक्षिण में विंध्याचल पर्वत बाहरी राज्यों से सुरक्षा प्रदान करता था। इस प्रकार यह मगध धनाड्य  हो गया। इसकी सर्वप्रथम राजधानी राजगीर के निकट गिरीव्रज राजग्रह में थी। महाकाव्य और ग्रंथों में मगध साम्राज्य को मगधपुर, बृहद्रथपुर, वस्तुमति,कुसाधपुर, बिंबिसारपुर आदि नामों से जाना जाता है।

बृहद्रथ राजवंश

महाभारत और पुराणों में लिखा है कि मगध में प्रथम राजवंश की स्थापना बृहद्रथ ने की थी। महाभारत के आदिपर्व के अनुसार बृहद्रथ के पिता वसु थे। जिसने मगध में राजगृह (वसुमति) नगर की स्थापना की थी। बृहद्रथ का पुत्र जरासंध था। जरासंध का नाम आप सभी ने महाभारत में सुना होगा। जरासंध पराक्रमी राजा था जिसने अनेक राजाओं को पराजित किया था और अंत में श्री कृष्ण के निर्देश पर भीम के हाथों पराजित होकर मरना पड़ा। और जरासंध की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र सहदेव मगध की राजगद्दी पर बैठा जिसने महाभारत की लड़ाई में पांडवों का साथ दिया था।


 बृहद्रथ वंश का अंतिम राजा :  रिपुंजय 

बृहद्रथ वंश का अंतिम राजा रिपुंजय था । यह एक कमजोर अयोग्य शासक था। अतः उसकी मित्र पुलिक ने उसकी हत्या  करवाकर अपने पुत्र को गद्दी पर बिठाया।


हर्यंक वंश

संस्थापक : बिंबिसार
हर्यक वंश को इतिहास में पितृहंता वंश के नाम से जाना जाता   है । हर्यक वंश का संस्थापक बिंबिसार को कहा जाता है। हालांकि हर्यक वंश की उत्पत्ति के विषय में निश्चित जानकारी किसी को प्राप्त नहीं है। 

बिंबिसार (544 ईसा पूर्व - 492 ईसा पूर्व)

बिंबिसार महत्वाकांक्षी राजा था। उसने साम्राज्य विस्तार करने के लिए युद्ध की अपेक्षा शांतिप्रिय नीति अपनाई। उसने वैवाहिक संधियों और विजय की अपनी नीति से मगध के महान और वंश को बढ़ाया। बिंबिसार को मत्स्य पुराण में क्षेत्रोजल  व जैन साहित्य में श्रोणिक कहा गया है। बिंबिसार ने  ब्रह्मदत्त को हराकर अंग राज्य को मगध में मिला लिया था और अपनी राजधानी राजगृह को बनाया। बिंबिसार महात्मा गौतम बुद्ध के समकालीन मगध का शासक था । उसने महात्मा बुद्ध को ध्यान के लिए वेलुवन नामक उद्यान प्रदान किया था। बिंबिसार के दरबार में जीवक नामक राजवैद्य था जिसको बिंबिसार ने अवंति के राजा चण्ड प्रद्योत के उपचार के लिए अवंती भेजा था।

राजवंशों में वैवाहिक संबंध

  • बिंबिसार ने लिच्छवी गणराज्य के शासक चेटक की सबसे छोटी पुत्री चेलना(चलना) के साथ प्रथम विवाह किया। राजा चेटक की 7 पुत्रियां व एक बहन त्रिशला थी। त्रिशला के पुत्र जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। 
  • बिंबिसार ने दूसरा विवाह कौशल नरेश प्रसनजीत की बहन महाकौशल देवी से किया। इसी विवाह में बिंबिसार को काशी दहेज के रूप में मिला। साथ ही 1 लाख राजस्व मिलता है।
  • बिंबिसार ने तीसरा विवाह मद्र देश की राजकुमारी सेमा से विवाह किया। मद्र  कुरु के समीप एक छोटा सा राज्य था।
  • बिंबिसार ने चौथा विवाह लिच्छवी गणराज्य की गणिका का आम्रपाली से किया था।

बिंबिसार की मृत्यु

जैन ग्रंथ के अनुसार  बिंबिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को युवराज नियुक्त करने का निश्चय किया। अजातशत्रुु रानी चेलना का  पुत्र था । लेकिन अजातशत्रु प्रजा के द्वारा भ्रमित हो जाता है कि उसकेेे पिता किसी दूसरे पुत्र को राजा बनाने वाले हैं। जिससे वह बहुत ही उतावला हो उठता है। फलस्वरूप उसने अपने पिता को बंदी बना लिया। उनकी प्रिय रानी चेलना कारागार में उनकी देखरेख करती थी। बाद में रानी ने अजातशत्रु  को बताया कि वह तो अपने पुत्र से बहुत  प्रेम करता था उसके बाद वह लोहे का हथौड़ा लेकर बेड़ियों को तोड़ने के लिए जाता है लेकिन बिंबिसार ने भय से जहर खाकर आत्महत्या कर ली।
                

अजातशत्रु (492 ईसा पूर्व - 460 ईसा पूर्व)

अजातशत्रु बिंबिसार का प्रिय पुत्र था। इसकी माता का नाम चेलना था। यह हर्यक वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। इस के राज्य काल में हर्यक वंश अपने गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच  था। कहीं कहीं इसे कुणिक के नाम से जाता है। 

साम्राज्य विस्तार - बिंबिसार की मृत्यु के पश्चात कौशल नरेश प्रसेनजीत जो काशी को दान में दिया था व एक लाख राजस्व दिया था वह दोनों उससे वापस ले लिए। जिसके उपरांत दोनों के बीच एक युद्ध लड़ा गया और उस युद्ध में अजातशत्रु की पराजय होती है। लेकिन अजातशत्रु प्रसनजीत की पुत्री बजीरा से एक लंबे समय से प्रेम करता है और बजीरा भी उससे अत्यधिक प्रेम करती हैं। अंततः प्रसेनजीत अपनी पुत्री का विवाह अजातशत्रु से कर देता है। वृद्धावस्था में प्रसेनजीत शाक्य देश में बुद्ध की शरण में गया था तो उसकी अनुपस्थिति में कौशल में क्रांति हो गई । प्रसेनजीत सहायता मांगने के लिए अजातशत्रु के पास जा ही रहा था कि रास्ते में सर्दी लगने के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है। उसके बाद कौशल को मगध राज्य में अजातशत्रु द्वारा विलीन कर लिया जाता है। अंग, कौशल और काशी मिलने के बाद वह वैशाली पर आक्रमण करता है। वैशाली को जीतने में उसे 16 वर्ष लगते हैं।                              अजातशत्रु युद्ध कला में महारथ हासिल था वह युद्ध में महाशिलाकटक और रथमूसल जैसे यंत्रों का इस्तेमाल करता था। महाशिलाकटक एक प्रकार अपक्षेपी अस्त्र था जिससे बड़े-बड़े पत्थर शत्रु पर फेंके जाते थे। और रथमूसल एक प्रकार का स्वचालित यंत्र था। 

                इसके शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध को निर्माण (483 ईसा पूर्व मृत्यु) प्राप्त हुआ । बौद्ध के अवशेषों पर उसने राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया।  और उसके बाद ही राजगृह में ॠषि महाकश्यप की अध्यक्षता में प्रथम बौद्ध महासभा का आयोजन कराया। इस महासभा में सूत्र पिटक व विनय पिटक में बौद्ध की शिक्षाओं का संकलन कराया। 

             अंत में इसका पुत्र उदायिन अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर मगध का सम्राट बनता है। 

उदायिन या उदयभद्र (461 ईसा पूर्व - 445 ईसा पूर्व)

महाभारत के अनुसार उदायिन ने 16 वर्ष राज्य किया। इसकी माता पद्मावती थी। उदायिन को पितृधातक कहा जाता है। पुराणों व जैन ग्रंथों के अनुसार उदायिन  ने गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की थी  । और पाटलिपुत्र को अपनी नई राजधानी बनाई। राजधानी के मध्य में ही एक चैत्य गृह (जैन मंदिर)  का निर्माण कराया।

परिशिष्टपर्वन ग्रंथ के अनुसार उदायिन का कोई उत्तराधिकारी नहीं था हालांकि अन्य तथ्यों से यह ज्ञात हुआ है कि इसके 3 पुत्र थे। अनिरूद्घ , मुंडका और नागदाशक ।

नागदाशक (445 ईसा पूर्व - 412 ईसा पूर्व )

हर्यक वंश का अंतिम शासक नागदाशक को माना जाता है। यह उदायिन का सबसे छोटा पुत्र था। और उसने अपने पिता की हत्या कर राजगद्दी पर बैठा यह का अयोग्य शासक था। उदायिन के पश्चात नागदाशक ने कुछ समय तक राज किया। किंतु बाद में जनता ने इस पितृहंता को शासन से उतारकर शिशुनाग नामक एक योग्य अमात्य को  राजा बनाया।

विशेष तथ्य : पुराणों के अनुसार यह कहा जाता है। उदायिन के बाद नंदीवर्धन और महानंदिन इन राजा बने।

शिशुनाग वंश (412 ईसा पूर्व - 394 ईसा पूर्व )

शिशुनाग वंश का संस्थापक शिशुनाग था। इसने सर्वप्रथम अवंती राज्यों को जीतकर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया।  और अपनी राजधानी वैशाली में स्थान पर स्थानांतरित की। इस तरह मगध साम्राज्य का विस्तार जारी रहा।

कालाशोक (काकवर्ण ) (394 ईसा पूर्व - 366 ईसा पूर्व)

कालाशोक ने अपनी राजधानी पुनः पाटलिपुत्र में स्थानांतरित कर ली। इसके शासनकाल  में सबसे प्रमुख कार्य द्वितीय बौद्ध महासभा का आयोजन था । द्वितीय  बौद्ध महासभा का आयोजन वैशाली में 383 ईसा पूर्व हुआ था इसकी अध्यक्षता सर्वकामी ने की थी इसमें मुख्यता स्त्रियों को बौद्ध भिक्षुओं के रूप में बौद्ध संघ में प्रवेश करने की अनुमति मिली थी जिसमें पहली महिला महा प्रजापति गौतमी थी। कालाशोक हत्या एक षड्यंत्र के तहत इसके राज्य के ही एक सैनिक ने छुरा घोंप कर कर दी थी।

नंदीवर्धन ( 366 ईसा पूर्व - 344 ईसा पूर्व ) 

शिशुनाग वंश का अंतिम शासक नंदीवर्धन था। इसी को महानंदिन के नाम से भी जाना जाता है।

नंद वंश  (344 ईसा पूर्व - 322 ईसा पूर्व )

नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद को कहा जाता है। इसने नंदीवर्धन की निर्दयता पूर्वक हत्या करके करके नंद वंश की स्थापना की।  महापद्मनंद एक शूद्र दासी का पुत्र था।।
           नंद वंश में कुल 9 राजा हुए और इसी कारण उन्हें नवनंद भी कहा जाता है । महाबोधि वंश में उनके नाम का उल्लेख मिलता है। नवां राजा अर्थात अंतिम राजा धनानंद था।

महापद्मनंद

 महापद्मनंद पूरे मगध साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक था । इसने प्रथम बार कलिंग पर विजय प्राप्त की तथा वहां एक नहर की खुदावाई भी करवाई । जिसका उल्लेख बाद में कलिंग के शासक राजा खारवेल ने अपनी हाथीगुंफा अभिलेख में किया और इसी हाथीगुंफा अभिलेख में भारतवर्ष के नाम का पहली बार उल्लेख मिलता है। पुराणों में महापदम नंद को सर्वक्षत्रान्तक अर्थात क्षत्रियों नाश करने वाला कहा है। इनके पराक्रम को देखकर इन्हें परशुराम का अवतार (भार्गव) भी कहा जाता है। एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लेने के बाद इन्हें एकराट और एकच्छव की उपाधि धारण की। महापदम नंद के समकालीन  महर्षि पाणिनि  जिन्हें व्याकरणचार्य भी कहा जाता है। महर्षि पाणिनि के अनुसार महापदमनंद के पास 20 हजार आश्वरोही , 2 लाख पैदल सेना 2 हजार चार चार घोड़े वाले रथ और 3000 से अधिक हाथी थे।

घनानंद

घनानंद नंद वंश का अंतिम सम्राट था। जनता पर अतिरिक्त कर लगाने के कारण जनता इससे असंतुष्ट हो गई थी। नंद वंश के सभी शासक जैन मत के अनुयाई थे । घनानंद के जैन अमात्य शकटकाल तथा स्थूलभद्र थे । वर्ष, उपवर्ष, वरूचि, कात्यायन जैसे विद्वान नंद काल में ही थे । 325 ईसा पूर्व सिकंदर ने घनानंद के शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया था। 322 ईसा पूर्व  चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से घनानंद की हत्या कर मगध में मौर्य वंश की नींव डाली।

मगध साम्राज्य - वेदों से जानकारी और प्रमाण

मगध साम्राज्य का उल्लेख विभिन्न वेदों और पुराणों में किया गया है जिससे यह ज्ञात होता है की मगध साम्राज्य अस्तित्व में था।
  1. ऋग्वेद में कीकट (विराट) नामक क्षेत्र का उल्लेख मिलता है।  किकट को ही ऋग्वेद में मगध कहा गया है।
  2. अथर्ववेद में एक प्रार्थना है की बीमारी मगध को लाए।
  3. यजुर्वेद में भी मगध के भाटो जनजाति का उल्लेख मिलता है।

यदि आपने पूरा लेख पढ़ ही लिया है तो एक बार यह 12 प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास जरूर करें ।यह ऐसे प्रश्न है जो किसी ना किसी एग्जाम में आए हुए हैं यदि आप एक परीक्षार्थी हैं अपनी क्षमता को प्रर्दशित जरूर करें।

मगध साम्राज्य से संबंधित प्रश्न -:


 (1) निम्नलिखित में से किस वंश को पितृहंता कहा जाता है
(a) नंद वंश                           (b) मौर्य वंश
(c) हर्यक                              (d) शिशुनाग वंश

(2) मगध के किस शासक को हर्यक वंश का संस्थापक कहा  जाता है
(a) बिंबिसार                      (b) अजातशत्रु 
(c) उदायिन                       (d) कालाशोक

 (3) निम्न में से किसके दरबार में जीवक  राजवैद्य थे
(a) बिंबिसार                       (b) अजातशत्रु 
(c) प्रसेनजीत                      (d) कालाशोक

 (4) हर्यक वंश के बाद मगध पर किसने शासन किया था
(a) नंद वंश                         (b) मौर्य वंश
(c) सातवाहन वंश                (d) शिशुनाग वंश

(5) अष्टाध्यायी के रचयिता पाणिन  किसके समकालीन थे ?
(a) बिंबिसार                        (b) अजातशत्रु 
(c) प्रसेनजीत                       (d) कालाशोक

(6) सर्वप्रथम भारत वर्ष के नाम का उल्लेख किस अभिलेख में मिलता है ?
(a) रूमनदेई                           (b) भरहूत स्तम्भ 
(c) कालसी अभिलेख              (d) हाथी गुम्फा

(7) प्रथम बौद्ध महासभा की अध्यक्षता किसने की थी ?
(a) अश्वघोष।                       (b) महाकश्यप
(c) गौतमी                           (d) वसुमित्र

(8) मगध के किस शासक ने पाटलिपुत्र की स्थापना कर अपनी नई राजधानी स्थापित की ?
(a) बिंबिसार                         (b) अजातशत्रु 
(c) कालाशोक                      (d) उदायिन

(9) नंद वंश का अंतिम सम्राट कौन था
(a) धनानंद                           (b) नन्दिवर्धन
(c) महापद्मनंद                      (d) नागदाशक

(10) निम्न में से किसके शासनकाल में द्वितीय बौद्ध महासभा का आयोजन हुआ था
(a) बिंबिसार।                          (b) अजातशत्रु 
(c) काला अशोक                    (d) चंद्रगुप्त मौर्य

(11) वर्धमान महावीर की माता त्रिशला देवी किस वंश की थी
(a) कोलिय वंश                     (b) लिच्छवी वंश
(c) शाक्य वंश                       (d) नाग वंश
 
(12) शिशुनाग ने अपनी नई राजधानी कहां स्थापित की ?
(a) राजगृह                          (b) वैशाली
(c) तक्षशिला                        (d) मथुरा

यदि  आपको हमारे द्वारा किया गया प्रयास पसंद आता है तो अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें। और यदि आप इसी तरह के प्राचीन इतिहास के संपूर्ण नोट्स प्राप्त करना चाहते हैं देवभूमिउत्तराखंड.com  को फॉलो करें । इसके अलावा नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Related posts:-


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहास

  भूमि बंदोबस्त व्यवस्था         उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है।  हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश काल में भूमि को कुमाऊं में थात कहा जाता था। और कृषक को थातवान कहा जाता था। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ...

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर : उत्तराखंड

ब्रिटिश कुमाऊं कमिश्नर उत्तराखंड 1815 में गोरखों को पराजित करने के पश्चात उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन प्रारंभ हुआ। उत्तराखंड में अंग्रेजों की विजय के बाद कुमाऊं पर ब्रिटिश सरकार का शासन स्थापित हो गया और गढ़वाल मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया। ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल। अंग्रेजों ने अलकनंदा नदी का पश्चिमी भू-भाग पर परमार वंश के 55वें शासक सुदर्शन शाह को दे दिया। जहां सुदर्शन शाह ने टिहरी को नई राजधानी बनाकर टिहरी वंश की स्थापना की । वहीं दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के पूर्वी भू-भाग पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। जिसे अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल नाम दिया। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन - 1815 ब्रिटिश सरकार कुमाऊं के भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए 1815 में कुमाऊं पर गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में शासन स्थापित किया अर्थात इस क्षेत्र में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधिनियम पूर्ण रुप से लागू नहीं किए गए। कुछ को आंशिक रूप से प्रभावी किया गया तथा लेकिन अधिकांश नियम स्थानीय अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार प्रभावी करने की अनुमति दी गई। गैर-विनियमित प्रांतों के जिला प्रमु...

परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)

उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)।  गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा।   जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही...

कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)

कुणिंद वंश का इतिहास   History of Kunid dynasty   (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)  उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है।               सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का ...

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न (उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14)

उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -14 उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्न विशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2...

चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास

चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है।  चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य  का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता...

भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (भाग -01)

भारत की जनगणना 2011 मित्रों वर्तमान परीक्षाओं को पास करने के लिए रखने से बात नहीं बनेगी अब चाहे वह इतिहास भूगोल हो या हमारे भारत की जनगणना हो अगर हम रटते हैं तो बहुत सारे तथ्यों को रटना पड़ेगा जिनको याद रखना संभव नहीं है कोशिश कीजिए समझ लीजिए और एक दूसरे से रिलेट कीजिए। आज हम 2011 की जनगणना के सभी तथ्यों को समझाने की कोशिश करेंगे। यहां प्रत्येक बिन्दु का भौगोलिक कारण उल्लेख करना संभव नहीं है। इसलिए जब आप भारत की जनगणना के नोट्स तैयार करें तो भौगोलिक कारणों पर विचार अवश्य करें जैसे अगर किसी की जनसंख्या अधिक है तो क्यों है ?, अगर किसी की साक्षरता दर अधिक है तो क्यों है? अगर आप इस तरह करेंगे तो शत-प्रतिशत है कि आप लंबे समय तक इन चीजों को याद रख पाएंगे साथ ही उनसे संबंधित अन्य तथ्य को भी आपको याद रख सकेंगे ।  भारत की जनगणना (भाग -01) वर्ष 2011 में भारत की 15वीं जनगणना की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर था तथा भारत की कुल आबादी 121,08,54,922 (121 करोड़) थी। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 62.32 करोड़ एवं महिलाओं की 51.47 करोड़ थी। जनसंख्या की दृष...