बद्रीनाथ धाम (चमोली)
देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जनपद में यूं तो सप्त बद्री स्थित हैं जो विष्णु के धाम के रूप में जाने जाते हैं। किंतु सर्वाधिक मान्यता पंच बद्री समूह (आदि बद्री, बद्रीनाथ, योग बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री) की है। पंचबद्री समूह में से सबसे विख्यात तीर्थ स्थान है - बद्रीनाथ मंदिर
बद्रीनाथ मंदिर
बद्रीनाथ धाम चमोली जनपद में 3133 मीटर (10279 फीट) की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के दाएं तट पर स्थित है। बद्रीनाथ को 'विशाल बद्री' भी कहा जाता है जो भारत के चार धामों में से एक है। इसे चारों धामों में अंतिम धाम कहा जाता है। बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान की 1 मीटर लंबी मूर्ति शालिग्राम की बनी है राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मूर्ति भगवान बुद्ध की है जबकि जैन अनुयायी इसे भगवान ऋषभदेव या महावीर की मूर्ति मानते हैं मंदिर में स्थित मूर्तियों को 'बद्री पंचायतन' कहा जाता है इसके निकट ही अलकनंदा घाट का नया नाम 'अटलघाट' रखा गया है। बद्रीनाथ धाम की आरती श्री धन सिंह बर्तवाल द्वारा 1881 में लिखी गई थी।
बद्रीनाथ धाम का इतिहास
बद्रीनाथ धाम का प्रथम उल्लेख पाराशर संहिता में मिलता है। पौराणिक कथानुसार माना जाता है कि भगवान विष्णु ने नर नारायण के रूप में गंधमादन पर्वत पर बद्री अर्थात बेर के वन में तपस्या की थी। आज भी चमोली जनपद में बद्रीनाथ मंदिर के निकट (पार्श्व भाग) नर एवं नारायण दो पर्वत स्थित है। महाभारत काल में भी बद्रीनाथ मंदिर की के अस्तित्व होने का उल्लेख मिलता है। महाभारत के वन पर्व एवं भीष्म पर्व में पांडवों की द्वारा यात्रा का वर्णन मिलता है। महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास ने यहीं पर स्थित व्यास गुफा में महाभारत की रचना की थी। इस मंदिर में बद्रीनाथ जी का विग्रह काले शालिग्राम शिला पर अंकित है। कहा जाता है कि शालिग्राम को अनास्तिकों द्वारा कई बार तप्त कुंड, नारद कुंड एवं अलकनंदा में फेंक दिया गया। लगभग आठवीं सदी के समय आदि गुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ भगवान की मुख्य प्रतिमा नारद कुंड से निकालकर पुनः मंदिर में स्थापित किया गया। मंदिर के गर्भगृह में स्थित बद्रीनाथ जी के पद्मासन चार भुजाओं (चतुर्भुजी) वाली मूर्ति है जिसमें एक हाथ में शंख एवं दूसरे हाथ में चक्र तथा अन्य दो हाथ ध्यान की मुद्रा में है। बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य प्रतिमा खंडित रूप से काले रंग की है।
सतयुग में बद्रीनाथ क्षेत्र को 'मुक्ति प्रदा' कहा जाता था। जबकि पुराणों में बद्रीनाथ को योग सिद्धा, बद्रिकाश्रम व विशाला कहा गया है। बद्रीनाथ का पूर्ण भव्य मंदिर बनाने का श्रेय कत्यूरी शासकों को दिया जाता है। मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजा ललितसूरदेव के शासनकाल में प्रारंभ हुआ था। इस मंदिर के लिए भूमि दान परमदेव नामक व्यक्ति ने दी थी। बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी को 'रावल' कहा जाता है जो केरल के नंबूदिरि मूल का ब्राह्मण होता है रावल की सहायता के लिए डिमरी, वेद पाठ के लिए नौटियाल तथा धर्माधिकारी के रूप में अति गुणवान स्थानीय ब्राह्मण जातियों की नियुक्ति गढ़वाली शासक अजयपाल (1490 -1519 ईस्वी) द्वारा की गई थी। अजयपाल ने बद्रीनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। अजय पाल के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार ग्वालियर नरेश दौलतराव सिंधिया ने किया भगवान बद्रीनाथ के रक्षक देवता क्षेत्रपाल हैं। बद्रीनाथ मंदिर मुगल शैली की तरह विकसित है द्वारका आकार धनुष आकार है इसलिए मंदिर शंकुधारी शैली की तरह है।
पंच बद्री समूह के अन्य मंदिर
आदि बद्री
आदि बद्री कर्णप्रयाग से 21 किमी की दूरी पर स्थित है। आदि बद्री का अर्थ शुरुआत करना या प्रारंभ करना होता है। क्योंकि यह सभी बद्री में से पहला बद्री धाम है अतः इसे आदि बद्री कहा जाता है। यह पिरामिड के आकार के ऊंचे चबूतरे पर स्थित 16 मंदिरों का प्राचीन समूह हैं। जिनमें समतल छत वाले 7 मंदिर अत्यधिक प्राचीन है। एमपी स्थापना गुप्त काल में की गई थी। इनमें नारायण मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है। इसके पुजारी थापली गांव के थपलियाल ब्राह्मण हैं। वर्तमान समय में यहां केवल 14 मंदिरों का समूह है।
योग ध्यान बद्री
यह चमोली जनपद में स्थित पांडुकेश्वर के समीप स्थित है। योग ध्यान बद्री को पांडु कुंती का विवाह स्थल माना जाता है। माना जाता है कि यहां पर पांडु ने कुंती से विवाह किया था। और बाद में कुंती पुत्र अर्जुन ने इसी स्थान पर तप भी किया था। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है।
भविष्य बद्री
यह मंदिर जोशीमठ के निकट 18 किमी दूर पूर्व में लता की ओर सुभाई (सुबेन) गांव में स्थित है। यहां विष्णु भगवान के आधे आकृति की पूजा की जाती है। पुराणों में ऐसी भविष्यवाणी की गयी है कि नरसिंह मंदिर की मूर्ति खंडित होने के पश्चात भगवान विष्णु बदरी विशाला विलुप्त हो जाएंगे। तब यह स्थान भविष्य में पूजा का स्थान होगा। और यहां मूर्ति पूर्ण हो जाएगी अंततः यही बद्री विशाल के रूप में पूजे जाएंगे।
वृद्ध बद्री
भगवान विष्णु ने चमोली के अणिमठ नामक स्थान पर नारद मुनि को वृद्ध के रूप में दर्शन दिए थे जिस कारण इसका नाम वृद्ध बद्री पड़ा। अणिमठ मठ प्राचीन नाम अरण्य मठ है। इस मंदिर में भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित विष्णु की मूर्ति है।
पंच बद्री समूह के अतिरिक्त दो अन्य बद्री हैं -
ध्यान बद्री
भगवान विष्णु की ध्यानमुद्रा में मूर्ति होने के कारण इस मंदिर को ध्यान बद्री कहा जाता है यहां पांडवों के पूर्वज पूरूजन्य ने तप किया था। यह मंदिर उर्गम में स्थित है।
नरसिंह मंदिर
नरसिंह मंदिर का निर्माण कत्यूरी शासक बसंतदेव ने करवाया था। यह मंदिर जोशीमठ चमोली में स्थित है। जोशीमठ में सर्वप्रथम शंकराचार्य इसी स्थान पर आए थे। मान्यता है कि भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा करने लिए नरसिंह अवतार धारण किया था। और क्रोध को शांत करने के लिए इस स्थान पर आए थे। तब इसका नाम नरसिंह बद्री पड़ा। यहां रखी नरसिंह की मूर्ति की एक बांह पतली होती जा रही है। मान्यता है कि जिस दिन मूर्ति खंडित होगी। उस दिन बद्रीनाथ धाम समाप्त हो जाएगा। शीतकाल में बद्रीनाथ जी की पूजा जोशीमठ में की जाती है।
बद्रीनाथ धाम : पंच कुंड
- तप्त कुंड
- नारद कुंड
- मानुषी
- त्रिकोण कुंड
- सत्यपत कुंड
बद्रीनाथ धाम : पंच शिलाएं
- नृसिंह शिला
- नारद शिला
- गरूड़ शिला
- मार्कंडेय शिला
- ब्रह्मकपाली शिला
बद्रीनाथ धाम : पांच धाराएं
- कुर्म धारा
- इन्दु धारा
- उर्वशी धारा
- भृगु धारा
- प्रहलाद धारा
इनके अलावा बद्रीनाथ के पास तीन गुफाएं स्कंद, गरुण, गरूड़ गुफा है व माणा में मुचकुंद, व्यास व गणेश गुफा स्थित है। उत्तराखंड का अंतिम गांव माणा से बद्रीनाथ धाम की दूरी 5 किलोमीटर है।
बद्रीनाथ मंदिर की पूजा प्रक्रिया
बद्रीनाथ मंदिर सुबह से दोपहर एवं शाम 4:00 बजे से 8:00 बजे तक श्रद्धालु हेतु खुला रहता है। इस बीच भगवान बद्री की पूजा प्रक्रिया हिमालयन दर्शन, अभिषेक दर्शन, अलंकार दर्शन, एवं आरती दर्शन आदि चरणों में की जाती है इस मंदिर में भगवान बद्रीनाथ जी के शरीर में मले चंदन को प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है। भक्तों को भगवान की पूजा हेतु वन तुलसी, कच्चे चने नारियल एवं मिश्री लाने की आज्ञा है। जबकि बद्रीनाथ मंदिर के रावल पुजारियों द्वारा मंदिर की पूजा के लिए केरल से अर्चक नारियल व सुपारी और कर्नाटक का चंदन आता है। बद्रीनाथ भगवान को 'भात का भोग' चढ़ाया जाता है। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने का समय बसंत पंचमी के दिन निश्चित होता है। प्रायः बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अप्रैल मई के महीने में खुल जाते हैं। यहां में 'कढ़ाई उत्सव' मनाया जाता है।
राज्य में सर्वाधिक तीर्थयात्री बद्रीनाथ धाम में आते हैं। क्योंकि बद्रीनाथ धाम केवल उत्तराखंड के चार धामों में से एक है साथ ही भारत के भी चार धामों में में से एक है। मान्यता है कि बद्रीनाथ जी के दर्शन केदारनाथ दर्शन के पश्चात करने चाहिए यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ में बद्रीनाथ के दर्शन हेतु यात्रा पश्चिम से पूरब की ओर अर्थात यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ एवं अंत में बद्रीनाथ में करने की परंपरा है।
यदि आप उत्तराखंड के चारो धाम की यात्रा करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लेख को अवश्य पढ़ें और उसी के अनुसार यात्रा करें।
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