वनबसा : शारदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में वनबसा, एक ऐसा कस्बा है जो भारत-नेपाल सीमा पर बसा है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। टनकपुर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ग्राम पंचायत, जनपद की सबसे बड़ी पंचायतों में से एक है, जहाँ लगभग 10,000+ लोग निवास करते हैं। यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य समुदायों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो इस क्षेत्र को एक जीवंत सामाजिक ताने-बाने से जोड़ता है। प्रकृति और इतिहास का संगम शारदा नदी के तट पर बसा वनबसा, मैदानी और पर्वतीय संस्कृतियों का एक अनूठा मेल है। यह स्थान सदियों से पर्वतीय लोगों का प्रिय ठिकाना रहा है। पुराने समय में, जब लोग माल भावर की यात्रा करते थे, वनबसा उनका प्रमुख विश्राम स्थल था। सर्दियों में पहाड़ी लोग यहाँ अपनी गाय-भैंस चराने आते और दिनभर धूप में समय बिताकर लौट जाते। घने जंगलों के बीच बसे होने के कारण, संभवतः इस क्षेत्र का नाम "वनबसा" पड़ा। यहाँ की मूल निवासी थारू और बोक्सा जनजातियाँ इस क्ष...
लिव इन रिलेशनशिप
मानवता का पाठ : वास्तविक स्वतंत्रता
आपके विचार से मानव का धर्म क्या होना चाहिए? 
मेरे विचार से मानव का धर्म किसी भी जीवित प्राणी को हानि पहुंचाए बिना पर्यावरण की रक्षा करते हुए एक स्वतंत्र जीवन ही मानव का धर्म होना चाहिए । जिसमें ना कोई अत्यधिक कठिन नियम हो,  ना ही कठोर संविधान, ना काले-गोरे का भेद,  ना ही कोई धर्म,  ना ही किसी की कोई जात और ना ही ऐसे रीति रिवाज व परंपराएं जो इंसान को गुलाम बनाती हैं । मैंने अक्सर शादी हो जाने के बाद लोगों को गुलाम बनते देखा है  चाहें वो स्त्रियां हो?  या वो पुरुष हो? 
                आपको मैं पहले ही अवगत करा दूं कि मेरे आर्टिकल का उद्देश्य बिल्कुल नहीं है कि आप सदियों से चली आ रही परंपराओं का पालन ना करें । लेकिन सभी महान विद्वानों ने कहा है कि जिस प्रकार किसी धर्म में कुछ गलत नियम या गलत प्रथाएं हैं उनमें बदलाव जरूरी है । उसी प्रकार यदि हमारे किसी भी प्रकार के रीति रिवाज और परंपराएं इंसान को कमजोर बनाती हैं और उसकी आजादी व उसकी सोच पर लगाम लगाती हैं । तो क्यों ना ऐसी परंपराओं में बदलाव किए जाए।   प्रत्येक मनुष्य आजाद हो। मानो या ना मानो शादियों के बाद 80% से ज्यादा महिलाएं एक प्रकार से पति की गुलामी करती हैं,  उन्हें ना तो अपने विचारों को रखने की अनुमति होती है और ना ही वह किसी भी प्रकार से परिवार का विकास करने के लिए राय दे सकती हैं। बस घर की चारदीवारी में ही पूरा जीवन व्यतीत कर देती है,  क्या आपको नहीं लगता कि यह एक गलत रीति है।  यहां मैं सभी धर्मों में होने वाली शादियां,  जिनकों भारतीय लोग मुख्य रीति रिवाज मे शामिल करते हैं,  उनको गलत बताने की कोशिश नहीं कर रहा हूं । बहुत सारे ऐसे परिवार हैं जो परिवार के प्रत्येक सदस्य को बराबर दर्जा देते हैं। और पूरी स्वतंत्रता  देते हैं यदि आप भी उस विचारधारा में आते हैं तो परंपराएं बनाए रखिए है।  भारत देश को इसकी जरूरत है। अन्यथा जिस प्रकार सती प्रथा और बाल विवाह प्रथा का अंत हुआ। इसी तरह एक दिन शादियां भी लिविंग रिलेशनशिप में बदल जाएंगी।और शायद यह सही भी हो ।  तो क्या है लिव इन रिलेशनशिप? 
लिव इन रिलेशनशिप क्या है?
लिव इन रिलेशनशिप एक विवादास्पद  लेकिन मॉडर्न लाइफ के लिए एक अनूठा रिश्ता है। जिसमें शादी की पुरानी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए दो लोग राजी खुशी रहते हैं। और ठीक उसी तरह से जिम्मेदारियां ऐसे निभाते हैं । जैसे शादी के बाद लोग निभाते हैं । यह संबंध स्नेहात्मक  होता है और रिश्ता गहरा होता है । संबंध कई बार लंबे समय तक भी चल सकते हैं और  फिर स्थाई भी हो सकते हैं।
              लेकिन इसमें जो अलग हैं। वह यह है कि उन पर किसी तरह की कोई  नैतिक व सामाजिक दबाव नहीं होता है।किसी भी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। और अगर चाहे तो एक दूसरे से कभी भी अलग हो सकते हैं । यदि सुप्रीम कोर्ट,  देश की सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे रिश्ते को मान्यता दी है तो कहीं ना कहीं इसका असर गहरा है। बहुत सारे लोग लिव-इन रिलेशनशिप का विरोध करते हैं। बहुत सारे को तो पता भी नहीं होता कि लोग कैसे इसमें रहते हैं। बस कह सुनी बातों पर विश्वास करके बोल देते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप गलत है। जबकि यह रिश्ता विश्वास पर आधारित होता है। जानकारी के लिए मैं बता दूं कि कोई भी व्यक्ति ज्ञानी ना बने। क्योंकि जिन लोगों ने यह निर्णय दिया है उन्होंने बहुत सारी कानून की किताबें पढ़ी है और  न्यायाधीश बने हैं। और जिन का निर्णय सर्वमान्य है। बाकी इंसान की अपनी-अपनी सोच है।
            जो भी हो,  सवाल तो बहुत सारे होते हैं मन में?  कभी-कभी तो लगता है कि यह फैसला लोगों की भावनाओं से तो नहीं खेलेगा। क्योंकि कहीं भी लिव इन रजिस्टर नहीं होते । तो वहीं कुछ लोग अपनी आदतों से मजबूर होते हैं । कभी यहां तो कभी वहां । हां अगर  दो जिम्मेदार व समझदार एक साथ रहना चाहते हैं और एक दूसरे को समझना चाहते हैं । तो कोई बुराई मुझे तो नजर नहीं आती । परंतु युवा लिव इन रिलेशनशिप एंजॉयमेंट की तरह ले लेें तो खतरे की घंटी हो सकती है।
लिव इन रिलेशनशिप के लाभ
- लिव इन रिलेशनशिप की सबसे अच्छी बात यह है कि दोनों पक्ष आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हैं ।
 - नैतिक व सामाजिक दबाव से स्वतंत्र होते हैं, तथा एक दूसरे को जानने का अवसर प्राप्त करते हैं ।
 - दोनों का रिश्ता एक दूसरे के सम्मान पर टिका होता है यदि किसी कारणवश लड़ाई झगड़ा या कोई विवाद हो जाता है तो आसानी से अलग हो सकते हैं ना तो तलाक की झंझट होगी और ना ही कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे
 - इसमें दोनों पक्ष स्वतंत्र निर्णय लेते हैं जिसमें मानव संसाधन का पूर्ण उपयोग होता है । अक्सर आपने देखा होगा। जब कभी किसी प्रोजेक्ट या मिशन पर पति या पत्नी को जाना होता है तो कोई ना कोई उसके जाने का विरोध करता है और वह रुक जाता है । इस कारण मानव संसाधन की उपयोगिता में कमी आती है।
 - महिला सशक्तिकरण का मुद्दा जो सदियों से चला आ रहा है उसमें मजबूती मिलेगी, और साथ ही साथ महिलाओं का विकास भी संभव हो सकेगा। जिससे वह पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल सकती हैं।
 - दहेज प्रथा वह शादियों पर होने वाला कर्ज उस से भी मुक्ति मिलेगी। खसरा खतौनी क्या है
 
लिव इन रिलेशनशिप अस्वीकार क्यों?
लिव इन रिलेशनशिप को समाज इसलिए स्वीकार नहीं करता है। क्योंकि भारतीय समाज के लोगों का मानना है कि एक लड़का और एक लड़की शादी करने के बाद ही एक साथ रह सकते हैं । अन्यथा उसके अलावा किसी भी रिश्ते को पाप मानते हैं । दुर्भाग्य यह है कि इस इस प्रकार की रिलेशनशिप में यदि कोई बचा जन्म लेता है तो समाज उस बच्चे को स्वीकार नहीं करता । और लिविंग इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को पति की संपत्ति पर कानूनी अधिकार भी नहीं मिलता है।
निष्कर्ष
लिव इन रिलेशनशिप को यदि सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है तो कहीं ना कहीं देश के विकास के लिए और महिला सशक्तिकरण के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ही एक कदम है क्योंकि इसमें महिलाएं स्वतंत्र होकर निर्णय ले सकेंगी,  और किसी भी प्रकार का दबाव महसूस नहीं  करेंगी। लेकिन शादी,  जो भारतीय परंपरा की पहचान है जिसमें पारिवारिक  प्रेम  छुपा होता है  जो  दो लोगों के प्रेम से बड़ा होता है। शादी में एक नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी आ जाती है । कहीं ना कहीं लिविंग के साथ में रिलेशनशिप में जिम्मेदारी का अभाव होता है। जब जो मन किया वह करो वाली भावनाएं होती हैं ।हॉलीवुड में तो यह आम बात है और अगर किसी की भावनाओं को तकलीफ नहीं हो रही है , तो भी तो बुराई भी क्या है?  परंतु मैं जिस समाज में हूँ,  मुझे लिव इन  रिलेशनशिप में कुछ खासा इंटरेस्ट नजर नहीं आता। बाकि सब को अपनी जिंदगी अपनी इच्छा अनुसार जीने का अधिकार है। (भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 और 21 के अनुसार) 
विशेष तथ्य
6 मई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा - कि अगर लड़का बालिग है और 21 साल से कम है,  तो वह लिव इन रिलेशनशिप में रह सकता है। और साथ ही साथ यह भी कहा- दो लोग  शादी के बिना एक साथ जीवन जी सकते हैं।
यदि मेरे द्वारा लिखे गए आर्टिकल से आपकी भावनाओं को किसी भी प्रकार से ठेस पहुंचती है तो क्षमा करें। लेकिन सच्चाई यही है , यदि आपको भी अमेरिका , इंग्लैंड की तरह विकास चाहिए। तो कहीं ना कहीं ऐसी प्रथाएं समाज में होना जरूरी है। जिससे महिलाएं स्वतंत्रता महसूस करें और इसी प्रकार के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें और यह आर्टिकल आपको अच्छा लगता है तो शेयर करें, 
धन्यवाद।
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